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‘उला’ के रिलीज न हो पाने के लिए मैं दोषी नहीं: राधिका

सिनेमा में कलाकार की ईमेज बहुत मायने रखती है. कहने के लिए कलाकार इस बात से इंकार करता रहता है. पर हर कलाकार किसी न किसी ईमेज के अंदर ही हमेशा कैद रहता है. उसी ईमेज के अनुरूप किरदार निभाते हुए वह अपना करियर आगे बढ़ाता रहता है. मगर राधिका आप्टे ने बार बार अपनी ईमेज बदलती आ रही हैं. उनकी इस ईमेज का खामियाजा तमिल फिल्म ‘‘उला’’ के निर्माता को भुगतना पड़ रहा है. जी हां! अब तक चालीस फिल्मों में अभिनय कर अंतरराष्ट्रीय ख्याति बटोर चुकी राधिका आप्टे की ईमेज एक ‘नेक्स्ट डोर गर्ल’ की रही है. फिल्म ‘उला’ में भी उन्होने इसी तरह का किरदार निभाया है. लेकिन 2015 में ‘बदलापुर’, हंटर’ जैसी फिल्मों के अलावा लघु फिल्म ‘आहिल्या’ में अति बोल्ड व सेक्सी किरदार निभाने के अलावा सेक्स पर बेबाक बयानबाजी के चलते उनकी ईमेज ऐसी बदली कि फिल्म ‘उला’ के निर्माता परेशान हैं. पर खुद राधिका आप्टे इस बात से सहमत नहीं हैं. वह तो पवन कृपलानी निर्देशित फिल्म ‘‘फोबिया’’ को लेकर ही उत्साहित हैं. जिसमें उन्होने ‘‘अग्रो फोबिया’’ से पीडि़त लड़की का किरदार निभाया है.

हाल ही में जब उनसे हमारी मुलाकात हुई तो हमने उनसे पूछा कि क्या उन्हें नही लगता कि एक कलाकार होने के नाते उनकी इमेज का असर दूसरी फिल्मों पर भी पड़ता है? तो राधिका आप्टे ने बड़ी साफगोई के साथ कहा कि,‘‘मुझे ऐसा नहीं लगता.’’

हमने उनसे कहा कि ,‘‘आपने दक्षिण की फिल्म ‘उला’ में गर्ल नेक्स डोर का किरदार निभाया. उसके बाद आपने एक लघु फिल्म ‘आहिल्या’ में जिस तरह से बोल्ड व सेक्सी किरदार निभाया, उससे ‘उला’ के निर्माता परेशान हैं?’’ इस पर राधिका आप्टे ने कहा- ‘‘उनकी परेशानी मेरी समझ से परे है. दर्शक हर कलाकार को हर फिल्म में अलग अंदाज में देखना पसंद करता है. मैंने ‘उला’ की शूटिंग तीन साल पहले खत्म की थी. उन्होंने पिछले तीन साल से अब तक इस फिल्म को रिलीज नहीं किया. वह रिलीज क्यों नहीं करना चाहते, मुझे पता नहीं. मैने उनसे फिल्म के रिलीज के बारे में कभी कोई सवाल नहीं किया. जबकि मेरी लघु फिल्म ‘आहिल्या’ छह माह पहले आयी थी. ‘आहिल्या’ के बाद प्रदर्शित फिल्म ‘‘मांझी द माउंनटेन मैन’ में दर्शकों ने मुझे काफी पसंद किया. यहां तक कि ‘आहिल्या’ के बाद ही मेरी फिल्म ‘कौन कितने पानी में’ रिलीज हुई. यह फिल्म भले ना चली हो, पर इस फिल्म में भी दर्शकों ने मुझे बहुत पसंद किया. इस फिल्म का किरदार भी काफी हद तक ‘गर्ल नेक्स्ट डोर’ वाला ही था.’’

आईपीएल के जरिये मोटी कमाई कर रहे विदेशी क्रिकेट बोर्ड

श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड के क्रिकेट बोर्डों ने नौ अप्रैल से शुरू हुए इंडियन प्रीमियर लीग के नौवें सत्र के लिए अपने खिलाड़ियों को रिलीज करने पर मिलकर 10 लाख डालर से अधिक की कमाई की है. इस लुभावने टी20 क्रिकेट टूर्नामेंट की विभिन्न फ्रेंचाइजियों के लिए अपने खिलाडि़यों को रिलीज करने पर क्रिकेट श्रीलंका को दो लाख 43 हजार डालर (एक करोड़ 60 लाख रूपये), क्रिकेट दक्षिण अफ्रीका को छह लाख 31 हजार डालर (चार करोड़ 20 लाख रूपये) और न्यूजीलैंड क्रिकेट को एक लाख 73 हजार डालर (एक करोड़ 10 लाख रूपये) का भुगतान किया गया है.

बीसीसीआई ने खर्चों के अपने मासिक खुलासे में यह जानकारी दी है. आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, वेस्टइंडीज और बांग्लादेश के क्रिकेटर भी आईपीएल में खेलते हैं और इन देशों के क्रिकेट बोर्ड को भी खिलाड़ी रिलीज करने के लिए बीसीसीआई भुगतान करेगा. सूची के अनुसार बीसीसीआई ने आईसीसी विश्व टी20 की टीवी कवरेज के दौरान स्पाइडर कैम के इस्तेमाल पर भी दो लाख 53 हजार 770 डालर (एक करोड़ 70 लाख रूपये) खर्च किए थे.

मिशन की तरह होगी फसल बीमा योजना

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सरकार का इरादा बताते हुए कहा कि देश को गरीबी से नजात दिलाने और तमाम घरेलू उत्पादों की तरक्की के लिए कृषि क्षेत्र को बेहद तेजी से आगे बढ़ाना होगा.

ये बातें जेटली ने नाबार्ड में प्रधानमंत्री फसलबीमा पर हुई गोष्ठी के दौरान कहीं. प्रधानमंत्री फसलबीमा योजना अप्रैल से मिशन के तौर पर पेश की जाएगी ताकि इसी साल से ही खरीफ मौसम की फसलों को बीमा सुरक्षा दी जा सके. जेटली ने कहा कि अगर भारत को इजाफा दर्ज करना है और गरीबी से नजात पानी है, तो खेती के क्षेत्र को सब से ज्यादा अहमियत देनी होगी.

उन्होंने कहा कि कृषि अर्थव्यवस्था के लिए बेहद अहम है. लगातार 2 सालों के खराब मानसून के बाद अब अगर इस साल भी कम बरसात होती है, तो यह पूरी प्रणाली का इम्तहान होगा.

जेटली ने कहा कि इस योजना में कृषि क्षेत्र की दिक्कतें दूर करने और मुल्क के किसानों को खुदकुशी से बचाने की कूवत मौजूद है.          

कॉन्टैक्ट लेंस से हो सकता है आँखों का इंफेक्शन

अपनी आँखों की खूबसूरती बढाने के लिए मेकअप के अलावा अगर आप भी कॉन्टैक्ट  लेंस का प्रयोग करते है तो जरा संभल जाइए क्योंकि रोजाना कॉन्टैक्ट लैंस पहनना आपकी आंखों के लिए खतरनाक हो सकता है. एक नए अध्ययन से यह पता चला है कि कॉन्टैक्ट लैंस से आंखों की प्राकृतिक माइक्रोबियल पर्यावरण में बदलाव होता है जिससे आंखों में इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है.

अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक कॉन्टैक्ट लेंस लगाने से आंखों के अंदर नेचरल बैक्टीरिया के मुकाबले स्किन में रहने वाले बैक्टीरिया की मात्रा बढ़ जाती है. इससे आंखों में इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है.

जो लोग कॉन्टैक्ट लेंस का प्रयोग करते हैं उन्हें कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए जैसे – अपने कॉन्टैक्ट लेंस को अच्छे से घर पर या ऑफिस में संभालकर रखें .लेंस का एक बार प्रयोग करने के बाद उसे डिब्बे में बंद कर दें. आँखों की सेहत को दुरुस्त रखने के लिए नियमित रूप से आँखों की जांच कराएं. लेंस का प्रयोग करने वाले जो एक आम गलती करते हैं वह होती है लेंस की रोज़ाना अच्छे से देखभाल न करना. एक बार साफ करने और संक्रमण से मुक्त करने की प्रक्रिया के बाद लेंस को सही जगह रखना चाहिए. अगर आपकी लेंस सही स्थान पर नहीं रखी गयी तो आपकी आँखों को नुकसान पहुँच सकता है.

सिंगल लाइफ बेहतर या मैरिड लाइफ

अकेलेपन और सिंगल लाइफ को अकसर लोग एकदूसरे से जोड़ कर देखते हैं. व्यक्ति सिंगल है, इस का मतलब उस की जिंदगी बेहद नीरस, एकाकी और बेचारगीपूर्ण होगी. लोग उसे दया की दृष्टि से देखने लगते हैं. शादी हो जाना यानी जिंदगी की एक बड़ी उपलब्धि या फिर यों कहें कि जिंदगी वास्तव में संपूर्ण होने की पहली शर्त.

सिंगल व्यक्तियों को लोग अधूरा मानते हैं, भले ही शादी किसी ऐसे शख्स से ही क्यों न हो जाए जो किसी भी तरह उस के लायक न हो. शादीशुदा हो जाना ही एक अचीवमैंट माना जाता है.

मगर आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि बहुत से लोग ऐसे हैं, जो स्वयं अपनी इच्छा से कुंआरा रहना पसंद करते हैं. उन के लिए शादी से कहीं और बड़े मकसद जिंदगी में होते हैं, तो कुछ ऐसे भी हैं, जो गलत व्यक्ति के साथ जीने के बजाय सिंगल लाइफ जीना ज्यादा पसंद करते हैं.

एक टीवी चैनल में ऐसोसिएट ऐडिटर, 35 वर्षीय निकिता राज कहती हैं, ‘‘मुझ से अकसर लोग पूछते हैं कि अब तक शादी क्यों नहीं हुई तुम्हारी  तो मैं जवाब देती हूं कि दरअसल अभी मैं ने शादी करने के बारे में सोचा ही नहीं.’’

सामान्य रूप से देखा जाए तो इन 2 वाक्यों में कोई खास अंतर नहीं दिखता. मगर जब आप इन में छिपे अर्थ पर गौर करेंगे तो काफी अंतर दिखेगा. शादी नहीं हुई यानी बेचारगी. कोशिश तो की पर कहीं बात बन नहीं पाई, किसी ने आप को पसंद नहीं किया. वहीं दूसरी तरफ शादी नहीं की यानी अभी वक्त ही नहीं मिला इस बारे में सोचने का.

इस संदर्भ में कोलंबिया एशिया हौस्पिटल और अपोलो क्लीनिक के कंसलटैंट व द रिट्रीट रिहैबिलिएशन सैंटर, मानेसर के निदेशक व मुख्य मनोरोग चिकित्सक, डा. आशीष कुमार मित्तल कहते हैं, ‘‘कई वजहों से आजकल लोग काफी समय तक अविवाहित रहते हैं, जिन में प्रमुख वजहें हैं, व्यक्तिगत मरजी, कैरियर को अधिक तरजीह देना, अतीत में प्रेम का कटु अनुभव, चिकित्सीय या मनोवैज्ञानिक समस्याएं वगैरह.’’

ऐसा जरूरी नहीं कि जो अविवाहित हैं, वे खुश नहीं रह सकते. डा. आशीष कहते हैं, ‘‘पश्चिमी देशों में करीब आधी शादियों का अंत तलाक में ही होता है. इसलिए शादी करना सामाजिक जीवन में सफल होने का एकमात्र तरीका नहीं. दोनों ही विकल्पों में जीवन के अन्य क्षेत्रों की तरह ही अलगअलग जोखिम हैं. बहुत से लोग हैं जो भावनात्मक रूप से शादीशुदा युवक या युवती की अपेक्षा कहीं ज्यादा मजबूत होते हैं. कुछ लोग कहते हैं कि परिवार का वंश बढ़ाने के लिए हमें शादी करनी चाहिए, एक बच्चे को जन्म देना चाहिए. जबकि कुछ लोग बच्चे को गोद लेना पसंद करते हैं ताकि इस दुनिया में वे कम से कम एक अनाथ बच्चे का जीवन सुधार सकें.’’

सिंगल लाइफ की वकालत करने वाली और इसी विषय पर किताब लिख चुकीं सोशल साइकोलौजिस्ट बेला डी पाउलो के मुताबिक, ‘‘यदि इसी तरह का अध्ययन विवाहित जिंदगी की तारीफ में छपा होता तो इसे काफी लंबीचौड़ी मीडिया कवरेज मिलती. मगर चूंकि यह अध्ययन सिंगल लाइफ के समर्थन में छपा था, इसलिए इसे कोई मीडिया अटैंशन नहीं मिला.’’

विशेषज्ञों ने यह भी पाया कि विवाहित जिंदगी में कार्डियोवैस्क्युलर डिजीज का रिस्क स्त्रीपुरुष दोनों के लिए 2% तक बढ़ जाता है.

अधिक लंबी शादी के साथ कम हैल्दी बिहैवियर जुड़ा हुआ है, जो हाइपरटैंशन, डायबिटीज और हाई कोलैस्ट्रौल आदि के लिए जिम्मेदार है.

फायदे और भी

तनाव की कमी: एक विवाहित की जिंदगी में तनाव की कमी नहीं रहती. बच्चों के जन्म से ले कर लालनपालन, शिक्षा और फिर रिश्तों को निभाने की जंग उन्हें मुश्किल में डाले रखती है. जबकि सिंगल लाइफ इन समस्याओं से दूर होती है.

– अविवाहित ज्यादा स्वस्थ रहते हैं. अध्ययनों के मुताबिक, सिंगल व्यक्ति अधिक ऐक्सरसाइज करते हैं. वे स्वयं को ज्यादा फिट रख पाते हैं.

– अध्ययनों में यह पाया गया कि शादी के बाद महिलाएं मोटी हो जाती हैं. जबकि अविवाहित महिलाएं बेहतर ढंग से अपनी फिगर और हैल्थ मैंटेन कर पाती हैं.

– महिलाएं जो सदैव अविवाहित रही हैं उन की ओवरऔल हैल्थ ज्यादा बेहतर रहती है. नैशनल हैल्थ इंटरव्यू की स्टडी में पाए गए निष्कर्षों के मुताबिक, अविवाहित महिलाएं बुखार या दूसरी आम बीमारियों के कारण बैड पर कम समय रहती हैं.

ज्यादा सामाजिक: शादी के बाद इनसान अपने दोस्तों और अभिभावकों से कम कनैक्टेड रह जाता है. यह सिर्फ तुरंत शादी के बाद ही नहीं वरन इस के कई सालों बाद भी यह स्थिति बनी रहती है.

– वे लोग जो सदैव अविवाहित रहे हैं, वे अपने दोस्तों, परिवार और पड़ोसियों से ज्यादा विनीत और उदार पाए गए, उन के बजाय जो विवाहित हैं.

– सिंगल लोगों के सिविक और्गनाइजेशंस के लिए वौलंटियर करने की संभावना ज्यादा होती है.

– पुरुषों पर की गई एक स्टडी के मुताबिक, विवाहित पुरुष वैसे काम कम करते हैं, जिन में मौद्रिक लाभ न छिपा हो.

– फ्रिन कौर्नवैल द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि सिंगल व्यक्ति विवाहितों की तुलना में अपने दोस्तों व रिश्तेदारों के साथ कम समय बिताते हैं. 2000 से 2008 के बीच 35 से ऊपर की आयु पर किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि पार्टनर के साथ रहने वाले लोग दोस्तों के साथ अपनी शामें नहीं बिता पाते.

– लोग सिंगल लोगों की कंपनी ज्यादा पसंद करते हैं, क्योंकि वे ज्यादा इंट्रैस्टिंग और फन लविंग होते हैं जबकि विवाहित अपनी पारिवारिक समस्याओं से त्रस्त नजर आते हैं. इसलिए उन की बातों में समस्याएं ज्यादा नजर आती हैं.

– सिंगल व्यक्ति अकेले ज्यादा वक्त बिता पाते हैं, इसलिए उन्हें अकेले में सोचने और खुद का साक्षात्कार करने का वक्त ज्यादा मिलता है. सिंगल लोगों को अकेलापन हासिल होता है, जो क्रिएटिविटी के लिए बहुत जरूरी है. हमारे बहुत से महान कलाकार और लेखकों ने इस एकाकीपन के फायदे पर काफी कुछ लिखा है.

– सिंगल व्यक्ति दुनिया को बदल रहे हैं. यूरोप, जापान, अमेरिका में अकेले रहने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. 50 सालों में यह बहुत बड़ा सामाजिक परिवर्तन है. यूएस सैंसस ब्यूरो के मुताबिक, 2012 में वहां की ऐडल्ट पौपुलेशन का करीब 47% अविवाहित था.

कुछ बातें, जिन्हें करने से सिंगल महिलाओं को बचना चाहिए :

टाइमटेबल फ्रेम कर के जीना

जिंदगी में कभी हम स्वयं तो कभी हमारे हितैषी हमारे लिए एक टाइमटेबल सैट कर देते हैं. इस उम्र में पढ़ाई, इस उम्र में शादी तो इस उम्र में बच्चे. वैसे तो जिंदगी में सब कुछ समय पर होना जरूरी है, मगर कई दफा इस तरह की अपेक्षाएं जिंदगी को बहुत ही रोबोटिक बना डालती हैं और यदि समय पर कुछ करने में सफल न हो पाएं तो मानसिक तनाव पैदा हो जाता है.

क्या करना चाहिए: स्वस्थ या पौजिटिव अपेक्षाएं तो स्वीकार कीजिए, मगर जिन पर हमारा वश नहीं उन की वजह से नैगेटिव सोच डैवलप करने से बचें. अपनी मैंटल अलार्म क्लौक को बंद कर दीजिए और वर्तमान में जीने का प्रयास कीजिए, जो हालात मिले हैं उन्हीं में बेहतरीन जिंदगी जीने का प्रयास करें. भविष्य की योजना तो बनाएं पर अपने आज को नजरअंदाज न करें. प्यार और शादी होनी है तो किसी भी उम्र में हो जाएगी, इन मामलों में स्वयं को स्वतंत्र छोड़ दें. फिर देखिए, जिंदगी खूबसूरत रूप में सामने आएगी.

साथ का इंतजार

कई महिलाएं जो स्काई डाइविंग, ट्रैवलिंग या दूसरे रोमांचक ट्रिप्स में रुचि रखती है, मगर सिर्फ इस वजह से निकलने में हिचकिचाती हैं, क्योंकि उन के साथ कोई नहीं. यह सच है कि प्रेमी या पति और बच्चों के साथ घूमने का मजा कुछ और होता है, मगर सिर्फ इस वजह से कि आप को अकेला घूमता देख कोई क्या सोचेगा, अपनी इच्छाओं को होल्ड पर रखना कतई समझदारी नहीं. जिंदगी बहुत छोटी है.

क्या करना चाहिए: आप सुरक्षाचक्र के बंधन से बाहर निकलें. कभीकभी सब से बेहतर अनुभव अपने हिसाब से कुछ करने से होता है. जब आप 10 लोगों के बीच होते हैं, तो आप एक घिसेपिटे अंदाज से व्यवहार करने को बाध्य होते हैं, मगर जब आप अपनी इच्छा से अकेले, अपने हिसाब से निकलती हैं तो आप वह सब कर पाती हैं, जो कभी न करतीं. ऐसा करना जरूरी भी है, क्योंकि इस से आप को अपनी क्षमताओं के बारे में पता चलता है.

स्वयं को पहचानें

प्रत्येक शख्स किसी खास मकसद के साथ इस दुनिया में आया है. यदि आप सिंगल हैं तो इस का तात्पर्य यह है कि संभवतया अकेले रह कर ही आप अपना मकसद पा सकती हैं. तभी आप की सोच और परिस्थितियां इस के अनुरूप हैं, यह भी हो सकता है कि आने वाले समय में आप स्वयं शादी के बंधन में बंध जाएं, मगर जब तक सिंगल हैं, अपने इस स्टेटस का पौजिटिव यूज करें. नैगेटिव न सोचें. ऐसी स्थिति में आप के पास सलाहों का अंबार लग सकता है. यह आप को सोचना होगा कि आप को सलाहों के हिसाब से अपनी जिंदगी जीनी है या अपनी शर्तों पर.

सपोर्ट नैटवर्क मजबूत बनाएं

हम सब की जिंदगी में दोस्त बहुत बड़े सपोर्ट सिस्टम का काम करते हैं. अपने सामाजिक दायरे को बढ़ाएं. पासपड़ोस, रिश्तेदार, कुलीग्स और दोस्तों के साथ मजबूत नैटवर्क कायम करें. फिर देखिए, आप को कभी अकेलेपन का एहसास नहीं होगा.

मस्ती भी करें

आप अकेली महिला हैं, तो इस का मतलब यह नहीं कि आप जिंदगी ऐंजौय न करें. उन कामों के लिए समय निकालें जो आप को खुशी देते हैं. रोमांटिक नौवल्स पढ़ें, मूवी देखें, लड़कियों के साथ मिल कर नाइट पार्टी करें, अपनी हौबी को समय दें, नियमित ऐक्सरसाइज करें, स्वयं को पैंपर करें, हर सप्ताह एक नए व्यक्ति से मिलने और परिचय बढ़ाने का नियम बनाएं. ग्रुप में ट्रैवलिंग के लिए निकलें, वूमंस कौन्फ्रैंस अटैंड करें. ग्रुप ट्रैवलिंग आप के लिए अच्छा जरीया हो सकता है, क्योंकि जब आप ग्रुप में ट्रैवल करती हैं तो नई जगहों के बारे में जानने के साथसाथ नए लोगों के बारे में भी जानती हैं.

हम ऐसा कतई नहीं कह रहे कि सिंगल लाइफ मैरिड लाइफ की तुलना में ज्यादा बेहतर है. वस्तुत: शादी करना गलत नहीं, मगर उस के साथ करना सही है, जिस के साथ आप कंफर्टेबल महसूस करती हों,  जो आप की भावनाओं को समझता हो, आप जैसी सोच रखता हो, जिस से आप प्यार करती हों.

जिंदगी ने हमें जो भी परिस्थिति दी है, उसे सकारात्मक रूप में देखें. क्योंकि जो वर्तमान में आप को मिला है, वह आप के लिए सब से अच्छा है. ये लमहे फिर लौट कर नहीं आएंगे. इन्हें लाइक कीजिए.

सास के साथ

आप जल्दीजल्दी नहाधो कर किचन में घुसती हैं और सब की पसंद की डिशेज बनाने लगती हैं, मगर पीछे से सास की चिकचिक भी आप लगातार सुन रही हैं. वे न तो आप के बनाने के सलीके से खुश हैं और न ही तैयार खाने से.

– सास का तीखा स्वर आप के कानों में पड़ता है कि कैसा जमाना आ गया है, अब तक बहू सो रही है और मुझे चाय बनानी पड़ रही है.

– आप औफिस जा कर भी अपनी सास की बातों को नहीं भूल पातीं. उन की बातें आप के कानों में गूंजती रहती हैं.

– घर जा कर आप को सास का भड़का चेहरा देखने को मिलता है. किचन जैसे की तैसी पड़ी है. आप सफाई और खाना बनाने में जुट जाती हैं. उधर बच्चा पूरा वक्त आप को डिस्टर्ब करता रहता है.

बिना सास के

आप आराम से उठ कर चाय बना कर पीती हैं. फिर अपना मनपसंद नाश्ता बनाती हैं. घर में मां हैं तो शानदार नाश्ता तैयार मिल जाता है.

– आप की अभी उठने की इच्छा नहीं है. अत: आप करवट बदल कर फिर से सो जाती हैं.

– औफिस जा कर आप सुकून के साथ अपना काम करती हैं.

– आप घर जाती हैं तो मम्मी ने खाना बना कर रखा है. होस्टल में हैं या फ्रैंड के साथ रूम ले कर रह रही हैं तो भी नजारा बहुत अलग होगा.

2010 में प्रकाशित, प्यू रिसर्च रिपोर्ट के निष्कर्ष काफी रोचक हैं. इस नैशनल सर्वे में सिंगल लोगों से की गई बातचीत के आधार पर पाया गया कि इन में से केवल 46% लोग ही शादी करने के इच्छुक थे. 25% लोगों ने कहा कि वे शादी करना ही नहीं चाहते, क्योंकि उन्होंने अपनी इच्छा से अकेले रहने का निर्णय लिया है. बाकी के 29% लोग इस बारे में दुविधा में थे कि वे मौका मिलने पर शादी करेंगे या नहीं.एक नजर विवाहित और अविवाहित महिला की जिंदगी पर.

विवाहिता की दिनचर्या

सुबह 6.00 बजे

बच्चे को चुप कराने के चक्कर में आप सो नहीं पाईं. बच्चे ने बिस्तर गंदा कर रखा है. न चाहते हुए भी आप को उठना पड़ता है.

सुबह 6.30 बजे

– आप बच्चे को थोड़ी देर और सुलाना चाहती हैं, मगर वह सोने को तैयार नहीं. जाहिर है, आप भी बिस्तर छोड़ कर फ्रैश होने चली जाती हैं.

सुबह 7.00 बजे

– आप ने आज नाश्ते में आलू के परांठे बनाए हैं. मगर बड़ी बेटी परांठे खाने को तैयार नहीं. वह चाउमिन की रट लगाए बैठी थी.

सुबह 8.00 बजे

आप नहाने जा रही हैं और टब में पानी भर कर आती हैं. कपड़े ले कर अंदर घुसती हैं तब तक छोटू टब में साबुन डाल देता है.

सुबह 9.00 बजे

– आप तेजी से सीढि़यां चढ़ कर जा रही हैं. मगर आप ने यह नहीं देखा कि बच्चे ने वहां तेल गिरा रखा है. आप फिसल कर गिर पड़ती हैं.

सुबह 10.00 बजे

बच्चे को चुप करा कर आप मेकअपरूम में आती हैं. मगर वहां सारा मेकअप का सामान इधरउधर बिखरा पड़ा है.

पूरा दिन

– आप पूरा दिन बच्चे और घर के टैंशन में हैं कि कैसे जल्दी घर पहुंचें और बच्चे को संभालें.

शाम 6.30 बजे

– आप जल्दी से किचन में घुस जाती हैं. आप सब्जी काट रही हैं और बच्चा कटी सब्जी फेंक रहा है, बरतन इधरउधर फेंक रहा है. आधे घंटे के काम में 1 घंटा लग जाता है.

संडे

आप ने कहीं घूमने का प्रोग्राम तय किया, मगर बच्चा वहां जाने को तैयार नहीं. वह जू में जाने की जिद कर रहा है.

अविवाहिता की दिनचर्या

सुबह 6.00 बजे

सुबह उठ कर आप ने घड़ी देखी और करवट ले कर फिर सो गईं. उठने की कोई हड़बड़ी नहीं है.

सुबह 6.30 बजे

– अभी आप ने अपनी नींद तोड़ी है. उठ कर फिर सोने का जो मजा है, उसे कैसे छोड़ सकती हैं.

सुबह 7.00 बजे

– आप आराम से सो कर उठीं और तकिया दूर फेंका. फिर रात को देखा हुआ सपना याद कर मुसकराने लगीं.

सुबह 8.00 बजे

आप अपना बिस्तर और कमरा ठीक करने के बाद नहाने चली जाती हैं. इस बीच मां ने गीजर औन कर दिया है.

सुबह 9.00 बजे

– आप जब तक नहा कर निकलती हैं, तब तक मम्मी या रसोइए ने नाश्ता तैयार कर रखा होता है.

सुबह 10.00 बजे

आप अपनी स्कूटी निकालती हैं और अपनी सहेली को साथ ले कर औफिस के लिए निकल जाती हैं.

पूरा दिन

– पूरी तत्परता के साथ दिन भर औफिस का काम करती हैं और दोस्तों के साथ हंसीमजाक में भी शरीक होती रहती हैं.

शाम 6.30 बजे

– आप आराम से शाम को अपनी सहेली के घर से खा कर लौटती हैं या घर जा कर चायनाश्ते के बाद किचन में मां की सहायता करती हैं, फिर टीवी पर मनचाहा प्रोग्राम देखने लगती हैं.

संडे

आप अपनी इच्छानुसार दोस्तों के साथ मूवी और शौपिंग का प्रोग्राम बनाती हैं. फिर डिनर कर के घर लौटती हैं.    

पत्नी से पंगा पड़ न जाए महंगा

यदि कोई आप से यह कहे कि आलीशान बंगले और करोड़ों की संपत्ति का मालिक पिछले 5 माह से बंगले के बाहर बने बगीचे में रहने को विवश है और अदालत ने उसे वहां से भी निकलने का आदेश दे दिया है, तो शायद आप सहज विश्वास नहीं करेंगे. पर यह सच है अमेरिका के टैक्सास के लेकबैली में रहने वाले करोड़पति शराफत खान को अपनी पत्नी से होने वाले झगड़ों ने अजीब स्थिति में डाल दिया है.

दरअसल उन की पत्नी ने रोजरोज के झगड़ों से आजिज आ कर शराफत को उन के ही घर से निकाल दिया था. वह घर में प्रवेश न कर सकें, इसलिए उन की पत्नी ने घर के सभी दरवाजों के ताले भी बदल दिए. इस बात को 5 माह बीत चुके हैं.

इस दौरान पड़ोसियों ने दवाइयां, खाना वगैरह दे कर उन की मदद की. रिश्तेदारों और दोस्तों ने भी सहायता करनी चाही. पर शराफत ने इंकार कर दिया. उन का बेटा जेन भी मां के पक्ष में ही है.

शराफत की 61 वर्षीय पत्नी पेशे से डाक्टर है. उस ने जून में ही सिविल कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दे दी थी. अदालत ने उन की अर्जी पर सुनवाई करते हुए तलाक स्वीकार कर लिया. साथ ही बंगला भी पत्नी को देने को कहते हुए बगीचे से निकल जाने का आदेश दिया है.

प्रेम में मन देखें, जाति या धर्म नहीं

इस रविवार, रांची के जगन्नाथपुर थाना क्षेत्र में, हेसाग स्थित तालाब के पीछे रेलवे लाइन पर 26 वर्षीय युवक का शव बरामद हुआ. बहुत ही वीभत्स दृश्य था, रेलवे पोल नंबर 1452 और 1456 के बीच खून से लथपथ युवक का मृत शरीर पड़ा था तो करीब 200 गज की दूरी पर पड़ा था उस का बैग.

इतनी कम उम्र में दुनिया से रुखसत होने वाला राहुल कुमार मूलतः लातेहार का रहने वाला था जो रांची में पढ़ाई पूरी करने आया था. इसी दौरान एक दूसरी जाति की युवती से वह प्यार करने लगा. दोनों ने आपस में शादी का वादा किया, कसमें भी खाईं, मगर दूसरी जाति होने की वजह से लड़की के परिजन इस शादी के लिए सहमत नहीं थे. बाद में युवती ने भी राहुल से साफसाफ कह दिया कि वह परिजनों के विरुद्ध नहीं जाएगी इस लिए शादी का खयाल दिल से निकाल दो.

राहुल ने लाख समझाया. यह भी कहा कि वह इस तरह जी नहीं सकेगा, मगर युवती हिम्मत नहीं जुटा सकी. तब राहुल ने स्वयं को समाप्त कर लिया. भले ही फौरी तौर पर राहुल की मौत सामान्य सी आत्महत्या है और वजह भी बहुत साधारण है, और वो है प्रेमप्रसंग.

मगर गौर करें तो पाएंगे कि राहुल ने आत्महत्या नहीं की वरन उस की हत्या की गई है और हत्या की है धर्म, समाज, संस्कृति के तथाकथित पहरेदारों व पैरोकारों, धर्मगुरुओं ने, जिन्होंने अपने लाभ के लिए समाज को जातियों व धर्मों में बांट दिया और फिर हजारों बंदिशें लगा दीं ताकि मासूमों की चिता पर वो अपने स्वार्थ की रोटियां सेक सकें. जातिधर्म के भेदभाव की दीवारें खड़ी कर लोगों को अपने हिसाब से चला सकें.

यही वजह है कि जब बात शादीविवाह की आती है तो परिजन लड़केलड़की के आचारविचार, स्वभाव आदि न मिला कर कुंडलियां मिलवाने को पंडेपुजारियों के पास दौड़ पड़ते हैं. शादी का सारा कार्यक्रम कदम दर कदम धर्मगुरुओं के कहेअनुसार संपन्न कराया जाता है. इस के विपरीत लड़केलड़कियां यदि अपनी पसंद के जीवनसाथी से प्रेमविवाह करें तो पंडे पुजारियों की तो दुकान ही बंद हो जाएगी.

यही वजह है कि हर साल हजारों लाखों युवकयुवतियां प्रेम प्रकरण की वजह से आत्महत्या करने या फिर औनर किलिंग का शिकार होने पर विवश हैं. जरूरत है, इन बातों की हकीकत समझने और अपनी आंखें खोलने की. वस्तुतः हमें अपने बच्चों की खुशियां दांव पर लगाने का कोई हक नहीं.

कांग्रेस में जिम्मेदारी के लिए मारामारी

16 फरवरी, 2016 को कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने संसदीय इलाके गुना शिवपुरी के गांवों में थे. इस से ज्यादा हैरत की बात यह थी कि वे पहली दफा 8 किलोमीटर पैदल चले और एक गांव पाली में एक गरीब आदिवासी औरत भूरीबाई की झोंपड़ी में घुस कर उन्होंने रोटी खाई.

ग्वालियर चंबल इलाके में अभी भी ज्योतिरादित्य सिंधिया को ‘महाराज’ कह कर बुलाया जाता है. वे जहां भी जाते हैं, वहां के गरीब लोग उन के पैरों में सिर झुका कर अपनेआप को धन्य समझते हैं. पिता माधवराव सिंधिया की साल 2002 में एक हवाई हादसे में हुई मौत के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया को सियासत में पैर जमाने में कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ी थी. पिता की बनाई टीम उन के साथ थी और सोनिया गांधी व राहुल गांधी से उन के संबंध बेहद नजदीकी थे.

मध्य प्रदेश में वजूद की लड़ाई लड़ रही कांगे्रस को करारा झटका हालिया मैहर विधानसभा उपचुनाव में लगा था, जब भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार नारायण त्रिपाठी ने कांगे्रस के उम्मीदवार मनीष पटेल को तकरीबन 28 हजार वोटों से शिकस्त दी थी. इस चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी एड़ीचोटी का जोर लगाया था, लेकिन जब नतीजा सामने आया, तो समझ यह भी आया कि मैहर मध्य भारत में नहीं, बल्कि विंध्य इलाके में है, जहां के वोटरों ने उन पर कोई खास तवज्जुह नहीं दी.

मैहर का चुनाव कई माने में अहम था, जिस की बाबत सियासी जानकारों ने ऐलान यह कर दिया था कि अगर भाजपा यह चुनाव हारी, तो साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांगे्रस की सत्ता में वापसी तय है. कांगे्रस को उम्मीद थी कि दलित, पिछड़े, आदिवासी और मुसलिम वोटों के अलावा कुछ सवर्ण वोट भी उसे मिलेंगे और वह यह सीट निकाल ले जाएगी, पर हुआ उलटा.

अगर कांगे्रस यह चुनाव जीत जाती, तो तय है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद और रुतबा दोनों बढ़ते, पर ऐसा नहीं हुआ. इस पदयात्रा से संदेशा यह गया कि अब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राज्य में कांगे्रस को वापस लाने के लिए कमर कस ली है और वे एकलौते लोकप्रिय नेता हैं, जिन की अगुआई में सभी कांगे्रसी एक हो सकते हैं. हालांकि खुलेतौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया या उन के गुट ने यह नहीं कहा कि उन्हें बतौर मुख्यमंत्री प्रोजैक्ट किया जाए या फिर प्रदेश कांगे्रस का अध्यक्ष बनाया जाए, लेकिन कांग्रेसी राजनीति की महिमा वाकई अपरंपार है. ज्योतिरादित्य सिंधिया की इस पदयात्रा ने कांग्रेस के भीतर खलबली मचा दी है और जल्दी ही दूसरे गुट के दूसरे दर्जे के नेता भी लामबंद हो गए हैं.

कमलनाथ गुट का हमला

ज्योतिरादित्य सिंधिया के शिवपुरी दौरे के ठीक 10 दिन बाद विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता बाला बच्चन ने महाकौशल इलाके के मंडला में एक मीटिंग बुलाई. इस मीटिंग में मौजूद दर्जनभर विधायकों ने खुलेतौर पर कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपने और उन्हें मुख्यमंत्री पेश करने की मांग कर डाली. बाला बच्चन कमलनाथ के खास समर्थक हैं, लेकिन उन की हां में हां एक और विधायक गोविंद सिंह ने भी मिलाई. इन की गिनती दिग्विजय सिंह के चहेतों में होती है.

गोविंद सिंह के बयान से एक और बात उजागर हुई कि दिग्विजय सिंह का गुट बिखर गया है और उन के समर्थक दूसरे तंबुओं में जगह तलाश रहे हैं. 3 गुटों में बंटी कांग्रेस में घोषित तौर पर अब 2 ही गुट बचे हैं. पहला सिंधिया गुट और दूसरा कमलनाथ गुट. इन दोनों में घमासान शुरू हो चुका है. इन 2 पाटों के बीच में मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव पिस रहे हैं, जिन के पास मैहर की हार की बाबत सफाई देने के लिए न बहाना है, न कोई दलील है.

बीते साल जब रतलामझाबुआ लोकसभा चुनाव कांग्रेस के उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया ने तकरीबन 85 हजार वोटों से जीता था, तो यह मान लिया गया था कि दलित और आदिवासी वोटरों का दिल भाजपा से उचट रहा है, पर मैहर में आ कर बाजी उलट गई, तो अरुण यादव को घेरने में दोनों गुट कोई रहम नहीं कर रहे हैं.

कौन पर सस्पैंस

साफ दिख रहा है कि अगर वापसी चाहिए, तो कांग्रेस आलाकमान को ज्योतिरादित्य सिंधिया या कमलनाथ में से किसी एक को कमान सौंपनी पड़ेगी. पर इस में दिक्कत यह है कि जिस गुट की नजरअंदाजी की जाएगी, वह पार्टी को और डुबाने का काम करेगा.

कमलनाथ महाकौशल इलाके में भारी पड़ते हैं, तो ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य भारत में गहरी पैठ रखते हैं. मालवांचल, निमाड़ और विंध्य इलाकों में इन दोनों की पकड़ बराबर की है.

उधर दिल्ली के समीकरण भी बेहद साफ हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया संसद में राहुल गांधी के पीछे बौडीगार्ड की तरह खड़े नजर आते हैं, तो कमलनाथ सोनिया गांधी के इर्दगिर्द मंडराते रहते हैं. राज्य में दोनों की अपनेअपने इलाकों में जमीनी ताकत से सोनिया और राहुल गांधी अच्छी तरह वाकिफ हैं. ऐसे में उन्हें भी तय करने में पसीने आ जाएंगे कि पार्टी की जिम्मेदारी किसे दी जाए.

टूटता वोट बैंक

मैहर में कांग्रेस की हार से साबित हो गया है कि शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक फिर तोड़ दिया है. दलित, आदिवासी और मुसलिम मैहर में क्यों भाजपा के साथ दिखे  इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने के बजाय कांग्रेसी आपसी खींचातानी में लगे हैं.

शिवराज सिंह चौहान अब कांग्रेसी तर्ज की राजनीति कर रहे हैं. दलित वोटों को लुभाने के लिए उन्होंने इस बार बड़े पैमाने पर दलित संत रविदास की जयंती मना डाली और दलितों के लिए ताबड़तोड़ ऐलान किए, जिस का वाजिब असर दलितों पर पड़ा. धर्म की अफीम खा रहे दलितों को कांग्रेस यह समझ पाने में नाकाम रही है कि उन के अलग देवीदेवता और संत बना देने से उन का कोई भला नहीं होने वाला, उलटे नुकसान बहुत हैं.

दूसरी तरफ कांग्रेस दूरदराज और भीतरी इलाकों में कार्यकर्ताओं की कमी से जूझ रही है, तो इस का फायदा बैठेबिठाए भाजपा को आदिवासी इलाकों में मिल रहा है. हालांकि कांग्रेस ने अभी तक अल्पसंख्यक वोटों का भरोसा और समर्थन नहीं खोया है, पर कांग्रेस की कलह देखने से यह तबका भी उस से बिदकने लगा है कि ये हमारा भला क्या करेंगे, जो खुद एकजुट नहीं हो पा रहे हैं.

अगर दिग्विजय सिंह की बात करें, तो वे कभी नहीं चाहेंगे कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस की कमान मिले, इसलिए गोविंद सिंह जैसे विधायक कमलनाथ समर्थकों के साथ बैठे नजर आने लगे हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया नौजवान नेता हैं और औरतों की भी पसंद हैं. आमतौर पर वे अपने पिता की तरह गुटबाजी के पचड़े में फंसने के बजाय उस से बचने की कोशिश करते हैं, लेकिन दिग्विजय सिंह गुट के खत्म हो जाने से समीकरण बदले हैं. उन की दिलचस्पी राज्य में बढ़ी है, लेकिन राह में रोड़ा अब कमलनाथ हैं, जिन्हें मामूली समझने की भूल वे नहीं कर सकते. लेकिन अपने पिता की तरह अगर खामोश रहने की राजनीति वे करते हैं, तो तय है कि खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारेंगे.

क्या गलत कहा शंकराचार्य ने

बहुत ज्यादा नहीं अभी कुछ दिन पहले ही द्वारकापीठ के शंकराचार्य जगद्गुरू स्वामी स्वरूपानन्द ने धर्म ग्रन्थों के हवाले से कहा था कि शनि कोई देवता नहीं, बल्कि एक ग्रह है, जिसके पूजा पाठ से कोई नफा नुकसान नहीं है और शनि पूजा सनातन धर्म में निषिद्ध है. अब वही शंकराचार्य पूरी बेशर्मी से कह रहा है कि अगर महिलाएं शनि पूजा करेंगी, तो उनके साथ बलात्कार की घटनाएं बढ़ेंगी. औरतों को बेइज्जत और भयभीत करने बाले बयान पर एन सी पी  की यह प्रतिक्रिया अपनी जगह ठीक है  कि शंकराचार्य बौरा गया  हैं और उसे जेल भेज देना चाहिए, पर इस कथन के और भी माने हैं.

दो टूक कहें तो झगड़ा पैसे और चढ़ावे का है जिसकी एक जिम्मेदार भूमाता ब्रिगेड की नायिका तृप्ति देसाई भी हैं, जिन्होने महज सुर्खियां बटोरने शिगनापुर शनि मंदिर मे प्रवेश करने और शनि मूर्ति पर तेल चढ़ाने एक निरर्थक लड़ाई लड़ी जिसका  नतीजा सामने है कि इससे पुण्य या पुरुषों की बराबरी का दर्जा नहीं, बल्कि बलात्कारी मिलेंगे. तृप्ति जैसे अतिरेक उत्साही महिलाएं यह नहीं सोच पातीं कि मंदिरों मे औरतों के प्रवेश से उन्हे कुछ हासिल नहीं होने वाला, उल्टे वे धर्म के विशाल कारोबार की नई ग्राहक बन कर रह जाएंगी, यानि पूजा पाठ के एवज मे उनका काम पंडे पुजारियों को दक्षिणा चढ़ाना रह जाएगा.

इधर स्वरूपानन्द की तकलीफ और तिलमिलाहट यह है कि यह पैसा उनके खीसे में नहीं आना, लिहाजा उन्होने नवरात्रि के दिनों में जब देश मे जगह जगह कन्याएँ पूजी जा रहीं हैं, तब सनातन या कथित हिन्दू धर्म का मूलभूत सिद्धान्त बता दिया कि अब यह पूजा किस घृणित और वीभत्स तरीके से होगी. शंकरचार्य गलत कुछ नहीं कह रहा है, बल्कि धर्म की असलियत बता रहा है कि द्वापर और त्रेता युग में बलात्कार जितने आम थे, उतने आज इस लिहाज से नहीं हैं कि अब बलात्कारियों को सजा भी होती है. पौराणिक काल में नहीं होती थी, क्योंकि तब बलात्कार ऋषि मुनि ज्यादा अपना हक समझते करते थे और तब का शासक इस बाबत उन्हे प्रणाम करता था पर अब लोकतन्त्र के चलते ऐसा नहीं होता.

इधर देश भर की महिलाएं इस बयान पर तिलमिलाइ हुई हैं पर कर कुछ नहीं कर पा रहीं सिवाय इस बहस के कि औरत अब समर्थ है, अपने पावों पर खड़ी है. आज की औरत स्वभिमानी है, वह इस या किसी भी तरह की ज्यादती को बर्दाश्त नहीं करेगी, जबकि दुर्भाग्य की बात है कि वह आज भी अहिल्या द्रोपदी और मत्स्यगंधा की तरह एक कलयुगी धर्माचार्य की कुत्सित मानसिकता को सुनते उसे शह ही दे रही है. जिस अपमान पर चंद घंटों में हाहाकार मच जाना चाहिए था वह चीरहरण की तरह शांति से सम्पन्न हो रहा है.

पुरुष खुश हैं कि बात बात पर नारी अधिकारों की धोंस देने बाली कथित जागरूक महिलाओं को स्वरूपानन्द ने उन्हें उनकी हैसियत और औकात बता दी है कि पाँव की जूती पाँव में ही रहे तो ही सुरक्षित रह पाएगी. रही बात स्वरूपानन्द की तो उसका कुछ नहीं बिगड़ने वाला, वह इस तरह  पागलपन की बात भी करे, तो धर्म भीरु लोग श्र्द्धा भक्ति से सर झुकाते उसकी बातों को धार्मिक निर्देश यानि प्रवचन समझते जय जय कार ही करते रहेंगे और अब कहीं भी बलात्कार होगा, तो कहेंगे कि महाराज ने कितनी सटीक भविष्यवाणी की थी. वे त्रिकालदर्शी हैं इसलिए अपनी हिफाजत के मद्देनजर महिलाओं को वर्जित शनि पूजन और दूसरे निषिद्ध कर्म नहीं करने चाहिए.

चूहे भगाने वाले को ही मिलेगा वोट

पश्चिम बंगाल के गोसाबा विधानसभा इलाके के तमाम किसानों को मकान, कपड़े, रोटी, पानी, बिजली व सड़कों जैसी सहूलियतें नहीं चाहिए. उन्हें तो खतरनाक चूहों से नजात दिलाने वाले सूरमा की दरकार है. इलाके के किसानों को ऐसे बांसुरी बजाने वाले की दरकार है, जो वहां के खेतों में फसलों के लिए काल बन चुके चूहों को भगा सके. बात अजीब सी है, मगर इस में दम है यानी यह हकीकत है.

असलियत तो यह है कि सुंदरबन जिले के गोसाबा इलाके में चूहों की आबादी बेहद तेजी से बढ़ रही है और वे फसलों को जम कर बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं. इस मुसीबत से जूझ रहे किसानों को हेमलिन शहर जैसा हल चाहिए, जहां बांसुरी वादक ने मीठी धुन बजा कर चूहों को भगा दिया था.

किसानों से यह पूछने पर कि वे नई सरकार से क्या उम्मीद करते हैं, उन्होंने कहा कि सरकार उन्हें चूहों से नजात दिलाए. उन्होंने कहा कि वे आइंदा भी उसी पार्टी को वोट देंगे, जो उन्हें चूहों के कहर से नजात दिला सके. गोसाबा इलाके के अलावा अन्य कई इलाके भी चूहों की समस्या झेल रहे हैं. आरएसपी उम्मीदवार उत्तम कुमार साहा का कहना है कि पार्टी लोगों के पास चूहों की समस्या का हल ले कर जाएगी और गांव वालों को खुश कर देगी. उन्होंने बताया कि चूहे कैसे खेतों में गदर मचाते हैं. चूहे आलू से ले कर धान तक खा रहे हैं और बरबाद कर रहे हैं.

इलाके के लोगों का कहना है कि साल 2009 में आए आइला चक्रवात की वजह से बड़ी तादाद में सांप खत्म हो गए थे. सांपों के न होने से चूहों की आबादी में बहुत तेजी से इजाफा हुआ था. यही बेहिसाब चूहे अब किसानों के जी का जंजाल बन चुके हैं. इसी सिलसिले में लाहिरपुर गांव के किसान संजय साहा का कहना है कि पिछले साल चूहों ने उन के 200 किलोग्राम आलू और 120 किलोग्राम धान को बरबाद कर के खास नुकसान पहुंचाया था. संजय ने जिला प्रशासन से इस मामले में फरियाद भी की थी, लेकिन उन की फरियाद पर गौर नहीं किया गया.

सरकार व प्रशासन के ढीले रवैए की वजह से ही किसानों ने तय किया है कि वे अब उसे वोट देंगे, जो उन्हें चूहों से नजात दिला सके. यानी आगामी चुनावों में वहां की पार्टियां चूहों से जंग लड़ कर ही जीत का परचम लहरा सकेंगी.

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