किस तरह हो ये एतबार मुझे
कोई चाहे दीवानावार मुझे
सबकी नज़रों से बचा कर नज़रें
देखता है वो बार बार मुझे
तू मेरे नाम पे सजदा करके
क्यों बनाता है गुनहगार मुझे
उन निगाहों की कशिश मत पूछो
न रहा खुद पे इख़्तियार मुझे
वो मिला था क़रार-ए-जां की तरह
चल दिया करके बेक़रार मुझे....

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...