खबर आश्चर्यचकित करने वाली है. पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास में पहली बार किसी हिंदू महिला ने आम चुनाव के लिए अपना नौमिनेशन फाइल किया है. डाक्टर सवीरा प्रकाश पाकिस्तान के खैबर पख्तूनवा के बुनेर जिले से चुनाव लड़ने जा रही हैं. उन्हें पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी यानी पीपीपी की तरफ से टिकट औफर हुआ है.
सवीरा ने पीके-25 सीट से अपना नामांकन दाखिल कर दिया है. यह अल्पसंख्यक समुदाय के लिए आरक्षित सीट है. सवीरा के पिता ओमप्रकाश पेशे से डाक्टर थे, जो हाल ही में सेवानिवृत्त हुए हैं. वे पिछले 3 दशकों से पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सक्रिय सदस्य हैं और डाक्टर सवीरा स्व यं बुनेर की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की महिला शाखा की महासचिव रह चुकी हैं.
गौरतलब है कि पाकिस्तान में आम चुनाव अगले साल 8 फरवरी को होने हैं. पाकिस्तान की प्रमुख पार्टियों ने अभी से अपनेअपने प्रत्याशियों को टिकट दे दिए हैं. प्रमुख पार्टियों की बात की जाए तो फिलहाल 3 ही पार्टियां ऐसी हैं जो सत्ता के करीब आती हुई नजर आती हैं. जिनमें पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ (पीटीआई), पाकिस्तान मुसलिम लीग (नवाज़) यानी पीएमएल-एन और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी यानी (पीपीपी).
पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यकों में आते हैं. ईसाई और सिख कम्युनिटी भी अल्पसंख्यक समुदाय में हैं. पाकिस्तान के संविधान में अल्पसंख्यकों के लिए अलग से नियमकानून बनाए गए हैं. राजनीति के कानून में अल्पसंख्यकों के लिए अलग से प्रावधान रखा गया है. संविधान के अनुच्छेद 51 (2ए) द्वारा पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में गैरमुसलिम लोगों के लिए 10 सीटें रिजर्व हैं, तो वहीं अनुच्छेद 106 के अनुसार 4 प्रांतीय विधानसभा में नौन मुसलिम लोगों के लिए 23 सीटें रिजर्व हैं. पाकिस्तान की सीनेट में भी गैरमुसलिम लोगों के लिए 4 सीटें रिजर्व हैं.
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के इतिहास में अब तक किसी भी चुनी हुई सरकार ने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है. साल 2024 में होने वाले आम चुनावों के लिए पाकिस्तान में तैयारी शुरू हो चुकी है. यहां पहली बार कोई हिंदू महिला चुनाव लड़ने जा रही है.
आरक्षण और अधिकार मिले होने के बावजूद अल्पसंख्यक उन जगहों पर नजर नहीं आते जहां बैठ कर वे अपनी कम्युनिटी के लिए कुछ अच्छे काम कर सकते हैं. दरअसल, अल्पसंख्यक समुदाय की बात करें तो पाकिस्तान में उन की स्थिति कमोबेश वैसी ही है जैसी भारत में है. वहां उसी तरह धर्म के आधार पर भेदभाव बरतते हुए हिंदुओं को प्रताड़ित किया जाता है जैसे भारत में मुसलमानों को किया जाता है.
उन के धार्मिक स्थलों पर हमले होते हैं. उन की आस्था पर चोट पहुंचाई जाती है. उन को शिक्षा से दूर रखा जाता है. उन को अच्छी नौकरियां नहीं मिलतीं. उन को सेना या सत्ता में उच्च पदों पर नियुक्ति नहीं मिलती. वहां भी अल्पसंख्यक अपनी आवाज नहीं उठा पाता है, अपने अधिकारों की बात नहीं कर पाता है. हालांकि, अल्पसंख्यकों को आबादी के आधार पर सुविधाएं और आरक्षण मौजूद हैं. संसद में भी उन के लिए आरक्षित सीटें हैं और सरकारी नौकरियों में भी आरक्षण मिला हुआ है.
दूसरी वजह यह कि पाकिस्तान में अनुसूचित जाति के हिंदुओं की आबादी सवर्ण हिंदुओं के मुकाबले अधिक है. सवर्ण जाति के हिंदू सवर्ण जाति के मुसलमानों से ज़्यादा गलबहियां करते हैं बजाय अपने निम्न जाति के हिंदुओं के. निम्न जाति के हिंदू न तो अधिक शिक्षित हैं और न ही आर्थिक रूप से समृद्ध जबकि सवर्ण हिंदू सरकार में भी शामिल हैं और नौकरियों में आरक्षण का लाभ भी ले रहे हैं.
दूसरी ओर अनुसूचित जाति के लोगों के पास न तो नौकरी है, न शिक्षा और न ही दूसरे संसाधनों तक पहुंच है. वे उसी तरह के छोटेछोटे कामधंधों में अपनी दो जून की रोटी की जुगाड़ में दिनरात लगे हैं जैसे भारत में मुसलिम कम्युनिटी के लोग. गौरतलब है कि पाकिस्तान में ग़ैरमुसलिम अल्पसंख्यकों को सरकारी नौकरियों में 5 प्रतिशत आरक्षण हासिल है, जबकि पाकिस्तान की संसद में 10 सीटें आरक्षित हैं.
संसद के ऊपरी सदन में 4 सीटें आरक्षित हैं और पाकिस्तान के प्रांतों की विधानसभाओं में कुल मिला कर 23 सीटें आरक्षित हैं. बावजूद इस के, अल्पसंख्यकों की आवाज वहां नक्कारखाने में तूती की आवाज सरीखी ही है.
1947-48 में बंटवारे के वक्त अनुसूचित जाति के हिंदू अधिक संख्या में पाकिस्तान गए क्योंकि भारत के सवर्ण हिंदुओं ने उन्हें हमेशा दुत्कारा और अपमानित किया. उन के साथ अमानवीय व्यवहार किया. बहुसंख्यक होने के बाद भी अतीत में उन पर ब्राह्मण और ठाकुरों का शासन रहा और उन को अछूत माना गया. वे यह सोच कर पाकिस्तान गए कि मुसलिम उन की पीड़ा समझेंगे और उन का सहारा बनेंगे क्योंकि वे भी उन की तरह उपेक्षित और प्रताड़ित रहे हैं. मगर उन की सोच गलत साबित हुई क्योंकि मुसलमानों में भी खुद को सवर्ण समझने वालों ने न तो भारत से आए अनुसूचित जाति के हिंदुओं को अपने बगल में बैठने की इजाजत दी और न उन गरीब व नीची जाति के मुसलमानों को जो पाकिस्तान को अपना वतन समझ कर वहां गए थे. उन्हें तो आज भी पाकिस्तान में मुहाजिर कह कर अपमानित किया जाता है.
सवर्ण चाहे हिंदू हो या मुसलमान, नीची जातियों पर हमेशा हावी रहा, उन को प्रताड़ित करता रहा और उन के हकों को मारता रहा, फिर देश चाहे भारत हो या पकिस्तान. 2017 में पाकिस्तान में हुई जनगणना में हिंदू आबादी 45 लाख के करीब पाई गई. कुछ लोगों का मानना है कि पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी कोई 80 लाख है पर अधिकांश का आज तक पंजीकरण नहीं हुआ है.
ऐसे में अगर सरकारी आंकड़े को ही मानें तो इस में करीब 85 फ़ीसदी पिछड़े और अनुसूचित जाति के हिंदू हैं. अब जब पाकिस्तान की राजनितिक पार्टियां हिंदुओं को टिकट देने का बड़ा दिल दिखा रही हैं तो अब सवर्णों और अनुसूचित जाति के हिंदुओं को एकसाथ लाने के प्रयास शुरू हो गए हैं.
पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के चेयरमैन रमेश वांकवानी अल्पसंख्यक समुदाय की एकजुटता की वकालत करते हुए कहते हैं- अनुसूचित जाति के हिंदुओं की आबादी दूसरे समुदायों की तुलना में ज़्यादा है. ऐसे में सवर्ण हिंदुओं का मानना है कि सामूहिक आवाज कहीं ज्यादा दमदार और मजबूत होगी. इन दोनों को अलग अलग वर्गों में रखना पाकिस्तान के हिंदुओं के लिए फायदेमंद नहीं है.
राजनीतिक फायदे के लिए सवर्णों द्वारा नीची जातियों को जोड़ने की ऐसी कवायद भारत में भी जारी है. यहां भी अगले साल आम चुनाव होने हैं. नीची जातियां संख्याबल में अधिक होते हुए भी सदियों से सवर्णों के हाथों की कठपुतली बनी रहीं. वे जब तक गुलामी की मानसिकता से उबर कर अपनी ताकत नहीं पहचानेंगी तब तक उन का उद्धार नहीं होगा.
पाकिस्तान हिंदू को सत्ता में शामिल कर ले या भारत मुसलमान को सत्ता में बिठा दे, अल्पसंख्यक समुदाय का भला तब तक नहीं होगा जब तक वह गुलामी की मानसिकता से निकल कर निडर नहीं होता. पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी द्वारा सवीरा प्रकाश को टिकट देने के पीछे अल्पसंख्यकों के लिए सत्ता का रास्ता खोलने से ज्यादा सवीरा प्रकाश के जरिए अल्पसंख्यकों को अपने पाले में खींच कर सत्ता हासिल करने की जो चाह है उसे अल्पसंख्यकों को समझना चाहिए.