16 सितंबर को चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के जनता दल (यूनाइटेड) में शामिल होने की खबरें मीडिया में छाई रहीं. लेकिन अब पता चला ​है कि राजनीतिक परामर्श देने वाली उनकी कंपनी, इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमिटि (आईपेक) के अंदर कामकाज के तरीके को लेकर विवाद चल रहा है. हैदराबाद स्थित आईपेक के मुख्यालय में एक सर्वे कर कंपनी में काम करने वालों से पूछा गया कि आगामी लोक सभा चुनावों में वे किस पार्टी के साथ काम करना चाहते हैं. उस सर्वे में भाग लेने वाले आईपेक के एक पुराने और एक मौजूदा कर्मचारी का कहना है कि अधिकतर कर्मचारियों की राय कांग्रेस पार्टी के साथ काम करने की थी लेकिन इसके बावजूद आईपेक ने भाजपा का चयन किया.

हालांकि, आईपेक ने अभी तक आधिकारिक रूप से इसकी घोषणा नहीं की है लेकिन इन दोनों का कहना है कि भाजपा के पक्ष में सर्वे के परिणामों को तोड़ा-मरोड़ा गया है. मौजूदा कर्मचारी का कहना है, ‘‘जिस तरह से इन लोगों ने सर्वे किया उससे शक पैदा होता है. हम सभी को पहले से ही मालूम था कि हम लोग बीजेपी के लिए काम करेंगे. फिर भी पोल का नाटक किया गया.’’ इन लोगों की शिकायत यह नहीं है कि ये लोग भाजपा के साथ काम करने वाले हैं. बल्कि कंपनी के ढोंग से इनमें नाराजगी है. ‘‘वे लोग कह सकते थे, ‘सब सुनो, हम लोग भाजपा के साथ काम करने जा रहे हैं. तुम लोग प्रोफेशनल तरीके से काम करो. तुम लोगों को इसलिए तो भर्ती किया गया है.’’

सर्वे से पहले ही कंपनी के भीतर बड़ी अजीबो-गरीब बातें हो रही थीं. 9 सितंबर को हैदराबाद के इंडियन स्कूल औफ बिजनस के छात्रों के साथ अपनी बातचीत में प्रशांत किशोर ने कहा था कि ‘‘अब वह किसी भी पार्टी के साथ उस तरह से काम नहीं करेंगे जैसे 2014 से करते आए हैं.’’ दूसरे दिन हैदराबाद के गोलकोंडा हॉस्टल में आईपेक ने अपने कर्मचारियों को हाथ उठा कर यह बताने के लिए कहा कि वे लोग लोकसभा चुनाव में किस पार्टी के लिए काम करना चाहते हैं. उस वक्त वहां मौजूद पूर्व कर्मचारी का कहना है कि ज्यादातर लोगों ने कांग्रेस के साथ काम करने की इच्छा जताई.

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