सारी दुनिया भले ही आईएस से खौफ  खा रही हो लेकिन विश्व के प्रतिष्ठित थिंकटैंक और आतंकवाद सूचकांक बनाने वाली संस्था इंस्टिट्यूट फौर इकोनौमिक्स ऐंड पीस द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट के मुताबिक बोको हराम ने वर्ष 2014 में आतंकवाद से हुई मौतों के मामले में आईएस को पीछे छोड़ दिया है. यह आंकड़ा इस तथ्य की तरफ  संकेत करता है कि अफ्रीका के नाइजीरिया देश में सक्रिय बोको हराम ज्यादा चर्चित न होने पर भी हत्या करने के मामले में बहुचर्चित और दुनियाभर में खौफ  पैदा करने वाले आईएस से आगे है. इस तरह वह दुनिया का सब से खूंखार आतंकी संगठन बन चुका है. इन के बाद नाम आते हैं तालिबान, फुलानी और सोमालिया के अलशबाब का.

रिपोर्ट के मुताबिक, पहले 5 आतंकवादी संगठनों में से 3 संगठन अफ्रीका के हैं. फुलानी उग्रवादी उत्तरी और मध्य नाइजीरिया में सक्रिय हैं और अकसर ईसाई किसानों पर हमले करते हैं. पिछले वर्ष उन्होंने 1,229 हत्याएं कीं. सोमालिया, केन्या और अन्य पड़ोसी देशों में सक्रिय अलशबाब नामक संगठन ने पिछले वर्ष 1,012 हत्याओं को अंजाम दिया. इसे अलकायदा का सोमालियाई संगठन भी कहा जाता है. इस के बारे में कहा जाता है कि उस के पास कुख्यात आतंकी समूह अलकायदा का शरीर और तालिबान का उग्र तेवर है.

आतंक का बढ़ता दायरा

पहले 5 आतंकी संगठनों में 3 अफ्रीकी आतंकी संगठनों का होना इस बात का प्रतीक है कि अफ्रीका में आतंकवाद तेजी से फैलता जा रहा है. यह कंगाली में आटा गीला वाली कहावत को सच साबित कर रहा है. एक तो अफ्रीका की बेहद गरीबी, ऊपर से आतंकवाद की मार, और उस से होता बड़े पैमाने पर विस्थापन. अफ्रीकी देशों में आतंकी संगठन कुकुरमुत्तों की तरह जगहजगह उग आए हैं. पेरिस पर हुए हमले के एक हफ्ते बाद अफ्रीकी देश माली की राजधानी बोमाको के रोडिसन ब्लू होटल में जिहादी आतंकियों ने 27 लोगों को मौत के घाट उतार दिया. उन्होंने सभी को कुरान की आयतें सुनाने को कहा. जिन्होंने सुना दीं उन्हें छोड़ दिया और जो नहीं सुना पाए उन्हें गोली मार दी. अफ्रीका में जगहजगह इस तरह के हमले हो रहे हैं. सोमालिया, नाइजीरिया, माली, ट्यूनीशिया, मिस्र, चाड, कैमरून आदि की सूची बहुत लंबी है. कई जिहादी संगठन सक्रिय हो गए हैं जैसे मुजाओ अंसार, अलशरीया, साइंड इन ब्लड बटालियन आदि. कहीं फुटबौल खेलते किशोरों को गोली से भून दिया जाता है तो कहीं सैकड़ों छात्राओं को अगवा कर उन की आतंकवादियों के साथ शादी कर दी जाती है. काफिरों के सिर कलम किए जाते हैं. समलैंगिकों को फांसी दी जाती है. जजिया वसूला जाता है. इस वहशीपन का दायरा बढ़ता ही जा रहा है.

सब से खतरनाक आतंकी संगठन है बोको हराम जो नाइजीरिया में सक्रिय है. बोको हराम ने कुछ अरसे पहले खिलाफत का अगुआ कहलाने वाले आईएसआईएस का साथ निभाने की शपथ ली है. आईएस इस समय दुनिया का सब से खतरनाक आतंकी संगठन है. आईएसआईएस का नेता अबूबकर अल बगदादी खुद को खलीफा घोषित कर चुका है. फिलहाल बोको हराम को नाइजीरिया में उस के पड़ोसी देशों की मल्टिनैशनल फोर्स ने कमजोर कर दिया है. शायद इसलिए यह आईएस से हाथ मिला कर खुद को मजबूत करना चाहता है. इस से पहले तो बोको हराम ने खुद को खलीफा घोषित किया हुआ था लेकिन उसे बहुत सफलता नहीं मिली. इसलिए वह अब आईएस की शरण में आ गया है. दोनों संगठनों में सब से बड़ी समानता यह है कि दोनों ही अपने चरम हिंसा और हैवानियत के लिए दुनिया में बदनाम हैं.

कुछ अरसे पहले नाइजीरिया स्थित जाबा गांव में बोको हराम के कुछ सदस्यों ने 68 लोगों की हत्या कर दी. भारी हथियारों से लैस आतंकी बोर्नो प्रांत के गांव में सभी दिशाओं से घुस आए. उन्होंने वहां पर स्थानीय लोगों पर गोलियां बरसानी शुरू कर दीं, भागते हुए लोगों के ऊपर भी उन्होंने गोलियां बरसाईं. इन मारे जाने वाले लोगों में किशोर और बुजुर्ग भी शामिल थे. इस के 2 दिन बाद ही शहर मेदुईगुरी में हुए 5 आत्मघाती हमलों में 54 लोग मारे गए, 143 घायल हुए. अफ्रीकी देश नाइजीरिया में इस तरह के नरसंहार अब आम बात हो चुके हैं. रोजाना बोको हराम के हैवानियत की कोई न कोई खबर अखबारों की सुर्खियों में होती है. नाइजीरिया के कई राज्यों में मजबूत पकड़ रखने वाले बोको हराम में उस ने महिलाओं और बच्चों सहित 500 से अधिक लोगों का अपहरण किया. बोको हराम ने 2011 में पुलिस के खिलाफ आत्मघाती हमले किए और राजधानी अबुजा में संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय पर हमला किया. बोको हराम ने पड़ोसी देशों में भी हिंसा का तांडव मचाना शुरू कर दिया जिसे देखते हुए कैमरून, चाड और नाइजीरिया जैसे देशों ने मिल कर उस से निबटने का फैसला किया और संयुक्त रूप से लगभग 7,500 सैनिकों को बोको हराम के खिलाफ  उतारा.

नाइजीरिया में अभी चुनाव हुए जबकि बोको हराम लोकतंत्र और चुनाव का घोर विरोधी है, इसलिए उसे रोकने के लिए उस ने बड़े पैमाने पर हिंसा का तांडव किया. बोको हराम देश से मौजूदा सरकार का तख्ता पलट करना चाहता है और उसे एक पूरी तरह इसलामिक देश में तबदील करना चाहता है. कहा जाता है कि बोको हराम के समर्थक वहाबी मुसलमान हैं. बोको हराम इसलाम के उस संस्करण को प्रचलित करता है जिस में मुसलमानों को पश्चिमी समाज से संबंध रखने वाली किसी भी राजनीतिक या सामाजिक गतिविधि में भाग लेने से वर्जित किया जाता है. इस में चुनाव के दौरान मतदान में शामिल होना, टीशर्ट, पैंट पहनना और धर्मनिरपेक्ष शिक्षा लेना शामिल है. बोको हराम के नेता अबू बकर शेकाऊ ने एक वीडियो में ऐलान किया था, ‘मैं कसम खा कर कहता हूं कि नाइजीरिया में लोकतंत्र को जीवित नहीं रहने दूंगा. हम इस के खिलाफ जंग छेड़ रहे हैं और इसे हरा कर छोड़ेंगे. लोगों की सरकार, लोगों द्वारा सरकार और लोगों के लिए सरकार जैसी अवधारणा जल्द खत्म हो जाएगी और अल्लाह की सरकार और अल्लाह के लिए सरकार कायम होगी.’

हमलों की ताजा लहर से जाहिर होता है कि संयुक्त अभियान की सफलता के दावों के बावजूद नाइजीरिया और उस के पड़ोसी देशों, कैमरून, चाड और नाइजर के सामने चुनौती कम नहीं हुई है. बीते 6 साल में विद्रोहियों की हिंसा की वजह से 20 हजार से अधिक लोगों की जानें जा चुकी हैं. 10 अफ्रीकी देशों के समूह मध्य अफ्रीकी राज्यों का आर्थिक समुदाय यानी सीईईएसी ने इसलामिक आतंकवादी गुट बोको हराम से लड़ने के लिए 87 मिलियन डौलर का आपातकालीन कोष बनाने का निर्णय लिया है. पिछले 5 सालों में आतंकवादियों ने उत्तरी नाइजीरिया में हजारों लोगों का कत्ल करने के अलावा सैकड़ों लोगों का अपहरण भी किया है. बोको हराम नाइजीरिया के होसा भाषा के 2 शब्द से बना है, जिस का अर्थ पश्चिमी शिक्षा लेना वर्जित है, बोको का मतलब है नकली और हराम का मतलब वर्जित. अरबी में इस संगठन का आधिकारिक नाम जमात-ए-एहली सुन्ना लिदावित वल जिहाद है यानी जो लोग जिहाद फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हों. मुसलिम धर्मगुरु मोहम्मद यूसुफ  ने वर्ष 2002 में बोको हराम की स्थापना की.

फिर अबू बकर शेकाऊ नेता बना. यह समूह 1990 के आखिर से कई प्रकार से मौजूद रहा है. बोको हराम, अलकायदा, अलशबाब के बीच बातचीत होने, प्रशिक्षण और हथियारों की कडि़यां पाए जाने की रिपोर्ट्स आई हैं. शेकाऊ पहले इस समूह का उपकमांडर था. जुलाई 2010 में, शेकाऊ ने बोको हराम के नेतृत्व का सार्वजनिक रूप से दावा किया और उस ने नाइजीरिया में पश्चिमी हितों पर हमला करने की धमकी दी. उस महीने के अंत में, शेकाऊ ने अलकायदा के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करते हुए एक दूसरा बयान जारी किया और अमेरिका को धमकी दी. शेकाऊ के नेतृत्व में बोको हराम एक बार फिर ताकतवर हो गया.

मासूमों का शिकार

शेकाऊ के नेतृत्व में बोको हराम ने लगातार छोटे बच्चों को अपना निशाना बनाया है. अप्रैल 2014 को बोको हराम ने उत्तरी नाइजीरिया से लगभग 300 लड़कियों को उन के स्कूल से अपहरण कर लिया. एक वीडियो संदेश में, शेकाऊ ने इस अपहरण की जिम्मेदारी लेने का दावा किया, लड़कियों को गुलाम बनाया और उन्हें बाजार में बेचने की धमकी भी दी. हाल ही में इन लड़कियों के अपहरण का 1 साल पूरा हुआ. इस के अलावा वह छोटे लड़कों और लड़कियों का आत्मघाती दस्तों के तौर पर प्रयोग करता है.

रहम शब्द तो शायद इस संगठन की डिक्शनरी में ही नहीं है. कुछ समय पहले बोको हराम के आतंकवादियों ने नाइजीरिया के उत्तरपूर्व के शहर बाच्चा पर बड़ा हमला कर सैन्य अड्डे को लूट लिया. पूरे शहर में आग लगा दी. सड़कों व गलियों को लाशों से पाट दिया. बोको हराम के उक्त हमले में 20 हजार से अधिक लोग मारे गए. इस से पहले भी बोको हराम के लड़ाकों ने इस शहर पर बड़ा हमला किया था. भुखमरी के लिए दुनियाभर में चर्चित सोमालिया में सक्रिय है खूंखार आतंकी संगठन अलशबाब. कुछ अरसे पहले पाकिस्तान के पेशावर में छात्रों पर हुए नृशंस आतंकी हमले की घटना इस बार केन्या में दोहराई गई. सोमालिया के खूंखार आतंकवादी संगठन अलशबाब के आतंकियों ने ग्रेनेड और स्वचालित हथियारों से गैरीसा यूनिवर्सिटी के होस्टल में सो रहे छात्रों पर हमला बोल दिया. हमलावरों की अंधाधुंध गोलीबारी में 147 छात्र मारे गए और 79 से ज्यादा घायल हुए. चश्मदीदों के मुताबिक चरमपंथियों ने ईसाई छात्रों को अलग खड़ा कर गोलियों का निशाना बनाया. केन्या में 1998 में अमेरिकी दूतावास पर हमले के बाद यह सब से बड़ा हमला था. इस से 2 दिन पहले अलशबाब के आतंकवादियों ने सोमालिया के मका अलमुकर्रम होटल को 12 घंटे से अधिक समय तक कब्जे में रखा था जिस में सुरक्षा बलों की कार्यवाही में 6 हमलावरों समेत कम से कम 24 लोगों की मौत हुई.

अलशबाब के लिए ऐसी नृशंस हिंसा करना नई बात नहीं है. कई बार तो लगता है कि बोको हराम और अलशबाब में यह साबित करने की होड़ लगी है कि कौन कितना खूंखार है. इस से पहले, 2011 में अलशबाब ने नैरोबी के मशहूर मौल वैस्टगेट में कई विदेशियों समेत 50 से ज्यादा लोगों को मौत के घाट उतारा था. अलशबाब ने हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा था कि केन्याई बलों द्वारा सोमालिया में घुस कर चलाए गए अभियान का यह जवाब है. सोमालिया के दक्षिण में करीब 4 हजार केन्याई सैनिक मौजूद हैं, जहां वे साल 2011 से ही चरमपंथियों के खिलाफ युद्ध छेड़े हुए हैं. अलशबाब इस का विरोध कर रहा है और उस ने हमले की कड़ी चेतावनी दी थी.

तालिबानी मानसिकता

अफ्रीका के खूंखार आतंकी संगठन अलशबाब का पूरा नाम हरकत उल शबाब अल मुजाहिदीन है, लेकिन यह अलशबाब के नाम से मशहूर है. शबाब का मतलब होता है युवा. इसे अलकायदा का सोमालियाई संगठन भी कहा जाता है. इस चरमपंथी संगठन को साल 2012 में कई देशों ने आतंकी संगठन की श्रेणी में डाल दिया है. अलशबाब का दक्षिणी सोमालिया में खासा प्रभाव है. एक जमाने में वहां के कुछ इलाकों पर उस का कब्जा भी था.

अलशबाब का मकसद सोमालिया की फैडरल सरकार को गिरा कर इसलामी सरकार स्थापित करना है. वह उस सैन्य संगठन ‘इसलामिक कोर्ट यूनियन’ का एक गुट है जिसे साल 2006 में वर्तमान फैडरल सरकार ने संयुक्त राष्ट्र और इथियोपियाई सेना की मदद से हटाया था. 2006 से पहले इस सैन्य संगठन का मध्य और दक्षिणी सोमालिया पर कब्जा था. आयरो अलशबाब का पहला मुखिया था. उसी की अगुआई में अलशबाब ने तालिबान से संपर्क साधा और अपने लड़ाकों को अफगानिस्तान में तालिबान से ट्रेनिंग दिलाई. अलशबाब तालिबान की तर्ज पर सोमालिया में काम करने लगा. अलशबाब के पास करीब 15 हजार ट्रेंड आतंकी हैं. कभी शबाब का मुखिया था गोडाने. मोगादिशू के दक्षिण में एक अमेरिकी हवाई हमले में गोडाने की मौत हो गई. उस के बाद अहमद उमर को नया नेता घोषित किया गया. सोमालिया के ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में अलशबाब का खासा प्रभाव है. अलशबाब ने सोमालिया में काम कर रहे विदेशी एनजीओ और संयुक्त राष्ट्र के संगठनों पर भी तरहतरह के आरोप लगा कर उन के खिलाफ  हमले किए.

तालिबान से अपने लड़ाकों को ट्रेनिंग दिलाने वाले इस संगठन की सोच भी तालिबान जैसी ही है. वर्ष 2007 में माली के गाउ शहर में आतंकवादी हमले के बाद अलशबाब ने संगीत और नृत्य पर पाबंदी घोषित करते हुए उन पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की. उस के आतंकवादियों ने युगांडा में 11 जुलाई, 2010 को 76 लोगों की सिर्फ  इसलिए हत्या कर दी कि युगांडा सरकार ने सोमालिया में आतंकवादियों से लड़ने के लिए अपने सैनिक भेजने का फैसला लिया था. अक्तूबर 2011 से ले कर मार्च 2013 तक अलशबाब ने केन्या में इसी मुद्दे को ले कर बम विस्फोट किए और सैकड़ों जानें लीं. फरवरी 2012 में अलशबाब के तत्कालीन नेता गोडाने ने वीडियो जारी कर के अयमान अल जवाहिरी के नेतृत्त्व वाले अलकायदा में विलीन होने की घोषणा की थी. लेकिन इसे ले कर अलशबाब के नेताओं में फूट पड़ गई और यह विलय लागू नहीं हो पाया. फिर भी अलकायदा और अफ्रीका के एक प्रमुख आतंकवादी संगठन बोको हराम के साथ अलशबाब का गठबंधन चलता रहा.

अलकायदा की घटती ताकत और समर्थन के चलते इसलामी कट्टरपंथियों के बीच अब अलशबाब अधिक लोकप्रिय हो रहा है. सालों से सरकारी सेनाओं व संयुक्त राष्ट्र की सेनाओं से लड़ने के कारण अलशबाब को कठोर सैनिक प्रशिक्षण मिला है. अत्याधुनिक हथियारों से लैस अनुभवी लड़ाके इस संगठन को बेहद बेरहम और खतरनाक बनाते हैं.

अलशबाब का काम करने का अपना तरीका है जिस में रहम और करम की कोई गुंजाइश नहीं है. इस के आतंकवादी सोमालिया में 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को आतंकवादी बनाने के लिए बाकायदा स्कूल चलाते हैं और उन के दिलोदिमाग में नफरत के बीज बो कर उन्हें पश्चिमी देशों में हमलों को अंजाम देने के लिए तैयार करते हैं. आतंकवादी स्कूलों में 10 साल से छोटे बच्चों को आत्मघाती बम हमलों के बारे में शिक्षा दी जाती है और कहा जाता है कि अगर वे इन गतिविधियों में शामिल होंगे तो उन्हें तथाकथित जन्नत नसीब होगी. यह संगठन आमतौर पर सार्वजनिक स्थलों को चिह्नित कर के अंधाधुंध हमले करता है. इस का मकसद है, ऐसी दहशत फैलाना जिस से अफ्रीकी देशों में ईसाई और मुसलमानों के बीच तनाव बढ़े. सोमालिया स्थित अलशबाब का इतिहास बहुत पुराना नहीं है और न ही इस संगठन में सक्रिय सदस्यों की संख्या ही बहुत बड़ी है. अलकायदा, आईएसआईएस, तालिबान, बोको हराम, लश्करे तौयबा आदि कुख्यात आतंकवादी संगठनों की तरह अलशबाब भी इसलाम की वहाबी विचारधारा को मानता है. इस कारण शियाओं और सूफियों का विरोधी है जो मजारों और दरगाहों को मानते हैं. वहाबी विचारधारा इस के खिलाफ है. सोमालिया, जो मुख्यतया सूफी परंपरा का अनुयायी रहा है, वहां सऊदी हस्तक्षेप ने वहाबियत का जहर भर दिया. वहाबी आतंकवाद अब अफ्रीका के देशों में फैलता जा रहा है. नतीजतन, अफ्रीकी मुसलिम देश सूफीवाद और वहाबी इसलाम के बीच संघर्ष का अखाड़ा बनते जा रहे हैं. अलशबाब सोमालिया में वहाबी आतंकी संगठन अलकायदा का सहयोगी संगठन है. वह केवल सोमालिया ही नहीं, इथियोपिया, केन्या में भी आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देता है. लेकिन सोमालिया में अब सूफी संगठन के लोगों ने अलशबाब का मुकाबला करने के लिए बंदूकें उठा ली हैं.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...