10 मार्च, 2024 को प्रधानमंत्री मोदी ने अपने यूट्यूब चैनल ‘नरेंद्र मोदी’ पर एक विज्ञापन वीडियो पोस्ट किया, जिस का टाइटल उन्होंने ‘सेफ्टी एंड सिक्योरिटी औफ औल इंडियन एश्योर्ड ऐज दे आर मोदी का परिवार’. यह वीडियो उस श्रंखला में एक वीडियो था जिस में 3 मार्च को पटना के गांधी मैदान में ‘इंडिया अलायंस’ की पहली बड़ी रैली हुई.

इस रैली से एक दिन पहले यानी 2 मार्च को औरंगाबाद में एनडीए की रैली थी जिस में बिहार के मुख्यमंत्री और खुद प्रधानमंत्री मोदी मौजूद थे. एनडीए के मुकाबले भीड़, भाषण और चर्चाओं को ले कर ‘इंडिया’ अलायंस की रैली सफल और चर्चा में रही. यहीं से लालू प्रसाद यादव ने मोदी के ‘परिवारवाद’ के आरोपों का जवाब दिया. जिस के बाद भाजपा ने सोशल मीडिया पर ‘मोदी का परिवार’ कैंपेन चलाया.

इसी कैंपेन के तहत मोदी ने अपने यूट्यूब अकाउंट से विज्ञापन वीडियो पोस्ट की, जिस में एक लड़की जो विदेश में कहीं फंसी थी और एयरपोर्ट पर आ कर अपने पापा से कहती है कि ‘पापा, मोदी ने हमें बचा लिया.’ यह लाइन सोशल मीडिया पर मीमर और ट्रोलर के लिए पंच लाइन बन गई, जिस चलते आज जहांतहां सोशल मीडिया पर इस वीडियो का मजाक बनाया जा रहा है.

जाहिर है सोशल मीडिया अनोखी जगह है, जहां कभी भी कोई भी चीज उछल आती है. यह मेनस्ट्रीम मीडिया से हट कर एक ऐसा टूल बन कर उभरा है जिस पर आम लोगों का भी एक हद तक फिलहाल सीधा नियंत्रण बना हुआ है. और इस चलते ढेर सारा पैसा प्रचार में खर्च करने के बावजूद कभीकभी सोशल मीडिया पर पार्टियों द्वारा सरकाई कोई पोस्ट या वीडियो यूजर्स के लिए ऐसा मीम मैटीरियल बन जाता है कि चाह कर उस का डैमेज कंट्रोल नहीं हो पाता. ‘आलू से सोना बनाने वाली मशीन’ के जिस खेल में कभी भाजपा खेलती थी, सोशल मीडिया इतना अनियमित हो चला है कि जो भस्मासुर जैसा जो वरदान उसे कभी मिला था अब वह खुद भी इस में जलने लगी है, जैसा ‘पापा’ वाले वीडियो के साथ हो रहा है.

सोशल मडिया पर नियंत्रण

यही कारण भी है कि मेनस्ट्रीम मीडिया को अपने नियंत्रण में लेने के बाद अब भाजपा सरकार सोशल मीडिया के पीछे हाथ धो कर पड़ गई है. वह चाहती है कि इनफौर्मेशन के पूरे तंत्र पर सिर्फ उसी का नियंत्रण हो.

20 मार्च, 2024 को पीआईबी के अंतर्गत लाया गया फैक्ट चैक यूनिट उसी कड़ी में एक है, जिस पर अगले ही दिन यानी 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने लोग लगा दी है. फैक्ट चैक यूनिट दरअसल सरकार की तरफ से ऐसा विभाग होगा जो सोशल मीडिया (फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर व अन्य माध्यमों) में किसी जानकारी को फेक या गलत बता सकती है. और यदि यह यूनिट किसी जानकारी को गलत बता देती है तो संबंधित प्लेटफौर्म को उस जानकारी को तुरंत हटाने के लिए बाध्य होना पड़ेगा.

इस के अनुसार इंटरनैट से उस का यूआरएल भी ब्लौक करने की बात कही गई है. पिछले साल अप्रैल में सरकार ने इस के नाम का ऐलान किया था. यह सूचना प्रौद्योगिकी नियम 2021 (इनफौर्मेशन एंड टैक्नोलौजी नियम 2021) में संशोधन के बाद लाया गया था. इस की स्थापना नवंबर 2019 में की गई थी.

अब सुप्रीम कोर्ट ने इस यूनिट पर रोक लगा दी है यह कहते हुए कि इस से अभिव्यक्ति की आजादी को ख़तरा है. सरकार के आईटी नियमों में बदलाव को ले कर सिविल सोसाइटीज, विपक्षी दलों और डिजिटल मीडिया संस्थानों ने पहले ही अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी. उन का कहना था कि इस तरह के नियमों से सोशल मीडिया पर सरकार का हस्तक्षेप बढ़ेगा और अपनी बात कहने की आजादी में एक बड़ी रुकावट बनेगी.

सरकार ने भले इसे ले कर कहा कि वह इस यूनिट को विश्वसनीय तरीके से चलाएगी पर संशय इसी बात का है कि सरकार इस यूनिट का बेजा इस्तेमाल कर सकती है और अपने अनुसार इनफौर्मेशन को नियंत्रण कर सकती है. वह अपने खिलाफ उठ रही आवाजों, आलोचनाओं, सवालों को दबा सकती है.

संशोधनों का विरोध

आईटी नियमों में संशोधन के खिलाफ एडिटर्स गिल्ड औफ इंडिया, न्यूज ब्रौडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन और एसोसिएशन औफ इंडियन मैगजीन ने बौम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस में कहा गया था कि ये नियम असंवैधानिक और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं.

इसे ले कर तब इंटरनैट फ्रीडम फाउंडेशन, भारतीय डिजिटल स्वतंत्रता संगठन ने 2023 के संशोधन पर बयान जारी किया था जिस में इस की प्रासंगिकता पर चिंता जताई गई. उन्होंने कहा, “सरकार की किसी भी यूनिट को औनलाइन सामग्री की प्रामाणिकता निर्धारित करने के लिए इस तरह की मनमानी, व्यापक शक्तियां सौंपना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को दरकिनार करता है.

“इस प्रकार यह असंवैधानिक अभ्यास है. इन संशोधित नियमों की अधिसूचना भाषण और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार, विशेषरूप से समाचार प्रकाशकों, पत्रकारों, गतिविधियों आदि पर द्रुतशीतन प्रभाव को मजबूत करती है.”

एडिटर्स गिल्ड औफ इंडिया ने यह भी इस पर आपत्ति जताई कि “फेक न्यूज तय करने की शक्तियां पूरी तरह से सरकार के हाथ में होना प्रैस की आजादी के विरोध में है.”

सुप्रीम कोर्ट की रोक

इसी मसले पर संबंधित विरोधी पक्षों ने कोर्ट में याचिका डाली. तब याचिका की सुनवाई में फैसला देते हुए जस्टिस जी एस पटेल ने संशोधन के विरोध में और जस्टिस नीला गोखले ने पक्ष में फैसला दिया था. जब मामला तीसरे जज जस्टिस चंदूरकर के पास गया तो उन्होंने संशोधन पर स्टे लगाने से मना कर दिया.

हालांकि पहले केंद्र सरकार ने कहा था कि मामले की सुनवाई पूरी होने तक वह फैक्ट चैक यूनिट की अधिसूचना जारी नहीं करेगी, लेकिन तीसरे जज के संशोधन पर रोक लगाने से मना करने के बाद कोर्ट ने सरकार को अधिसूचना लाने की इजाजत दे दी थी.

तब बौम्बे हाईकोर्ट के फैसले से नाखुश याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और संशोधन पर रोक लगाने की मांग की. जिस के बाद 21 मार्च को सुप्रीट कोर्ट ने इस पर रोक लगाई.

थूथू कड़वा घपघप मीठा

हालांकि यह रोक देश में अभिव्यक्ति की आजादी चाहने वालों के लिए जरूर सुकून देने वाली है पर कितने दिनों यह सुकून रहेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता, क्योंकि सरकार के पास ऐसे तमाम हथकंडे हैं जिन से वह अपनी मनमरजी चला रही है. क्योंकि मामला यहां सिर्फ नियंत्रण का नहीं है, बल्कि पूरी मीडिया तंत्र को हाईजैक करने का है.

एक हाथ वह मुद्दों पर आधारित मीडिया हाउसों को नियंत्रण तो कर रही है तो दूसरे हाथ अपने भ्रामक विचारों और झूठे दावों का प्रचार कर रही है. यानी, यह सोचीसमझी रणनीति के तहत सूचना तंत्र को हाईजैक करना है. लोकनीति सैंटर फौर स्टडी सोसाइटी ने पिछले साल हुए मध्य प्रदेश, छतीसगढ़ और राजस्थान में चुनावी पार्टियों द्वारा फेसबुक और इंस्टाग्राम में किए सोशल मीडिया प्रचार पर हुए खर्चों के आंकड़े सामने रखे.

रिपोर्ट 90 दिनों के खर्चों का ब्योरा देती है, जिस में भाजपा और कांग्रेस में ढाई गुने का अंतर था. जहां कांग्रेस ने इन तीनों राज्यों में तकरीबन 99 लाख रुपए खर्च किए, वहीँ भाजपा ने 2 करोड़ 68 लाख रुपए खर्च किए.

इसी तरह ‘द हिंदू’ अखबार की रिपोर्ट बताती है कि फरवरी 2019 से ले कर फरवरी 2023 तक, यानी इन 5 सालों के बीच भारतीय जनता पार्टी ने कुल 33 करोड़ रुपए सोशल मीडिया में अपने प्रचारप्रसार के लिए खर्च किए. गौर करने वाली बात यह कि यह उस पूरे पैसे का लगभग 10 प्रतिशत है जो सभी विज्ञापनदाताओं ने (यानी हर तरह के) उस अवधि में भारत में फेसबुक विज्ञापन चलाने के लिए खर्च किया. फेसबुक को भारत से विज्ञापन के माध्यम से 360 रुपए की कमाई हुई.

फेसबुक पर अपनी उपलब्धियां बताने के साथसाथ बनाए गए ये पेज विपक्षी पार्टियों को बदनाम और भ्रमित करने वाली जानकारियों से भरे पड़े हैं. भारत में फेसबुक के शीर्ष 15 विज्ञापनदाताओं में से 6 भाजपा द्वारा संचालित पेज हैं. उन में से 2 आईएनसी द्वारा संचालित हैं.

इस सूची में ‘एक धोखा केजरीवाल ने’ भी शामिल है, जो सिर्फ एक बदनामी वाला पेज है जो नियमित रूप से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बदनाम करता है, जिन्हें ईडी ने गिरफ्तार कर लिया है. ‘ठग्स औफ झारखंड’ के नाम से बनाए एक अन्य पेज में सोरेन परिवार और विपक्ष को टारगेट करने के लिए बनाया गया है. इस पेज में आधे से ज्यादा कंटैंट भ्रमित करने वाला है.

ऐसे ही ‘द फ्रस्ट्रेटेड बंगाली’ पेज बनाया गया जिसे अब डाउन कर दिया गया है. इस पेज में लास्ट पोस्ट 26 मई, 2022 में डाली गई. यह पोस्ट भाजपाविरोधी दलों, खासकर ममता बनर्जी, को टारगेट करती है जिस पर साढ़े 6 लाख से अधिक फौलोअर्स हैं. यह सिर्फ विरोधी पार्टियों को टारगेट नहीं कर रहा, बल्कि एक विचारधारा के रूप में भी भ्रम फैलाया जा रहा है, जहां मीम के रूप में ढेरों फेक इनफौर्मेशन ठेली जा रही है, जैसे ‘भीमटा मुक्त भारत’ खासकर बहुजन व दलित विरोधी पेज के रूप में बनाया गया है. इस पेज में भीम राव आंबेडकर का मजाक बनाया जाता है, इस पेज के भाजपा से जुड़ने का तथ्य क्लियर नहीं पर इस पेज पर भाजपा समर्थित सामग्री डाली जाती हैं. ऐसे ढेरों पेज इस समय सोशल मीडिया पर संगठित रूप से काम कर रहे हैं.

मामला ज्यादा खतरनाक

इसे थोड़ा और बारीकी से समझने की जरूरत है. 8 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी ने 5 हजार से ज्यादा सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को देशभर से बुलाया और अवार्ड दिया. इसे ‘नेशनल क्रिएटर्स अवार्ड’ कहा गया. अल्लेपुछल्ले इन क्रिएटर्स के लाखों में फौलोअर्स और सब्सक्राइबर्स हैं.

इन में से कुछ ऐसे क्रिएटर्स थे जिन की जीहुजूरी वाले पोडकास्ट में बड़ेबड़े केंद्रीय मंत्रियों के इंटरव्यू भरे पड़े हैं और कुछ ऐसे थे जिन के कंटैंट से भाजपा को राजनीतिक और वैचारिक रूप से कोई समस्या नहीं. देशभर के इन्फ्लुएंसर्स को एक मंच पर बुलाना कोई सामान्य घटना नहीं थी. इसे विकेंद्रित नव सूचना केंद्रों पर मोदी और भाजपा की पकड़ बनने के बढ़ते कदम के रूप में देखा जाना चाहिए.

मेनस्ट्रीम न्यूज चैनलों में आम जनता के मुद्दे गायब हैं. वहां इतना समझा जा चुका है कि ये चैनल सरकारपरस्त जानकारी ही परोस रहे हैं, एकजैसी खबरें, प्रोपगंडा खबरें आदि. सारा दिन मोदी की तारीफ देख कर लोगों का मोहभंग हो रहा है और वे यूट्यूब या सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं.

आज न्यूजफीड यूट्यूब चैनलों को देखें तो सब से ज्यादा उन यूट्यूब चैनलों को देखा जा रहा है जो एंटीएस्टेब्लिशमैंट खबरें दे रहे हैं. हाल ही में ध्रुव राठी के ‘द डिक्टेटर’ वीडियो को पहले 24 घंटे में 1 करोड़ से अधिक लोगों ने देखा जो अपनेआप में किसी पौलिटिकल कंटैंट वाली वीडियो का एक बड़ा रिकौर्ड था. तेजस्वी, राहुल और अखिलेश के भाषण ज्यादा वायरल हो रहे हैं.

यह बात भाजपा जानती है कि मेनस्ट्रीम चैनलों में जनता के मुद्दों के लिए घटते स्पेस से लोग अपने दुखों को बताने के लिए यूट्यूब चैनलों और वैबसाइट्स का सहारा ले रहे हैं, नहीं तो अपना समय रील्स और अधकचरे एक्स्प्लैनर को देखते हुए काट रहे हैं. भाजपा की कोशिश यह है कि- एक, उन क्रिएटर्स के साथ कोलैब कर अपने पाले में कर लिया जाए जिन के फौलोअर्स हैं, दूसरे, जो पाले में नहीं आ रहे उन्हें स्ट्राइक डाउन जैसे नियमों के तहत बांध दिया जाए. उन के कंटैंट पर रोक लगा दी जाए. यानी, सूचना का सिर्फ एक ही माध्यम बने और वह सिर्फ सत्ता पक्ष का ही हो.

इस खेल में भाजपा अभी भी इसलिए आगे है क्योंकि इलैक्टोरल बौंड जैसी स्कीम से उस के पास अथाह पैसा आ चुका है. जजों व नेताओं को धमकाने व खरीदने का काम वह काफी पहले से करना शुरू कर चुकी है. उस के पास मीडिया तो पहले से थी ही, अब सोशल मीडिया पर भी पूरी तरह नियंत्रण जमा लेना चाहती है.

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