इस से पहले कि कोई पूछता या उंगली उठाता, खुद जयराम ठाकुर ने ही ट्वीट कर दिया कि इस पराजय की वजह बढ़ती हुई महंगाई है. जाहिर है इस की जिम्मेदार केंद्र सरकार ही होती है. हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट सहित 3 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में वोटरों ने इस बार भाजपा पर भरोसा नहीं किया, नहीं तो सभी राज्यों में नतीजे उम्मीद के मुताबिक आए थे और मतदाता ने सत्तारूढ़ दल को ही जिताया.
हिमाचल में ऐसा क्या हो गया कि गढ़ में ही लोग रूठ गए. इस की जवाबदेही मुख्यमंत्री की ही बनती है या केंद्र सरकार भी जिम्मेदार है, इस का फैसला साल के आखिर तक हो जाएगा. लेकिन यह रिजल्ट मोदीशाह की जोड़ी के लिए खतरे की घंटी है कि अभी भी वक्त है संभल जाओ, नहीं तो 22 में उत्तर प्रदेश और 2024 में हिंदूमुसलिम भूल कर लोग महंगाई को मुद्दा बनाते हिमाचल की राह पर चल पड़ेंगे. आत्मनिर्भर हुए अमरिंदर लंबे रोमांचक नाटक के बाद आखिरकार 80 वर्षीय कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस से अलग हो कर अपनी खुद की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस लौंच कर दी है, इस तरह वे आत्मनिर्भर हो गए हैं. यह और बात है कि अपनी टीम में वे ही कैप्टन और वे ही खिलाड़ी हैं.
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कोई बड़ी तोड़फोड़ अपने नाम और रसूख के मुताबिक वे नहीं कर पाए. अब उन की आस असंतुष्ट कांग्रेसी ही रहेंगे जिन्हें यह ज्ञान प्राप्त हो गया है कि विभाजन हमेशा नुकसानदेह होता है और समझदारी इसी में है कि ताकत के साथ रहा जाए जो दिल्ली में रहती है. दिल्ली में ही रह रही दूसरी ताकत भाजपा से अमरिंदर गठजोड़ कर सकते हैं लेकिन इस में किसान आंदोलन आड़े आ रहा है जिस की वकालत अमरिंदर भी करते रहे थे. कांग्रेस से सौ कांग्रेस अब तक बन चुकी हैं लेकिन हर कोई शरद पवार या ममता बनर्जी नहीं होता जो अपना अलग शोरूम बना ले, फिर अमरिंदर के साथ तो उन के अपने भी नहीं गए. लिहाजा, उन्हें वानप्रस्थ आश्रम के फायदों के बारे में पढ़ना चाहिए.