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अमरूद की बागबानी: कम समय में अच्छा मुनाफा

अमरूद ऐसा फल है, जो देश के ज्यादातर हिस्सों में पाया जाता है. गुणों की भरमार वाले इस फल की तुलना सेब से की जाती है. अमरूद की बागबानी न केवल आसानी से हो जाती है, बल्कि इस के जरीए अच्छा मुनाफा भी कमाया जा सकता है. अमरूद का उत्पादन देश में सब से ज्यादा उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक व आंध्र प्रदेश में होता है. अमरूद की बागबानी सभी तरह की जमीन पर की जा सकती है.

वैसे, गरम और सूखी जलवायु वाले इलाकों में गहरी बलुई दोमट मिट्टी इस के लिए ज्यादा अच्छी मानी जाती है. उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में रेलवे स्टेशन के नजदीक स्थित ऐतिहासिक खुशरूबाग में बना ‘औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र’ अमरूद की न केवल पौध तैयार करता है, बल्कि वहां इच्छुक लोगों को अमरूद की बागबानी का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. वहां के इलाहाबाद सफेदा और सरदार अमरूद खासतौर पर मशहूर हैं. वहां अमरूद की एक और उन्नत किस्म ललित को भी तैयार किया गया है. यह गुलाबी और केसरिया रंग लिए होता है. इस की पैदावार दूसरे अमरूदों के मुकाबले 24 फीसदी ज्यादा होती है. गुलाबी आभा, मुलायम बीज व अधिक मिठास वाले अमरूदों की पैदावार हर कोई वैज्ञानिक तरीके से कर सकता है.

पौधारोपण अमरूद का पेड़ 2 साल बाद ही फल देना शुरू कर देता है. यदि शुरुआत में ही पेड़ की देखरेख अच्छी तरह से हो जाए, तो 30-40 सालों तक अच्छा उत्पादन मिल सकता है. देश में अमरूद के पौधे ज्यादातर बीजों के द्वारा तैयार किए जाते हैं, लेकिन माना जाता है कि इस से पेड़ों में भिन्नता आ जाती है. इसलिए अब वानस्पतिक विधि द्वारा पौधे तैयार किए जाने पर जोर दिया जा रहा है. कलमी अमरूद के पौधे जुलाई, अगस्त व सितंबर महीने में पौध रोपण के लिए मुनासिब माने जाते हैं. सिंचित इलाकों में पौधरोपण फरवरी व मार्च के महीनों में भी किया जा सकता है.

अमरूद के पौधों को 5×5 मीटर या 6×6 मीटर की दूरी पर लगाया जाना ज्यादा लाभकारी होता है. अमरूद के छोटे पेड़ों की सिंचाई अच्छी होनी चाहिए, जिस से कि जहां जड़ें हों, वहां की मिट्टी को नम रखा जा सके. पेड़ बड़े होने के बाद 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. खाद व उर्वरक पौधा लगाते समय प्रति गड्ढा तकरीबन 20 किलोग्राम गोबर की खाद डालनी चाहिए. इस के बाद आगे बताए अनुसार हर साल खाद डालनी चाहिए.

पहला साल : गोबर की खाद 15 किलोग्राम, यूरिया 250 ग्राम, सुपर फास्फेट 375 ग्राम व पोटैशियम सल्फेट 500 ग्राम डालें.

दूसरा साल : गोबर की खाद 30 किलोग्राम, यूरिया 500 ग्राम, सुपर फास्फेट 750 ग्राम व पोटैशियम सल्फेट 200 ग्राम डालें.

तीसरा साल : गोबर की खाद 45 किलोग्राम, यूरिया 750 ग्राम, सुपर फास्फेट 1125 ग्राम व पोटैशियम सल्फेट 300 ग्राम डालें.

चौथा साल : गोबर की खाद 60 किलोग्राम, यूरिया 1050 ग्राम, सुपर फास्फेट 1500 ग्राम व पोटैशियम सल्फेट 400 ग्राम डालें.

पांचवां साल : गोबर की खाद 75 किलोग्राम, यूरिया 1300 ग्राम, सुपर फास्फेट 1875 ग्राम व पोटैशियम सल्फेट 500 ग्राम डालें. ज्यादा अच्छा होगा कि पेड़ की आयु के अनुसार हर पेड़ के लिए खाद को 2 भागों में बराबर बांट लें. इस का आधा भाग जून में व आधा भाग अक्तूबर में तने से 1 मीटर दूर चारों ओर डालने के साथ ही सिंचाई भी कर दें.

फसल में और्गैनिक दवाओं का प्रयोग भी किया जा सकता है. कटाई, छंटाई और सधाई शुरू में पेड़ों को मजबूत ढांचा देने के लिए सधाई की जानी चाहिए. यह देखना चाहिए कि मुख्य तने पर जमीन से लगभग 90 सैंटीमीटर ऊंचाई तक कोई शाखा न हो. इस ऊंचाई पर मुख्य तने से 3 या 4 प्रमुख शाखाएं बढ़ने दी जाती हैं. इस के बाद हर दूसरे या तीसरे साल ऊपर से टहनियों को काटते रहना चाहिए, जिस से पेड़ की ऊंचाई ज्यादा न बढ़े. यदि जड़ में कोई फुटाव निकले, तो उसे भी काटते रहना चाहिए. फसल प्रबंधन व तोड़ाई पेड़ के पूरी तरह तैयार हो जाने के बाद साल में अमरूद की 2 फसलें प्राप्त होती हैं. एक फसल बरसात के दौरान व दूसरी जाड़े के मौसम में प्राप्त होती है.

बरसात के मौसम में ज्यादा उपज प्राप्त होती है, पर इस के फल घटिया होते हैं. छेदक कीट भी उन्हें नुकसान पहुंचा देते हैं. व्यापार के लिहाज से जाड़े की फसल को ज्यादा महत्त्व दिया जाना चाहिए. पेड़ों की देखरेख और समय पर खादपानी देने से ज्यादा पैदावार प्राप्त की जा सकती है. यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि उपज की मात्रा किस्म, जलवायु व पेड़ की उम्र पर निर्भर करती है. पूरी तरह तैयार पेड़ से सीजन में तकरीबन 400 से 600 तक फल प्राप्त हो जाते हैं. अमरूद की तोड़ाई थोड़ी सी डंठल व कुछ पत्तों सहित कैंची से करनी चाहिए. तोड़ाई एकसाथ नहीं, बल्कि 2-3 बार में करनी चाहिए.

आधे पके अमरूदों को तोड़ना ठीक रहता है. प्रमुख रोग अमरूद की फसल में सब से ज्यादा खतरनाक उकठा रोग माना जाता है. एक बार बाग में इस का संक्रमण होने से कुछ सालों में पूरे बाग को नुकसान पहुंच जाता है. ऐसी जगह पर दोबारा अमरूद का बाग नहीं लगाना चाहिए. इस बीमारी से शाखाएं और टहनियां एकएक कर के ऊपरी भाग से सूखने लगती हैं और नीचे की तरफ सूखती चली जाती हैं. एक समय ऐसा भी आता है, जब पूरा पेड़ ही सूख जाता है. इस बीमारी से बचने के लिए ये उपाय जरूर करने चाहिए :

* जैसे ही पेड़ में रोग के लक्षण दिखाई दें, तो उस पेड़ को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.

* बाग को साफसुथरा रखें, खरपतवार न रहने दें.

* बाग में ज्यादा पानी होने पर उस की निकासी का इंतजाम करें.

* हरी और कार्बनिक खाद का इस्तेमाल करें. संक्रमण अमरूद के बाग में फल गलन या टहनीमार रोग का संक्रमण भी हो जाता है. नतीजतन, बनते हुए फल छोटे, कड़े व काले रंग के हो जाते हैं. इस रोग के सब से ज्यादा लक्षण बारिश के मौसम में पकते हुए फलों पर दिखाई पड़ते हैं. फल पकने वाली अवस्था में फलों के ऊपर गोलाकार धब्बे पड़ जाते हैं और बाद में बीच में धंसे हुए स्थान पर नारंगी रंग की फफूंद हो जाती है. डालियों पर संक्रमण होने पर डालियां पीछे से सूखने लगती हैं.

इस रोग के होने पर डालियों को काट कर 0.3 फीसदी कौपर औक्सीक्लोराइड के घोल का छिड़काव करना चाहिए. फल लगने के दौरान 15 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव करें. कीट नियंत्रण बरसाती फसल पर फलमक्खियां सब से ज्यादा मंडराती हैं. मादा मक्खी फलों में छेद कर देती है और छिलके के नीचे अंडे देती है. इस के इलाज का तरीका यही है कि मक्खी से ग्रसित फलों को जमा कर के नष्ट कर दें.

मक्खियों को मारने के लिए 500 लिटर मैलाथियान 50 ईसी, 5 किलोग्राम गुड़ या चीनी को 500 मिलीलिटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से छिड़कें. अगर प्रकोप बना रहता है, तो छिड़काव 7 से 10 दिनों के अंतर पर दोहराएं. छाल सूंड़ी अमरूद के पेड़ों को नुकसान पहुंचाने वाला एक और कीट है, छाल खाने वाली सूंड़ी. यह कीट आमतौर पर दिखाई नहीं देता, पर जहां पर टहनियां अलग होती हैं, वहां पर इस का मल व लकड़ी का बुरादा जाल के रूप में दिखाई देता है.

इस का हमला सब से ज्यादा पुराने पेड़ों पर होता है. सालभर में इस की एक ही पीढ़ी होती है, जो जूनजुलाई महीने से शुरू होती है. इलाज के तौर पर संक्रमित शाखाओं में कीट द्वारा बनाए गए छेदों में डाईक्लोरोवास (नुवान) में डुबोई रूई के फाहों को किसी तार की सहायता से डाल दें और सुराख को गीली मिट्टी से ढक दें. यह काम फरवरीमार्च माह में करना चाहिए. दूसरे उपाय के तौर पर, सितंबरअक्तूबर माह में 10 मिलीलिटर मोनोक्रोटोफास (नुवाक्रोन) या 10 मिलीलिटर मिथाइल पैराथियान (मैटासिड) को 10 लिटर पानी में मिला कर सुराखों के चारों ओर की छाल पर लगाएं.

बाग का रखरखाव बरसात के बाद ही ज्यादातर पेड़ों के ऊपर से पत्तियां पीली होने लगती हैं व पेड़ों की शाखाएं एक के बाद एक सूखने लगती हैं. इसलिए रखरखाव किया जाना चाहिए. दिसंबर से फरवरी माह के दौरान पेड़ों में काटछांट करने के बाद पर्याप्त मात्रा में नए कल्ले बनते हैं. इन कल्लों के फैलाव व विकास के लिए मईजून माह में प्रबंधन किया जाना चाहिए. इस से जाड़े में फसल अच्छी होती है. इसी प्रकार मई माह में काटछांट कर ठीक किए गए पेड़ों से निकलने वाले कल्लों का प्रबंधन अक्तूबर माह में किया जाना चाहिए. ऐसा करने से बरसात में फसल अच्छी होती है.

फलाहार के लिए ऐसे बनाए साबूदाना वड़ा और पूड़ी

फलहार में अगर आपको कुछ अलग खाने का मन है तो आप ऐसे में साबूदाना वड़ा बना सकते हो, तो आइए जानते हैं  इसे बनाने की रेसिपी.

सामग्री:

– साबूदाना (1 कप 200 ग्राम )

– उबले हुए आलू (2)

– भुना हुआ मूंगफली पाउडर (1/2 कप)

– अदरक लहसुन पेस्ट (1 चम्मच)

– जीरा पाउडर (1 चम्मच)

– हरी मिर्च (2)

– धनिया पत्ता (1/2 कप)

– नमक (1/2 चम्मच स्वादानुशार)

– निम्बू रस (1/2 चम्मच)

– तेल (तलने के लिए)

साबूदाना वड़ा बनाने की विधि:-

– सबसे पहले साबूदाने को पानी में डालकर तीन घंटे के लिए फूलने के लिए छोड़ दें.

– अब उसे छान लें और उसमे उबले हुए आलू को स्मैश करके डाल दें, और भुने हुए मूंगफली के पाउडर को भी डाल दें.

– फिर उसमे अदरक लहसुन पेस्ट, जीरा पाउडर, हरी मिर्च, धनिया पता, स्वाद अनुशार नामक और नींबू का रस डाल दें.

– फिर उसे अच्छे से मिलायें और उसका एक लोई बना कर तैयार करें.

– तेल गरम होने के बाद उसमे साबूदाने की लोई से छोटी छोटी टिक्की बना कर तेल में डाल दें और उसे मध्यम आंच पे तलें.

– जब टिक्की पाक जाए और भूरी हो जाए तो उसे टिस्सु पेपर पे निकाल लें और हमारी साबूदाना वड़ा बनकर तैयार हो गयी.

साबूतदाना पूरी 

सामग्री

एक कटोरी साबूदाना (भीगा हुआ)

1 कटोरी सिंघाड़े का आटा

दो उबले आलू

दो बारीक कटी हरी मिर्च

थोड़ा-सा हरा धनिया बारीक कटा हुआ

सेंधा नमक

काली मिर्च पावडर

थोड़ा-सा तेल

विधी

आलू को मैश कर सिंघाड़े के आटे में मिला लें. बाकी सभी वस्तुएं भी आटे में डालकर अच्छी तरह मिला लें.

थोड़ा पानी डालकर आटे जैसा गूंथ लें. अब हाथ पर पानी लगाकर छोटी-छोटी लोई तोड़कर पूड़ी का आकार दें.

अब तवे को चिकना करें. पूरी को इस पर पराठे जैसा तल लें.

जब पूरी अच्छी तरह सिंक जाए तो इसे दही के साथ पेश करें.

थुलथुल बीवी किसे भाए

नीतू आहूजा 47 साल की है. उसके 2 बेटे हैं. 18 साल का ऋषभ और 21 साल का निर्भय. दोनों बच्चे पढ़ाई में अच्छे हैं. पति शरद आहूजा एक मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर पद पर कार्यरत हैं. साउथ दिल्ली के पौश इलाके में शानदार कोठी है. दोदो गाड़ियां हैं. पैसे की कोई कमी नहीं है. घरेलू कार्यों के लिए नौकर लगे हैं. नीतू के सासससुर का देहांत हो चुका है. एक देवर है जो अपने परिवार के साथ अमेरिका में बस चुका है. घर भौतिक ऐशोआराम की चीजों से भरा भुआ है. फिर ऐसे भरेपूरे घर की महिला को क्या दुख हो सकता है? मगर नीतू हमेशा उदासी और तनाव में रहती है. वजह है उनका मोटापा, उनकी थुलथुल काया जिसने न सिर्फ उसकी सारी खूबसूरती ख़त्म कर दी है बल्कि पति ने भी उस थुलथुल काया से अब दूरी बना ली है. नीतू को याद नहीं आखिरी बार उस ने पति से शारीरिक संबंध कब बनाए थे.

पिछले दिनों गोवा के एक होटल से घर के लैंडलाइन पर एक फोन आया, ‘“मैडम, हमने अपने होटल के बारे में फीडबैक लेने के लिए आपको फोन किया है.हम जानना चाहते हैं कि हमारी सेवाएं आपको कैसी लगीं?’

‘“जी, मैं तो गोवा गई नहीं,’” नीतू ने आश्चर्य जताया.

“’आप मिसेज आहूजा बोल रही हैं, मिस्टर शरद आहूजा की वाइफ?’

‘“जी, मैं ही बोल रही हूं.’”

‘“मैडम, आप और मिस्टर आहूजा पिछले हफ्ते हमारे होटल में रहे हैं.’”

‘“नहीं, मैं गोवा नहीं गई.’”

फोन कट गया. दरअसल,फोन करने वाला समझ गया कि शरद आहूजा किसी और महिला के साथ उस के होटल में पूरा हफ्ता एंजौय करके गए हैं. गलती से उन्होंने होटल के रजिस्टर में अपना लैंडलाइन नंबर डाल दिया.

इस फोन ने नीतू आहूजा को बहुत ज्यादा परेशान कर दिया. पिछले हफ्ते शरद औफिस टूर पर बेंगलुरु जाने का बोल कर गए थे. लेकिन इस फोन से साफ था कि वे बेंगलुरु नहीं बल्कि किसी महिला मित्र को पत्नी बता कर गोवा के होटल और बीच पर मस्ती मार रहे थे.

नीतू इस सच से अनजान नहीं हैकि उसके पति के बाहरी औरतों से नजदीकी संबंध हैं. बावजूद इसके,वह उन से कोई सवाल नहीं कर पाती है क्योंकि घर में और रिश्तेदारों के बीच शरद का व्यवहार नीतू के साथ प्यारभरा ही होता है. बच्चों के लिए भी वे आदर्श पिता हैं. वे उनकी हर जरूरत पूरी कर रहे हैं.

मगर नीतू जानती है कि शरद के दिल में और उन के जीवन में अब उसकी वह जगह नहीं है जो शादी के बाद 10वर्षों तक थी. शायद अब शरद को उसकी कोई ज्यादा जरूरत भी नहीं रह गई है. दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी कई सालों से नहीं हैं. क्योंकि नीतू का भारीभरकम शरीर किसी कोण से आकर्षित नहीं लगता. चाहे वह कीमती डिजाइनर ड्रैस पहन ले या लैटेस्ट डिजाइन के गहने लाद ले.

शरद उसको ले कर अब औफिस की पार्टियों में या अपने दोस्तों के घर भी नहीं जाता है, जैसे पहले वो दोनों बच्चों को साथ लेकर जाया करते थे. दिल्ली में शरद और नीतू के कुछ रिश्तेदार हैं, उनके घर जब कोई फंक्शन होता है तब शरद परिवार सहित जाता है.

नीतू जानती है कि शरद को उसके साथ खड़े होने में बड़ी शर्मिंदगी होती है क्योंकि 50 की उम्र में भी वह बिलकुल चुस्तदुरुस्त और छरहरा है. दोनों साथ होते हैं तो शरद जहां दोनों बच्चों का बड़ा भाई नजर आता है वहीं नीतू तीनों की मम्मी जैसी दिखती है.7-8 वर्षों पहले जब नीतू और शरद के बीच शारीरिक संबंध बनने कम होने लगे थे तब नीतू ने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.वह खुद बच्चों की परवरिश में उलझी थी और शरद का काम भी बढ़ गया था, मगर धीरेधीरे जब दोनों के बीच शारीरिक संबंध लगभग ख़त्म हो गए तब नीतू का ध्यान अपने शरीर की तरफ गया. वह समझ रही थी कि उसकी थुलथुल काया पति को कोई सुख नहीं दे पा रही है.

फिर कभीकभी कोई उड़ती सी बात उसके कानों में पड़ जाती कि ‘मिस्टर आहूजा औफिस में लड़कियों के साथ बहुत हंसीमजाक करते हैं, औफिस पार्टियों में लड़कियों के साथ बहुत फैंडली हो जाते हैं. नीतू को ये बातें कचोटती थीं, पर वह पति से कोई शिकायत नहीं कर पाई. उसको डर था कि कहीं शरद पलट कर उसके भारीभरकम शरीर पर कोई कमैंट न कर दे. खामोश रह कर एक तरह से उसने पति को लड़कियों के साथ घुलनेमिलने की छूट दे दी थी ताकि उसे अपने बदन पर कोई ताना न सुनना पड़ जाए.

मगर गोवा से फोन आने के बाद से नीतू गहरे दुख में है. उसको उम्मीद नहीं थी कि शरद इस हद तक आगे बढ़ जाएगा.बेंगलुरु का बहाना बना कर किसी लड़की को उस के नाम से गोवा ट्रिप पर ले जायगा और उसके साथ होटल में पूरा एक हफ्ता बिता कर आएगा. इससे पहले भी वह औफिस टूर की बात कह कर कभी जयपुर तो कभी सिंगापुर गया है. तो क्या वह पहले भी औफिस के काम से नहीं, बल्कि औरत का साथसंग पाने के लिए गया था? यह शक नीतू को दिनरात परेशान किए रहता है.

जबरदस्त तनाव झेलते हुए भी नीतू इस विषय में पति से कभी कोई बात नहीं कर पाई. कोई सवाल नहीं पूछ पाई. क्योंकि उसकी अपनी कमजोरी बड़ी है. पति को अगर स्त्रीदेह की तलब है और वह उस जरूरत को पूरा नहीं कर पा रही है तो पति की ख्वाहिशों पर वह कैसे नकेल डाल सकती है?

नीतू शादी के वक़्त बहुत सुंदर और औसत कदकाठी की थी. सजधज कर बहुत प्यारी और भरीभरी दिखती थी. शरद उस पर जान छिड़कता था. शादी के 5 साल के भीतर ही नीतू 2सुंदर बेटों की मां बन गई. मगर दूसरे बेटे के जन्म के बाद उसका वजन बढ़ने लगा. उसने तब ध्यान नहीं दिया. बच्चों के लालनपालन, सासससुर की देखभाल और रिश्तेदारियां निभाने में वह 10-12 सालों में 55 किलो से 105 किलो की हो गईऔर इसका एहसास उसको तब होना शुरू हुआ जब पति तो क्या, उसके जवान होते बच्चे भी उसके साथ कहीं जाने में शर्म महसूस करने लगे. स्कूल की पेरैंटटीचर मीटिंग में भी, बस, पापा को ही आने के लिए कहने लगे. शरद ने तो नीतू के साथ कहीं घूमनाफिरना, फिल्में देखना या छुट्टियों में हिल स्टेशन आदि पर जाना ही बंद कर दिया.

ऐसा नहीं कि नीतू ने अपना वजन कम करने की कोशिश नहीं की मगर शुरू में ध्यान न देने के कारण वह मोटापे के साथसाथ कई अन्य बीमारियों की शिकार हो गई. थायराइड और बीपी की समस्याओं ने उसका तनाव और मोटापा दोनों बढ़ाया. अपच, अनिद्रा, सांस फूलना, घबराहट, समय से पहले मीनोपोज जैसी दिक्कतों के चलते वह और ज्यादा परेशान रहने लगी.

विशेषज्ञों का मानना है कि तनावग्रस्त आदमी ज्यादा खाता है. यही नीतू के साथ हुआ. वह जब डिप्रैशन या तनाव में होती थी तो फास्ट फूड, नमकीन, चिप्स, चौकलेट जैसी चीजें खाने लगती थी. व्यायाम उससे होता नहीं था. सांस फूलती थी. इन्हीं तमाम बातों के चलते नीतू मांस का एक बड़ा ढेर बन कर रह गई है. मोटापे के कारण उसने घर से निकलना बिलकुल बंद कर दिया है. बालकनी में भी खड़ी होती है तो सारा ध्यान इस बात पर होता है कि कहीं कोई उसको देख तो नहीं रहा है.

एक दैनिक अखबार में खबर प्रकाशित हुई कि मध्य प्रदेश के भोपाल में एक शख्स ने अपनी पत्नी के मोटापे से परेशान होकर उससे तलाक मांगा है. पति का कहना है कि वह कहीं जाता है तो लोग उसे मोटी पत्नी का ताना देते हैं और उसका मजाक उड़ाते हैं.

शख्स पेशे से प्रोफैसर है. उसका कहना है कि पत्नी उसकी बात नहीं मानती है. उसने बताया कि पत्नी का वजन कम करने के लिए वह अब तक 5 लाख रुपए से अधिक खर्च कर चुका है. मगर वह अपना वजन कम करने के प्रति गंभीर नहीं है. इसलिए अब वह किसी भी तरह अपनी पत्नी से तलाक लेना चाहता है. पत्नी को भरणपोषण के लिए वह एक मुश्त 25 लाख रुपए देने को तैयार है. इसके अलावा, वह बच्चे के पालनपोषण के लिए भी रुपए देने को तैयार है.

हालांकि, शख्स की पत्नी ने आरोप लगाया है कि पति का कालेज की लड़कियों के साथ अफेयर है, इसलिए वह तलाक लेना चाहता है. उसका कहना है कि उसका पति कालेज की लड़कियों के साथ फ्लर्ट करता है. उसने शक जताया है कि पति का किसी लड़की के साथ अफेयर चल रहा है. वहीं, काउंसलर का कहना है कि मोटापा तलाक का आधार नहीं हो सकता है. फिलहाल मामला कोर्ट में चल रहा है.

आगरा के परिवार परामर्श केंद्र में एक मामला आया जहां पति अपनी पत्नी से आएदिन होने वाले झगड़ों के कारण तलाक लेना चाहता है. दरअसल,झगड़े की वजह पत्नी का ओवरवेट होना ही है. पति कहता है कि जब वह सुबह मौर्निंगवाक के लिए पत्नी को जगाता है तब वह उठने में आनाकानी करती है और झगड़ा करती है. वाक के लिए जाना नहीं चाहती.

कभीकभी छोटा सा झगड़ा इतना बढ़ जाता है कि नौबत गालीगलौच और मारपीट तक आ जाती है. वहीं खाने को लेकर भी आएदिन दोनों के बीच झगड़ा होता है. पत्नी को परांठे और मिर्चमसाले वाली तलीभुनी चीजें पसंद हैं और वह वही बनाती है जबकि पति हैल्थ कान्शस है और सादा खाना खाना चाहता है जो उसे घर में मिलता नहीं है. पति का आरोप है कि उसकी पत्नी ने दोनों बच्चों को भी अनहैल्दी खाना खिलाखिला कर अपने जैसा बना लिया है. इससे पतिपत्नी के बीच झगड़ा होता है और अब वे एकदूसरे के साथ रहना नहीं चाहते हैं.

काउंसलर डा. अमित गौड़ का कहना है कि अब तक तो सिर्फ घरेलू हिंसा, सासननद या मायके वालों के दखल के संदिग्ध मामले ही केंद्र पर आया करते थेलेकिन अब तो मोटापा बढ़ने के कारण दंपती में झगड़ों के मामले भी केंद्र पहुंचने लगे हैं.

दैनिक भास्कर की एक खबर के मुताबिक, पत्नी के अत्यधिक मोटापे से परेशान होकर दुबई में एक व्यक्ति ने उसे तलाक देने की अर्जी दायर की. व्यक्ति ने पत्नी पर आरोप लगाते हुए कहा है कि पत्नी के अत्यधिक वजन के कारण उसकी सैक्सलाइफ बरबाद हो गई है. अर्जी में बताया कि मोटापे के कारण पत्नी कई बीमारियों से ग्रस्त है. उसकी खराब सेहत के कारण वह सैक्स संबंध नहीं बना पाता है.

गल्फ न्यूज के मुताबिक, दुबई कोर्ट में पत्नी की ओर से भी तलाक की अर्जी दी गई थी. जिसमें पति पर उसे अनदेखा करने और शादी की जिम्मेदारियां न निभाने का आरोप लगाया गया है. इस बात से स्तब्ध होकर पति ने पत्नी पर उसके मोटापे को लेकर मुकदमा कर दिया. पति द्वारा कोर्ट में दायर की गई अर्जी में बताया गया कि उसकी पत्नी देर तक सोती रहती है. दोपहर तक उठने के बाद ज्यादातर समय टीवी के सामने गुजार देती है. बच्चे पर ध्यान नहीं देती. मूडी होने के साथ वह एक अविवेकशील महिला है. उससे सैक्स संबंध बनाने में दिक्कत पेश आती है.

मोटापा आपसी संबंधों को तो बिगाड़ता ही है, आपकी सेहत और इम्यून सिस्टम को भी बरबाद कर देता है. मोटापा अनेक बीमारियों की जड़ है. शरीर में फैट बढ़ने से हार्ट पर बुरा असर पड़ता है. धमनियों में खराब कोलैस्ट्रौल जमा होने लगता है जिससे रक्तप्रवाह में बाधा पैदा होने लगती है. यह हार्ट अटैक का कारण बन सकता है. मोटापा तनाव पैदा करता है. शुगर, थायरौयड, आर्थराइटिस, जोड़ों में दर्द और सूजन, अपच, अनिंद्रा, हाइपरटैंशन, बालों का झड़ना जैसी तमाम तकलीफों की जड़ बढ़ता मोटापा ही है.

अपवाद छोड़ दें तो कोई भी पुरुष मोटी स्त्री को नहीं चाहता. सभी छरहरी काया पर मरते हैं. हर पुरुष चाहता है कि उसकी पत्नी यदि बहुत सुंदर न भी हो, तो प्रेजेंटेबल अवश्य हो. ऐसे कई केसेस सामने आए हैं जहां पुरुषों ने किसी दबाव में, पैसे या संपत्ति के लालच में या नौकरीपेशा स्त्री की चाह में मोटी स्त्री से विवाह कर लियाऔर बाद में बाहर दूसरी औरतों से संबंध बना लिए.

मोटी स्त्री अपनों के गुस्से और उपेक्षा की शिकार बनती हैया मजाक की. न तो उसे प्रेम मिलता है, न तरक्की. गलीमहल्लों या शादीब्याह में ही नहीं, नौकरियों में भी इंटरव्यू या प्रमोशन के समय वजनदार महिलाएं किनारे सरका दी जाती हैं.

अमेरिकी एंप्लायर रिव्यू साइट फेयरीगौडबौस ने साल 2020 में 500 हायरिंग प्रोफैशनल्स का इंटरव्यू किया. कंपनी यह समझना चाहती थी कि ज्यादा या कम वजन की महिला कैंडिडेट को एचआर वाले किस तरह देखते हैं. सर्वे में शामिल 20 फीसदी एचआर प्रोफैशनल्स ने कहा कि उन्हें मोटी स्त्रियां सुस्त लगती हैं और इसलिए वे उन्हें इंटरव्यू में रिजैक्ट कर देते हैं.

18 फीसदी लोगों ने मोटापे पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया. 22 फीसदी ने बढ़े हुए वजन वाली महिलाओं पर संदेह जताया और कहा कि वे आएदिन छुट्टी करती रहेंगी. कुछ ही लोग थेजिन्होंने कहा कि वे वजनदार महिला उम्मीदवार को उसकी स्किल से परखेंगे, न कि वजन से.मगर, यह भेदभाव भारी शरीर वाले पुरुषों के साथ नहीं होता है. इससे उलट उन्हें घरगृहस्थी वाला और ज्यादा जिम्मेदार माना जाता है. चीन की सेचवान यूनिवर्सिटी की एक स्टडी के मुताबिक, महिला कैंडिडेट का वजन अगर आंखों को चुभने वाला होता है तो उसे नौकरी मिलने की संभावना 15.2 फीसदी कम हो जाती है.

वहीं, पुरुषों के मामले में वजन का ज्यादा होना कोई दिक्कत नहीं, बल्कि यह उनके सैटल्ड होने के प्रमाण की तरह देखा जाता है. स्टडी में यह भी माना गया कि मोटापा महिलाओं के रोजगार में कुछ वैसे ही आड़े आता हैजैसे सेना में भरती की इच्छा रखने वालों की आंखों पर मोटा चश्मा चढ़ा होना.

सुप्रीम फैसले से बदलेगी चुनाव आयुक्त की छवि

सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संवैधानिक बैंच ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक पैनल करेगा. इस पैनल में प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल रहेंगे. इस बात का स्वागत होना चाहिए कि इसके बाद अब चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठने बंद हो जाएंगे. इस बात को पुख्ता रूप से नहीं कहा जा सकता. इसका कारण है कि सीबीआई के चीफ की नियुक्ति इसी तरह के पैनल द्वारा की जाती है. इसके बाद भी सीबीआई पर सवाल उठ रहे हैं. चुनाव आयुक्त के चयन को लेकर सुप्रीम कोर्ट की मंशा यह है कि मजबूत और निष्पक्ष चुनाव आयुक्त देश को मिल सके.

चुनाव आयुक्त के रूप में सबसे मजबूत नाम टीएन शेषन का लिया जाता है. टीएन शेषन की नियुक्ति उस समय के प्रधानमंत्री चंद्रशेखर द्वारा की गई थी. चंद्रशेखर की सरकार राजीव गांधी की अगुआई वाली कांग्रेस के समर्थन पर टिकी थी. टीएन शेषन राजीव गांधी सरकार में उनके करीबी अफसर के रूप में काम कर चुके थे. चंद्रशेखर की सरकार बनने के बाद टीएन शेषन को मजबूत पद से हटा कर गैरमहत्त्वपूर्ण पद पर रखा गया था. उनके रिटायरमैंट के दिन करीब थे. वे अब किसी पद पर काम नहीं करना चाहते थे. प्रधानमंत्री चंद्रशेखर उनको चुनाव आयुक्त बनाना चाहते थे. बड़ीमुश्किल से टीएन शेषन इसके लिए तैयार हुए. चुनाव आयुक्त बनने के बाद टीएन शेषन ने जो किया वह इतिहास बन गया.

उदाहरण बन गए टीएन शेषन

टीएन शेषन ने देश के मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के बाद दिखा दिया कि चुनाव आयोग दंतविहीन नहीं है. इसके बाद लोगों को यह पता चला कि चुनाव आयोग कितना ताकतवर होता है. उसको कितने अधिकार प्राप्त हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त देश में राजनीतिक दलों पर नकेल डालने और साफसुथरा चुनाव कराने की इच्छा रखते थे तो देश का कानून उनको इस बात की इजाजत देता था कि कोई भी बड़ा नेता और प्रभावशाली दल चुनाव आयोग को रोक नहीं सकता.

राजीव गांधी सहित कई बड़े नेताओं से टीएन शेषन के निजी और करीबी संबंध थे. इसके बाद भी कभी ऐसा नहीं हुआ कि टीएन शेषन ने संबंधों के कारण कोई समझौता किया हो. टीएन शेषन के करीबी लोगों में एक बड़ा चर्चित नाम रहा है सुब्रमण्यम स्वामी का. स्वामी और शेषन की दोस्ती कई दशकों पुरानी थी. दोनों जब युवा थे तो दोनों की मुलाकात हार्वर्ड विश्वविद्यालय में हुई थी जहां स्वामी पढ़ाने गए थे और शेषन एक साल के अध्ययन के लिए. जल्द ही गुरु-शिष्य के संबंध बेहद घनिष्ठ हो गए. शेषन अकसर मेजबान की भूमिका निभाते और मेहमान होते स्वामी. दोनों साथ में बैठकर दही, चावल और अचार खाते थे.

भारत लौटने पर स्वामी ने राजनीति का रुख किया और विभिन्न दलों से गुजरते हुए अपने दोस्त प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के मंत्रिमंडल में वाणिज्य मंत्री बने और शेषन भी विभिन्न पदों पर रहते हुए राजीव गांधी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल के आखिरी दिनों में कैबिनेट सचिव के पद तक पहुंचे. उस समय के प्रधानमंत्री चंद्रशेखर टीएन शेषन को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाना चाहते थे. इस बात का प्रस्ताव लेकर सुब्रमण्यम स्वामी टीएन शेषन के पास गए थे. सुब्रमण्यम स्वामी को लग रहा था कि यह प्रस्ताव सुनकर टीएन शेषन बहुत खुश होंगे. शेषन ने कहा कि यह प्रस्ताव कुछ दिनों पहले कैबिनेट सचिव विनोद पांडे भी लेकर उनके पास आए थे लेकिन उन्होंने पांडे को साफ मना कर दिया था. विनोद पांडे, शेषन के बाद कैबिनेट सचिव बने थे.

सुब्रमण्यम स्वामी चंद्रशेखर सरकार में विधि मंत्री और प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के करीबी लोगों में शामिल थे. इसके साथ ही वे शेषन के भी करीबी दोस्त थे. उस समय शेषन योजना आयोग के सदस्य के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे थे जो एक तरह से शेषन जैसे अधिकारी के लिए कमतर कार्य था. उस समय शेषन के पास सेवानिवृत्त होने में एक माह से भी कम समय बचा था. शेषन दिल्ली छोड़कर अपने गृहप्रदेश लौटने का पूरा मन बना चुके थे. उनकी पत्नी ने मद्रास के सैंटमैरी रोड पर एक घर बना लिया था. किराए पर दिया गया यह मकान शेषन ने खाली करा लिया था और इस मकान में शेषन और उनकी पत्नी की रहने की तैयारी की जा रही थी.

राजीव गांधी की सरकार में कैबिनेट सचिव रहने के बाद उन्हें किसी और पद की लालसा नहीं थी. स्वामी को विदा कर शेषन अपने ड्राइंगरूम में बैठकर प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के भेजे प्रस्ताव पर विचार करने लगे. शेषन ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से सलाह लेना उचित समझा. शेषन ने राजीव गांधी को बताया कि चंद्रशेखर सरकार उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त बनाना चाहती है. काफी सोचनेसमझने के बाद उन्होंने शेषन को मुख्य चुनाव आयुक्त का पद स्वीकार करने की सलाह दे दी. शेषन ने 2 दिन कुछ और लोगों से सलाह लेने के बाद स्वामी से नियुक्ति का आदेश भेजने के लिए कहा. इसके बाद 12 दिसंबर, 1990 को टीएन शेषन ने मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में अपना काम शुरू किया.

साल 1992 के शुरू से ही शेषन ने सरकारी अफसरों को उनकी गलतियों के लिए लताड़ना शुरू कर दिया था. उन में केंद्र के सचिव और राज्यों के मुख्य सचिव भी शामिल थे. शेषन ने तमाम अफसरों की यह गलतफहमी दूर कर दी कि चुनाव आयोग के अंतर्गत उनका काम एक तरह का स्वैच्छिक काम है जिसे वे चाहे करें या न करें. शेषन ने कहा कि चुनाव आयोग का काम ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. अगस्त1993 में टीएन शेषन ने एक 17 पेज का आदेश जारी किया कि जब तक सरकार चुनाव आयोग की शक्तियों को मान्यता नहीं देती, तब तक देश में कोई भी चुनाव नहीं कराया जाएगा.

शेषन ने अपने आदेश में लिखा, जब तक वर्तमान गतिरोध दूर नहीं होता, जो कि सिर्फ भारत सरकार द्वारा बनाया गया है, चुनाव आयोग अपनेआप को अपने संवैधानिक कर्तव्य निभा पाने में असमर्थ पाता है. उसने तय किया है कि उसके नियंत्रण में होने वाले हर चुनाव, जिनमें राज्यसभा के चुनाव और विधानसभा के उपचुनाव भी शामिल हैं, जिनके कराने की घोषणा की जा चुकी है, आगामी आदेश तक स्थगित रहेंगे. शेषन ने पश्चिम बंगाल की राज्यसभा सीट पर चुनाव नहीं होने दिया जिसकी वजह से केंद्रीय मंत्री प्रणब मुखर्जी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु इतने नाराज हुए कि उन्होंने उन्हें ‘पागल कुत्ता’ कह डाला.

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कहा, हमने पहले कारखानों में ‘लौकआउट’ के बारे में सुना था, लेकिन शेषन ने तो प्रजातंत्र को ही ‘लौकआउट’ कर दिया है. शेषन ने अपना 6 साल का कार्यकाल पूरा किया. उनके बारे में कहा जाता था कि भारतीय राजनेता सिर्फ जिन 2 चीजों से डरते हैं उनमें एक नाम टीएन शेषन का है. शेषन ने अपने कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से लेकर हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल गुलशेर अहमद और बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव किसी को नहीं छोडा. बिहार में पहली बार 4 चरणों में चुनाव करवाया और चारों बार चुनाव की तारीखें बदली गईं. यह बिहार के इतिहास का सबसे लंबा चुनाव था.

टीएन शेषन पर विस्तार से बात करने का कारण यह था कि चुनाव प्रक्रिया कोई हो, अगर चुना गया व्यक्ति ईमानदार और अपने अधिकारों का सही तरह से पालन करने वाला होगा तो वह बिना किसी दबाव के सही काम करेगा. अगर व्यक्ति सही नहीं है तो किसी भी प्रक्रिया से चुन कर आए, वह गड़बड़कर सकता है. टीएन शेषन को चंद्रशेखर सरकार की पंसद के आधार पर चुनाव आयुक्त बनाया गया था लेकिन आयुक्त बनने के बाद उन्होंने दबाव में काम नहीं किया. कांग्रेसी नेताओं को भी कभी नहीं छोड़ा जबकि वे राजीव गांधी के करीबी थे.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बदलेगी तसवीर

सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संवैधानिक बैंच ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक पैनल करेगा. इस पैनल में प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल रहेंगे. जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रौय और जस्टिस सीटी रविकुमार की बैंच ने चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति पर अपना फैसला सुनाया.

कोर्ट ने इस बात पर विशेष महत्त्व देते कहा कि चुनाव आयुक्त पद पर उसी व्यक्ति की नियुक्ति को प्राथमिकता देंजो 6 साल तक इस पद पर रह सके. कोर्ट ने कहा कि जब तक संसद देश के चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कानून नहीं बना लेती है, तब तक कोर्ट के फैसले के तहत ही नियुक्ति की जाएगी.

साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई थी. याचिका में कहा गया था कि चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति का अधिकार अभी केंद्र के पास है, जो संविधान के अनुच्छेद14 व अनुच्छेद 324 (2) का उल्लंघन करता है. इसी मामले में एक अन्य याचिका भी दाखिल की गई थीजिसमें चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र पैनल बनाने की मांग की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने 23 अक्टूबर, 2018 को इस संबंध में दाखिल सभी याचिकाओं को क्लब कर दिया था और संवैधानिक बैंच में मामला ट्रांसफर कर दिया था. नवंबर 2022 में इन याचिकाओं पर लगातार सुनवाई हुई थी, जिसके बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि चुनाव आयोग को कार्यपालिका की अधीनता से अलग करना होगा. कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता बनाए रखी जानी चाहिए वरना इसके अच्छे परिणाम नहीं होंगे. जस्टिस जोसेफ ने कहा कि वोट की ताकत सुप्रीम है और इससे मजबूत से मजबूत पार्टियां भी सत्ता हार सकती हैं. इसलिए वोट देने के माध्यम चुनाव आयोग को स्वतंत्र होना जरूरी है. कोर्ट ने आगे कहा कि चुनाव आयुक्तों को हटाने का आधार वही होना चाहिए जो मुख्य चुनाव आयुक्त का है.

फैसले का प्रभाव

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का प्रभाव यह होगा कि नियुक्ति में सरकार का हस्तक्षेप कम होगा. चुनाव आयोग में आगे से जो भी नियुक्ति की जाएगी, उसमें पैनल वाला नियम लागू होगा. प्रधानमंत्री के अलावा इसमें विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस शामिल होंगे. इस वजह से अब नई नियुक्तियों में सरकार का हस्तक्षेप कम होगा. अब नई नियुक्तियों में विपक्ष भी भागीदार होगा. आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाना मुश्किल हो जाएगा. चुनाव आयुक्त के प्रमुख से लेकर आयुक्तों की नियुक्ति में विपक्षी नेता और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस शामिल रहेंगे. ऐसे में चुनाव आयोग की भी विश्वसनीयता बढ़ेगी.

चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद में विशेषाधिकार प्रस्ताव के जरिए ही हटाया जा सकता है. यह असंभव नहीं है, लेकिन आसान भी नहीं है. कोर्ट के इस फैसले से चुनाव आयुक्त का पद और मजबूत हो जाएगा. सीबीआई चीफ की नियुक्ति भी पीएम, विपक्षी दल के नेता और सीजेआई का पैनल करता है. इसके बावजूद सीबीआई की निष्पक्षता पर सवाल उठता है. ऐसे में आयोग पर सवाल नहीं उठेंगे, यह कहा नहीं जा सकता. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद तसवीर में बड़ा बदलाव संभव नहीं है. नामों के पैनल की सिफारिश केंद्र सरकार के विधि मंत्रालय द्वारा की जाती है, जिसमें अधिकांशतया नौकरशाहों के नाम ही होते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार बनाई जा रही समिति को उसी पैनल से ही नाम का चयन करना होगा. नेता विपक्ष के विरोध करने की स्थिति में चुनाव आयुक्त के चयन में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की भूमिका निर्णायक हो जाएगी. चुनाव आयुक्त निष्पक्ष, योग्य और ईमानदार हो, इसके साथ ही चुनावी सुधार के कानून पारित करने और आयोग को संस्थागत तौर पर मजबूत करने की जरूरत है. तभी संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को कराने की भूमिका सही अर्थों में निभा सकता है. देश को टीएन शेषन जैसा चुनाव आयुक्त मिलेगा, इस बात की उम्मीद लगाई जा सकती है.

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पहले कैसे होती थी नियुक्ति

1989 तक देश में एक चुनाव आयोग में एक ही आयुक्त होता था.लेकिन राजीव गांधी की सरकार ने एक मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ 2चुनाव आयुक्त की नियुक्ति का प्रावधान कर दिया. 1990 में वीपी सिंह की सरकार आई तो फिर से एक आयुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया बहाल कर दी गई. इसके बाद चुनाव आयुक्त बने टीएन शेषन. शेषन के खौफ से सभी पार्टियां त्रस्त रहने लगीं. 1993 में फिर से एक संशोधन कर केंद्र सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ 2 आयुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान कर दिया. इसके पीछे वजह मुख्य चुनाव आयुक्त के फैसले पर वीटो लगाना था.

2019 में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ एक शिकायत दर्ज की गई थी. उस वक्त एक चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने मामले में पीएम को दोषी माना, लेकिन तत्कालीन सीईसी सुनील अरोड़ा और एक अन्य चुनाव आयुक्त ने पीएम को क्लीन चिट दे दिया. अब तक प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में कैबिनेट अप्वाइंटमैंट कमेटी आयुक्तों की नियुक्ति की सिफारिश राष्ट्रपति के पास भेजती थी, जिसे राष्ट्रपति मंजूर करते थे. अब प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता का पैनल इस नाम का चुनाव करेगा.

क्या है निर्वाचन आयोग

भारत निर्वाचन आयोग एक स्वायत्त संस्थान है जिसका गठन भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से चुनाव कराने के लिए किया गया था. भारतीय चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को की गई थी. आयोग में वर्तमान में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और 2 चुनाव आयुक्त होते हैं. जब यह पहलेपहल 1950 में गठित हुआ तब से और 15 अक्टूबर, 1989 तक केवल मुख्य निर्वाचन आयुक्त सहित यह एक एक-सदस्यीय निकाय था.

16 अक्टूबर, 1989 से 1 जनवरी, 1990 तक यह मुख्य निर्वाचन आयुक्त आर वी एस शास्त्री और निर्वाचन आयुक्त के रूप में एसएस धनोवा और वीएस सहगल सहित तीन-सदस्यीय निकाय बन गया. 2 जनवरी, 1990 से 30 सितंबर, 1993 तक यह एक एक-सदस्यीय निकाय बन गया और फिर 1 अक्टूबर, 1993 से यह तीन-सदस्यीय निकाय बन गया.

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति करता है. मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या आयु 65 साल, जो पहले हो, का होता है जबकि अन्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 वर्ष या आयु 62 साल, जो पहले हो, का होता है. चुनाव आयुक्त का सम्मान और वेतन भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के सामान होता है. मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा महाभियोग के जरिए ही हटाया जा सकता है. भारत निर्वाचन आयोग के पास विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति आदि चुनाव से संबंधित सत्ता होती है जबकि ग्रामपंचायत, नगरपालिका, महानगर परिषद और तहसील एवं जिला परिषद के चुनाव की सत्ता संबंधित राज्य निर्वाचन आयोग के पास होती है.

किरण खेर को हुआ कोरोना, जानिए अब कैसी है हालत

दुनिया भर में अभी तक कोरोना का मामला दहशत बना हुआ है, पिछले कुछ महीनों से यह मामला दब गया था लेकिन अब यह फिर से आ गया है. बहुत लोग फिर से इस बीमारी का शिकार हो रहे हैं. बॉलीवुड एक्टर अनुपम खेर की वाइफ किरण खेर को कोरोना हो गया है.

बता दें कि किरण ने इस बात कि जानकारी खुद दी थीं, बीते दिनों किरण ने अपना टेस्ट करवाया था, जिसमें वह कोविड पॉजिटीव आईं थीं, इस बात की जानकारी उन्होंने खुद सोशल मीडिया पर साझा कि थीं, इस खबर के आते ही फैंस काफी ज्यादा चिंतित हो गए थें.

 

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सभी लोग किरण के ट्वीट पर ट्विट करके उनकी हेल्थ की जानकारी मांग रहे हैं, बता दें कि इस कोरोना वायरस की वजह से कई लोगों को इस दुनियां में अपनी जान गंवानी पड़ी थीं. बताते चले कि किरण कि इस बीमारी की जानकारी अनुपम खेर ने भी दी है.

बता दें कि सतीश कौशिक की मौत की जानकारी अनुपम खेर ने ही दिया था, एक समय पर सतीश और अनुपम काफी खास दोस्त थें. सतीश के अचानक चले जाने से अनुपम को काफी ज्यादा चोट पहुंची हैं.

किरण खेर की हालत अभी ठीक है लेकिन उन्होंने कहा है कि जो लोग उनके संपर्क में आएं हैं वह कोरोना टेस्ट करवा लें.

YRKKH: मंजरी को होगा उसकी गलती का एहसास, अभिमन्यु देगा अक्षरा का साथ

स्टार प्लस का पसंदीदा शो ये रिश्ता क्या कहलाता है में इन दिनों नए- नए ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं, इस सीरियल में आए दिन नया- नया ड्रामा हो रहा है. मेकर्स कहानी में ऐसे ट्विस्ट लाते हैं जिसे देखकर लोगों के होश उड़ जाते हैं.

बीते एपिसोड में दिखाया जाता है कि अभिनव को पुलिस पकड़कर ले जाती है, वहीं अभिमन्यु शैफाली का साथ देता है, लेकिन अभी ड्रामा खत्म नहीॆ हुआ है. सीरियल में दिखाया जाएगा कि शैफाली का साथ पार्थ देता है और कहता है कि उसने हाथ उठाया है. जिसके बाद पार्थ अपने पापा को समझाने लगता है कि आपने अक्षरा के साथ क्या किया था.

 

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वहीं अभिमन्यु मंजरी से कहता है कि अक्षरा ने भी अपने बच्चे खोएं हैं लेकिन मैंने तो उसे ही दूर कर दिया, आगे देखने को मिलेगा कि अक्षरा अभिनव को बचाने के लिए पुलिस स्टेशन आ जाती है, वहां आकर वह सारी सबूत इक्ट्ठा करती है और बताती है कि सब गलत है इल्जाम.

इसके बाद से दोनों पुलिस स्टेशन से बाहर आ जाते हैं, वहीं आगे की कहानी में दिखाया जाएगा कि अक्षरा अभिनव के साथ डेट रक निकल जाएगी , जिसके बाद से दोनों के बीच में काफी ज्यादा नया देखने को मिलेगा.

 

गुलगुला घर पर आसान विधि से बनाएं

गुलगुला एक ऐसी मिठाई है जिसे कभी भी आप छोटे- मोट फंक्शन में बनाया जाता है. इसे आप चाहे तो कई बार छुट्टी के दिन भी बना सकते हैं. आइए जानते हैं गुलगुला बनाने का सबसे आसान तरीका.

समाग्री

250 ग्राम गेहूं का आटा

50 ग्राम बेसन

100 ग्राम शकर

1 छोटी चम्मच खसखस

तलने के लिए तेल

1 चम्मच इलायची पाउडर

कुछेक केसर के लच्छे

एक चुटकी नमक

विधि

क्रिस्पी गुलगुले बनाने के लिए
सबसे पहले आटा और बेसन छान लें. अब आटे में बेसन अच्छी तरह मिला लें. उसमें चुटक भर नमक मिलाएं और शकर डालकर उसका गाढ़ा घोल करके आधे घंटे के लिए रख दें. फिर घोल में इलायची पाउडर, खसखस के दाने और केसर मिलाकर मिश्रण को एकसार कर लें.

अब एक कड़ाही में तेल गरम कर उसके गोल-गोल पकौड़े तल लें. लीजिए तैयार है शाही क्रिस्पी मीठे गुलगुले. दशहरा पर्व पर बनाएं, खुद भी खाएं और घर आए मेहमानों को भी खिलाएं.

 

जानिए क्या है आंख से जुड़ी समस्या ऑक्युलर हायपरटेंशन और इससे बचाव

आज के समय में चाहे बच्चे हो या बड़े हर कोई आँखों की समस्या से परेशान है कारण है ज्यादा देर तक मोबाइल, टीवी या कंप्यूटर का इस्तेमाल करना व हमारी डाइट में पौष्टिक खानपान की कमी होना। ऐसे में आँखों के मरीजों की समस्या लगातार बढ़ रही है.

ऑक्युलर हायपरटेंशन आंखों से जुडी एक दुर्लभ बीमारी है। जब हमारी आंख के फ्रंट एरिया में
मौजूद फ्लूएड पूरी तरह से नहीं सुख पाता है तो हमें यह परेशानी हो सकती है। तो चलिए जानते है ऑक्युलर हाइपरटेंशन की समस्या है क्या व इससे कैसे हम अपनी आँखों को बचा सकते हैं .
समस्या को जाने
इस बीमारी को आंख का हाई ब्लड प्रेशर भी कहा जाता है। आंख की पुतली के पीछे मौजूद एक
संरचना से जलीय पदार्थ निकलता है। यह लिक्विड जब आंख से बाहर नहीं निकलता है तब आंख के सामने के एरिया में मौजूद फ्लूइड पूरी तरह से सूख नहीं पाता है जिस वजह से आंख के भीतर मौजूद प्रेशर जिसे इंट्राकुलर प्रेशर कहते है वह नार्मल से ज्यादा हो जाता है.

नार्मल में यह प्रेशर 11 से 21 (mmHg) होता है । इसके बढ़ने से ग्लूकोमा जैसी बीमारी भी हो सकती है या इसकी वजह से एक या दोनों आंखे प्रभावित हो सकती हैं। आंख में चोट लगना ,अनुवांशिक
बीमारी का होना या स्टेरॉयड दवाओं , अस्थमा और अन्य गंभीर बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं का सेवन भी इस बीमारी का कारण हो सकती हैं.
लक्षण व बचाव
शुरुवात में इस बीमारी के लक्षण पता नहीं चल पाते लेकिन यह समस्या गंभीर होने पर मरीजों में आंख में दर्द और लालिमा जैसी समस्याएं दिखाई देती हैं. वैसे तो यह समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन 40 साल के बाद इसका खतरा बढ़ सकता है. जरूरी है कि नियमित रूप से आंखों की जांच कराएं व डॉक्टर की सलाह से ही दवाइयों का प्रयोग करें .

तू झूठी मैं मक्कार फिल्म को मिला 2 स्टार

निर्देशक लव रंजन की 2018 में रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ हिट रह थी. फिल्म के शीर्षक को ले कर दर्शक कन्फ्यूज्ड रहे थे. इसी तरह के कन्फ्यूजन को ले कर उस ने अब ‘तू झूठी मैं मक्कार’ फिल्म बनाई है. इस फिल्म को निर्देशक ने एक मक्कार लड़के और झूठी लड़की की प्रेम कहानी बता कर प्रचारित किया है, मगर यह फिल्म नई पीढ़ी के युवाओं को शायद ही लुभा पाए. इस मक्कारी और झूठी प्रेम कहानी में कहीं भी गर्मजोशी नहीं दिखती, प्यार का चटपटापन भी नहीं दिखता.

‘प्यार का पंचनामा’ भाग 1 व 2 की तरह यह फिल्म एक रोमांटिक कौमेडी फिल्म है. फिल्म रिलेशनशिप पर है. किसी भी रिलेशनशिप में घुसना आसान होता है पर उस में से निकलना मुश्किल होता है.रिश्ता जोड़ना तो आसान होता है, पर तोड़ना बहुत मुश्किल होता है.

‘तू झूठी मैं मक्कार’ एक ऐसे अमीर युवक मिक्की (रणवीर कूपर) की कहानी है जो अपने परिवार से बेइंतहा प्यार करता है. उस के परिवार में दादी (जतिंदर कौर), मां (डिंपल कपाड़िया), बहन (हसलीन कौर), पिता (बोनी कपूर) हैं. मिक्की अपने परिवार से बहुत प्यार करता है और परिवार के लिए अपनी प्रेमिका टिन्नी (श्रद्धा कपूर) को भी छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है. दूसरी ओर, टिन्नी अपने होने वाले पति को उस के परिवार के साथ बांटना नहीं चाहती.

मिक्की एक खातेपीते परिवार का दक्षिण दिल्ली में बसे परिवार का बेटा है जो अपने दोस्त (अनुभव सिंह जस्सी) के साथ मिलकर मर्सडीज कार का शोरूम चलाता है मगर शौकिया तौर पर लोगों का ब्रेकअप भी बहुत ही पेशेवर तरीके से कराता है.

अपने दोस्त की पार्टी में उस की मुलाकात टिन्नी से होती है. वे दोनों स्पेन में बैचलर वैकेशन मना रहे अपनेअपने दोस्त के साथपहुंचेहोते हैं. दोनों को एकदूसरे से प्यार हो जाता है. दोनों टाइमपास करने वाला प्यारकरने की योजना बनाते हैं, हम बिस्तर भी होते हैं. लेकिन दिखावटी प्यार करतेकरते दोनों को असली प्यार हो जाता है.बात शादी तक आती है तो टिन्नी का मन डोल जाता है. वह ब्रेकअप का ठेका मिक्की को ही देती है. अंत के आधे घंटे में सबकुछ सुलझ जाता है.

फिल्म की इस कहानी में निर्देशक लवरंजन दर्शकों को अपने साथ जोड़ कर आगे बढ़ा है. ‘हैप्पी न्यूईयर’,‘बागी-3’ और ‘कबीर सिंह’ वाले सिनेमेटोग्राफर ने फिल्म के हर फ्रेम को शानदार दिखाया है.
फिल्म का पहला भाग सैकंड भाग से पूरी तरह अलग है. पहले भाग में खूबसूरत समंदर का किनारा, बिकिनी में हीरोइन, स्लिम वियर में हीरो और झूमने पर मजबूर करने वाले गाने हैं. सैकंड हाफ में कहानी बहुत तेजी से आगे बढ़ती है.

कार्तिक आर्यन ने शानदार कैमियो किया है. रणबीर कपूर का करैक्टर ढीलाढाला है. टिन्नी के किरदार में श्रद्धा कपूर ने बढिय़ा काम किया है. दोस्त की भूमिका में अनुभव सिंहबस्सीताजगी लाते दिखते हैं. बोनी कपूर का किरदार जाया किया गया है.

फिल्म का संपादन कमजोर है. फिल्म को कम से कम 15 मिनट छोटा किया जा सकता था. ‘प्यार का पंचनामा’ जैसी हिट फिल्म के लिए जाने वाला निर्देशक इस फिल्म को एक परफैक्ट रोमांटिक कामैडी फिल्म बनाने से चूक गया है.फिल्म का संगीत प्रीतम ने दिया है. अमिताभ भट्टाचार्य द्वारा लिखे गए 4 गाने कहानी को थोड़ी बहुत एनर्जी देते हैं. कुछ संवाद अच्छे हैं. क्लाइमैक्स दर्शकों का मूड अच्छा कर देता है.

लेखिका- चंचल छाया

ऑस्कर 2023 को देखने के लिए राजामौली संग इन सितारों ने खर्च किए थें इतने रुपए

एस एस राजामौली की फिल्म RRR को जब ऑस्कर मिला तो पूरे देश में खुशी की लहर दौड़ गई, हर कोई इस गाने पर झूम रहा था, सभी खुश थें, जब अवार्ड मिला तो फिल्म के डॉयरेक्टर से लेकर फिल्म के एक्टर तक इमोशनल नजर आएं.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस खास मोमेंट को देखने के लिए राजामौली ने कितने रुपय खर्च किएं थें, तो चलिए आपको बताते हैं कि राजामौली ने इस फिल्म को देखने के लिए अपने साथ- साथ जूनियर एनटीआर औऱ रामरण लगभग 20 लाख 63 हजार रुपये खर्च किए थें.

 

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जिसके बाद से इन लोगों ने ऑस्कर अवार्ड में हिस्सा लिया था.क्योंकि राजा मौली के साथ उनकी पत्नी औऱ उनके बेटा और बेटे की पत्नी, रामचरण भी अपनी फैमली के साथ इस अवार्ड का हिस्सा बनें थें.

अवार्ड के एक क्रू मेंबर ने बताया कि सिर्फ अवार्ड लेने वाले लोगों को ही फ्री में टिकट दिया जाता है. बाकी सभी को टिकट खरीदना पड़ता है. बता दें कि खुद राजामौली ने सभी टिकटों का इंतजाम करवाया था. ताकी पूरी टीम इस खास पल को अच्छे से जी पाए इंजॉय करें.

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