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Raksha Bandhan : जिम्मेदारी बहन की सुरक्षा की

‘‘गुडि़या, अब तुम बड़ी हो गई हो. अब तुम्हारी सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी मेरी है. तुम मेरी प्यारी बहन हो. तुम्हें कोई तकलीफ होगी तो मुझे दर्द होगा,’’ सुशांत ने अपनी बहन नेहा को समझाते हुए कहा.

‘‘भाई मैं अब बड़ी हो गई हूं. अपना खयाल रख सकती हूं. आप परेशान न हों, आप भी तो मेरे से केवल 2 साल ही बडे़ हैं,’’ नेहा ने अपना तर्क दिया.

‘‘बहन, मैं जानता हूं कि तुम बड़ी हो चुकी हो. अपना खयाल रख सकती हो. फिर भी मैं हमेशा तुम्हारी रक्षा का वचन देता हूं. 2 साल ही सही पर हूं तो तुम से बड़ा न,’’ सुशांत ने बात को समझाने का प्रयास किया.

‘‘हां, मान गई भाई, तुम जीते और मैं हारी. अब चौकलेट मुझे दो और मुझे इस का स्वाद लेने दो,’’ भाई के तर्क के आगे हार मानते हुए नेहा ने कहा.

इस तरह की जिम्मेदारी भरी नोकझोंक हर घर में भाईबहन के बीच होती ही रहती है. यह नोकझोंक आज की नहीं है. हर पीढ़ी के बीच होती रही है. नई पीढ़ी की बहन को लगता है कि वह बहुत बड़ी, समझदार और जिम्मेदार हो गई है और उसे भाई की मदद की जरूरत नहीं रह गई है. इस के विपरीत भाई को यह लगता है कि उस की बहन अभी मासूम, छोटी सी गुडि़या है, जिसे समाज में अच्छेबुरे का पता नहीं है. ऐसे में वह परेशान हो सकती है.

कई बार बड़ी होती बहन को लगता है कि सुरक्षा के नाम पर भाई या परिवार के दूसरे लोग उस की आजादी में बाधक हैं. असल में यही वह सोच है जो बहन को समझनी चाहिए. भाई या परिवार का कोई सदस्य उस की आजादी में बाधक नहीं होता. वह यह जरूर चाहता है कि लड़की के दामन पर कोई दाग न लगे, जो जीवन भर उसे परेशान करता रहे.

भावनात्मक सुरक्षा भी जरूरी

जब हम बहन की सुरक्षा की बात करते हैं तो केवल शारीरिक सुरक्षा ही मुद्दा नहीं होता बल्कि बहन की शारीरिक सुरक्षा के साथ ही साथ उस की भावनात्मक सुरक्षा भी जरूरी होती है. बड़ी होती बहन के दोस्तों में केवल लड़कियां ही नहीं होतीं लड़के भी होते हैं. इन दोस्तों में कई मासूमियत का लाभ उठाने के प्रयास में रहते हैं. बहन को लगता है कि सुरक्षा के नाम पर उस की आजादी को रोका जा रहा है. ऐसे में कई बार वह ऐसी बातों को छिपा जाती है, जो उस की सुरक्षा के लिए जरूरी होती हैं. ऐसे में जरूरी हो जाता है कि बहन के साथ भाई भावनात्मक रूप से जुड़ा रहे. भाई और बहन के बीच उम्र का अंतर काफी कम होता है. इसलिए बहन और भाई की सोच एकजैसी होती है. कई बार बहन अपने मातापिता को कई बातें नहीं बताती पर अपने भाई को बता देती है.

मनोविज्ञानी डाक्टर मधु पाठक कहती हैं, ‘‘यहां पर भाई की जिम्मेदारी बढ़ जाती है. वह बहन के साथ इमोशनली ऐसे व्यवहार रखे जिस से बहन हर बात उस को बताती रहे. ज्यादातर परेशानियां वहीं से शुरू होती हैं जब बच्चे अपनी बातें छिपाना शुरू करते हैं. यह केवल बहनें ही नहीं भाई भी करते हैं. जब भाई अपनी बातें बहन को बताएगा तो बहन भी उसे अपनी बातें बताने में संकोच नहीं करेगी. जरूरत इस बात की है कि बहन और भाई के बीच रिश्ता दोस्ताना भी बना रहे. अगर भाई पेरैंट्स की तरह बहन से व्यवहार करेगा तो वह बात को छिपा सकती है. दोस्त की तरह भाई संबंध रखेगा तो परेशानी नहीं आएगी. भाई को शारीरिक सुरक्षा के साथ बहन को भावनात्मक सुरक्षा भी देनी चाहिए.’’

सोच बदलने की जरूरत

लड़की और लड़के के बीच समाज एक तरह का फर्क करता है, जिस की वजह से कुछ बातें भाई के लिए उतनी बुरी नहीं समझी जातीं जितनी बहन के लिए समझी जाती हैं. इस बात को समझने के लिए देखें तो भाई की गर्लफ्रैंड को ले कर उतना हंगामा नहीं होता जितना बहन के बौयफ्रैंड को ले कर होता है.

आज जब महिला अधिकारों की बात हो रही है तो बहन भी अपने लिए भाई जैसे अधिकार चाहती है. समाज भाई की गलतियों को उस तरह से नहीं लेता जिस तरह से बहन की गलतियों को लेता है. यह समाज की एक तरह की पुरुषवादी मानसिकता है. यही वजह है कि केवल भाई ही नहीं पेरैंट्स भी बेटी को ले कर बेटे से अधिक सचेत रहते हैं. इस बात से ही लड़कियों का मतभेद होता है. वे इस सोच में भाईबहन के सामाजिक अधिकार के अंतर को ले कर विद्रोही हो जाती हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता विनीता ग्रेवाल कहती हैं, ‘‘लड़कियों के भोलेपन का लाभ उठाने वाला पुरुषवर्ग ही होता है. इस में कई बार करीबी रिश्तेदार तक शामिल होते हैं. जरूरत इस बात की है कि लड़कियों को भी यह समझाया जाए कि वे सही और गलत के फर्क को समझ सकें. हमारे समाज में सैक्स की चर्चा पूरी तरह से बेमानी मानी जाती है ़ऐसे में सैक्स को ले कर लड़कियां जागरूक नहीं होतीं, यह बात उन के लिए मुसीबत का सबब बनती है. सैक्स संबंधों को ले कर ज्यादातर लड़कियां इमोशनली ठगी जाती हैं, जिस का प्रभाव केवल उन के  जीवन पर ही नहीं पड़ता बल्कि परिवार पर भी पड़ता है. समाज सीधे सवाल करता है कि लड़की की सुरक्षा का परिवार वालों ने खयाल नहीं रखा. इस वजह से पेरैंट्स और भाई कुछ ज्यादा ही परेशान रहते हैं. अपनी आजादी के साथ लड़कियों को इस तर्क को सामने रख कर सोचना चाहिए, जिस से विद्रोह जैसे हालात से बचा जा सकता है.’’

खुद बनें मजबूत

समय बदल रहा है. आज लड़की को लड़के जैसे अधिकार हासिल हैं. वह भी पढ़ाई, कोचिंग, शौपिंग के लिए खुद ही जाना चाहती है. कई घरों में लड़कियों के भाई नहीं हैं, केवल पेरैंट्स ही हैं. ऐसे में हर जगह बहन की सुरक्षा में भाई नहीं मौजूद रह सकता. तब लड़कियों को खुद ही मजबूत बनना पडे़गा. केवल मानसिक  रूप से ही नहीं शारीरिक रूप से भी उसे मजबूत रहना है. यही नहीं कानून ने जो अधिकार उसे दिए हैं वे भी उसे पता होने चाहिए, जिस से पुलिस और प्रशासन से अपने लिए मदद हासिल कर सके. आज सैल्फ डिफैंस के तमाम कार्यक्रम चल रहे हैं, जिन से लड़कियां अपना बचाव कर सकें. ऐसे में जरूरी है कि लड़कियां शारीरिक मेहनत करें और खुद को मजबूत बनाएं. इस के बाद वे जरूरत पड़ने पर अपना बचाव करने में सक्षम हो सकेंगी, जिस पेरैंट्स और भाई को इस बात का यकीन होता है कि लड़की अपनी सुरक्षा खुद कर सकती है तो वह चिंतामुक्त होता है.

रैड बिग्रेड संस्था लड़कियों को आत्मरक्षा के तमाम गुण सिखाती है. संस्था की संचालक ऊषा विश्वकर्मा कहती हैं, ‘‘केवल भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में इस बात की जरूरत महसूस की जा रही है कि लड़कियों को सैल्फ डिफैंस की ट्रेनिंग लेनी चाहिए. इस से कमजोर बौडी वाली लड़कियां भी मजबूत से मजबूत विरोधी को मात दे कर अपना बचाव कर सकती हैं. स्कूल, पेरैंट्स, सरकार और समाज को सहयोग कर के सैल्फ डिफैंस की ट्रेनिंग को बढ़ावा देना चाहिए, जिस से लड़की मजबूत ही नहीं होगी, उस के अंदर का डर भी खत्म हो जाएगा.’’

ऊषा को सैल्फ डिफैंस की ट्रेनिंग देने के लिए कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है. वे अपने स्तर से कई तरह की वर्कशौप कर के सैल्फ डिफैंस की ट्रेनिंग दे रही हैं.

बढ़ाएं आपसी समझदारी

बहन की सुरक्षा भाई की जिम्मेदारी होती है. ऐसे में जरूरी है कि भाईबहन के बीच आपसी समझदारी बढे़. जब दोनों के बीच आपसी समझदारी होगी तो उसे किसी भी तरह की परेशानी का अनुभव नहीं होगा. वह यह नहीं सोचेगी कि सुरक्षा के नाम पर उस की आजादी को प्रभावित किया जा रहा है. जब उस को समझाया जाएगा कि यह सुरक्षा क्यों जरूरी है, तो वह किसी बात को छिपाएगी नहीं. जब भाईबहन एकदूसरे से कुछ छिपाएंगे नहीं तो आपस में समझदारी बढ़ेगी, जिस से खुद ही सुरक्षा का एहसास होगा. सुरक्षा का यह एहसास खुद में आत्मविश्वास पैदा करेगा. आज के दौर में समाज और हालात बहुत बदल चुके हैं. ऐसे में बच्चों के बीच आपसी समझदारी जरूरी है.

अंश वैलफेयर की अध्यक्षा श्रद्धा सक्सेना कहती हैं, ‘‘बदलते दौर में भाई और बहन दोनों को समान अवसर मिले हैं. ऐेसे में जरूरी है कि वे आपसी समझदारी दिखाएं. केवल बहन पर ही नहीं अगर भाई पर भी कोई उंगली उठती है तो बहन को भी उतनी ही तकलीफ होती है. टीनएज में होने वाले क्रश का प्रभाव केवल बहन पर ही नहीं पड़ता भाई का जीवन और कैरियर भी उस से प्रभावित होता है. ऐसे में जब भाईबहन समझदारी भरा व्यवहार करते हैं आपस में बातें शेयर करते हैं तो मुसीबतों से बचे रहते हैं, कई घरपरिवार में बहन बड़ी होती है, ऐसे में वह भाई को पूरी सुरक्षा देती है. भाई केवल बहन को ही नहीं बहन भी भाई को खुश और सुरक्षित देखना चाहती है.’’

एक नन्ही परी : भाग 3

वह हलदी के दाग को हथेलियों से साफ करने की कोशिश करने लगी. पर हलदी के दाग और भी फैलने लगे. अतुल ने उस की दोनों कलाइयां पकड़ लीं और बोल पड़ा, ‘यह हलदी का रंग जाने वाला नहीं है. ऐसे तो यह और फैल जाएगा. आप रहने दीजिए.’ विनी झेंपती हुई हाथ धोने चली गई.

बड़ी धूमधाम से काजल की शादी हो गई. काजल की विदाई होते ही विनी को अम्मा के साथ दिल्ली जाना पड़ा. कुछ दिनों से अम्मा की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. डाक्टरों ने जल्दी से जल्दी दिल्ली ले जा कर हार्ट चैकअप का सुझाव दिया था. काजल की शादी के ठीक बाद दिल्ली जाने का प्लान बना था. काजल की विदाई वाली शाम का टिकट मिल पाया था.

एक शाम अचानक शरण काका ने आ कर खबर दी. विनी को देखने लड़के वाले अभी कुछ देर में आना चाहते हैं. घर में जैसे उत्साह की लहर दौड़ गई. पर विनी बड़ी परेशान थी. न जाने किस के गले बांध दिया जाएगा? उस के भविष्य के सारे अरमान धरे के धरे रह जाएंगे. अम्मा उस से तैयार होने को कह कर रसोई में चली गईं. तभी मालूम हुआ कि लड़का और उस के परिवार वाले आ गए हैं. बाबूजी, काका और काकी उन सब के साथ ड्राइंगरूम में बातें कर रहे थे.

अम्मा ने उसे तैयार न होते देख कर, आईने के सामने बैठा कर उस के बाल सांवरे. अपनी अलमारी से झुमके निकाल कर दिए. विनी झुंझलाई बैठी रही. अम्मा ने जबरदस्ती उस के हाथों में झुमके पकड़ा दिए. गुस्से में विनी ने झुमके पटक दिए.

एक झुमका फिसलता हुआ ड्राइंगरूम के दरवाजे तक चला गया. ड्राइंगरूम उस के कमरे से लगा हुआ था.

परेशान अम्मा उसे वैसे ही अपने साथ ले कर बाहर आ गईं. विनी अम्मा के साथ नजरें नीची किए हुए ड्राइंगरूम में जा पहुंची. वह सोच में डूबी थी कि कैसे इस शादी को टाला जाए. काकी ने उसे एक सोफे पर बैठा दिया. तभी बगल से किसी ने धीरे से कहा, ‘मैं ने कहा था न, हलदी का रंग जाने वाला नहीं है.’ सामने अतुल बैठा था.

अतुल और उस के मातापिता के  जाने के बाद काका ने उसे बुलाया. बड़े बेमन से कुछ सोचती हुई वह काका के साथ चलने लगी. गेट से बाहर निकलते ही काका ने उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘विनी, मैं तेरी उदासी समझ रहा हूं. बिटिया, अतुल बहुत समझदार लड़का है. मैं ने अतुल को तेरे सपने के बारे में बता दिया है. तू किसी तरह की चिंता मत कर. मुझ पर भरोसा कर, बेटी.’

काका ने ठीक कहा था. वह आज जहां पहुंची है वह सिर्फ अतुल के सहयोग से ही संभव हो पाया था. अतुल आज भी अकसर मजाक में कहते हैं, ‘मैं तो पहली भेंट में ही जज साहिबा की योग्यता पहचान गया था.’ उस की शादी में शरण काका ने सचमुच मामा होने का दायित्व पूरी ईमानदारी से निभाया था. पर वह उन्हें मामा नहीं, काका ही बुलाती थी.

कोर्ट का कोलाहल विनीता को अतीत से बाहर खींच लाया. पर वे अभी भी सोच रही थीं, इसे कहां देखा है. दोनों पक्षों के वकीलों की बहस समाप्त हो चुकी थी. राम नरेश के गुनाह साबित हो चुके थे. वह एक भयानक कातिल था. उस ने इकरारे जुर्म भी कर लिया था. उस ने बड़ी बेरहमी से हत्या की थी. एक सोचीसमझी साजिश के तहत उस ने अपने दामाद की हत्या कर शव का चेहरा बुरी तरह कुचल दिया था और शरीर के टुकड़ेटुकड़े कर जंगल में फेंक दिए थे. वकील ने बताया कि राम नरेश का आपराधिक इतिहास है. वह एक कू्रर कातिल है. पहले भी वह कत्ल का दोषी पाया गया था पर सुबूतों के अभाव में छूट गया था. इसलिए इस बार उसे कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए. वकील ने पुराने केस की फाइल उन की ओर बढ़ाई. फाइल खोलते ही उन की नजरों के सामने सबकुछ साफ हो गया. सारी बातें चलचित्र की तरह आंखों के सामने घूमने लगीं.

लगभग 22 वर्ष पहले राम नरेश को कोर्ट लाया गया था. उस ने अपनी दूधमुंही बेटी की हत्या कर दी थी. तब विनीता वकील हुआ करती थीं. ‘कन्या भ्रूण हत्या’ और ‘बालिका हत्या’ जैसे मामले उन्हें आक्रोश से भर देते थे. मातापिता और समाज द्वारा बेटेबेटियों में किए जा रहे भेदभाव उन्हें असह्य लगते थे. तब विनीता ने राम नरेश के जुर्म को साबित करने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा दिया था. उस गांव में अकसर बेटियों को जन्म लेते ही मार डाला जाता था. इसलिए किसी ने राम नरेश के खिलाफ गवाही नहीं दी. लंबे समय तक केस चलने के बाद भी जुर्म साबित नहीं हुआ. इसलिए कोर्ट ने राम नरेश को बरी कर दिया था. आज वही मुजरिम दूसरे खून के आरोप में लाया गया था. विनीता ने मन ही मन सोचा, ‘काश, तभी इसे सजा मिली होती. इतना सीधासरल दिखने वाला व्यक्ति 2-2 कत्ल कर सकता है? इस बार वे उसे कड़ी सजा देंगी.’

जज साहिबा ने राम नरेश से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें अपनी सफाई में कुछ कहना है?’’ राम नरेश के चेहरे पर व्यंग्यभरी मुसकान खेलने लगी. कुछ पल चुप रहने के बाद उस ने कहा, ‘‘हां हुजूर, मुझे आप से बहुत कुछ कहना है. मैं आप लोगों जैसा पढ़ालिखा और समझदार तो नहीं हूं, पता नहीं आप लोग मेरी बात समझेंगे या नहीं. आप मुझे यह बताइए कि अगर कोई मेरी परी बिटिया को जला कर मार डाले और कानून से भी अपने को बचा ले. तब क्या उसे मार डालना अपराध है?

‘‘मेरी बेटी को उस के पति ने दहेज के लिए जला दिया था. मरने से पहले मेरी बेटी ने आखिरी बयान दिया था कि कैसे मेरी फूल जैसी सुंदर बेटी को उस के पति ने जला दिया. पर वह शातिर पुलिस और कानून से बच निकला. इसलिए उसे मैं ने अपने हाथों से सजा दी. मेरे जैसा कमजोर पिता और कर ही क्या सकता है? मुझे अपने किए गुनाह पर कोई अफसोस नहीं है.’’

उस का चेहरा मासूम लग रहा था. उस की बूढ़ी आंखों में आंसू चमक रहे थे. लेकिन चेहरे पर संतोष झलक रहा था. वह जज साहिबा की ओर मुखातिब हुआ,  ‘‘हुजूर, आज से 22 वर्ष पहले जब मैं ने अपनी बड़ी बेटी को जन्म लेते ही मार डाला था, तब आप मुझे सजा दिलवाना चाहती थीं. आप ने तब मुझे बहुत भलाबुरा कहा था. आप ने कहा था, ‘बेटियां अनमोल होती हैं. मार कर आप ने जघन्य अपराध किया है.’

‘‘आप की बातों ने मेरी रातों की नींद और दिन का चैन खत्म कर दिया था. इसलिए जब मेरी दूसरी बेटी का जन्म हुआ तब मुझे लगा कि प्रकृति ने मुझे भूल सुधारने का मौका दिया है. मैं ने प्रायश्चित करना चाहा. उस का नाम मैं ने ‘परी’ रखा. बड़े जतन और लाड़ से मैं ने उसे पाला. अपनी हैसियत के अनुसार उसे पढ़ाया और लिखाया. वह मेरी जान थी.

‘‘मैं ने निश्चय किया कि उसे दुनिया की हर खुशी दूंगा. मैं हर दिन मन ही मन आप को आशीष देता कि आप ने मुझे ‘पुत्रीसुख’ से वंचित होने से बचा लिया. मेरी परी बड़ी प्यारी, सुंदर, होनहार और समझदार थी. मैं ने उस की शादी बड़े अरमानों से की. अपनी सारी जमापूंजी लगा दी. मित्रों और रिश्तेदारों से उधार लिया. किसी तरह की कमी नहीं की. पर दुनिया ने उस के साथ वही किया जो मैं ने 22 साल पहले अपनी बड़ी बेटी के साथ किया था. उसे मार डाला. तब सिर्फ मैं दोषी क्यों हूं? मुझे खुशी है कि मेरी बड़ी बेटी को इस कू्रर दुनिया के दुखों और भेदभाव को सहना नहीं पड़ा. छोटी बेटी को समाज ने हर वह दुख दिया जो एक कमजोर पिता की पुत्री को झेलना पड़ता है. ऐसे में सजा किसे मिलनी चाहिए? मुझे या इस समाज को?

‘‘अब आप बताइए कि बेटियों को पालपोस कर बड़ा करने से क्या फायदा है? पलपल तिलतिल कर मरने से अच्छा नहीं है कि वे जन्म लेते ही इस दुनिया को छोड़ दें. कम से कम वे जिंदगी की तमाम तकलीफों को झेलने से तो बच जाएंगी. मेरे जैसे कमजोर पिता की बेटियों का भविष्य ऐसा ही होता है. उन्हें जिंदगी के हर कदम पर दुखदर्द झेलने पड़ते हैं. काश, मैं ने अपनी छोटी बेटी को भी जन्म लेते ही मार दिया होता.

‘‘आप मुझे बताइए, क्या कहीं ऐसी दुनिया है जहां जन्म लेने वाली ये नन्ही परियां बिना भेदभाव के सुखद जीवन जी सकें? आप मुझे दोषी मानती हैं पर मैं इस समाज को दोषी मानता हूं. क्या कोई अपने बच्चे को इसलिए पालता है कि उसे यह नतीजा देखने को मिले या समाज हमें कमजोर होने की सजा दे रहा है? क्या सही क्या गलत, आप मुझे बताइए?’’

विनीता अवाक् थीं. मूक नजरों से राम नरेश के लाचार, कमजोर चेहरे को देख रही थीं. उन के पास जवाब नहीं था. आज एक नया नजरिया उन के सामने था. उन्होंने उस की फांसी की सजा को माफ करने की दया याचिका प्रैसिडैंट को भिजवा दी.

अगले दिन अखबार में विनीता के इस्तीफे की खबर छपी थी. उन्होंने वक्तव्य दिया था, ‘इस असमान सामाजिक व्यवस्था को सुधारने की जरूरत है. यह समाज लड़कियों को समान अधिकार नहीं देता है. जिस से न्याय, अन्याय बन जाता है, क्योंकि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. गलत सामाजिक व्यवस्था न्याय को गुमराह करती है और लोगों का न्यायपालिका से भरोसा खत्म करती है. मैं इस गलत सामाजिक व्यवस्था के विरोध में न्यायाधीश पद से इस्तीफा देती हूं,’ उन्होंने अपने वक्तव्य में यह भी जोड़ा कि वे अब एक समाजसेवी संस्था के माध्यम से आमजन को कानूनी सलाह देंगी और साथ ही, गलत कानून को बदलवाएंगी भी.

तुम्हारे हिस्से में : भाग 3

‘‘सचमुच, यह तो मैं ने सोचा ही नहीं. यू आर रियली जीनियस, जेन,’’ हर्ष संजना के तर्क पर मुग्ध हो उठा, ‘‘पर लेनी तो प्योर सिल्क ही है यार.’’

‘‘प्योर सिल्क?’’ संजना चौंक पड़ी, ‘‘प्योर सिल्क के माने जानते भी हो?’’

‘‘पिछली बार वहां गया था तो दीवाली पर प्योर सिल्क देने का वादा कर के आया था,’’ हर्ष अपराधबोध से भर गया.

‘‘उफ, तुम भी न…’’ संजना बड़बड़ाई, ‘‘इस तरह के उलटेसीधे वादे करने से पहले थोड़ा तो सोचना चाहिए था न.’’

‘‘अब कुछ नहीं हो सकता, जेन. वादा कर आया हूं न. नहीं दी तो मम्मी क्या सोचेंगी?’’

‘‘ठीक है. कोई उपाय करते हैं,’’ संजना सोच में पड़ गई.

बाइक अलीपुर की ओर दौड़ने लगी. पीछे बैठी संजना ने बायां हाथ आगे ले जा कर हर्ष की कमर को लपेट लिया. संजना की सांसों की मखमली खुशबू हर्ष को सनसनी से भर दे रही थी.

रासबिहारी मैट्रो स्टेशन के पास एक ठीकठाक शोरूम के आगे बाइक रुकी. दोनों भीतर चले आए. उन के हाथों में भारीभरकम भड़कीले पैकेट्स देख कर काउंटर के पीछे बैठे मुखर्जी बाबू मन ही मन चौंके. ऐसे हाईफाई ग्राहक का उन के साधारण से शोरूम में क्या काम?

‘‘वैलकम मैडम, क्या सेवा करें?’’ हड़बड़ा कर खड़े हो गए मुखर्जी बाबू.

‘‘प्योर सिल्क की एक साड़ी लेनी है हमें. कुछ बढि़या डिजाइनें दिखाइए.’’

मुखर्जी बाबू ने सहायक को संकेत दिया. देखते ही देखते काउंटर पर दसियों साडि़यां आ गिरीं. मुखर्जी बाबू उत्साहपूर्वक एकएक साड़ी खोल कर डिजाइन व रंगों की प्रशंसा करने लगे. संजना ने साड़ी पर चिपके प्राइस टैग पर नजर डाली, 3 से 4 हजार की थीं साडि़यां. उस ने हर्ष की ओर देखा.

‘‘तनिक कम रेंज की दिखाइए दादा,’’ संजना धीमे से बोली.

‘‘मैडम, इस से कम प्राइस में अच्छी क्वालिटी की प्योर सिल्क नहीं आएगी. सिंथेटिक दिखा दें?’’ मुखर्जी बाबू सोच रहे थे, ‘इतना मालदार आसामी प्राइस देख कर हड़क क्यों रहा है?’

‘‘प्योर सिल्क ही लेनी है,’’ संजना रुखाई से बोली. फिर तमतमाई आंखों से हर्ष की ओर देखा. दोनों अंगरेजी में बातें करने लगे.

‘‘तुम्हारी मम्मी का दिमाग सनक गया है. माना 40-45 की ही हैं अभी, पर हमारे समाज में विधवा स्त्री को ज्यादा कीमती और फैशनेबल साड़ी पहनना वर्जित है. यह बात उन्हें सोचनी चाहिए. मुंह उठाया और प्योर सिल्क मांग लिया, हुंह. प्योर सिल्क का दाम भी पता है? प्योर सिल्क पहनने का चाव चढ़ा है.’’

‘‘आय एम सौरी, जेन. वायदा कर चुका हूं न. अब कोई उपाय नहीं,’’

हर्ष ने भूल स्वीकारते हुए अफसोस जाहिर किया.

उसे अच्छी तरह याद है. उस दिन दोस्तों के संग घूमफिर कर घर लौटा तो रात के 10 बज रहे थे. मम्मी बिना खाए उस का इंतजार कर रही थीं. दोनों ने साथ भोजन किया. फिर वह मम्मी की गोद में सिर रख कर लेट गया. नीचे मम्मी की गोद की अलौकिक ऊष्मा. ऊपर चेहरे पर उस के ममता भरे हाथों का शीतल स्पर्श. न जाने कैसा सम्मोहन घुला था इन में कि झपकी आ गई. काफी दिनों के बाद एक सुकून भरी नींद. 3 घंटे बाद अचानक नींद टूटी तो देखा, मम्मी ज्यों की त्यों बैठी बालों में उंगलियां फिरा रही हैं.

उन्हीं क्षणों के दौरान उस के मुंह से निकल गया, ‘इस बार दीवाली पर अच्छी सी प्योर सिल्क की साड़ी दूंगा तुम्हें.’ यह सुन कर मम्मी सिर्फ मुसकरा भर दी थीं.

हर्ष और जेन के बीच बातचीत भले ही अंगरेजी में हो रही थी और मुखर्जी बाबू को अंगरेजी की समझ कम थी, फिर भी उन्हें ताड़ते देर नहीं लगी.

‘‘मैडम,’’ मुखर्जी बाबू ने सिर खुजलाते हुए अत्यंत विनम्रतापूर्वक कहा, ‘‘यदि बुरा न मानें तो क्या हम पूछ सकते हैं कि साड़ी किस के लिए ले रही हैं?’’

इस के पहले कि इस अटपटे प्रश्न पर दोनों हत्थे से उखड़ जाते, मुखर्जी बाबू ने झट से स्पष्टीकरण भी पेश कर दिया, ‘‘न, न, मैडम, अन्यथा न लें, सिर्फ इसलिए पूछा कि हम उस के अनुकूल दूसरा किफायती औप्शन बता सकें.’’

संजना ने हिचकिचाते हुए मन की गांठ खोल दी, ‘‘साहब की विडो (विधवा) मदर के लिए.’’

पलक झपकते मुखर्जी बाबू के जेहन में पूरा माजरा बेपरदा हो गया. मैडम ने साहब की मां को ‘मम्मी’ नहीं कहा, ‘सासूमां’ भी नहीं कहा, बल्कि ‘साहब की विडो मदर’ कहा और साहब कार्टून की तरह खड़ा दुम हिलाता ‘खीखी’ करता रहा.

‘‘आप का काम हो गया,’’ उन्होंने सहायक को कुछ अबूझ से संकेत दिए. थोड़ी देर में ही काउंटर पर प्योर सिल्क का नया बंडल दस्ती बम की तरह आ गिरा. एक से एक खूबसूरत प्रिंट. एक से एक लुभावने कलर.

‘‘वैसे तो ये साडि़यां भी 4 हजार से ऊपर की ही हैं मैडम, पर हम इन्हें सिर्फ 800 रुपए में सेल कर रहे हैं. लोडिंगअनलोडिंग के समय हुक लग जाने से या चूहे के काट देने से माल में छोटामोटा छेद हो जाता है. हमारा ट्रैंड कारीगर प्लास्टिक सर्जरी कर के उस नुक्स को इस माफिक ठीक करता है कि साड़ी एकदम नई हो जाती है. सरसरी नजर से देखने पर नुक्स बिलकुल भी पता नहीं चलेगा.’’

‘‘यानी कि रफू की हुई,’’ संजना हकला उठी.

‘‘रफू नहीं मैडम, प्लास्टिक सर्जरी बोलिए. रफू तो देहाती शब्द है. आप खुद देखिए न.’’

सचमुच, बिलकुल नई और बेदाग साडि़यां. जहांतहां छोटेछोटे डिजाइनर तारे नजर आ रहे थे जो साड़ी की खूबसूरती को बढ़ा ही रहे थे. सरसरी तौर पर कोई भी नुक्स नहीं दिख रहा था साडि़यों में, दोनों की बाछें खिल उठीं. आंखों में ‘यूरेकायूरेका’ के भाव उभर आए, मन तनावमुक्त हो गया जैसे जेन का.

आननफानन ढेर में से एक साड़ी चुनी गई और पैक हो कर आ गई. यह नया पैकेट मौल के पैकेटों के बीच ऐसा लग रहा था जैसे प्राइवेट स्कूल के बच्चों के बीच किसी सरकारी स्कूल का बच्चा आ घुसा हो.

‘‘मैं ने कहा था न, सही मौका आते ही क्रैडिट कार्ड की खरोंचों पर रफू लगा दूंगी. देख लो, तुम्हारा वादा भी पूरा हो गया और चिराग पर पूरे 3 हजार का रफू भी लग गया.’’

‘‘यू आर जीनियस, जेन,’’ हर्ष की प्रशंसा सुन कर संजना खिलखिलाई तो बालों की कई महीन लटें पहले की ही तरह आंखों के सामने से होती हुई होंठों तक चली आईं. बाइक की ओर बढ़ते हुए दोनों के चेहरे खिले हुए थे.

मां आनंदेश्वरी : भाग 2

उन्होंने गौर से देखा, फिर बोलीं, “इस की फोटो तुम्हारे फोन में कैसे?”

जब उस ने मेले की बात बताई तो वे अपने अतीत में खो गईं और बताने लगीं,

“यह आनंदी है. मां ने बताया था, वह किसी स्वामी जी के साथ रहने लगी है.”

“ओह, अब याद आ गया, इस को आप के घर में ही देखा था.”

“हां, तुम सही कह रही हो. जिन दिनों तुम इन का संदेशा ले कर आया करती थीं, यह मेरे घर पर ही रहा करती थी. लेकिन मेरे यहां इस का मन नहीं लगा था और 6 महीने में ही मेरी बूआ के यहां इलाहाबाद लौट गई थी.

“इस की सुंदरता ही इस के लिए अभिशाप बन गई. बदमाशों से बचाने के लिए बूआ ने इसे मेरे घर भेज दिया था. इस के काम करने के ढंग से हम सब बहुत खुश थे. यह बहुत सुंदर और सलीकेदार थी. इस के 2 नन्हें मासूम बाहर बरामदे में बैठ कर सब को टुकुरटुकुर देखते रहते और उन्हें जो दे दिया जाता, चुपचाप खा लेते. यह खाना बहुत अच्छा बनाती, रोटी बहुत मुलायम बनाती और बड़े प्यार से सब को खिलाया करती थी.

“एक दिन मां से रोरो कर अपने ऊपर हुए अत्याचार की सारी कहानी सुना रही थी. जब वह 12 साल की थी तभी मातापिता ने 40 वर्षीय उम्रदराज दिलीप के पल्ले उसे बांध दिया. वह मासूम कली की तरह थी, जो पूरी तरह से अभी खिल भी नहीं पाई थी. दिलीप नशे डूबा हुआ आया और पहली रात ही नोचखसोट कर उसे लहूलुहान कर दिया था. अब तो वह उस की शक्ल देख कर ही कांप उठती. लेकिन अपना वह दर्द किस से कहती?

“उस की सुंदरता ही उस के जीवन के लिये विष बन गई. पति काला और अधेड़, हर घड़ी शक की आग में जलता रहता. रात में पी कर आता और पीटपीट कर लहूलुहान कर के कामांध हो कर अपनी हवस मिटाता. वह प्रैग्नैंट हो गई थी लेकिन उस की क्रूरता बढ़ती गई थी. वह सबकुछ झेलती रही थी. यह सिलसिला दोतीन साल तक चलता रहा. और इस बीच वह 2 बच्चों की मां बन गई थी. लेकिन जब एक दिन वह नशे में उस की 2 साल की अबोध बच्ची के साथ गलत हरकत करने की कोशिश कर रहा था, वह सहन नहीं कर पाई और गुस्से में उस ने सिल का लोढा फेंक कर मार दिया था.

“वह बहुत खुंखार हो उठा था लेकिन पड़ोस की काकी सामने आ कर खड़ी हो गईं और वह बच कर बच्चों को ले कर अपने मायके आ गई. लेकिन यहां भी चैन कहां था? वह बारबार आ कर धमकाता और तमाशा करता लेकिन बाबू ने मार कर भगा दिया था. अम्मा 4-6 घरों में बरतनचौका करतीं, उसी से रोटी चलती. बापू रिकशा चलाया करते थे. उस के आने के बाद कुछ दिनों तक तो वह सागसब्जीआटा वगैरह ले कर आया करते और मेरी मुन्नी व छुट्टन के लिए भी बिस्कुट ले कर आया करते लेकिन नशा करने वाला भला कहां सुधरने वाला…

“बस, शुरू हो गया पी कर आना और अम्मा के साथ गालीगलौज व मारपीट… वह सोचती कि एक नर्क से मुश्किलों से निकल कर आए तो दूसरे नर्क में पहुंच गए.

“अब अम्मा ने उसे भी कई घरों में झाड़ूपोंछा करने के लिए लगा दिया. उस को शुरू से ही सजधज कर रहने का शौक था. अब जब उस के हाथ में पैसे आने लगे तो वह सस्ते वाले पाउडर, लाली, चिमटी, चूड़ियां आदि खरीद कर ले आती. सुंदर तो वह थी ही. प्रज्ञा दीदी उसे बहुत मानती थीं, उन्होंने अपनी कई सारी साड़ियां दे दी थीं उसे.

“प्रमिला आंटी के यहां राधे दूध ले कर आता था. वह उस की मुनिया के लिए दूध बिना पैसे के दे देता था. वह हर मंगल को मंदिर में जब सुंदरकांड होता तो वह ढोलक बजाया करता था. वह भगवान की सुनी हुई कथा सुनाया करता. वह अपने गुरुजी स्वामी सच्चानंद की बहुत बातें करता रहता. उस का गला भी सुरीला था, जब वह माइक पर गाता तो वह आश्चर्य से उसे देखती रह जाती. वह उसे प्यारभरी नजरों के साथ ढेर सारा प्रसाद दे देता. उस ने ही मुनिया का स्कूल में नाम लिखा दिया था. जब मुनिया स्कूल ड्रैस पहन, बस्ता कंधे पर लटका कर स्कूल जाती तो वह बिटिया के सुखद भविष्य कल्पनालोक में डूब जाती.

“वह भी लगभग 20 साल की जवान लड़की और राधे भी गबरू जवान, कहता, ‘मेरी बन जा, तुझे रानी बना कर रखूंगा.’ पूरी चाल में सब को उन दोनों के बीच के नैनमटक्का की बात मालूम हो गई थी. उस ने स्वामीजी से दीक्षा ले रखी थी. उन्होंने अपने आश्रम में एक कमरा दे रखा था. वह उसी कमरे में रहा करता था. स्वामीजी उस को अपने बेटे सा मान देते थे, इसलिए उन्होंने उसे बाइक दे रखी थी. सो, वह कई बार उसे बाइक पर बैठा घुमाने के लिए ले जाया करता था.

“अम्मा ने उस की सब तरफ होने वाली बदनामी से परेशान हो कर जब बूआ के सामने जब रोना रोया तो उसे बरेली काम करने के लिए भेज दिया. यहां वह 6 महीने भी नहीं रुकी और फिर एक दिन वह चुपचाप राधे के साथ भाग गई थी.

“बूआ भी उन गुरु सच्चानंद की भक्त बन गई थीं, इसलिए वे भी वहां अकसर दर्शन और कथा सुनने जाया करती थीं. वहां पर उन की मुलाकात आनंदी से हो जाया करती थी.

वी आर प्राउड औफ यू अम्मा : भाग 2

‘‘क्या करूं अम्मा, बच्चों की पढ़ाई का इतना प्रेशर था कि मैं चाह कर भी नहीं आ पाई. पर, अब तो आ गई हूं और आप को पता है… दो घंटे में छोटी भी आ जाएगी.’’

‘‘क्या… छोटी भी आ रही है,’’ अम्मा ने हैरत से चहकते हुए पूछा.

‘‘हां, ये तो तू सही कह रही है, वह तो बचपन से ही ऐसी ही है,’’ कहती हुई अम्मा किचन से पानी और उस की पसंद के बेसन के लड्डू की प्लेट ले कर खुशी से हुलसती हुई आ गईं.

‘‘अरे वाह अम्मा, सारे जमाने के बेसन के लड्डू खा लो, पर आप के हाथ का स्वाद कहीं भी नहीं मिलता,’’ कह कर अंशू एकसाथ बेसन के दो लड्डू खा गई.

“अम्मा, अब मैं नहाधो लूं. तब तक छोटी और बच्चे भी आ जाएंगे, फिर एकसाथ सब मस्ती करेंगे.”

‘‘अरे बिट्टो, खाने में क्या खाएगी बता दे. वही बनवा लेती हूं,’’ अम्मा ने कहा.

‘‘बनवा लेती हूं मतलब… आप ने खाना बनाने वाली लगाई है क्या? आप को तो कभी उन का काम पसंद ही नहीं था. आप तो इतना जातपांत और छुआछूत मानती थी, फिर ऐसा कैसे, कब और क्यों हो गया अम्मा,’’ अंशू ने हैरत से एकसाथ कई सवाल दाग दिए.

‘‘देखो बेटा, ध्यान से देखो. ये तुम्हारी अम्मा ही हैं न… तुम्हें याद होगा, जब तुम 12वीं में थीं, तुम्हारी अम्मा को टाइफायड हुआ था. तब लाख कहने के बाद भी इन्होंने काम वाली नहीं लगाने दी थी. मैं और तुम काम कर कर के पस्त हो गए थे,’’ कमरे के अंदर प्रवेश करते हुए बाबूजी ने शायद अंशू के प्रश्नों को सुन लिया था और सो वे भी अम्मा को छेड़ने का कोई मौका कहां छोड़ने वाले थे.

‘‘वो सब बातें बाद में डिस्कस करेंगे. चलो, अभी तो नहाधो लो, तब तक लंच तैयार हो जाएगा,’’ कह कर अम्मा किचन में चली गईं.

नहाधोकर अंशू किचन का जायजा लेने पहुंची, तो अम्मा को महाराजिन के साथ किचन में लगे देखा. रसोई से आती सुगंध उसे जानीपहचानी सी लगी सो बोली, ‘‘अम्मा क्या बनाया है? बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है.’’

‘‘अम्मा कुछ मेरी पसंद का भी बनाया है या हमेशा की तरह दी की पसंद ही आप को याद है…’’ अचानक छोटी की बाहर से आती आवाज को सुन कर अंशू और अम्मां दोनों ही चौंक गए…

नानी… नानी हम आ गए. नमस्ते मौसी, नमस्ते नानी की आवाज से घर गुंजायमान हो उठा. चारों ओर हंसीठहाके की गूंज सुनाई देने लगी.

‘‘क्यों री छोटी, तेरी अभी भी सरप्राइज देने की आदत गई नहीं. अरे, बता देती तो बाबूजी लेने स्टेशन न आ जाते,’’ अम्मा खुश होते हुए बोलीं.

‘‘इसीलिए तो नहीं बताया अम्मा कि तुम बाबूजी को नाहक ही परेशान करोगी. आजकल समय बदल गया है अम्मा, ओला करो और दो मिनट में घर पहुंच जाओ. जितनी देर में बाबूजी हमें लेने आते, उतनी देर में तो हम घर ही आ गए,’’ कह कर छोटी अम्मा और अंशिका के गले लग गई.

‘‘ठीक है बाबा तेरी फिलोसफी तो सदा ही कुछ अलग रहती है. चल, फ्रेश हो जा. मैं तेरे लिए अदरक की चाय बनाती हूं,’’ कह कर अम्मा किचन में चली गईं.

‘‘नहीं अम्मा, चाय नहीं अब तो खाना ही खाएंगे,’’ कह कर छोटी भी फ्रेश होने चली गई.

दोपहर के खाने में अम्मा ने अपनी बेटियों के मनपसंद व्यंजनों की कतार लगा दी थी. साथ ही, बच्चों के लिए मटरपनीर, आलू के परांठे और रसमलाई भी. अपनेअपने मनपसंद व्यंजनों को देख कर दोनों बेटियों और बच्चों के चेहरे खिल उठे.

“वाह अम्मा… वाह, तुम तो अभी तक हम सब की पसंद याद रखे हो.”

‘‘अपने बच्चों की पसंद भूलता है भला कोई.’’

‘‘मम्मी शाम को कहां घूमने चलेंगे,’’ छोटी की बेटी अविका ने उत्सुकता जताई.

‘‘तुम्हें यहां की फेमस लच्छा कटोरी चाट खानी है न, विधानसभा भवन देखना है और शौपिंग करनी है. सो, बस वही सब करने चलेंगे और फिर कल वाटर पार्क.’’

‘‘वाह, फिर तो ठीक है. मम्मी, हम बाहर गार्डन में जा कर खेलते हैं,’’ कह कर दोनों बच्चे बाहर चले गए.

‘‘अरे, तुम लोग यहां गरमी में क्यों बैठे हो? अम्मा ने कल ही तुम लोगों के कमरे में एसी लगवाया है. जाओ, तीनों वहीं बैठ कर गप्पें मारो,’’ बाबूजी ने एक और खुलाया किया.

‘‘अरे वाह, हमारी अम्मा तो बड़ी मौडर्न हो गई हैं,’’ कह कर दोनों बहनें अपनी अम्मा को देखने लगीं.

दोपहर का खाना खा कर अंशिका और छोटी कमरे के डबल बेड पर अपनी गोद में तकिया रख कर अम्मा के सामने बैठ गईं और बारीबारी से आसपड़ोस के हालचाल पूछने लगीं.

‘‘अम्मा, सुबह से एक बात हजम नहीं हो रही. तुम कहो तो पूछ लूं,’’ अंशिका अम्मा की ओर देखते हुए बोली, तो अम्मा हंसते हुए बोलीं,
‘‘क्या यही न कि मैं ने ये काम वाले कैसे लगा लिए? मैं तो बहुत छुआछूत और जातपांत मानती थी. फिर अब ऐसा क्या हो गया कि मैं ने ये सब छोड़ दिया है?’’

‘‘हांहां अम्मा, बिलकुल सही पकड़े हैं,’’ छोटी और अंशिका खिलखिलाते हुए एक स्वर में बोल उठीं.

‘‘तुम दोनों 3- 4 साल से आ ही कहां पाई हो, जो इस का राज जान पातीं? तुम्हारे न आने पर मैं ही तुम लोगों से मिलने आती रही. इस के पीछे एक बहुत बड़ी घटना है. तुम दोनों को मेरी दोस्त तनुजा आंटी और उन के पति पंडित दीनदयाल तो याद ही होंगे न.’’

प्रेम की उदास गाथा : भाग 2

मैं चुप हो जाता। पहले मैं सोचता था कि यह मेरा विषय नहीं हैं इसलिए न तो मैं उन की लिखी कहानी पढ़ता और न ही उनमें रुचि लेता। पर कहते हैं न कि संगत का असर आखिर पड़ ही जाता है इसलिए मुझे भी पड़ गया। एक दिन जब काका सब्जी लेने बाजार गए थे मैं बोर हो रहा था। मैं ने यों ही उन की अधूरी कहानी उठा ली और पढ़ता चला गया था।

कहानी मुझे कुछकुछ उन के जीवन परिचय का बोध कराती सी महसूस हुई थी। वह एक प्रणय गाथा थी।  किन्ही कारणों से नायिका की शादी कहीं और हो जाती है। नायक शादी नहीं करता। चूंकि कहानी अधूरी थी इसलिए आगे का विवरण जानने के लिए मेरी उत्सुकता बढ़ गई थी। मैं ने यह जाहिर नहीं होने दिया था कि मैं ने कहानी को पढ़ा है। काकाजी की यह कहानी 2-3 दिनों में पूरी हो गई थी। अवसर निकाल कर मैं ने शेष भाग पढ़ा था।

नायिका का एक संतान है। वह विधवा हो जाती है। उस का बेटा उच्च शिक्षा ले कर अमेरिका चला जाता है यहां नायिका अकेली रह जाती है। उस के परिवार के लोग उस पर अत्याचार करते हैं और उसे घर से निकाल देते हैं। वह एक वृद्धाश्रम में रहने लगती है। कहानी अभी भी अधूरी सी ही लगी। पर काकाजी ने कहानी में जिस तरह की वेदना का समावेश किया था उस से पढ़ने वाली की आंखें नम हुए बगैर नहीं रह पाती थीं। आंखें तो मेरी भी नम हो गई थीं। यह शब्दों का ही चमत्कार नहीं हो सकता था शायद आपबीती थी। तब ही तो इतना बेहतर लेखन हो पाया था। मैं ने काकाजी को बता दिया था कि मैं ने उन की कहानी को पढ़ा है और कुछ प्रश्न मेरे दिमाग में घूम रहे हैं। काकाजी नाखुश नहीं हुए थे।

‘‘देखो, कहानी समसामयिक है इसलिए तुम्हारे प्रश्नों का जवाब देना जरूरी नहीं है पर तुम्हारी जिज्ञासा को दबाना भी उचित नहीं है। इसलिए पूछ सकते हो,” काकाजी के चेहरे पर हलकी सी वेदना दिखाई दे रही थी।

‘‘कहानी पढ़ कर मुझे लगा कि शायद आप इन घटनाक्रम के गवाह हैं।’’ वे मौन रहे।

‘‘इस कहानी के नायक में आप की छवि नजर आ रही है, ऐसा सोचना मेरी गलती है,’’ मैं ने काकाजी के चेहरे की ओर नजर गङा ली थी। उन के चेहरे पर अतीत में खो जाने के भाव नजर आने लगे थे मानो वे अपने जीवन के अतीत के पन्ने उलट रहे हों।

काकाजी ने गहरी सांस ली थी,”वैसे तो मैं तुम को बोल सकता हूं कि यह सही नहीं है, पर मैं ऐसा नहीं बोलूंगा। तुम ने कहानी को वाकई ध्यान से पढ़ा है इस कारण ही यह प्रश्न तुम्हारे ध्यान में आया। हां, यह सच है. कहानी का बहुत सारा भाग मेरा अपना ही है।’’

‘‘नायक और नायिका भी?”

‘‘हां…”हम दोनों मौन हो गए थे।

काकाजी ने उस दिन फिर और कोई बात नहीं की। दूसरे दिन मैं ने ही बात छेड़ी थी, ‘‘वह कहानी प्रकाशन के लिए भेज दी क्या?’’

‘‘नहीं, वह उस  के लिए नहीं लिखी,’’ उन्होने संक्षिप्त सा जबाब दिया था।

‘‘काकाजी, आप ने उन के कारण ही शादी नहीं की क्या?’’ वे मौन बने रहे।

‘‘पर इस से नुकसान तो आप का ही हुआ न,’’ मैं आज उन का अतीत जान लेना चाहता था।

‘‘प्यार में नुकसान और फायदा नहीं देखा जाता बेटा।’’

‘‘जिस जीवन को आप बेहतर ढंग से जी सकते थे, वह तो अधूरा ही रह गया न. और इधर नायिका का जीवन बहुत अच्छा भले ही न रहा हो पर आप के जीवन से अच्छा रहा,” वे मौन बने रहे।

‘‘मेरे जीवन का निर्णय मैं ने लिया है. उसे तराजू में तौल कर नहीं देखा जा सकता,’’ काकाजी की आंखों में आंसू की बूंदें नजर आने लगी थीं।

हम ने फिर और कोई बात नहीं की। पर अब चूंकि बतों का सिलसिला शुरू हो गया था, इस कारण काकाजी ने टुकड़ोटुकड़ों में मुझे सारी दास्तां सुना दी थी।

कालेज के दिनों उन के प्यार का सिलसिला प्रारंभ हुआ था। रेणू नाम था उन का। सांवली रंगत पर मनमोहक छवि, बड़ीबड़ी आंखें और काले व लंबे घने बाल। पढ़ने में भी बहुत होशियार। उन्होंने ही उन से पहले बात की थी। उन्हें कुछ नोट्स की जरूरत थी और वे सिर्फ रेणू के पास थे। काकाजी अभावों में पढ़ाई कर रहे थे। किताबें खरीदने की गुंजायश नहीं थी। उन्हें नोट्स चाहिए थे ताकि वे उसे ही पढ़ कर परीक्षा की तैयारी कर सकें। साथियों का मानना था कि रेणू बेहद घमंडी लड़की है और वह उन्हें नोट्स नहीं देगी। निराश तो वे भी थे पर उन के पास इस के अलावा और कोई विकल्प था भी नहीं। उन्होने डरतेडरते रेणू से नोट्स देने का अनुरोध किया था। रेणू ने बगैर किसी आनाकानी के उन्हें नोट्स दे भी दिए थे। उन्हें और उन के साथियों को वाकई आश्चर्य हुआ था। रेणू शायद उन की आवश्यकताओं से परिचित थी इस कारण वह उन्हें पुस्तकों से ले कर कौपीपेन तक की मदद करने लगी थी। संपर्क बढ़ा और प्यार की कसमों पर आ गया।

काकाजी तो अकेले जीव थे। उन के न तो कोई आगे था और न पीछे। उन्होंने जब अपनी आंखें खोली थीं तो केवल मां को ही पाया था। मां भी ज्यादा दिन उन का साथ नहीं निभा सकी और एक दिन उन की मृत्यु हो गई। काकाजी अकेले रह गए। काकाजी का अनाथ होना उन के प्यार के लिए भारी पड़ गया। रेणू के पिताजी ने रेणू के भारी विरोध के बाबजूद उस की शादी कहीं और करा दी। रेणू के दूर चले जाने के बाद काकाजी के जीवन का महकता फलसफा खत्म हो गया था ।

शिकायतनामा : भाग 2

कृष्णा बुरी तरह टूट गया. परिणामस्वरूप, उस के स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ गया. हालांकि, उस की तनख्वाह कम न थी. तो भी, 10 साल की कमाई पानी में बह जाए, तो क्या उसे भूल पाना आसान होगा? वह भी ऐसे आदमी के लिए जो बिना मेहनत अमीर बनने की ख्वाहिश रखता हो. कृष्णा अनमने सा रहने लगा. उस का किसी काम में मन न लगता. कब क्या बोल दे, कुछ कहा न जा सकता था. कभीकभी तो बिना बात के चिल्लाने लगता. आहिस्ताआहिस्ता यह उस की आदत में शामिल होता गया.

अनुष्का पहले तो लिहाज करती रही, बाद में वह भी पलट कर जवाब देने लगी. बस, यहीं से आपसी टकराव बढ़ने लगे. अनुष्का का यह हाल हो गया कि अपनी जरूरतों के लिए कृष्णा से रुपए मांगने में भी भय लगता. इसलिए अनुष्का ने अपनी जरूरतों के लिए एक स्कूल में नौकरी कर ली. स्कूल से पढ़ा कर आती, तो बच्चों को टयूशन पढ़ाती. इस तरह उस के पास खासा रुपया आने लगा. अब वह आत्मनिर्भर थी.

अनुष्का जब से नौकरी करने लगी तो घर के संभालने की जिम्मेदारी कृष्णा के ऊपर भी आ गई. अनुष्का को कमाऊ पत्नी के रूप में देख कर कृष्णा अंदर ही अंदर खुश था, मगर जाहिर होने न देता. अनुष्का जहां सुबह जाती, वहीं कृष्णा 10 बजे के आसपास. इस बीच उसे इतना समय मिल जाता था कि चाहे तो अस्तव्यस्त घर को ठीक कर सकता था मगर करता नहीं. वजह वही कि वह मर्द है. एक दिन अनुष्का से रहा न गया, गुस्से में कृष्णा का उपन्यास उसी के ऊपर फेंक दिया.

‘‘यह क्या बदतमीजी है?’’ कृष्णा की त्योरियां चढ गईं.

“घर को सलीके से रखने का ठेका क्या मैं ने ही ले रखा है. आप की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती,’’ अनुष्का ने तेवर कड़े किए.

‘‘8 घंटे डयूटी दूं कि घर संभालूं,’’ कृष्णा का स्वर तल्ख था.

‘‘नौकरी तो मैं भी करती हूं. क्या आप अपना काम भी नहीं कर सकते? बड़े जीजाजी को देखिए. कितना सहयोग दीदी का करते हैं.’’

‘‘उन के पास काम ही क्या है. बेकार आदमी, घर नहीं संभालेगा तो क्या करेगा?’’

‘‘आप से तो अच्छे ही हैं. कम से कम अपने परिवार के प्रति समर्पित हैं.’’

‘‘मैं कौन सा कोठे पर जाता हूं?’’ कृष्णा चिढ़ गया.

‘‘औफिस से आते ही टीवी खोल कर बैठ जाते है. न बच्चे को पढ़ाना, न ही घर की दूसरे जरूरतों को पूरा करना. मैं स्कूल भी जाऊं, टयूशनें भी करूं, खाना भी बनाऊं,’’ अनुष्का रोंआासी हो गई.

‘मत करो नौकरी, क्या जरूरत है नौकरी करने की,’’ कृष्णा ने कह तो दिया पर अंदर ही अंदर डरा भी था कि कहीं नौकरी छोड़ दी तो आमदनी का एक जरिया बंद हो जाएगा.

‘‘जब से शेयर में रुपया डूबा है, आप रुपए के मामले में कुछ ज्यादा ही कंजूस हो गए हैं. अपनी जरूरतों के लिए मांगती हूं तो तुरंत आप का मुंह बन जाता है. ऐसे में मैं नौकरी न करूं तो क्या करूं,’’ अनुष्का ने सफाई दी.

‘‘तो मुझ से शिकायत मत करो कि मैं घर की चादर ठीक करता फिरूं.’’

कृष्णा के कथन पर अनुष्का को न रोते बन रहा था न हंसते. कैसे निष्ठुर पति से शादी हो गई. उसे अपनी पत्नी से जरा भी सहानुभूति नहीं, सोच कर उस का दिल भर आया.

कृष्णा की मां अकसर बीमार रहती थी. अवस्था भी लगभग 75 वर्ष से ऊपर हो चली थी. अब न वह ठीक से चल पाती, न अपनी जरूरतों के लिए पहल कर पाती. उस का ज्यादा समय बिस्तर पर ही गुजरता. कृष्णा को मां से कुछ ज्यादा लगाव था. उसे अपने पास ले आया.

अनुष्का को यह नागवार लगा. उन के 3 और बेटे थे. तीनों अच्छी नौकरी में थे. अपनीअपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो आराम की जिंदगी गुजार रहे थे. अनुष्का चाहती थी कि वह उन्हीं के पास रहे. वह घर देखे कि बच्चे या नौकरी. वहीं उन के तीनों बेटों के बहुओं के पास अतिरिक्त कोई जिम्मेदारी न थी. वे दिनभर या तो टीवी देखतीं या फिर रिश्तेदारी का लुफ्त उठातीं.

अनुष्का ने कुछ दिन अपनी सास की परेशानियों को झेला, मगर यह लंबे समय तक संभव न था. एक दिन वह मुखर हो गई, “आप माताजी को उन के अन्य बेटों के पास छोड क्यों नहीं देते?’’

‘‘वे वहां नहीं रहेंगी?’’ कृष्णा ने दो टूक कहा.

‘‘क्यों नहीं रहेंगी? क्या उन का फर्ज नहीं बनता?’’अुनष्का का स्वर तल्ख था.

‘‘मैं तुम्हारी बकवास नहीं सुनना चाहता. तुम्हें उन की सेवा करनी हो तो करो वरना मैं सक्षम हूं’’

‘‘खाक सक्षम हैं. कल आप नहीं थे, बिस्तर गंदा कर दिया. मुझे ही साफ करना पडा.’’

“कौन सा गुनाह कर दिया. वे तुम्हारी सास हैं.’’

‘‘यह रोजरोज का किस्सा है. आप उन की देखभाल के लिए एक आया क्यों नहीं रख लेते?’’ आया के नाम पर कृष्णा कन्नी काट लेता. एक तरफ खुद जिम्मेदारी लेने की बात करता, दूसरी तरफ सब अनुष्का पर छोड़ कर निश्चिंत रहता. जाहिर है, वह आया पर रुपए खर्च करने के पक्ष में नहीं था. शेयर में लाखों रुपए डूबाना उसे मंजूर था मगर मां के लिए आया रखने में उसे तकलीफ होती.

आज ही घर में लेकर आए Nova का शुद्ध देसी घी

रोजाना देसी घी खाना सेहत के लिए अच्छा मना गया है. बड़े-बुजुर्ग लोग हमेशा से ही शुद्ध देसी घी खाने की सलाह देते है. दरअसल घी के अनगिनत फायदे है इसीलिए घी का महत्व अधिक है. घी का सेवन हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए बेहद फायेदमंद है.

आयुर्वेद में देसी घी के फायदे

बच्चे, गर्भवाती महिलाओं, बड़े से लेकर बुजुर्गों के लिए घी खाना बेहद फायदेमंद है. घी का सेवन करने से इम्युनिटी क्षमता बढ़ती है. जिससे कई बिमारियों से बचाव होता है.

  1. देसी घी मानसिक रोगों के लिए फायदेमंद

आयुर्वेद में यह मना गया है कि घी खाने से याददाशत और तर्किक क्षमता को बढ़ाता है. मानसिक रोगों में भी घी को लाभकारी मना गया है.

2. वात के प्रभाव को कम करने में मदद

वात के अनियमित होने से शरीर में कई प्रकार के रोग लग जाते है. घी के सेवन करने से वात के प्रभाव को कम किया जा सकता है.

3. पाचन में सुधार

पाचन शक्ति कमजोर होने से पाचन संबधिंत कई सारी बिमारिया बिन बुलाए आ जाती है. अगर आपकी पाचन शक्ति कमजोर है जो कुछ भी गलत खाने से हाजमा बिगड़ सकता है. आयुर्वेद में बताया गया है कि घी का सेवन करने से पाचन शक्ति मजबूत होती है. लेकिन हमेशा घी का सीमित मात्रा में ही सेवन करना चाहिए.

4. कमजोरी दूर करने में मददगर

घी खाने से हमारे शरीर को ताकत मिलती है. इसी वजह से कमजोर लोगों को घी का सेवन करने की सलाह दी जाती है. जिम और वर्कआउट करने वाले लोगों को घी का सेवन करना चाहिए

5. स्पर्म की गुणवत्ता में सुधार

स्पर्म की संख्या और गुणवत्ता में कमी का असर जन्म लेने वाले बच्चे की सेहत पर पड़ सकता है. घी के सेवन से स्पर्म की गुणवत्ता में सुधार होता है. स्पर्म की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए घी का सेवन करने से पहले चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें.

6. टीबी में लाभदायक

टीबी एक गंभीर बीमारी है इसका इलाज सही समय पर होना अनिवार्य होता है. आयुर्वेद के अनुसार टीबी रोगियों को घी का सेवन करना चाहिए. घी बेहद लाभकारी हो सकता है इसके साथ ही नियमित रुप से चिकित्सक के पास जाकर अपनी जांच कराएं.

7. देसी घी का महत्व

हमारे देश में कई सालों से गाय के देसी सेवन किया जा रहा है. आजकल तो लोग रिफाइंडऑयल या ऑलिव ऑयल का सेवन बहुत ज्यादा करने लगे हैं. लेकिन अगर गाय के घी का बात की जाए तो गाय के घी में बहुत अधिक पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं.

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कैनेडियन नहीं हिन्दुस्तानी हैं Akshay Kumar, मिली भारतीय नागरिकता

Akshay Kumar gets Indian citizenship : बॉलीवुड एक्टर अक्षय कुमार आए दिन अपनी कनाडा की नागरिकता को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों के निशाने पर आते ही रहते थे. कई बार तो उन्हें ट्रोलर्स के कड़वे सवालों का जवाब भी देना पड़ा है. इसके अलावा कई लोग उन्हें ‘खिलाड़ी कुमार’ की जगह ‘कनाडा कुमार’ कहकर भी ट्रोल करते थे. हालांकि अब उन्हें भारत की नागरिकता मिल गई है.

दरअसल, बीते दिन स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उन्होंने अपने फैंस को 15 अगस्त की बधाई दी और बताया कि उन्हें भारतीय नागरिकता मिल गई है.

फोटो पोस्ट कर दी जानकारी

अभिनेता अक्षय कुमार (Akshay Kumar gets Indian citizenship) ने मंगलवार को अपने इंस्टग्राम और ट्विटर अकाउंट पर अपने फैंस को भारतीय नागरिकता मिलने का सबूत दिखाया है. उन्होंने भारत सरकार के अधीन गृह मंत्रालय द्वारा पंजीकरण प्रमाण पत्र की फोटो शेयर की है. इस दस्तावेज के मुताबिक, एक्टर को नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 5(1)(जी) के तहत भारत की नागरिकता दी गई है. डॉक्यूमेंट्स की फोटो के साथ अक्षय कुमार ने कैप्शन में लिखा, ‘दिल और नागरिकता दोनों हिन्दुस्तानी. जय हिंद’.

आपको बता दें कि जैसे ही अक्षय ने इन डॉक्यूमेंट्स की तस्वीर शेयर की. वैसे ही उन्हें बधाई मिलने का सिलसिला शुरू हो गया.

अक्षय ने क्यों ली थी कनाडा की नागरिकता?

एक इंटरव्यू में अक्षय कुमार (Akshay Kumar gets Indian citizenship) ने अपनी ‘कनाडा नागरिकता’ को लेकर खुलकर बात की थी. तब उन्होंने कहा था, ‘मेरे लिए भारत ही सब कुछ है. मैंने अपनी जिंदगी में जो कुछ भी हासिल किया है वह यही से किया है. मैं बहुत ज्यादा भाग्यशाली हूं कि मुझे अपने देश के लिए कुछ करने का मौका मिला.’

इसके अलावा उन्होंने ये भी बताया था कि उन्होंने आखिर क्यों ली थी कनाडा की नागरिकता? इस सवाल का जवाब देते हुए अक्षय ने कहा था “उनके जीवन में एक समय ऐसा भी आया था जब उनकी 15 से ज्यादा फिल्में लगातार फ्लॉप हो गई थी, जिस कारण उन्हें कनाडा की नागरिकता लेने के लिए प्रेरित किया गया था.” उन्होंने बताया, “मेरे दोस्त कनाडा में रहते थे. जब मैंने उन्हें बताया कि मेरी फिल्में नहीं चल रही है तो उन्होंने मुझसे कहा यहां आ जाओ. यहां कुछ न कुछ काम मिल ही जाएगा.”

कब पलटी अक्षय की किस्मत

आगे उन्होंने (Akshay Kumar) बताया, “इसके बाद मैंने कनाडा की नागरिकता लेने के लिए आवेदन कर दिया और मुझे नागरिकता मिल भी गई. उस समय मेरी बस दो फिल्में रिलीज होनी बाकी थी. लेकिन किस्मत से वो दोनों ही फिल्में सुपरहिट रही. फिर मेरे दोस्त ने मुझसे कहा कि वापस भारत जाओ और फिर से काम करना शुरू करो. इसके बाद मुझे काम मिलता गया और मैं तो भूल भी गया था कि मेरे पास कनाडा का पासपोर्ट भी है. कभी मेरे दिमाग में भी विचार नहीं आया कि मुझे अपना पासपोर्ट बदलवाना है. लेकिन अब मैंने पासपोर्ट बदलवाने के लिए आवेदन कर दिया है.’

KBC 15: रात को दो बजे पोस्ट करने पर अमिताभ बच्चन होते हैं ट्रोल!

Kaun Banega Crorepati 15 : टीवी के सबसे पसंदीदा क्विज शो कौन बनेगा करोड़पति 15 (KBC15) की शुरुआत हो गई है. शो को एक बार फिर बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) होस्ट कर रहे हैं. जहां एक तरफ महानायक कंटेस्टेंट्स से सवाल पूछते है. साथ ही उनसे बातचीत और मजाक-मस्ती भी करते दिखाई देते हैं.

अब सोशल मीडिया पर शो का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें देखा जा सकता है कि गुजरात की धीमहि राजेन्द्रकुमार त्रिवेदी बिग बी को सलाह दे रही हैं.

कंटेस्टेंट ने बिग बी को दी ये सलाह

शो (Kaun Banega Crorepati 15) के दौरान धीमहि, अमिताभ बच्चन से सवाल करती है कि वो फिल्म भी करते हैं और अब केबीसी भी शुरू हो गया है तो ऐसे में आप सोशल मीडिया को कैसे मैनेज करते हैं? इस पर बिग बी ने कहा, ‘आप सोशल मीडिया पर हैं?’ फिर धीमहि त्रिवेदी ने कहा, ‘वो अमिताभ बच्चन को इंस्टाग्राम पर फॉलो करती हैं.’ इसी के साथ उन्होंने कहा, ‘मैंने यह भी देखा है कि आप रात को दो बजे भी पोस्ट करते हैं.’

इस पर अमिताभ (Amitabh Bachchan) ने मजाकिया अंदाज में कहा, ‘कुछ गलत काम कर रहे हैं हम?’ फिर धीमहि कहती हैं, ‘हमारे यहां कहा जाता हैं कि अगर रात को फोन चलाओ तो आंख के नीचे डार्क सर्कल आ जाते हैं. लेकिन आपको तो हैंडसम दिखना है. इसलिए आराम से सो जाया करिए 8 घंटे.’ इस पर अमिताभ बच्चन ने कहा, ‘वो क्या है कि हम समय निकाल लेते हैं, क्या है कि हमको बहुत बुरा लगता है. एक तो हम ब्लॉग लिखते हैं और वो अगर न लिखें तो जितने हमारे फॉलोअर्स हैं, वो डांटना शुरू कर देते हैं. आपने बटन नहीं दबाया ठीक है.’

अमिताभ- जीवन में अच्छी और बुरी दोनों बातें होंगी

इसके आगे बीग बी (Kaun Banega Crorepati 15) ने कहा, ‘कई बार होता है कि हम भूल जाते हैं वो पोस्ट का बटन. सोशल मीडिया एक ऐसी जगह है जहां आसानी से लोगों से संपर्क हो जाता हैं, दो अच्छी बात होती है, 10 गालियां भी पड़ती हैं.’

इसी के साथ उन्होंने (Amitabh Bachchan) आगे कहा, ‘जीवन में अच्छी बातें भी होंगी और बुरी बातें भी होगी. अगर कोई आपको बुरा कहता है तो चैलेज करके उसके विपरीत काम करना चाहिए. आपसे कोई कहे कि आप ये काम नहीं कर सकतीं, तो आप उसे चैलेंज की तरह ले लीजिए कि आप वो कर सकती हैं.’

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