नेपाल की सियासी उठापटक एक न्यायाधीश के प्रधानमंत्री बन जाने से भले  ही थमती प्रतीत हो पर इस में कोई दोराय नहीं है कि इस फैसले के दौरान सियासी दलों का स्वार्थी व जनविरोधी चेहरा सब के सामने उजागर हो गया है. आने वाले आम चुनावों में नेपाल की सियासत का ऊंट किस करवट बैठेगा, विश्लेषण कर रहे हैं बीरेंद्र बरियार ज्योति.

नेपाल के सियासी दलों की आपसी खींचतान और सिरफुटौव्वल की वजह से आखिरकार देश के मुख्य न्यायाधीश को प्रधानमंत्री की कुरसी मिल गई. हर राजनीतिक दल के नेता इसी उठापटक में लगे थे कि अगर उन्हें प्रधानमंत्री की कुरसी नहीं मिली तो वे किसी और को भी प्रधानमंत्री बनने नहीं देंगे. यही वजह है कि आपस में रायमशविरा कर किसी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए किसी दल का नेता तैयार नहीं हुआ पर मुख्य न्यायाधीश को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाने पर सब राजी हो गए. अब आगामी 21 जून को नेपाल में होने वाला आम चुनाव उन्हीं की देखरेख में होगा.

नेपाल के मुख्य न्यायाधीश खिल राज रेगमी ने 14 मार्च को देश के नए प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली. 63 साल के रेगमी के अंतरिम प्रधानमंत्री बनने के बाद नेपाल में कई महीनों से चल रहा सियासी गतिरोध तो खत्म हो गया पर सियासी दलों की आपसी स्वार्थ की कलई एक बार फिर खुल गई कि किसी भी पार्टी को देश और जनता की चिंता नहीं है, वे बस सत्ता का सुख भोगने की जुगत में लगे रहते हैं.

राजशाही पर सत्तासुख भोगने का आरोप लगाने वाले सियासी दलों के नेता आज खुद लोकतंत्र के बहाने अपनाअपना राजतंत्र कायम करने में लगे हुए हैं. इसी चक्कर में नेपाल में होने वाला चुनाव पिछले कई महीनों से टलता रहा. रेगमी ने प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई की जगह ली है. चुनाव कराने के लिए 11 मंत्रियों की टोली का मुखिया रेगमी को बनाया गया है.

यूनाइटेड डैमोक्रैटिक मधेशी फ्रंट (यूडीएमएफ) समेत देश के 4 प्रमुख दलों की लंबी बैठक के बाद मुख्य न्यायाधीश की अगुआई में चुनावों की देखरेख के लिए सरकार गठित करने के मसले पर सहमति बनी. बैठक के बाद 11 बिंदुओं वाले राजनीतिक सहमतिपत्र  पर हस्ताक्षर किए गए. डैमोक्रैटिक मधेशी फ्रंट के विजय कुमार गच्छेदार, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के प्रमुख पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’, नेपाली कांग्रेस की अध्यक्ष सुशीला कोइराला और नेपाली कांग्रेस (युमाले) के अध्यक्ष ?ालानाथ खनाल ने हस्ताक्षर किए.

वोटर लिस्ट में सुधार करना, नागरिक प्रमाणपत्र बना कर बांटना, आम नागरिक समस्याओं को दूर करना, नेपाल सेना में शामिल माओवादियों के लिए कर्नल का 1 और लैफ्टिनैंट कर्नल के 2 पद बनाने समेत 11 बिंदुओं पर सहमति बनी.

नेपाली कांग्रेस की अध्यक्ष सुशीला कोइराला कहती हैं कि मुख्य न्यायाधीश को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाए जाने से न केवल देश में चल रहा सियासी गतिरोध खत्म हुआ है बल्कि चुनाव के बाद लोकतंत्र और मजबूत हो कर उभरेगा.

नेपाल के इतिहास में पहली बार मुख्य न्यायाधीश को सरकार का मुखिया बनाया गया है. गौरतलब है कि नेपाली संसद का कार्यकाल 2012 में ही पूरा हो गया था. सियासी दलों की आपसी खींचतान की वजह से चुनाव की तारीखें टलती जा रही थीं. आखिरकार मुख्य न्यायाधीश की अगुआई में चुनाव कराने के लिए सभी पार्टी के नेता तैयार हो गए. इस से पहले 1990 में बंगलादेश में तब के चीफ जस्टिस शहाबुद्दीन अहमद को सरकार का मुखिया बना कर चुनाव कराया गया था.

अब जब चुनाव की तैयारियां शुरू हो गई हैं तो नेपाली कांग्रेस पार्टी (माओवादी) ने नया बखेड़ा शुरू कर दिया है. वह यह मांग कर रही है कि रेगमी को हटा कर चुनाव कराने का जिम्मा सियासी दलों के हाथों में ही सौंपा जाए. ऐसा नहीं होने पर वह चुनाव में शामिल न होने की धमकी दे रही है. नेकंपा (माओवादी) अपने साथ छोटेछोटे सियासी दलों को जोड़ने की मुहिम में लगी हुई है. उस की चाल है कि किसी भी तरह से चुनाव को टाला जाए.

किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की वजह से ही नेपाल में टिकाऊ सरकार नहीं बन सकी, जिस से देश में भीतरी उठापटक मची रही और चीन वहां अपना मतलब आसानी से साधने में लगा हुआ है. यह नेपाल के साथसाथ भारत के लिए भी काफी नुकसानदेह साबित हो सकता है.

चीन जहां भारत और नेपाल के प्रति आक्रामक रवैया रखता है वहीं भारत नेपाल को छोटे भाई के रूप में देखता है और चीन से भी मधुर रिश्ता बनाए रखना चाहता है. सब जानते हैं कि चीन नेपाल में अपना दबदबा बढ़ा कर भारत पर निशाना साधे रखने की जीतोड़ कोशिशों में लगा हुआ है. चीन के लिए सब से बड़ा सिरदर्द नेपाल में रहने वाले 20 हजार तिब्बती शरणार्थी हैं जो नेपाल के रास्ते चीन और भारत आतेजाते रहते हैं. नेपाल को माली मदद दे कर चीन उसे दिमागी रूप से अपना गुलाम बनाए रखना चाहता है.

नेपाल के आधारभूत ढांचे और जलबिजली परियोजनाओं के अलावा सैन्य ताकत को मजबूत करने के लिए चीन ने नेपाल को 10 करोड़ डौलर की माली मदद देने का ऐलान किया. वहीं काठमांडू तक अपनी पहुंच को आसान बनाने के लिए चीन 1,956 किलोमीटर लंबे रेलमार्ग पर तेजी से काम कर रहा है. 2014 तक पूरी होने वाली इस गोलमुडल्हासा रेल परियोजना पर चीन 1.9 अरब रुपए खर्च कर रहा है. चीन की देखादेखी भारत ने भी नेपाल पर खजाना लुटाना शुरू कर दिया है. पिछले साल ही भारत ने नेपाल में 4 जौइंट चैकपोस्ट बनाने, नेपाल के 33 जिलों में 1,500 किलोमीटर लंबी सड़कों का जाल बिछाने और दोनों देशों के बीच 184 किलोमीटर ब्रौडगेज रेललाइन बनाने के लिए 3 हजार करोड़ रुपए की मदद दी है.

नेपाल के वीरगंज इलाके का रहने वाला कारोबारी रमेश यादव कहता है कि नेपाल में अगर मजबूत सरकार होती तो चीन की मनमानी नहीं चल पाती. नेपाल की कमजोरी का फायदा उठा कर चीन नेपाल में अपना मजबूत नैटवर्क बना कर भारत को परेशान करने में लगा हुआ है.

रेगमी की इंटरनैशनल मुहिम

रेगमी चुनाव को ले कर काफी उत्साहित हैं और चीन, जापान समेत दूसरे देशों के राजदूतों से लगातार मिल रहे हैं. रेगमी और इंटरनैशनल समुदायों की कोशिश है कि चुनाव में कम से कम दल हिस्सा लें. उन का मानना है कि जितने कम दल चुनाव में भाग लेंगे, नेपाल की राजनीतिक स्थिरता उतनी ही मजबूत होगी. अगर ऐसे हालात बनते हैं तो नेपाल में छोटे दलों का वजूद खत्म होने के कगार पर है, इसलिए छोेटे दल रेगमी की देखरेख में होने वाले चुनाव का एक सुर में विरोध कर रहे हैं.

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