छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी  के आलाकमान ने विधायक मोहन मरकाम को प्रदेश अध्यक्ष का ‘ताज’ पहना दिया है . प्रदेश में इस बहुप्रतीक्षित नियुक्ति का लंबा इंतजार खत्म हो गया है . मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नए सदर मोहन मरकाम को बधाई दे दी है . कांग्रेस में गांव से लेकर राजधानी तक मोहन मरकाम को प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष बनने पर खुशी व्यक्त की जा रही है. बधाई का तांता लगा हुआ है . जैसा कि हमेशा होता है… अभी भी वही नाटक चल रहा है वही चापलूसी, वही जर्रा नवाजी वही आंखें बंद करके आलाकमान के आदेश का पालन.

कुछ प्रश्न हैं, जिनका जवाब शायद, न तो कांग्रेस के सुप्रीम नेता राहुल गांधी के पास है, न ही छत्तीसगढ़ प्रदेश के सत्ता के मुखिया भूपेश बघेल और पूर्व नेता प्रतिपक्ष व वर्तमान में नंबर दो की हैसियत रखने वाले टी. एस. सिंहदेव के पास . यह सवाल है तो जवाब भी आने चाहिए . मोहन मरकाम की नियुक्ति के सकारात्मक नकारात्मक प्रभाव से आपको अवगत कराया जाए उससे पूर्व यह प्रश्न जानना आपके लिए आवश्यक है ताकि छत्तीसगढ़ की कांग्रेसी राजनीति से आप कुछ समझ सकें….. और राहुल गांधी के इस्तीफे के एक बड़े राष्ट्रीय प्रश्न को भी आप समझ जाए, आपमें इसका माद्दा पैदा हो .

 प्रश्न राहुल गांधी से…

23 मई को जैसे ही लोकसभा समर के परिणाम आए और कांग्रेस का एक तरह से सूपड़ा साफ हो गया. तब कांग्रेस मे सनाका खींच गया . मन में उठते प्रश्नों को दबाकर श्रीमती सोनिया गांधी, राहुल गांधी व उनके कांग्रेस परिवार ने नरेंद्र मोदी को बधाई दी और जनादेश स्वीकार किया . चंद दिनों बाद राहुल गांधी ने इस्तीफे की बात कही और इस्तीफे पर अड़ गए . कहा-“नहीं मैं इस्तीफा दे कर रहूंगा.”

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी हतप्रभ रह गई क्योंकि ऐसा तो होता रहता है. लोकतंत्र में कोई जीतता है कोई हारता है . मगर राहुल गांधी ने मानो तड़प कर यह स्वीकार किया कि कांग्रेस की यह हालत इसलिए है कि उनका नेतृत्व उनका, आभामंडल कहीं चूक गया है . प्रियंका गांधी का बड़ा आसरा था मगर वह भी चमत्कार नहीं दिखा पाईं.

ऐसे में राहुल गांधी का इस्तीफा एक क्रांतिकारी कदम था . मगर उसमें पुन: एक माह का समय दिया जाना ? यह कांग्रेस को कमजोर बनाता है इस्तीफा तो इस्तीफा फिर काहे का मान मनौव्वल . राहुल गांधी डटे हुए हैं . एक माह व्यतीत हो चुका है अशोक गहलोत का नाम चर्चा में है . सवाल है,  कांग्रेस में चुनाव क्यों नहीं कराया जाता… पार्टी संगठन में, पूर्व में 2 वर्षों में चुनाव का नाटक होता था. श्रीमती सोनिया गांधी ने उसे 5 वर्षों का करा दिया .कांग्रेस संविधान बदल दिया गया, कांग्रेस अब इसीलिए मरणासन्न है.इधर छत्तीसगढ़ सहित सभी प्रदेशों में संगठन में फेरबदल की जा रही है.

प्रश्न यही है, जब आपको राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं रहना है फिर आप प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति क्यों कर रहे हैं ?

कोई सशक्त चेहरा नहीं मिला आपको…

राहुल गांधी ने  छत्तीसगढ़ कांग्रेस के दो विधायकों का इंटरव्यू लिया. वे थे मनोज मंडावी व मोहन मरकाम . दोनों बस्तर अंचल से विधायक हैं . मजे की बात यह कि दोनों विधायकों को प्रदेश की सत्ता के संरक्षण में राहुल गांधी से मिलवाया गया . प्रदेश में कांग्रेस के एक से एक सशक्त और प्रखर नेता है चाहे वह विधायक, सांसद हो या न हो ऐसी फेहरिस्त को छोड़कर कांग्रेस ने आदिवासी कार्ड खेला है और सहज सरल स्वभाव के मोहन मरकाम जो कोडांगांव से विधायक है को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का सदर बना दिया गया .

प्रश्न है छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के बड़े चेहरे सत्ता सुख भोगने के लिए सत्ता के घोड़े  पर चढ़ गए हैं अब पार्टी को कौन संभाले ?

डां. चरणदास महंत, रवींद्र चौबे, टी.एस. सिंहदेव जैसे बड़े नाम 15 वर्षों के वनवास के बाद सत्ता सुंदरी का सुख भोगना चाहते हैं . यह ऐसे लोग हैं जिन्हें प्रदेश का हर एक कार्यकर्ता जानता है यह ऐसी हस्तियां हैं जिनकी प्रदेश की राजनीति पर पकड़ है अच्छा दखल है . मगर प्रदेश अध्यक्ष पद अब इन्हे छोटा प्रतीत होने लगा है जिस संगठन के बूते आज कांग्रेस सत्ता में आई है,उस संगठन की उपेक्षा कर ऐसे शख्स को अध्यक्षी का ताज पहनाया गया है जो संपूर्ण छत्तीसगढ़ से वाफिक ही नहीं है .

सत्ता संगठन में टकराव कारण है

दरअसल सहज सरल और ऐसे शख्स को अध्यक्ष बनाना, जो नया नवेला हो, यह सत्ता की चाहत होती है और राहुल गांधी इस चक्रव्यूह में फंस गए . अविभाजित मध्य प्रदेश के दरमियान ख्याल करें तो दिग्गज हस्तियां पार्टी का प्रमुख चेहरा होती थी जिससे प्रदेश में सरगर्मी का संचार होता था और पार्टी जनता जनार्दन की नब्ज पर हाथ रखती थी. अब भूपेश के राज में संगठन की नब्ज पर सत्ता का हाथ होगा . परिणाम स्वरूप छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की स्थिति कमजोर होगी . और यह सब जान समझ कर किया जा रहा है अगरचे किसी तेजतर्रार शख्स को सदर बना दिया जाए तो सत्ता संगठन में तलवारें निकल आती है प्रदेश अध्यक्ष मुख्यमंत्री बनने के सपने देखने लगता है इस कारण संगठन की भ्रूण हत्या छत्तीसगढ़ में मोहन मरकाम को प्रदेश अध्यक्ष बना की गयी है. जो शख्स  बस्तर से लेकर सरगुजा तक जनता और कार्यकर्ताओं से वाफिक ही नहीं है उसे अध्यक्ष बनाने का और क्या मतलब है यानी इसका लाभ आगे भाजपा को भरपूर मिलेगा .

दिग्गजों की अनदेखी क्यों

ठीक है छत्तीसगढ़ में आपको 68 विधायकों का भारी बहुमत मिल गया है तो क्या यह आपके व्यक्तित्व का चमत्कार है ! राजनीतिक पंडितों के अनुसार यह सामूहिक नेतृत्व का कमाल है और उसके आगे डाक्टर रमन के 15 वर्षों की एन्टीइन्कमबेसी का. ऐसे में छत्तीसगढ़ के बड़े दिग्गजों की अनदेखी अच्छी बात नहीं है .

मोतीलाल वोरा एक बड़े चेहरे हैं . बड़ा कद है . उसके बाद सत्यनारायण शर्मा हैं जो चार दशकों से कांग्रेस की राजनीति के क्षत्रप है. अमितेश शुक्ल हैं जो पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल के सुपुत्र हैं .अरुण वोरा हैं धनेंद्र साहू संगठन में देखें तो शैलेश नितिन त्रिवेदी रमेश वल्याणी किरणमयी नायक भाजपा से कांग्रेस में  पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की भतीजी करुणा शुक्ला है.ऐसी शख्सियतों को छोड़कर जिनकी मुट्ठी में प्रदेश है,जाने पहचाने चेहरे हैं किसी नये शख्स को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपना. यह जग जाहिर करता है कि यह पार्टी के हित में कतई कतई  नहीं है .

कौन है मोहन मरकाम

सरकारी नौकरी छोड़कर 2008 में मोहन मरकाम ने पहला चुनाव लड़ा और विजयी हुए . बंगाल टाइगर कहे जाने वाले महेंद्र कर्मा ने उन्हें राजनीति में लाकर आगे बढ़ाया 2013 में विधायक बने और पुनः 2018 में विजयी हुए . बखत इतना परिचय होने के पश्चात सिर्फ राजनीतिक समीकरणों, आदिवासी कार्ड के नाम पर आप प्रदेश के अध्यक्ष मनोनीत हुए हैं. देखिए आगे आगे होता है क्या.एक कहावत है आदमी को ठंडे दूध को फूंक मार मार कर नहीं पीना चाहिए मगर कांग्रेस अब यही करने लगी है.

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