किसान कर्ज में पैदा होता है, कर्ज में जीता है और कर्ज में ही मर जाता है, इस कहावत वाली कड़वी सचाई कुछ मानों में मानव जीवन पर भी इस रूप में लागू होती है कि आदमी घूस में पैदा होता है घूस में जीता है और घूस देतेदेते ही एक दिन इस नश्वर और घूसखोर संसार से विदा हो जाता है. इस के बाद यह जिम्मेदारी बिना किसी लिखित अलिखित वसीयत के उस की संतानें संभाल लेती हैं. जिन के पैदा होते वक्त दाई और अस्पताल में नर्स को पिता ने घूस दी थी. फिर स्कूल में दाखिले के लिए भी जेब ढीली की थी और फिर नौकरी के लिए भी दी थी.
अब वही संतानें घूस का यह कर्ज उतारने की परंपरा निभाते पिता के डेथ सर्टिफिकेट को वक्त पर यानी अपनी खुद की मौत के पहले हासिल कर लेने नगरनिगम, पंचायत या नगरनिगम कर्मियों को रिश्वत देंगी. इस के बाद उत्तराधिकारी प्रमाणपत्र बनवाने और जगह नामांतरण कराने से ले कर उस के बैंक सहित जहांजहां पैसे जमा होंगे वहां वहां चढ़ावा लगेगा. पैतृक संपत्ति हथियाने या उस का अपना हक हासिल करने भी घूस जरुरी है. इस के समानांतर ही गंगा पूजन, तेरहवी, पिंड दान और मोक्ष के लिए भी घूस दी जाती है. ठीक वैसे ही जैसे पिता ने नामकरण से ले कर जन्मपत्री बनवाने वगैरह के लिए दान दक्षिणा रुपी घूस दी थी. इस लिहाज से तो घूस एक तरह का कर्ज ही है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है. बस लेने वालों की शक्ल और ओहदे बदल जाते हैं.