केंद्र और उत्तर प्रदेश की सरकार को पता था कि ‘किसान क्रांति या़त्रा’ में शामिल किसान अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिये कमर कस चुके हैं. इस यात्रा में मुख्य रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसानों के साथ हरियाणा और पंजाब के किसान शामिल हैं. किसी भी सरकार ने इस यात्रा को गंभीरता से नहीं लिया. केन्द्र सरकार ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह और दूसरे लोगों की मीटिंग बुलाई तब तक देर हो चुकी थी.

केन्द्र सरकार को लग रहा था कि किसान आंदोलनकारी राजनाथ सिंह की बात मान लेंगे. राजनाथ सिंह ने किसान नेताओं को अपने वक्ष में करने की योजना बनाई पर किसान राजनाथ सिंह और केन्द्र सरकार पर भरोसा करने का तैयार नहीं हुये. ऐसे में केन्द्र सरकार के प्रस्ताव को दरकिनार कर दिया गया.

भाजपा में राजनाथ सिंह को किसानों में प्रभाव रखने वाला नेता माना जाता है. राजनाथ सिंह किसान नेताओं के भले ही करीबी रहे हों पर किसानों के नेता वह कभी नहीं रहे. केन्द्र सरकार की परेशानी यह है कि उसके पास ऐसा कोई प्रभावी नेता नहीं जिसकी बातों का वजन किसानों के बीच रह गया हो. केन्द्र सरकार ने लोकसभा चुनाव के बाद से जितने भी वादे किये वह पूरे नहीं हुये.

किसान महंगाई और भ्रष्टाचार से परेशान हैं. फसल बीमा का बहुत सारा प्रचार होने के बाद भी उसका किसानों पर प्रभाव नहीं पड़ रहा. किसानों की फसल खराब हो रही है. कोई सुनने वाला नहीं है. किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में कोई काम नहीं हो रहा है. ऐसे में अब किसानों में केन्द्र सरकार का भरोसा खत्म हो चुका है. भाजपा नेताओं और किसानों के बीच अब विपक्षी नेता भी आ खड़े हुये हैं जिससे भाजपा को लोकसभा चुनाव में नुकसान हो सकता है.

ढ़ रही किसानों की परेशानियां

5 साल पहले किसानों को मुद्दा बना कर भारतीय जनता पार्टी ने केन्द्र में सरकार बनाने में सफलता हासिल की. केन्द्र में सरकार बनाने के बाद भाजपा ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का दावा किया. बात तो किसानों की आय दोगुनी करने की थी पर केन्द्र और प्रदेश सरकार के फैसलों से किसान बेहद परेशान हो गया. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की किसानों की कर्ज माफी से भी किसानों के हालात नहीं सुधरे.

मूल रूप से किसानों की परेशानियां है उनमें भाजपा सरकार के समय व्यवाहारिक बढोत्तरी ही हुई. इनमें फसलों पर छुट्टा पशुओं का कहर, डीजल-पेट्रोल की बढ़ती कीमते, गौवंश पशुओं की खरीद फरोख्त पर झगड़े, खेती के उपकरणों, कीटनाशकों, खाद और अन्य कृषि उपकरणों पर जीएसटी, नोटबंदी से बढ़ी बेराजगारी, भरपूर फसलों की सही बिक्री व्यवस्था का न होना प्रमुख है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गन्ना किसानों को सीख देते कहा कि वह अब गन्ना की जगह दूसरी फसलों की खेती करें. जिससे उनको लाभ अधिक मिल सके. गन्ना किसानों का बड़ा प्रभाव है. उनकी प्रदेश भर में संख्या भी अधिक है. किसानों का गुस्सा केन्द्र सरकार के खिलाफ भड़कने लगा. केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं देश भर के किसानों में अपनी अनदेखी को लेकर गुस्सा है.

भारतीय किसान यूनियन की अगुवाई में उत्तर प्रदेश के साथ उत्तराखंड, हरियाणा पंजाब, के किसानों ने हरिद्वार से ‘किसान क्रांति यात्रा’ निकाली. किसान दिल्ली पहुंच कर किसान घाट पर धरना देना चाहते थे. केन्द्र सरकार ने किसानों को गाजियाबाद में ही रोक लिया और किसानों पर लाठी गोली चला दी. इसमें 100 से अधिक किसान और 7 पुलिस के लोग घायल हो गये. अब तक केन्द्र सरकार ने किसान आंदोलन को हल्के में लिया था.

सरकार की खराब होती साख

जब गोली-लाठी चलने के बाद दबाव में आई केन्द्र सरकार ने किसानों से बातचीत का रास्ता निकाला तब तक देर हो चुकी थी. केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने किसानों के साथ बातचीत शुरू की. राजनाथ सिंह ने कहा कि किसानों की 11 में से 7 मांगे मान ली गई हैं. इसके बाद भी किसानों ने सरकार की बात नहीं मानी. किसानों पर गोली और लाठी की घटना ने देश में इसको मुद्दा बना लिया. विपक्षी पार्टियां भी किसानों के पक्ष में मैदान में आ खड़ी हुई. असल में किसानों में गुस्सा बहुत समय से बना हुआ है. किसानों के छोटे बड़े आंदोलन हर प्रदेश में चल रहे हैं. पिछले साल मध्य प्रदेश के मंदसौर में पुलिस ने किसानों पर फायरिंग की. जिसमें 6 किसानों की मौत हुई. मार्च 2018 में महाराष्ट्र में 30 हजार किसानों ने नासिक से 5 दिन लंबा सफर तय कर महाराष्ट्र की विधानसभा का घेराव किया.

तमिलनाडु के किसान दिल्ली के जतर मंतर पहुंचे और कई दिनों तक धरना प्रदर्शन किया. बहुत सारे कारणों के चलते खेती अब घाटे का सौदा हो गया है. ऐसे में किसान परेशान हैं. महंगाई और बेराजगारी का प्रभाव किसानों पर सबसे अधिक पड़ रहा है.

भाजपा की परेशानी यह है कि वह हर विरोध को देश के विरोध से जोड़कर देखती है. ऐसे में गंभीर होती परेशानी का असर उस पर नहीं पड़ता जिससे मदंसौर और दिल्ली जैसी घटनायें किसानों के खिलाफ हो जाती हैं. भाजपा हिन्दू मुसलिम वोट बैंक के चक्कर में यह भूल जाती है कि असल समस्या आर्थिक होती है. गांव स्तर पर कई तरह की परेशानियां खड़ी हैं. जिनके लिये व्यवहारिक सोच नहीं तैयार हो रही. जिससे किसानों में गुस्सा है. आम आदमी भी अब किसानों के साथ खड़ा है.

चुनावी साल में बढ़ेगा दबाव

किसानों की परेशानियां बढ़ रही हैं. अब किसानों के साथ आम जनता और विपक्षी दल भी जुट खड़े हो गये हैं. यह चुनावी साल है. किसानों को भी लग रहा है कि अब आंदोलन से लाभ हो सकता है. भाजपा को इस बात का आभास है. यही वजह है कि वह किसानों पर हुये लाठी और गोलीकांड को लेकर बैकफुट पर आ गई है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ‘किसान हमारी प्राथमिकता है. केन्द्र सरकार और प्रदेश सरकार दोनों ही किसानों के हित में खड़ी है.’ मुख्यमंत्री योगी ने विपक्ष पर भी सवाल उठाते कहा कि ‘किसानों का शोषण करने वाले लोग आज किसानों के हक की बात करके घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं.’ यही नहीं योगी आदित्यनाथ ने अपने बड़बोलेपन में यहां तक कह दिया कि केजरीवाल, अखिलेश और चौधरी अजीत सिंह ऐसे नेता हैं जिनको आलू और गन्ने का अंतर नहीं पता है.

किसान आनोन्दलन को लेकर विपक्षी नेता भी अब किसानों के साथ खड़े हैं. बसपा नेता मायावती ने कहा कि ‘भाजपा की सरकार ने किसानों पर लाठी गोली चलवाकर अपनी तानाशाही का पूरा सबूत दिया है. किसानों और जनता से अच्छे दिनों का वादा करने वाली सरकार लाठियां बरसवा रही है. भाजपा की नीतियां गरीब और किसान विरोधी हैं. किसान वर्ग गहरे संकट में है.’ सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि ‘किसानों को गन्ने का पैकेज देने की बात कही गई पर पैसा नहीं दिया जा रहा. किसानों का गन्ना मूल्य अभी भी बाकी है. 5 सालों में तमाम किसानों ने आत्महत्या की है. ज्यादा प्रदेशों में भाजपा की ही सरकार है. ऐसे में समझ आता है कि किसान के लिये भाजपा के दिल में रहम नहीं है.’

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