गैरों पर एतबार हो जाए
दुश्मन से भी प्यार हो जाए
नींद आंखों से उड़ जाए कहीं
उन से नजरें जो चार हो जाएं
हो कमान खिंची उन के हाथों में
और तीर जिगर के पार हो जाए
यों बेरुखी भी गवारा है तेरी
चाहे जीना दुश्वार हो जाए
फकत एक बार मुझे अपना कह दे
जान तुझ पर निसार हो जाए
भीगी जुल्फों को लहराओ तो सही
मौसमेखिजां भी बहार हो जाए.
अब्दुल कलाम
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