क्या सऊदी अरब सहित खाड़ी देशों का तेल पर कायम वर्चस्व खत्म हो रहा है? क्या तेल की गिरती कीमतें इन देशों की अर्थव्यवस्था को संभालने में असमर्थ हो रही हैं? क्या सऊदी अरब द्वारा तेल की पैदावार कम न करने के बाद भी उस का दबदबा बना रहेगा? क्या तेल की जरूरत पहले से कम या फिर अन्य विकल्पों ने तेल पर निर्भरता को कम कर दिया? इन देशों का तेल पर कायम वर्चस्व खत्म होने से क्षेत्र पर इस का क्या प्रभाव पड़ेगा? क्या सऊदी अरब विश्व में मुसलिम नेतृत्व की भूमिका अदा करता रहेगा या फिर नेतृत्व ईरान के हाथ में चला जाएगा जिस का वह दावा करता है?

ऐसे अनेक सवाल तेल की गिरती कीमतों, ईरानी तेल के बाजार में आने और सऊदी अरब द्वारा ‘विजन 2030’ को पेश करने के बाद से चर्चा का विषय बने हुए हैं.

संशय में अरब

कुछ समय से तेल की गिरती कीमतों ने जहां विश्व को फायदा पहुंचाया वहां सऊदी अरब जैसे तेल पैदा करने वाले देशों को संशय में डाल दिया है. तेल की गिरती कीमतों ने ही सऊदी अरब को तेल पर निर्भरता कम करने हेतु ‘विजन 2030’ को लाने पर विवश किया है. जानकारों के अनुसार, इस विजन को लागू करने में बड़ी रुकावटें हैं. लेकिन इस में ऐसे मुद्दे भी शामिल हैं जिन को सिर्फ चर्चा के लिए लाना ही एक ऐतिहासिक पहल मानी जा रही है. निसंदेह उस की यह तैयारी तेल के बाद के समय की है जिस पर विचारविमर्श कर अमल करना है.

शहजादा मोहम्मद बिन सलमान द्वारा पेश इस विजन का मकसद सामाजिक विकास के दायरे को बढ़ावा देना है ताकि एक मजबूत उत्पादकीय समाज का निर्माण हो सके. विजन में शिक्षा, स्वास्थ्य, नागरिक विकास, सऊदी पहचान पर गर्व, इसलामी जड़ों, पर्यटन, संस्कृति और पारिवारिक जिंदगी का विकास, बच्चों में नैतिक मूल्यों को बढ़ाना, छोटे व मझोले कारोबारियों को प्रोत्साहित करना, महिलाओं का सशक्तीकरण सहित शहरों के आर्थिक विकास पर विशेष तौर पर ध्यान दिया गया है. इस के द्वारा पहली बार सऊदी कंपनी आरामको अपनी 5 फीसदी हिस्सेदारी को बाजार में बेचेगी. 2 खरब डौलर की लागत से एक सरकारी निवेश कोष बनाया जाएगा जो एक होल्डिंग कंपनी के तौर पर काम करेगा. विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए स्वतंत्र नीतियां अपनाई जाएंगी. अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए गैरजरूरी खर्चों में कटौती की जाएगी, ताकि निजी क्षेत्र का विस्तार संभव हो सके.

आर्थिक मामलों के जानकार इसे 1930 में अमेरिका की आर्थिक मंदी से उबरने में अमेरिकी राष्ट्रपति की आर्थिक योजना से जोड़ कर देख रहे हैं जब अमेरिका को आर्थिक मंदी से निकालने के लिए राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रुजवेल्ट की अगुआई में पहल की गई थी. तब इस योजना की बुनियाद ‘3 आर’ पर आधारित थी – रिलीफ, रिकवरी और रिफौर्म. इस की वजह से ही अमेरिका में कार्य में वृद्धि हुई और देश का आर्थिक विकास संभव हो सका और जिस की वजह से अमेरिका ऐतिहासिक मंदी से उबरने में कामयाब हुआ था. सवाल यह है कि क्या सऊदी अरब भी इसी तरह विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में अपना वर्चस्व बनाने में कामयाब होगा? इस सवाल का जवाब उस समय तक नहीं दिया जा सकता जब तक इस ‘विजन 2030’ पर अमल न शुरू हो जाए.

अमेरिका का तेल

विश्व बाजार की यहां के तेल पर निर्भरता के चलते ही इस क्षेत्र को ‘पैट्रोडौलर’ की संज्ञा दी गई थी, लेकिन 2015 के शुरू में ही अमेरिका का तेल बाजार में आने लगा और उस की पैदावार मध्यपूर्व के तेल की कुल पैदावार के समान थी. इस से तेल की कुल पैदावार दोगुना हो गई. अमेरिका का तेल न केवल सस्ता है, बल्कि छोटेछोटे इलाकों से भी निकाला जा सकता है. इस तेल के बाजार में आने से तेल की कीमतें आधी रह गईं. जो तेल दिसंबर 2014 में 114 डौलर प्रति बैरल था उस की कीमत 30 डौलर प्रति बैरल तक गिर गई है. इस सूरतेहाल से ज्यादा परेशानी तेल पैदा करने वाले देशों को हो रही है. सऊदी अरब किसी भी तरह तेल की पैदावार में कमी करने के लिए तैयार नहीं है. दूसरी ओर, ईरान पर से पाबंदी उठाने के बाद उसे भी विश्व बाजार में तेल बेचने की इजाजत मिल गई है. ईरान में भी तेल की बहुत पैदावार है. उस ने तय किया है कि वह तेल की पैदावार में वृद्धि करेगा. ईरान वर्तमान में तेल पैदा करने वाला चौथा सब से बड़ा देश है.

ईरान का दबदबा

ईरान मुसलिम जगत सहित विश्व के मुसलमानों को यह भरोसा दिलाता है कि वह नेतृत्व करने योग्य है और सऊदी अरब स्थित मक्का व मदीना का इंतजाम उस के हाथ में दिया जाए ताकि वह उस का कार्यभार संभाले. उस का नेतृत्व का दावा सऊदी अरब के लिए एक बड़ा चैलेंज है. इस की वजह से वह खुद को आईएसआईएस और ईरान से घिरा महसूस कर रहा है और अपने बचाव के लिए इसराईल की ओर झुक रहा है. इस का रहस्योद्घाटन इसराईली प्रधानमंत्री बेन्जामिन नेतान्याहू ने स्विटजरलैंड में आयोजित ‘वर्ल्ड इकनौमिक फोरम’ में भारतीय मूल के वरिष्ठ पत्रकार फरीद जकरिया को दिए साक्षात्कार में किया है.ईरान इस वर्ष होने वाले हज को ले कर सऊदी अरब को चेता रहा है कि हाजियों की सुरक्षा सऊदी अरब के दायित्व में शामिल है. ज्ञात रहे गत वर्ष होने वाली हज दुर्घटना में सब से ज्यादा शिया हाजी मारे गए थे और ज्यादातर ईरानी थे जबकि सऊदी अरब का तर्क है कि हज को दूसरों पर दबाव डालने अर्थात सियासी मकसद के लिए इस्तेमाल न करें.

तेल पैदा करने वाले देशों में जिस तरह का संकट पाया जा रहा है वह किसी से छिपा नहीं है. अकेले सऊदी अरब की आबादी में दोतिहाई 30 वर्ष से कम आयु के युवा हैं और इन युवाओं में बेरोजगारी 30 फीसदी तक पहुंच चुकी है. तेल व्यवस्था उन्हें रोजगार देने में असमर्थ है, जिस की वजह से वहां बेचैनी पाई जा रही है. दूसरी तरफ, सऊदी अरब ने अर्थव्यवस्था में आई गिरावट के चलते टैक्स लगाने और सब्सिडी खत्म करने का सिलसिला शुरू कर दिया है. भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश के लगभग 60 हजार कामगारों को चिह्नित किया गया है जिन की नौकरी खत्म कर वापस भेजा जाएगा. खाड़ी देशों यानी संयुक्त अरब अमीरात में भी आर्थिक मंदी दस्तक दे रही है और रोजगार के अवसर घट रहे हैं. इस दबाव को क्या ‘विजन 2030’ द्वारा दूर कर पाना संभव होगा या इस बेचैनी का फायदा ईरान उठा लेगा? इस के जवाब पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं, जो अभी भविष्य के गर्भ में है.

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