पाकिस्तानी सीमा में अवैध प्रवेश से शुरू हुआ सरबजीत का सफर यातना भरी सजा, माफी की गुहार और भारत व पाकिस्तान के अस्पष्ट रवैए के उलझे गलियारों से गुजरता हुआ दर्दनाक मौत पर खत्म हुआ. पर क्या यह मौत सच में शहादत थी?
‘‘वह अपने देश जिंदा वापस नहीं लौट सका.’’ भारतीय रक्षा क्षेत्र में बसे एक गांव वाह तारा सिंह में रहने वाले 70 वर्षीय हट्टेकट्टे सरदार गुरदीप सिंह ने 23 साल पहले घटी इस घटना को कुछ इसी तरह बयां किया. गुरदीप सरबजीत के उन खास दोस्तों में हैं जिन के साथ सरबजीत का अधिकांश समय गुजरता था.
अमृतसर से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित जिला तरनतारन के भिखीविंड गांव का निवासी 24 वर्षीय सरबजीत एक खूबसूरत और हट्टाकट्टा नौजवान था. उस के परिवार में उस के पिता, पत्नी सुखप्रीत कौर, 2 बेटियां स्वप्नदीप कौर व पूनम के अलावा उस की बड़ी बहन दलबीर कौर थी जबकि मां का देहांत हो चुका था. बाद में बेटे के सदमे में पिता की भी मौत हो गई.
जब वह पाकिस्तान सीमा पर नशे की हालत में पकड़ा गया उस समय उस की बड़ी बेटी स्वप्नदीप 3 वर्ष की और छोटी बेटी पूनम 23 दिन की थी. पकड़े जाने के बाद सरबजीत को शुरुआती दिनों में इस बात का पूरा यकीन था कि उसे सरहद पार करने की बड़ी सजा नहीं मिलेगी और वह जल्दी ही छूट कर अपने घर वापस आ जाएगा. लेकिन पाकिस्तान में सरबजीत पर भारतीय जासूस होने का आरोप लगा कर मुकदमा चलाया गया और उस के साथ शत्रुओं जैसा व्यवहार किया गया.
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