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कंडोम में डाल कर फेंका गया नवजात, मगर वह जिंदा था और फिर…

इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली एक घटना जान कर रूह कांप उठेगी आप का. यह सनसनीखेज घटना हावड़ा से अमृतसर पहुंची हावड़ा मेल की है, जहां ट्रेन के एक कोच में टौयलेट की सफाई करने के दौरान एक नवजात शिशु पड़ा मिला.

पसीने छूट गए कर्मचारियों के

नवजात शिशु को दुपट्टे से लपेट कर कंडोम में डाल कर फेंका गया था.

हावड़ा से अमृतसर पहुंची इस ट्रेन की सफाई होनी थी. सफाई के दौरान जब सफाई कर्मचारियों ने एसी कोच डी-3 के टौयलेट का दरवाजा खोला तो वहां दुपट्टे का एक छोर दिखाई दिया. अंदर जा कर देखा तो सफाई कर्मचारियों के ठंढ के महीने में भी पसीने छूट गए. वहां फ्लश में एक नवजात शिशु पड़ा था. आननफानन में उसे बाहर निकाला गया.

वह जिंदा था

सफाई कर्मचारी इंचार्ज, गुमनाम सिंह ने मीडिया से बातचीत में बताया,”कंडोम के अंदर दुपट्टे से लिपटे नवजात शिशु को जब बाहर निकाला गया तो उस की सांसें चल रही थीं. हम ने तुरंत इस की सूचना देते हुए नवजात को इलाज के लिए अस्पताल में भरती करा दिया है.”

अस्पताल के डाक्टरों का कहना है कि नवजात को गला दबा कर मारने की पहले कोशिश की गई और फिर उसे मरा समझ फेंक दिया गया. मगर अब वह खतरे से बाहर है.

जांच में जुटी पुलिस

घटना के तुरंत बाद स्थानीय पुलिस अज्ञात के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत धारा 317 लगा कर तफ्तीश में जुटी है.

नवजात शिशु को किस ने फेंका, यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा पर इतना तो तय है कि इतने क्रूर तरीके से फेंका गया नवजात अवैध संबंधों से भी पैदा हुआ हो सकता है, जिसे बदनामी के डर से पैदा होने के बाद फेंक दिया गया होगा.

एसी कोच में आमतौर पर उच्च तबके के और पढेलिखे लोग ही यात्रा करते हैं. ऐसे में जब नवजात शिशु अस्पताल में है और खतरे से बाहर है तो पुलिस जांच के बाद सचाई सामने आ ही जाएगी. पर वह कैसी मां होगी जिस ने इंसानियत को शर्मसार करते हुए इस तरह का कदम उठाया, जो पकङे जाने पर अब कानून और समाज दोनों की नजरों में दोषी हो जाएगी, यह तय है.

करवाचौथ पर मौत का उपहार : प्यार में ये क्या कर बैठा मंजीत

29अक्तूबर, 2018 को सुबह के करीब 8 बजे थे. तभी रोहिणी जिले के थाना बवाना के ड्यूटी अफसर हैडकांस्टेबल जितेंद्र कुमार मीणा को सूचना मिली कि दरियापुर-बवाना रोड पर वर्मी कंपोस्ट पोली फार्म के पास एक महिला को किसी ने गोली मार दी है. महिला स्कूटी से जा रही थी.

ड्यूटी अफसर ने इस सूचना से इंसपेक्टर राकेश कुमार को अवगत करा दिया. इंसपेक्टर राकेश कुमार तुरंत एएसआई राजेश कुमार, कांस्टेबल यशपाल, अनिकेत आदि को ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

घटनास्थल थाने से पश्चिम दिशा में करीब 3 किलोमीटर दूर था, इसलिए वह जल्द ही वहां पहुंच गए. उन्हें वर्मी कंपोस्ट पोली फार्म के सामने सड़क पर सफेद रंग की स्कूटी नंबर डीएल 11 एसपी 7044 पड़ी मिली, जिस में चाबी लगी हुई थी.

वहीं पर 2 लेडीज बैग, एक हेलमेट और एक जोड़ी जूती पड़ी थी. पास में सड़क पर ही थोड़ा खून भी था और कारतूस का एक खोखा भी पड़ा था. आसपास के लोगों ने बताया कि एक महिला स्कूटी से जा रही थी, तभी किसी ने उसे गोली मार दी. कुछ लोग उसे महर्षि वाल्मीकि अस्पताल ले गए हैं.

कांस्टेबल यशपाल को घटनास्थल पर छोड़ कर इंसपेक्टर राकेश कुमार महर्षि वाल्मीकि अस्पताल चले गए. वहां उन्होंने डाक्टरों से बात की तो पता चला, उस महिला की मौत हो चुकी है. महिला कौन है और कहां रहती है. पुलिस के लिए यह जानना जरूरी था.

इस के लिए पुलिस ने घटनास्थल से मिले बैगों की तलाशी ली तो पता चला मृतका का नाम सुनीता है और वह बवाना के दादा भैया वाली गली के रहने वाले मंजीत की पत्नी है. वह सोनीपत के फिरोजपुर गांव में गवर्नमेंट सीनियर सैकेंडरी गर्ल्स स्कूल में टीचर थीं. मृतका के बारे में जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने बवाना स्थित मृतका के ससुराल वालों को सूचना दे दी.

कुछ ही देर में मृतका का पति मंजीत और घर के अन्य लोग महर्षि वाल्मीकि अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने जब वहां सुनीता की लाश देखी तो फफकफफक कर रोने लगे.

मृतका की शिनाख्त हो जाने के बाद इंसपेक्टर राकेश कुमार ने इस की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी और कांस्टेबल अनिकेत को अस्पताल में छोड़ कर वह फिर से घटनास्थल पर पहुंच गए.

सबूत जुटाने के लिए उन्होंने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी घटनास्थल पर बुला लिया. कुछ ही देर में डीसीपी (रोहिणी) रजनीश गुप्ता भी घटनास्थल पर पहुंच गए. इस के बाद अस्पताल पहुंच कर उन्होंने मृतका  के ससुराल वालों से बात की.

मृतका के पति मंजीत ने बताया कि वह सोनीपत के एक सरकारी स्कूल में टीचर थी. रोजाना की तरह वह आज सुबह करीब 7 बजे अपनी स्कूटी से ड्यूटी के लिए निकली थी. पता नहीं किस ने उसे गोली मार दी. पूछताछ में मंजीत ने बताया कि उस की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है.

माहौल गमगीन होने की वजह से उस समय उन्होंने मंजीत से ज्यादा पूछताछ करनी जरूरी नहीं समझी, लेकिन इतना तो वह जानते ही थे कि सुनीता की हत्या के पीछे कोई न कोई वजह जरूर रही होगी और वह आज नहीं तो कल जरूर सामने आ जाएगी.

इंसपेक्टर राकेश कुमार को कुछ निर्देश दे कर रजनीश गुप्ता वहां से चले गए. उन के जाने के बाद इंसपेक्टर राकेश कुमार ने मौके से बरामद सबूत अपने कब्जे में ले लिए और अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर केस की जांच शुरू कर दी.

राकेश कुमार ने जांच की शुरुआत मृतका सुनीता की ससुराल से ही की. पति मंजीत ने बताया कि घर में वह वह नौर्मल रहती थी. किसी को भी उस से किसी तरह की शिकायत नहीं थी. वह स्कूटी से ही स्कूल आतीजाती थी. पुलिस ने मंजीत से सुनीता के मायके वालों का पता और फोन नंबर ले कर उन लोगों को बवाना थाने बुला लिया.

पुलिस को मिली महत्त्वपूर्ण जानकारी

सुनीता के मातापिता थाना बवाना पहुंच गए. उन्होंने बताया कि मंजीत सुनीता को अकसर परेशान करता रहता था. साथ ही यह भी कि मंजीत का किसी मौडल के साथ चक्कर चल रहा था, जो मुंबई में रहती है. सुनीता इस का विरोध करती थी तो वह सुनीता को प्रताडि़त करता था. इसी के चलते मंजीत सुनीता पर तलाक लेने का दबाव डाल रहा था. ये बातें उस ने मायके वालों को बताई थीं.

पुलिस के लिए यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी. लिहाजा पुलिस ने सुनीता के पति मंजीत के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि मंजीत की मुंबई के किसी फोन नंबर पर अकसर बातें होती थीं. जांच में वह नंबर एंजल गुप्ता का निकला. एंजल गुप्ता कोई आम लड़की नहीं थी बल्कि एक मशहूर मौडल थी और बौलीवुड की कई फिल्मों में काम कर चुकी थी.

काल डिटेल्स से केस की स्थिति साफ हो गई. साथ ही पुलिस को सुनीता के मातापिता के बयानों में भी सच्चाई नजर आने लगी. लिहाजा इंसपेक्टर राकेश कुमार ने मंजीत को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया.

मंजीत से उस की पत्नी सुनीता के मर्डर के बारे में पूछताछ की गई तो पहले वह इधरउधर की बातें कर के पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करता रहा, लेकिन सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने अपना अपराध न केवल स्वीकारा बल्कि उस की हत्या में शामिल रहे लोगों के नामों का भी खुलासा कर दिया.

उस से पूछताछ के बाद पता चला कि सुनीता की हत्या के मामले में मंजीत की प्रेमिका एंजल गुप्ता के मुंहबोले पिता राजीव गुप्ता का भी हाथ था.

राजीव ने ही भाड़े के हत्यारों से 10 लाख रुपए में सुनीता की हत्या का सौदा किया था. मंजीत से हुई पूछताछ के बाद सुनीता की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह एक मौडल के प्यार की कहानी थी.

सीधीसादी जिंदगी थी सुनीता की

मूलरूप से हरियाणा की रहने वाली सुनीता का विवाह दिल्ली के बवाना में रहने वाले मंजीत के साथ हुआ था. मंजीत प्रौपर्टी डीलर था. सुनीता पति से ज्यादा पढ़ीलिखी थी, इस के बावजूद उस ने खुद को ससुराल में ढाल लिया था. पति की आर्थिक स्थिति भी मजबूत थी और उस का प्रौपर्टी का काम भी अच्छा चल रहा था. लिहाजा सुनीता को ससुराल में किसी तरह की परेशानी नहीं थी.

धीरेधीरे समय अपनी गति से बीतता रहा. सुनीता एक बेटी और एक बेटे की मां बन गई. फिलहाल उस की बेटी 16 साल की है और बेटा 12 साल का.

सुनीता सोनीपत के फिरोजपुर गांव स्थित गवर्नमेंट सीनियर सैकेंडरी गर्ल्स स्कूल में पढ़ाती थी. ससुराल बवाना से स्कूल की दूरी लगभग 20 किलोमीटर थी, इसलिए स्कूल आनेजाने के लिए सुनीता ने एक स्कूटी खरीद ली थी. उसी से वह स्कूल के लिए सुबह करीब 7 बजे घर से निकल जाती थी.

सुनीता अपने गृहस्थ जीवन से खुश थी, लेकिन 2 साल पहले उस की खुशियों में ग्रहण लगना शुरू हो गया था. दरअसल, दिल्ली की एक पार्टी में मंजीत की मुलाकात एंजल गुप्ता नाम की एक मौडल से हुई. एंजल गुप्ता बेहद खूबसूरत थी और बौलीवुड की कई फिल्मों में छोटामोटा काम कर चुकी थी.

जसवीर भाटी द्वारा निर्देशित फिल्म ‘भूरी’ के आइटम सांग ‘ओ मेरा झुमका..मेरा ठुमका बदनाम हो गया’ में भी एंजल गुप्ता ने अपने जलवे बिखेरे थे. वह एक्ट्रैस बनने की दौड़ में थी. एंजल गुप्ता का असली नाम शशिप्रभा था. बताया जाता है कि वह मूलरूप से उत्तर प्रदेश की रहने वाली थी.

उस की मां दिल्ली में सीपीडब्ल्यूडी में नौकरी करती है और आर.के. पुरम सेक्टर-4 के सरकारी क्वार्टर में रहती है. उस के पिता का देहांत काफी दिनों पहले हो चुका था. मौडलिंग के क्षेत्र में आने के बाद शशिप्रभा एंजल गुप्ता के नाम से जानी जाने लगी थी. एंजल गुप्ता कुछ दिनों तक तो दिल्ली में ही मौडलिंग करती रही, फिर मन में बौलीवुड के हसीन सपने ले कर मुंबई चली गई.

मुंबई जाने के लिए एंजल गुप्ता के मुंहबोले पिता राजीव गुप्ता ने उस की हर तरह से मदद की. मुंबई में एंजल ने जो फ्लैट किराए पर लिया था, उस का हर महीने का किराया 50 हजार रुपए था, जो राजीव ही देता था. मुंबई जा कर एंजल फिल्मों में काम पाने के लिए संघर्ष करने लगी. उस की मेहनत रंग लाई और उसे कुछ फिल्मों में काम मिल गया. इस के बाद वह और ऊंचाई पर पहुंचने के सपने देखने लगी.

एंजल के मुंहबोले पिता राजीव गुप्ता दिल्ली रोहिणी सैक्टर-3 में रहते थे. वह एक बिजनैसमैन हैं और दक्षिणी दिल्ली में उन के रेस्तरां और होटल हैं. वह एंजल गुप्ता को हर तरह से सपोर्ट करते थे.

आकर्षक कदकाठी वाला मंजीत पहली मुलाकात में ही एंजल का दीवाना हो गया था. पार्टी में मिलने के बाद से एंजल और मंजीत की फोन पर बातें होने लगीं. धीरेधीरे एंजल का झुकाव भी मंजीत की तरफ हो गया. समयसमय पर दोनों की मुलाकातें भी होने लगीं, जिस से दोनों और नजदीक आते गए.

धीरेधीरे दोनों के संबंध इस स्थिति तक पहुंच गए कि वह शादी करने की सोचने लगे थे. लेकिन इस में सब से बड़ी समस्या मंजीत की पत्नी सुनीता थी. अपनी ब्याहता के रहते हुए एंजल से शादी नहीं कर सकता था.

सुनीता को पता चली हकीकत

पति पर आंखें मूंद कर विश्वास करने वाली सुनीता इस बात से काफी दिनों तक तो अंजान रही. बाद में जब मंजीत ने उसे मानसिक रूप से परेशान करना शुरू किया तब भी वह कुछ नहीं समझ पाई. उस की समझ नहीं आया कि अचानक मंजीत में यह बदलाव कैसे आ गया. सुनीता ने कई बार मंजीत को फोन पर बात करते देखा. फोन पर हो रही बातचीत सुनने के बाद सुनीता समझ गई कि मंजीत का जरूर किसी लड़की से चक्कर चल रहा है.

अंतत: जैसेतैसे सुनीता यह पता लगाने में सफल हो गई कि मुंबई में रहने वाली एक मौडल से मंजीत के प्रेमिल संबंध हैं. सुनीता ने इस बारे में मंजीत से पूछा तो पहले तो वह इस बात को टालने की कोशिश करता रहा लेकिन फिर बोला, ‘‘अगर तुम्हारे मन में इस तरह का कोई शक हो गया है तो मुझ से तलाक ले लो.’’

‘‘नहीं, मैं न तो तलाक नहीं दूंगी और नहीं लूंगी, तुम्हें उस लड़की से बात भी बंद करनी होगी.’’

सुनीता के इतना कहते ही मंजीत ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. सुनीता समझ नहीं पा रही थी कि अपने घर को कैसे संभाले. विपरीत हालातों में मन को शांत रखने के लिए वह रोजमर्रा की डेली डायरी लिखती थी. तनाव की बातें वह डायरी में लिख देती थी. जब वह ज्यादा परेशान होती तो मायके में बात कर के अपना मन हलका कर लेती थी.

मायके वालों ने भी मंजीत को बहुत समझाया लेकिन वह एंजल गुप्ता के प्यार में अंधा हो चुका था इसलिए किसी के समझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ. नतीजा यह निकला कि मंजीत और उस के ससुराल वालों के बीच छत्तीस का आंकड़ा बन गया.

बताया जाता है कि एंजल मंजीत पर शादी करने का दबाव बना रही थी. इस बारे में उस ने अपने मुंहबोले पिता राजीव गुप्ता से बात की. राजीव ने उसे भरोसा दिया कि वह उस की शादी मंजीत से कराने में पूरी मदद करेगा.

मई, 2017 में सुनीता और एंजल के बीच फोन पर तीखी नोंकझोंक हुई, जिस में सुनीता ने एंजल को गुस्से में काफी कुछ कह दिया. बताया जाता है कि तब एंजल ने उसे अंजाम भुगतने की धमकी भी दी थी.

एंजल सुनीता द्वारा की गई इस बेइज्जती का बदला लेना चाहती थी, इसलिए उस ने बढ़ाचढ़ा कर यह बात मंजीत को बताई ताकि वह सुनीता पर भड़के. उस ने साफ कह दिया कि वह ऐसा अपमान बरदाश्त नहीं कर सकती. अगर मुझे चाहते हो तो या तो सुनीता को तलाक दो या फिर बेइज्जती का बदला लो.

इस बात को ले कर एंजल, राजीव और मंजीत ने एक मीटिंग की. बताया जाता है कि इस मीटिंग में राजीव ने सुनीता को ठिकाने लगाने में 10 लाख रुपए खर्च करने को कह दिया. मंजीत इस के लिए तैयार हो गया. क्योंकि सुनीता तलाक देने को राजी नहीं थी, उस के पास उसे ठिकाने लगाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था.

राजीव जानता था कि उस के ड्राइवर दीपक के बदमाशों से संबंध हैं, इसलिए उस ने दीपक से सुनीता की हत्या के बारे में बात की. दीपक 10 लाख रुपए में यह काम कराने को तैयार हो गया. राजीव ने बतौर एडवांस उसे ढाई लाख रुपए दे दिए. दीपक ने मेरठ के रहने वाले शहजाद सैफी उर्फ कालू, धर्मेंद्र और विशाल उर्फ जौनी से बात की.

शूटर पहुंच गए दिल्ली

योजना को अंजाम देने के लिए 25 अक्तूबर, 2018 को राजीव गुप्ता, दीपक, धर्मेंद्र, शहजाद और विशाल बवाना पहुंचे. लेकिन तब तक सुनीता स्कूल के लिए निकल चुकी थी. 27 अक्तूबर को करवाचौथ का त्यौहार था. एकतरफ मंजीत जिस पत्नी की हत्या के तानेबाने बुन रहा था, तो पत्नी इस सब से अनभिज्ञ पति की लंबी आयु की कामना के लिए करवाचौथ का व्रत रखे हुए थी.

किराए के जो बदमाश बाहर से दिल्ली आए हुए थे, वह खाली हाथ अपने घर नहीं लौटना चाहते थे. लिहाजा उन्होंने हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन के पास किराए का एक कमरा ले लिया. साथ ही सुनीता को स्कूल जाते वक्त उस की हत्या करने की योजना बना ली.

योजना के अनुसार, 29 अक्तूबर को अलसुबह राजीव गुप्ता अपनी डस्टर कार संख्या डीएल8सी जेड4306 से बदमाशों को हजरत निजामुद्दीन से बवाना ले गया. सुनीता किसी भी हालत में न बच पाए, इस के मद्देनजर दीपक और धर्मेंद्र वर्मी कंपोस्ट फार्म, दरियापुर के पास पोजीशन ले कर खड़े हो गए. जबकि शहजाद और विशाल गांव बवाना में राजीव गांधी स्टेडियम के पास बाइक ले कर खडे़ हो गए. उन के हाथों में .315 बोर के तमंचे थे.

सुबह 7 बजे के करीब सुनीता अपनी स्कूटी से जैसे ही स्कूल के लिए निकली तो उस के पति मंजीत ने इंतजार कर रहे बदमाशों को मिस्ड काल दी. यह उन के लिए एक इशारा था. इशारा पाते ही बदमाश सतर्क हो गए. तभी राजीव गुप्ता वहां से चला गया. उधर सुनीता घर से करीब 7 किलोमीटर दूर दरियापुर गांव के नजदीक पहुंची तो वहां घात लगाए बदमाशों ने सुनीता पर फायर कर दिया.

उस समय करीब साढ़े 7 बजे थे. गोलियां लगते ही सुनीता गिर गई. वह सड़क पर तड़प रही थी, तभी उधर से गुजर रहे लोगों ने उसे महर्षि वाल्मीकि अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. पता चला कि सुनीता के सीने पर 3 गोलियां मारी गई थीं.

मंजीत से पूछताछ के बाद उस के घर की तलाशी ली गई तो पुलिस को सुनीता की पर्सनल डायरी मिली, जिस में उस ने काफी कुछ लिखा था. मंजीत की निशानदेही पर पुलिस ने प्रेमिका एंजल गुप्ता उर्फ शशिप्रभा व उस के मुंहबोले पिता राजीव गुप्ता को भी गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने एंजल गुप्ता की निशानदेही पर मयूर विहार में रहने वाली उस की मौसी के घर से 2 मोबाइल फोन भी बरामद किए, जिन का इस्तेमाल वारदात में हुआ था. इन तीनों को गिरफ्तार कर पुलिस ने न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

इस के बाद दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने वारदात में शामिल रहे दीपक और शहजाद सैफी उर्फ कालू को गिरफ्तार कर लिया. इन दोनों ने भी पुलिस के सामने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. पुलिस ने इन दोनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक धर्मेंद्र और विशाल पुलिस की पकड़ में नहीं आए थे.

  कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शक के कफन में दफन हुआ प्यार : भाग 3

प्यार में दोनों हो गए दीवाने

पहली ही नजर में चंदना विवेक के दिल में घर कर गई थी. उस दिन के बाद से विवेक चंदना के करीब जाने के लिए बेताब रहने लगा. वैसे भी उस के लिए दीपचंद के घर आनेजाने की पूरी छूट थी. जब भी मौका मिलता, वह दीपचंद के घर चला जाता और घंटों चंदना के साथ बिताता.

चूंकि चंदना के पिता दीपचंद अध्यापक थे, इसलिए उन का दिन स्कूल में ही बीतता था. बच्चे स्कूल चले जाते थे. चंदना की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी इसलिए वह और उस की मां सुमन घर पर ही रहती थी. सुमन को विवेक के चंदना से मिलने पर कोई ऐतराज नहीं था. वह सोचती थी कि विवेक बहुत सीधासादा और नेकदिल युवक है. वह कोई ऐसा कदम नहीं उठाएगा, जिस से दोनों परिवारों की बदनामी हो.

विवेक जब भी चंदना के पास बैठता था, उसे दीवानगी भरी नजरों से निहारता था. चंदना को विवेक का ऐसा देखना अच्छा लगता था. उस के मन के भीतर एक अजीब सी गुदगुदी होती थी. धीरेधीरे चंदना भी विवेक को प्यार भरी नजरों से देखने लगी थी.

आंखों के रास्ते दोनों ने एकदूसरे के दिलों में अपना मुकाम बना लिया था. यह भी कह सकते हैं कि दोनों एकदूसरे को अपना दिल दे बैठे थे. जब दिलों की बातें हुईं तो मौका देख कर दोनों ने अपने प्यार का इजहार भी कर लिया. एक हफ्ते बाद विवेक अपने परिवार के साथ घर लौट गया.

विवेक अपने घर तो लौट आया, लेकिन उस का दिल, उस का चैन, उस का करार सब कुछ चंदना के पास रह गया था. चंदना के बगैर विवेक का मन नहीं लग रहा था. वह उस से मिलने के लिए तड़प रहा था. विवेक यही सोच रहा था कि चंदना से कैसे मिले, कैसे बातें करे. उधर चंदना का भी यही हाल था. विवेक के लिए वह तड़प रही थी. चंदना के पास सेलफोन भी नहीं था जो फोन कर के विवेक से बात कर लेती.

मोहब्बत की आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी. दोनों विरह की अग्नि में जल रहे थे. विवेक से जब चंदना की जुदाई बरदाश्त नहीं हुई तो वह मांबाप से झूठ बोल कर नानानानी से मिलने के बहाने बघांव चला आया. बघांव आते हुए रास्ते में उस ने चंदना को उपहार में देने के लिए एक मोबाइल फोन खरीदा. उस ने सोचा कि चंदना के पास सेलफोन होगा तो बात करने में आसानी रहेगी.

ननिहाल जाने के बहाने मिलता था प्रेमिका से

विवेक बघांव पहुंचा तो उसे देख कर नाना रामधनी खुश हुए. उन्हें क्या पता था कि उन का नाती उन से नहीं, अपनी प्रेमिका चंदना से मिलने आया है. नानानानी से मिलना तो एक बहाना था. नानानानी से मिलने के बाद विवेक चंदना से मिलने उस के घर गया.

घर में चंदना और उस की मां ही थीं. विवेक को देखते ही चंदना का चेहरा खिल उठा. वह उसे हसरत भरी नजरों से देखती रही. विवेक से वह कहना तो बहुत कुछ चाहती थी, लेकिन मां के डर की वजह से कुछ नहीं बोल पाई.

मुंह से भले ही न सही पर इशारोंइशारों में दोनों के बीच काफी बातें हुईं. वैसे भी जब दो प्रेमी दिल की गहराई से एकदूसरे को प्यार करते हों तो उन्हें अपनी बात कहने के लिए शब्दों की जरूरत नहीं होती.

नाश्ता वगैरह करने के बाद विवेक जब घर से निकलने लगा तो चंदना उसे विदा करने कमरे से बाहर आई. तभी उस ने झटके में मोबाइल फोन उस के हाथों में थमा दिया और बोला, ‘‘यह तुम्हारे लिए गिफ्ट है.’’ चंदना ने झट से फोन अपनी समीज के अंदर रख लिया ताकि कोई देख न सके. उस रात विवेक नाना के घर पर ही रुक गया. अगली सुबह वह अपने घर मऊनाथ भंजन लौट आया.

फोन मिल जाने से दोनों के बीच की दूरियां मिट गईं. भले ही वे एकदूसरे की सूरत देख नहीं पा रहे थे, लेकिन प्यार भरी मीठीमीठी बातें कर के अपने दिल को तसल्ली दे लेते थे. एक दिन चंदना की छोटी बहन वंदना ने उसे मोबाइल पर किसी से बात करते सुन लिया.

उस ने जब इस बारे में बहन से पूछा तो वह घबरा गई. उस ने वंदना को इस बारे में किसी से कुछ भी न बताने को कहा तो वह मान गई. वंदना ने वाकई किसी से कुछ नहीं बताया. हां, चंदना ने उसे यह नहीं बताया था कि वह किस से और क्यों बातें करती थी. धीरेधीरे दोनों का प्रेम जवां होता रहा.

वे अपने प्यार को ले कर भविष्य के सुनहरे सपने संजोने लगे. रेत के ढेर पर ख्वाबों का आशियाना बनाने लगे. इसी बीच इन प्रेमियों के साथ एक नई घटना घट गई. पता नहीं दोनों के प्यार को किस की नजर लग गई थी.

अचानक बदल गया चंदना का व्यवहार

विवेक ने महसूस किया कि चंदना अब उसे पहले जैसा प्यार नहीं कर रही है. पता नहीं क्यों वह उस से कटने लगी थी. पहले वह विवेक के फोन की घंटी बजते ही काल रिसीव कर लेती थी, पर अब लगातार फोन की घंटियां बजती रहती थीं. न तो चंदना काल रिसीव करती थी और न ही मिस्ड काल करती थी.

चंदना के इस व्यवहार पर विवेक को गुस्सा आता था. हद तो तब हो गई जब विवेक चंदना को काल करता तो वह अकसर दूसरी काल पर व्यस्त मिलती थी.

विवेक का शक पुख्ता हो गया था कि चंदना का किसी और के साथ संबंध बन चुका है. इसीलिए वह उस से कटीकटी सी रहने लगी है. इस बात को ले कर चंदना और विवेक के बीच विवाद हो गया. विवेक ने उसे बहुत भलाबुरा कहा. उस के बाद चंदना ने विवेक से बात करनी बंद कर दी.

बाद में विवेक ने किसी तरह चंदना को मना लिया और उस से माफी मांग ली. उस ने वादा किया कि अब दोबारा उस से ऐसी गलती नहीं होगी. चंदना से माफी मांग कर विवेक ने एक पैंतरा चला था. उस ने सोच लिया था कि अगर चंदना उस की नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होगी.

इसीलिए उस ने चंदना से माफी मांग कर उसे विश्वास में लिया ताकि कभी बुलाने पर वह उस की बात सुन ले. प्यार में अंधी चंदना को इस बात का तनिक भी भान नहीं था कि विवेक उस के पीठ पीछे क्या षडयंत्र रच रहा है.

विवेक ईर्ष्या की आग में जल रहा था. वह दिनरात इसी सोच में डूबा रहता था कि चंदना उस की नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होगी. आखिर विवेक ने उस की हत्या की योजना बना डाली. योजना बनाने के बाद विवेक बाजार जा कर एक फलदार चाकू खरीद लाया और उसे अपने बैग में छिपा दिया.

16 मार्च की सुबह विवेक मां से नानी के घर जाने को कह कर घर से निकला और बस स्टैंड जा पहुंचा. वहां से वह गाजीपुर जाने वाली एक सरकारी बस में बैठ गया. गाजीपुर पहुंचने के बाद उस ने चंदना को फोन कर के बताया कि वह मिलने आ रहा है. गांव के बाहर लल्लन यादव के खेत के पास पहुंचो, कुछ जरूरी बातें करनी हैं.

विवेक का फोन आने के बाद चंदना मां से खेतों पर जाने की बात कह कर विवेक के बताए स्थान पर जाने के लिए चल दी. चंदना को क्या पता था कि जो उस से मिलने आ रहा है, वह उस का वफादार प्रेमी नहीं बल्कि मौत है.

साढ़े 9 बजे के करीब चंदना लल्लन यादव के खेत पर पहुंच गई. वहां खेत के चारों ओर कोई नहीं था. तब तक विवेक भी वहां पहुंच गया. प्रेमिका को देख कर विवेक हौले से मुसकराया तो चंदना ने भी उसी अंदाज में मुसकरा कर जवाब दिया. फिर चंदना ने उस से बुलाने की वजह पूछी तो विवेक गुस्से से लाल हो गया और उसे भद्दीभद्दी गालियां देते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम्हारे लिए खुद को बरबाद कर दिया. तुम पर पानी की तरह पैसे बहाए. तुम ने बदले में मुझे क्या दिया बेवफाई. मेरे प्यार को ठुकरा कर दूसरों की बाहों में रंगरलियां मना रही हो. ऐसा मैं हरगिज होने नहीं दूंगा. अगर तुम मेरी नहीं हुई तो तुम्हें किसी और की भी होने नहीं दूंगा.’’

विवेक ने किया चाकू से वार

चंदना कुछ समझ पाती, इस से पहले ही विवेक ने बैग से फलदार चाकू निकाला और उस की गरदन पर जोरदार वार कर दिया. चंदना हवा में लहराती हुई जमीन पर जा गिरी. उस के बाद विवेक तब तक उस के पेट और गरदन पर वार करता रहा, जब तक उस के प्राणपखेरू नहीं उड़ गए. चंदना की निर्मम हत्या करने के बाद विवेक उस की लाश घसीटते हुए गेहूं के खेत में ले गया और लाश को ठिकाने लगा कर आराम से घर लौट आया.

विवेक ने जिस चालाकी और सफाई से काम किया था, उसे देख कर उसे लगा था कि पुलिस उस तक कभी नहीं पहुंच सकती. लेकिन पुलिस ने उस की सोच पर पानी फेर दिया. जिस शक की आग में वह जल रहा था, उसी शक की आग ने उसे खाक में मिला दिया.

प्यार का ये मतलब नहीं होता कि किसी की निर्मम तरीके से हत्या कर दे. विवेक अगर समझदारी से काम लेता तो चंदना भी इस दुनिया में सांस ले रही होती. लेकिन एक शक की चिंगारी ने सब कुछ तहसनहस कर दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शक के कफन में दफन हुआ प्यार : भाग 2

चंदना हत्याकांड की गुत्थी काफी उलझी हुई थी. जांच अधिकारी के लिए यह मामला काफी चुनौतीपूर्ण था. उधर चंदना की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई थी. रिपोर्ट में बताया गया कि उस के साथ दुष्कर्म नहीं हुआ था. उस की मौत का कारण अत्यधिक खून बहना बताया गया था.

थानाप्रभारी शमीम अली ने चंदना हत्याकांड का खुलासा करने के लिए कई मुखबिर लगा दिए थे. इसी बीच जांच के दौरान उन्हें पता चला कि चंदना अपने पास मोबाइल फोन रखती थी और सब से छिपछिपा कर किसी से अकसर बातें करती थी. यह बात वंदना के अलावा कोई नहीं जानता था.

वंदना काफी छोटी थी. थानाप्रभारी शमीम ने सोचा अगर उस से डराधमका कर पूछताछ की गई तो वह डर जाएगी और फिर शायद ही कुछ बता पाए. इसलिए उस से बड़े प्यार और मनोवैज्ञानिक तरीके से बात करनी जरूरी थी. क्या करना है, यह फैसला कर के वह दीपचंद के घर जा पहुंचे.

पुलिस के हत्थे लगा चंदना का मोबाइल फोन

उन्होंने वंदना के सिर पर बड़े प्यार से हाथ फेरते हुए पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘वंदना.’’ वंदना ने डरते हुए जवाब दिया.

‘‘किस क्लास में पढ़ती हो?’’

‘‘चौथी क्लास में.’’ उस ने उत्तर दिया.

‘‘क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारी दीदी अपने पास एक मोबाइल रखती थी? वह मोबाइल कहां है?’’

‘‘जी सर, मुझे पता है दीदी अपने पास एक मोबाइल फोन रखती थी. यह भी पता है कि वह उसे कहां छिपा कर रखती थी.’’ वंदना ने कांपते स्वर में उत्तर दिया.

‘‘तो बताओ वह मोबाइल कहां छिपा कर रखती थी?’’ थानाप्रभारी ने बडे़ प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा.

‘‘मैं अभी लाती हूं.’’ वंदना ने जवाब दिया. फिर वह भागती हुई कमरे में गई और बक्से से मोबाइल फोन निकाल कर ले आई. उस ने मोबाइल थानाप्रभारी के हाथों में दे दिया. यह देख कर दीपचंद और उस की पत्नी भौचक्के रह गए. उन्हें पता ही नहीं था कि उन की बेटी उन की नाक के नीचे क्या गुल खिला रही थी. घर वालों को पता ही नहीं था कि छोटी बेटी भी उस के साथ मिली हुई थी. मांबाप माथा पकड़ कर बैठ गए.

‘‘बेटा, क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारी बहन चंदना किस से बात करती थी?’’ जांच अधिकारी ने वंदना से अगला सवाल किया.

‘‘सर, मुझे उस का नाम तो नहीं पता लेकिन मैं इतना जानती हूं कि दीदी छिपछिप कर किसी से बात करती थी. मैं ने उसे कई बार बातें करते हुए देखा था.’’

‘‘ठीक है बेटा, तुम जा सकती हो. इस के आगे का पता मैं खुद लगा लूंगा.’’ उन्होंने कहा और चंदना का मोबाइल फोन ले कर चले गए.

थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी के पास हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए मोबाइल ही आखिरी सहारा था. उन्होंने चंदना के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि घटना वाले दिन यानी 16 मार्च की सुबह चंदना के फोन पर साढ़े 9 बजे के करीब आखिरी काल आई थी.

मोबाइल से पहुंची कातिल तक पुलिस

उस के बाद उस का मोबाइल स्विच्ड औफ हो गया था. जिस नंबर से चंदना को आखिरी काल आई थी, उस नंबर के बारे में पता लगाया गया तो पता चला कि वह नंबर मऊनाथ भंजन जिले के मुहम्मदाबाद गोहना थाना क्षेत्र के गांव उमनपुर निवासी विवेक कुमार चौहान का था. उस नंबर पर चंदना की काफी लंबीलंबी बातें होती थीं. पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि मामला प्रेम प्रसंग का था. इसी प्रेम प्रसंग के चक्कर में उस की हत्या हुई थी.

जांच अधिकारी शमीम अली ने दीपचंद को थाने बुलवा कर विवेक कुमार चौहान के बारे में पूछताछ की तो दीपचंद विवेक का नाम सुन कर चौंक गया. उस ने बताया कि विवेक उस के पड़ोस में रहने वाले रामधनी का नाती है. वह अकसर अपने नानानानी से मिलने ननिहाल आता रहता था. वह जब भी यहां आता था, मेरे घर पर भी सब से मिल कर जरूर जाता था. वह बहुत सीधासादा लड़का है.

काल डिटेल्स के आधार पर विवेक शक के दायरे में आ चुका था. घटना वाले दिन से उस का भी फोन बंद था. लेकिन घटना वाले दिन उस के सेलफोन की लोकेशन घटनास्थल पर ही थी. इसी वजह से विवेक शक के दायरे में आ गया.

19 मार्च, 2018 को थानाप्रभारी शमीम अली गाजीपुर से पुलिस फोर्स ले कर मऊनाथ भंजन पहुंचे. मुहम्मदाबाद गोहना थाने की पुलिस की मदद से उन्होंने उमनपुर स्थित विवेक के घर पर दबिश दी. संयोग से विवेक घर पर ही था. पुलिस उसे हिरासत में ले कर गाजीपुर ले आई. फिर पुलिस ने उसे बहरियाबाद थाने ले जा कर उस से कड़ाई से पूछताछ की.

सख्ती से घबरा कर उस ने सब कुछ बता दिया. अपना जुर्म कबूलते हुए उस ने पुलिस को बताया कि चंदना उस की प्रेमिका थी और उसी ने चाकू से गोद कर उस की हत्या की थी. उस ने यह भी बताया कि उस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू छिपा दिया था.

विवेक ने सिलसिलेवार पूरी कहानी बता दी. थानाप्रभारी ने विवेक की निशानदेही पर लल्लन के खेत से चाकू बरामद कर लिया. आरोपी विवेक से पूछताछ के बाद कहानी कुछ इस तरह पता चली.

चंदना विवेक से लड़ा बैठा था नैना

21 वर्षीय चंदना खूबसूरत तो थी ही, ऊपर से चंचल भी थी. चंदना के पड़ोस में रामधनी चौहान का घर था. रामधनी भले ही दीपचंद की जाति के नहीं थे, लेकिन रामधनी के घर से दीपचंद के परिवार जैसे प्रगाढ़ संबंध थे. रामधनी के घर जब भी कोई मेहमान आता था तो दीपचंद उसे बुला कर अपने घर ले आता और जम कर स्वागत करता. दीपचंद के मेहमाननवाजी से मेहमानों का दिल खुश रहता था.

रामधनी की बेटी का एक बेटा था जिस का नाम विवेक कुमार चौहान था. 21-22 वर्षीय विवेक कभीकभार नानानानी के घर बघांव आया करता था. वह मऊनाथ भंजन जिले के उमनपुर गांव में अपने मांबाप के साथ रहता था. उस के पिता का नाम था विजय बहादुर चौहान. वह सरकारी नौकरी में थे. उसी से 5 सदस्यों वाले परिवार का भरणपोषण होता था. विवेक ने स्नातक तक पढ़ाई कर के नौकरी करने का मन बना लिया था.

3 साल पहले यानी सन 2015 में बात तब की है जब विवेक इंटरमीडिएट में पढ़ रहा था. उन्हीं दिनों उस के ननिहाल बघांव में शादी थी. परिवार के साथ विवेक भी बघांव आया था. वहां उसे मामा के घर सप्ताह भर रहना था.

घर वालों के साथ चंदना भी शादी में शामिल हुई. चंदना खूबसूरत तो थी ही, जब वह सफेद रंग के कपड़े पहन लेती थी तो और भी सुंदर लगती थी. उस दिन भी चंदना ने सफेद रंग की पोशाक पहनी थी. इस पोशाक में वह सब से अलग और बहुत खूबसूरत लग रही थी. अचानक उस पर विवेक की नजर पड़ गई तो वह उसे कुछ देर अपलक निहारता रह गया. थोड़ी देर बाद चंदना उस की नजरों के सामने से ओझल हो गई तो उस की आंखें उसे इधरउधर ढूंढने लगीं. लेकिन वह कहीं नहीं दिखी.

देश में पढ़े लिखे भिखारी

भीख मांगते लोगों के बारे में अगर आप की भी यही धारणा है कि वे अशिक्षित और लाचार होने की वजह से मांग कर अपनी जिंदगी गुजरबसर करते हैं, तो गलत है. एक रिपोर्ट के अनुसार देश में बड़ी संख्या में डिगरीडिप्लोमाधारी भिखारी हैं.

देश में सड़कों पर भीख मांगने वाले लगभग 78 हजार भिखारी शिक्षित हैं और उन में से कुछ के पास तो प्रोफैशनल डिगरियां हैं. यह चौंकाने वाली बात सरकारी आंकड़ों में सामने आई है.

2011 की जनगणना रिपोर्ट में ‘कोई रोजगार न करने वाले और उन के शैक्षिक स्तर’ का आंकड़ा हाल ही में जारी किया गया है. इस के अनुसार, देश में कुल 3.72 लाख भिखारी हैं. इन में से लगभग 79 हजार यानी 21 फीसदी साक्षर हैं.

हाईस्कूल या उस से अधिक पढ़ेलिखे भिखारियों की संख्या भी कम नहीं है. यही नहीं, इन में से करीब 30 हजार ऐसे हैं जिन के पास कोई न कोई टैक्निकल या प्रोफैशनल कोर्स का डिप्लोमा है. इन में से कुछ के पास डिगरी है और कुछ भिखारी पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं.

भिखारियों की बड़ी संख्या में मौजूदगी के चलते भारत के शहर बदनाम हैं. लेकिन इस रिपोर्ट के मुताबिक शहरों में सिर्फ 1 लाख 35 हजार लोग ही भीख मांग कर अपना गुजारा करते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में भीख मांग कर जिंदगी गुजरबसर करने वालों की संख्या लगभग 2 लाख 37 हजार है. भारत की विशाल आबादी को देखते हुए भिखारियों की यह संख्या कम ही कही जाएगी. एक अन्य सरकारी आंकड़े के अनुसार, भीख मांगने वालों में 40 हजार से ज्यादा बच्चे शामिल हैं, वैसे देश के कई राज्यों में भीख मांगने पर प्रतिबंध है.

क्यों मांगते हैं भीख

आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के रहने वाले 27 साल के अयप्पा एक शिक्षित भिखारी हैं. परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उन्हें हाईस्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी. काम की तलाश में मुंबई आने पर काम तो मिला, लेकिन वहां शोषण ज्यादा हुआ. बंधुआ मजदूर जैसी स्थिति से छुटकारा पा कर वे भीख मांग कर काम चलाते हैं. अपनी कमाई के बारे में कुछ भी बताने से इनकार करने वाले अयप्पा अपने घर वालों की आर्थिक मदद भी करते हैं.

जिस देश में दान की एक बड़ी गौरवशाली व अद्वितीय परंपरा रही हो, उस देश में अगर लाखों लोग सुबहसुबह सड़कों पर भीख मांगने के लिए निकल पड़ें तो आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि परिदृश्य कैसा होगा. एक ऐसा दृश्य जिसे न तो किसी भी देश से आने वाला सैलानी देखना पसंद करेगा और न ही कोई भारतवासी.

भीख का धंधा

भिखारी दिन में कमाता है और रात  मस्ती कर सारे पैसे उड़ा देता है. बिना मेहनत किए ही जब मौजमस्ती के लिए आसानी से पैसा मिल रहा है तो कामचोर लोगों में इस के प्रति रुझान भी बढ़ रहा है. यही वजह है कि भीख मांगना आज एक प्रकार का धंधा बन गया है.

धंधा बनने से इस में कुछ गिरोह भी सक्रिय हो गए हैं, जो इस को संगठितरूप दे कर लोगों से भीख मंगवाने का कार्य कर रहे हैं. इस गिरोह में अपंग लोगों और बच्चों का भी खूब इस्तेमाल किया जाता है. गिरोह में शामिल लोग बच्चे का अपहरण कर उन से भीख मंगवाते हैं. यदि बच्चे भीख नहीं मांगते हैं तो उन्हें मारापीटा जाता है. बच्चों का अपहरण कर उन्हें विकलांग बना कर उन से भीख मंगवाई जाती है. दरअसल, यह एक बिना पूंजी का धंधा है, जिस में बिना कोई पूंजी लगाए, पैसा कमाया जाता है.

इन तमाम बातों के अलावा भिक्षावृत्ति भारत के माथे पर ऐसा कलंक है जो हमारे आर्थिक तरक्की के दावों पर सवाल खड़ा करता है. भीख मांगना सम्मानजनक नहीं, बल्कि अनैतिक कार्य और सामाजिक अपराध है. जब किसी गैंग या माफिया द्वारा जबरन बच्चों, महिलाओं या अन्य किसी से भी भीख मंगवाई जाती है तब यह संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आ जाता है.

लिहाजा, अब समय आ गया है कि भीख मांगने को जिस प्रकार गिरोह बना कर संगठित रूप से अंजाम दिया जा रहा है उस को देखते हुए अब इन भिखारियों पर सख्ती की जाए. निकम्मे और कामचोर बने बैठे इन भिखारियों को किसी न किसी काम में लगाए बिना देश का कल्याण संभव नहीं है. सामािजक चेतना को बढ़ावा देने के साथसाथ बेरोजगारी, गरीबी आदि के उन्मूलन के अलावा भीख के निवारण के लिए सरकार को भिखारियों के गिरोहों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए.

अकेली औरत का भरोसा : इंदरजीत कौर से क्या गलती हुई

रविवार का दिन था. मुद्दत के बाद सभी भाईबहन अमृतसर में रहने वाली अपनी बड़ी बहन इंदरजीत कौर के घर जमा हुए थे. इंदरजीत कौर के 6 भाईबहन थे. सब से बड़ी जगजीत कौर थीं, जिन की मृत्यु काफी अरसा पहले ही हो चुकी थी. दूसरे नंबर पर स्वयं 68 वर्षीय इंदरजीत कौर थीं. भाईबहनों में सब से छोटा था कंवलजीत सिंह, जो अपने बीवीबच्चों के साथ दिल्ली में रहता था.

इंदरजीत के घर पर इन सभी भाईबहनों का जमावड़ा कंवलजीत सिंह के दिल्ली से अमृतसर आने की खुशी में हुआ था. चूंकि परिवार के सभी लोग काफी दिनों बाद मिले थे, इसलिए मिल कर बहुत खुश थे.

इस भागमभाग की जिंदगी में कहां किसी को किसी से मिलने की फुरसत मिलती है. सभी भाईबहन अधेड़ आयु के थे और इस उम्र में भी वे अपने बचपन की खुशियों से यूं वंचित नहीं रहना चाहते थे. सो सब ने मिल कर खूब हंसीमजाक कर बचपन की यादें ताजा कीं.

अगले महीने आने वाले रक्षाबंधन की बात चल रही थी कि यह त्यौहार कहां और किस के घर मनाया जाए. इस मुद्दे पर सभी ने अपनीअपनी राय पेश की. अंत में तय हुआ था कि रक्षा बंधन पर सभी बहनभाई कंवलजीत के घर दिल्ली जाएंगे और इसी बहाने दिल्ली भी घूम लेंगे. यह बात 20 जुलाई, 2018 की है. इस के अगले दिन 21 जुलाई को सभी लोग अपनेअपने घर चले गए.

करीब 50 वर्ष पूर्व इंदरजीत की शादी जोगिंदर के साथ हुई थी. इस दंपति की कोई संतान नहीं थी. उन के पति जोगिंदर सिंह की मृत्यु को भी काफी दिन गुजर चुके थे. इंदरजीत कौर बचपन से ही नेत्रहीन थीं. पर अपनी कार्यकुशलता और बुद्धि के बल पर उन्होंने अपने आप को कभी किसी का मोहताज नहीं बनने दिया था.

अपनी पढ़ाई के साथ उन्होंने संगीत में विशारद हासिल की और शिक्षा पूरी कर के बाबा दीप सिंह कन्या विद्यालय अमृतसर में बतौर संगीत अध्यापिका के रूप में नौकरी कर ली थी.

संतानहीन होने के कारण वह बच्चों से अधिक प्रेम और स्नेह करती थीं. नेत्रहीन होने के बावजूद वह अपनी प्रतिभा का हुनर बच्चों को सिखाने के कारण स्कूल में काफी प्रसिद्ध थीं. स्कूल का हर बच्चा इंद्रजीत कौर के नाम से वकिफ था और उन की दिल से इज्जत करता था.

साल 2012 में इंदरजीत कौर स्कूल से सेवानिवृत हो गई थीं और इन दिनों घर पर ही रह कर अपने पुराने विद्यार्थियों और गरीब बच्चों को मुफ्त में संगीत की शिक्षा दिया करती थीं. अन्य दिनों की तरह 24 जुलाई, 2018 को भी वह रात का खाना खाने के बाद अपने कमरे में जा कर सो गई थीं.

डेयरी पर काम करने वाला नौकर अनिल रोजाना की तरह 25 जुलाई की सुबह भी इंदरजीत कौर के यहां दूध देने आया तो उस ने दरवाजा खटखटाया.

काफी देर तक दरवाजा खटखटाने के बाद भी दरवाजा नहीं खुला तो वह हैरान हुआ. क्योंकि पिछले कई सालों से वह इंदरजीत कौर के घर दूध देने आता था. आंधीतूफान हो या बरसात, इंदरजीत कौर दरवाजा खटखटाते ही हाथ में दूध का बरतन लिए दरवाजे पर आ जाती थीं.

बीमार होने के बावजूद भी वह दूध लेने दरवाजे तक पहुंच जाया करती थीं. फिर आज ऐसा क्या हुआ जो अभी तक दरवाजा नहीं खुला.

मन ही मन सोचता हुआ अनिल दरवाजे का कुंडा खोल कर अंदर चला गया. उस ने अंदर जा कर देखा तो इंदरजीत कौर बिस्तर पर चित अवस्था में गिरी पड़ी थीं. उस ने नजदीक जा कर उन्हें आवाज दी.

कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह घबरा कर साथ वाली गली में रह रहे इंदरजीत कौर के भाई गुलजार सिंह के घर चला गया. उस ने गुलजार सिंह को बताया कि मांजी बेहोश पड़ी हुई हैं. इतना सुनते ही गुलजार सिंह और उस की पत्नी पिंकी दौड़ते हुए इंदरजीत कौर के घर पहुंचे.

कमरे में पहुंच कर उन्होंने देखा कि अलमारी टूटी हुई थी और इंदरजीत कौर के मुंह पर तकिया रखा हुआ था. इंदरजीत कौर के भारी वजन के टौप्स जो कि उन के कानों में थे, उन्हें बेरहमी से खींच कर निकाला गया था. हाथों में 2 सोने की भारी चूडि़यां भी नहीं थीं. उन की बाजुओं पर जगहजगह खरोंचों के निशान थे. अलमारी में से एक हार, अंगुठियां और कैश गायब था. उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि लूट के इरादे से उन की बहन की हत्या की गई है.

उन्होंने पहले उन्हें झकझोर कर उठाने की कोशिश की. जब कोई हलचल नहीं हुई तो नब्ज टटोली. पता चला कि उन का शरीर एकदम ठंडा पड़ चुका था. लग रहा था जैसे उन की मृत्यु हुए काफी समय बीत गया हो. घबरा कर उन्होंने जल्दी से पुलिस का 100 नंबर मिलाया पर 15 मिनट तक रुक रुक कर घंटी बजती रही, किसी ने फोन नहीं उठाया.

आखिर उन्होंने यह सोच कर 108 नंबर डायल किया कि शायद उन की सांसें बाकी हों. मगर 108 नंबर पर भी घंटी बजती रही, किसी ने फोन नहीं उठाया. इस बीच किसी ने मोहल्ले के ही एक डाक्टर को बुला लिया. डाक्टर ने जांच कर के इंदरजीत कौर की मौत हो जाने की पुष्टि कर दी.

किसी तरह पुलिस को सूचना दी तो करीब साढ़े 10 बजे थाना डिविजन-बी के अंतर्गत आने वाली पुलिस चौकी शहीद ऊधमसिंह नगर के इंचार्ज भूपिंदर सिंह उन के घर आए. उन्होंने पूछताछ के साथ ही घटना की सूचना थाना डिविजन-बी के प्रभारी सुखविंदर सिंह को भी दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सुखवीर सिंह एएसआई भूपिंदर सिंह, दलजीत सिंह, लखविंदर सिंह, हवलदार गुरमेज सिंह, पवन कुमार, गुलजार मसीह और क्राइम इन्वैस्टीगेशन टीम के साथ वहां पहुंच गए. इंदरजीत कौर का मकान अमृतसर शहर के भीड़भाड़ वाले इलाके शहीद ऊधम सिंह नगर की गली नंबर 5 में था. बंद गली होने के कारण उस में बाहर के लोगों का आनाजाना ना के बराबर था. कोई भूलाभटका मुसाफिर ही गलती से उस तरफ आ जाए तो बात अलग थी.

प्रथम तफ्तीश में थानाप्रभारी सुखबीर सिंह को पता चला की इंद्रजीत कौर उस घर में कई वर्षों से अकेली रहती थीं. उन की हत्या लूट के इरादे से की गई थी और यह किसी भेदी या परिचित आदमी का ही काम लग रहा था, जिस ने पहचाने जाने के डर से इंदरजीत कौर की हत्या की थी.

इंदरजीत कौर साल 2012 में सरकारी स्कूल से बतौर अध्यापक रिटायर हुई थीं. उन्हें हर महीने पेंशन के 40 हजार रुपए मिलते थे. पति की भी कुछ समय पहले मौत हो चुकी थी और संतान नहीं होने के कारण वह घर में अकेली रहती थीं.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि वारदात को अंजाम देने वालों के लिए वह साफ्ट टारगेट थीं. बदमाशों ने रात को घर में घुस कर पहले उन की हत्या की होगी और बाद में वे लोग घर में रखी नकदी और लाखों रुपए के सोने के गहने ले कर फरार हो गए होंगे.

घटना के बारे में पता चलते ही सीपी (अमृतसर) सुधांशु शेखर श्रीवास्तव, डीसीपी जगमोहन सिंह, एडीजीपी जगजीत सिंह वालिया, डीजीपी (इनवैस्टीगेशन) और कई थानों के थानाप्रभारी घटनास्थल पर पहुंच गए थे.

एक्सपर्ट्स ने मौकाएवारदात से फिंगरप्रिंट उठाए. काफी खोजबीन करने पर भी घटनास्थल से कोई ऐसा सुराग नहीं मिला, जिस से हत्यारों तक पहुंचा जा सके. बहरहाल मृतका के भाई गुलजार सिंह अरोड़ा के बयानों पर हत्या और लूटपाट का मुकदमा भादंवि की धारा 306 और 120 बी के तहत दर्ज कर लिया गया. थानाप्रभारी सुखबीर सिंह ने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दी और आगे की तफ्तीश में जुट गए.

जांच के दौरान उन्होंने क्षेत्र के कई संदिग्ध युवकों को पूछताछ के लिए उठाया. जेल में और जेल के बाहर के उन सभी बदमाशों से पूछताछ की जो इस तरह की वारदातों को अंजाम देने में सिद्धहस्त थे.

फिर भी इंदरजीत की हत्या का कहीं कोई सुराग नहीं मिला. इस से निराश हो कर थानाप्रभारी सुखबीर सिंह ने अपनी जांचपड़ताल का दायरा मृतका के घर के आसपास और उन के जानने वाले लोगों तक फैलाया.

हर उस आदमीऔरत पर कड़ी नजर रखी जाने लगी, जिस का मृतका के घर आनाजाना था. खोजबीन करने पर एक ऐसा नाम उभर कर सामने आया, जिस का न केवल मृतका के घर काफी आनाजाना था बल्कि वह उन के रुपएपैसों का भी पूरा हिसाब रखता था. उस का नाम था दविंदर सिंह.

दविंदर सिंह, सुलतानविंड, अमृतसर के मेन बाजार में रहता था और मृतका की सहेली सुदेश का पति था, जो स्कूल में पढ़ाया करती थी.

दविंदर सिंह पेशे से वकील था और सहानुभूति के नाते उस का मृतका के घर में काफी आनाजाना था. वह उन के बैंकों का काम भी किया करता था. दरअसल इंदरजीत कौर के भाईभाभी ने बताया था कि इंदरजीत कौर को रिटायरमेंट पर लगभग 30 लाख रुपए मिले थे.

इस के अलावा उन्हें हर महीने 40 हजार रुपए पेंशन भी मिलती थी. उन का खर्च ज्यादा नहीं था. इसलिए उन्होंने अपना लाखों रुपया ब्याज पर दे दिया था. जिस का ब्याज हर महीने दविंदर सिंह ही लाया करता था.

किनकिन लोेगों को यह पैसा ब्याज पर दिया गया था और किनकिन लोगों से पैसा और ब्याज लेना था, इस की सारी जानकारी दविंदर सिंह को ही थी. मृतका का काफी पैसा कमेटियों में भी लगा हुआ था.

पैसा बढ़ाने के लिए इंदरजीत कौर ने मोटीमोटी कमेटियां भी डाल रखी थीं. यह सारा लेखाजोखा भी दविंदर के पास था. ऐसे में आशंका जताई गई कि कहीं ब्याज पर दिया पैसा तो हत्या का कारण नहीं बना?

बहरहाल दविंदर को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया गया. उस से बड़ी गहराई से पूछताछ की गई. पर वह इस मामले में बेगुनाह निकला. उस के पास इंदरजीत कौर के पैसे का पाईपाई का पूरा हिसाब था.

दविंदर से पूछताछ के बाद पुलिस एक बार फिर से अंधेरी गलियों में खो गई. इस बीच पुलिस ऐसे सुनारों पर भी नजर रखे हुए थी जो चोरीचकारी का माल खरीदते थे. पुलिस को आशा थी कि लुटेरे लूटा हुआ माल बेचने के लिए सुनार के पास जरूर जाएंगे.

थानाप्रभारी सुखबीर सिंह का अगला निशाना थी सुखी. इंदरजीत कौर ने अपनी देखभाल, खाना बनाने, कपड़े धोने, सफाई करने आदि कामों के लिए सुखी नाम की महिला को अपने पास रख रखा था. जो 2 हजार रुपए महीना ले कर उन के घर के काम किया करती थी. दविंदर के बाद एक सुखी ही थी जो इंदरजीत कौर के घर के चप्पेचप्पे से परिचित थी.

थानाप्रभारी ने सुखी के बारे पता लगवाया तो पता चला कि सुखी का असली नाम सुरजीत कौर है और वह बलबीर सिंह की पत्नी है. सुखी तरनतारन रोड पर रायल होटल के पास रहती थी. सुखी को थाने बुला कर महिला पुलिस अधिकारी के समक्ष पूछताछ की गई तो वह भी निर्दोष निकली. इस के बाद पुलिस ने अपनी तफ्तीश का रुख मृतका के रिश्तेदारों और खास परिचितों की ओर मोड़ दिया.

मृतका इंदरजीत कौर के पास में ही रहने वाला भाई पहले केबल का काम करता था पर बीमारी के चलते अब वह काफी अरसे से घर पर ही था. अन्य रिश्तेदार भी दूरदूर रहने वाले थे और अच्छी हैसियत में थे. थानाप्रभारी की समझ में यह नहीं आ रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है कि इंदरजीत के घर किसी ने किसी को आतेजाते हुए नहीं देखा हो.

इस वारदात को अंजाम देने के लिए बाहर से कोई नहीं आया होगा. जो कोई भी था, वह गलीमोहल्ले का ही होगा. भले ही वारदात को अंजाम देने के लिए उस ने आदमी बाहर से बुलाए हों पर साजिशकर्ता गली का ही कोई होगा. इसी बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने एक बार नए सिरे से पूरे घटनाक्रम को समझना शुरू किया और मोहल्ले के हर घर का नजर रखवाई.

इंदरजीत कौर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ चुकी थी. रिपोर्ट के अनुसार उन की मौत दम घुटने के कारण हुई थी. मृतका के अंतिम संस्कार में बहुत भीड़ थी. इतना ही नहीं एक दिन पहले मृतका को अंतिम विदाई देने के लिए क्षेत्र के सभी स्कूल बंद किए गए थे.

एक ऐसी बात थी जो थानाप्रभारी सुखबीर सिंह को खटक गई थी. मृतका की गली में रहने वाला बबला नामक आदमी उन की अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हुआ था. देखने को तो वह एक साधारण सी बात थी, पर इंसपेक्टर सुखबीर को इस के पीछे का मकसद दिखाई देने लगा.

इंदरजीत कौर के घर से कुछ ही दूरी पर किराए पर रहने वाला बबला सफेदी करने का काम करता था. उस का मृतका के घर काफी आनाजाना था. भला ऐसा कैसे हो सकता था कि जहां अंतिम यात्रा में सैकड़ों लोग आए हों. वहीं मृतका का करीबी बबला आया था.

थानाप्रभारी ने बबला के बारे में और जानकारी एकत्र की तो पता चला कि वह वारदात वाले दिन से ही फरार है और जिस मकान से वह फरार हुआ था पहले वह मकान उस की मां ने किराए पर लिया था और वह मृतका इंदरजीत कौर के घर नौकरानी का काम किया करती थी. इस कारण बबला का मृतका के घर आनाजाना था.

बबला का असली नाम रणजीत सिंह था. वह अपनी पत्नी सुमन के साथ किराए के मकान में रहता था. यह दंपति गांव चितौड़गढ़, फतेहगढ़ चूडियां, गुरदासपुर का रहने वाला था और शहीद ऊधमसिंह नगर में किराए के मकान में रह रहा था. घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी और उस के सिर पर हजारों रुपए का कर्जा भी था.

थानाप्रभारी ने तुरंत बबला के घर पर रेड कर दी. पर वह पहले ही फरार हो चुका था. जब उस की पत्नी सुमन से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि उसे मालूम नहीं वह कहां गए हैं. वह घर के खर्च के लिए पैसे भी नहीं दे कर गए. उस ने बताया कि उस के पास मात्र 50 रुपए हैं.

पुलिस ने जब बबला के घर में तलाशी ली तो घर से 6 मोबाइल फोन, एक लैपटौप व 500-500 रुपए के 15 हजार रुपए बरामद किए गए. जबकि उस की पत्नी सुमन ने कहा था कि मेरे पास सिर्फ 50 रुपए हैं. थानाप्रभारी ने पूछताछ के लिए सुमन को हिरासत में ले लिया और थाने ले आई.

पूछताछ के दौरान सुमन ने इंदरजीत कौर की हत्या और उस के घर हुई लूटपाट के अपराध को स्वीकार करते हुए बताया कि उन्हें पता था कि इंदरजीत कौर अकेली हैं और उन के घर लाखों रुपए का सोना और नकदी रखी है. बबला का काम पिछले काफी महीनों से नहीं चल रहा था. उस के सिर पर देनदारी थी और लेने वाले दिनरात तगादा कर के उसे धमका रहे थे. इसलिए उन्होंने लूट की योजना बनाई.

रात के समय जब पूरा मोहल्ला सो गया तो बबला इंदजीत कौर के घर में दाखिल हुआ. वह यह बात अच्छी तरह से जानता था कि जाग जाने पर इंदरजीत कौर उसे पहचान लेंगी, क्योंकि इंदरजीत की सूंघने और समझने की शक्ति बहुत तेज थी. वह किसी चीज को सूंघ कर उस का नाम बता देती थीं.

अलमारी तोड़ते समय शोर होने से इंदरजीत का जाग जाना लाजमी था. इसलिए वह घर से ही उन की हत्या की योजना बना कर गया था. घर में दाखिल होते ही सब से पहले उस ने सोई हुई इंदरजीत कौर के मुंह पर तकिया रख कर तब तक दबाता रहा जब तक कि उन के प्राण नहीं निकल गए थे.

इस के बाद उस ने अलमारी खोल कर उस में रखे 24 हजार रुपए निकाल लिए. फिर उस ने इंदरजीत के पहने हुए गहने उतारे. जब बबला वारदात को अंजाम दे रहा था तो उस की पत्नी सुमन घर की छत पर खड़ी हो कर निगरानी कर रही थी.

वह लगातार अपने पति के संपर्क में थी. लूटे हुए 24 हजार रुपयों में से 7 हजार रुपए बबला ने राणा नाम के व्यक्ति को उधार के वापस लौटाए थे. बाकी के 15 हजार रुपए पुलिस ने बरामद कर लिए.

पुलिस काररवाई पूरी करने के बाद और एक दिन के रिमांड की समाप्ति पर सुमन को 29 जुलाई को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया गया. बबला कथा लिखे जाने तक पुलिस की पकड़ से दूर था पुलिस बड़ी तेजी से उस की तलाश में जुटी थी.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

कलंकित रिश्ते : मामी और भांजे के बीच बने अवैध संबंध

उत्तर प्रदेश के जिला औरैया का एक कस्बा है अजीतमल. यहीं का रहने वाला धर्मेंद्र वन विभाग में चौकीदार की नौकरी करता था. उस की शादी मैनपुरी की रहने वाली सुनीता से हुई थी. दोनों ही खुश थे. उन की घरगृहस्थी बड़े आराम से चल रही थी. इसी दौरान सुनीता 2 बच्चों की मां बन गई. इस के बाद तो घर की खुशियों में और इजाफा हो गया. लेकिन ये खुशियां ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकीं.

सुनीता बीमार हो गई और बीमारी के चलते एक दिन उस की मौत हो गई. पत्नी की मौत के बाद धर्मेंद्र जब नौकरी पर जाता, घर पर बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं रहता था. इस परेशानी को देखते हुए कुछ समय बाद वह अपने दोनों बच्चों को उन की ननिहाल में छोड़ आया और खुद रहने के लिए अपने मामा मुकेश के यहां चला गया.

मुकेश जिला मैनपुरी के गांव फैजपुर गढि़या में रहता था. वह एक फैक्ट्री में काम करता था. उस की शादी रीना से हुई थी, जिस से एक बेटा भी था. चूंकि धर्मेंद्र मुकेश का सगा भांजा था, इसलिए मुकेश ने उसे अपने घर के सदस्य की तरह रखा.

पत्नी की मौत के बाद धर्मेंद्र एकदम खोयाखोया सा रहता था. मामा के यहां रह कर वह एकाकी जीवन काट रहा था. धीरेधीरे माया ने उस की पीड़ा को समझा और वह उस का मन लगाने की कोशिश करने लगा.

धीरेधीरे वह घुलमिल कर रहने लगा तो उस की बोरियत दूर हो गई. साथ ही वह पत्नी की मौत का गम भी भूल गया. मामाभांजे दोनों अपनेअपने काम से लौट कर आते तो साथ मिल कर इधरउधर की खूब बातें करते थे.

दोनों की आपस में खूब बनती थी. धर्मेंद्र अपनी तनख्वाह से घर खर्च के कुछ पैसे अपनी मामी को दे देता था, जिस से घर का खर्च ठीक से चलने लगा. इसी बीच रीना एक और बेटे की मां बन गई, जिस का नाम प्रियांशु रखा गया.

28 साल की मामी रीना से धर्मेंद्र की खूब पटती थी. मामीभांजे के बीच हंसीठिठोली भी होती थी. धर्मेंद्र को मामी की सुंदरता और अल्हड़पन बहुत भाता था. कभीकभी वह उसे एकटक प्यारभरी नजरों से देखा करता था. अपनी ओर टकटकी लगाए देखते समय जब कभी रीना की नजरें उस से टकरा जातीं तो दोनों मुसकरा देते थे. धर्मेंद्र रीना के पति मुकेश से ज्यादा सुंदर और अच्छी कदकाठी का था. इस से रीना का झुकाव धर्मेंद्र के प्रति बढ़ता गया.

धर्मेंद्र रीना को दिल ही दिल चाहने लगा.  चूंकि वे मामीभांजा थे, इसलिए दोनों के साथसाथ रहने पर मुकेश को कोई शक नहीं होता था. मुकेश सीधेसरल स्वभाव का था, पत्नी और भांजे के बीच क्या खिचड़ी पक रही है, इस की मुकेश को कोई जानकारी नहीं थी. समय का चक्र घूमता रहा, धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के करीब आते गए.

एक दिन धर्मेंद्र ने जब मजाकमजाक में मामी को बांहों में भर लिया तो रीना ने विरोध नहीं किया, बल्कि उस ने दोनों हाथों से धर्मेंद्र को जकड़ लिया. धर्मेंद्र ने इस मूक आमंत्रण का फायदा उठाते हुए उस पर चुंबनों की झड़ी लगा दी. इस के बाद अपनी मर्यादाओं को लांघते हुए दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

धर्मेंद्र चूंकि वहीं रहता था, इसलिए कुछ दिनों तक तो दोनों का खेल इसी तरह से चलता रहा. मुकेश को पता तक नहीं चला कि उस के पीछे घर में क्या हो रहा है. एक दिन मुकेश अचानक घर आया तो उस ने दोनों को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया. लेकिन मौके की नजाकत को भांपते हुए रीना और धर्मेंद्र ने उस से माफी मांग ली.

मुकेश ने रहम करते हुए दोनों से कुछ नहीं कहा और उन्हें माफ कर दिया. इस के कुछ दिनों तक तो रीना और धर्मेंद्र ठीक रहे, लेकिन मौका मिलने पर वे अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे. मामा के सीधेपन की वजह से धर्मेंद्र की हिम्मत बढ़ गई थी. अब धर्मेंद्र अपनी मामी रीना से शादी करने के ख्वाब देखने लगा.

एक दिन उस ने अपने मन की बात रीना से कही. चूंकि रीना भी उसे प्यार करती थी, इसलिए 2 बच्चों की मां होने के बावजूद वह भांजे से शादी करने के लिए तैयार हो गई. किसी तरह शादी वाली बात मुकेश को पता चली तो वह परेशान हो गया.

उस ने इस का विरोध किया. लेकिन जब रीना नहीं मानी तो उस ने रीना की पिटाई कर दी. रीना के सिर पर तो इश्क का जुनून सवार था, ऐसे में वह किसी की बात सुनने को तैयार नहीं थी. लेकिन मुकेश के लिए यह बड़ी बदनामी वाली बात थी.

थकहार कर मुकेश ने गांव में पंचायत बैठाई. रीना ने पंचायत में भी स्पष्ट रूप से कह दिया कि वह पति मुकेश को छोड़ सकती है लेकिन धर्मेंद्र को नहीं छोड़ेगी. वह उस से शादी जरूर करेगी. रीना की जिद के आगे मुकेश व उस के घर वालों को झुकना पड़ा.

घर वालों की इस रजामंदी के बाद पंचायत में तय हुआ कि रीना मुकेश और धर्मेंद्र दोनों की पत्नी के रूप में रहेगी. इस के बाद रीना और धर्मेंद्र ने कोर्टमैरिज कर ली. शादी करने के बाद भी रीना मुकेश के घर में ही रहती रही. यह बात लगभग 7 साल पहले की है.

इस के बाद रीना अपने पहले पति मुकेश और भांजे से दूसरा पति बने धर्मेंद्र के साथ दोनों की पत्नी बन कर रहने लगी. समय धीरेधीरे बीतने लगा. रीना दोनों पतियों के दिलों पर राज करती थी. वह चाहती थी कि उन दोनों से वह ज्यादा कमाई कराए. क्योंकि नौकरी से तो बस बंधीबधाई तनख्वाह मिलती थी, जिस से रीना संतुष्ट नहीं थी.

एक दिन धर्मेंद्र, मुकेश व रीना ने बैठ कर तय किया कि क्यों न यहां के बजाय शिकोहाबाद जा कर कोई दूसरा धंधा शुरू किया जाए. शिकोहाबाद में कबाड़ का व्यवसाय काफी बड़े पैमाने पर होता है, इसलिए उन्होंने वहां जा कर कबाड़ का काम करने का फैसला लिया. करीब ढाई साल पहले मुकेश और धर्मेंद्र गांव से जिला फिरोजाबाद के शहर शिकोहाबाद चले गए. उन्होंने लक्ष्मीनगर मोहल्ले में प्रमोद कुमार का मकान किराए पर ले लिया.

फिर वे पत्नी रीना व बच्चों को भी शिकोहाबाद ले आए. यहां रह कर मुकेश और धर्मेंद्र मिल कर कबाड़ का कारोबार करने लगे. इसी दौरान रीना एक और बेटे की मां बन गई. धर्मेंद्र भले ही रीना का पति बन गया था, लेकिन वह अपने बच्चों से उसे भैया ही कहलवाती थी.

रीना दोनों पतियों के साथ सामंजस्य बना कर रह रही थी. दोनों ही उस से खुश थे. कहते हैं, समय बहुत बलवान होता है, उस के आगे किसी की नहीं चलती.

इस परिवार में भी यही हुआ. जब दोनों का काम अच्छा चलने लगा, आमदनी बढ़ी तो धर्मेंद्र शराब पीने लगा. रीना इस का विरोध करती तो धर्मेंद्र उसे डांट देता. कभीकभी वह उस पर हाथ भी उठा देता था.

रीना अब उस से डरीडरी सी रहने लगी. शराब की लत जब बढ़ गई तो धर्मेंद्र ने काम पर जाना भी बंद कर दिया. वह दिन भर घर पर रह कर शराब पीता रहता. लड़झगड़ कर वह रीना से पैसे ले लेता था. जब रीना पैसे नहीं देती तो वह घर में रखे पैसे चुरा लेता था. एक दिन तो वह रीना की सोने की झुमकी और चांदी की पायल तक चुरा कर ले गया. इस पर रीना और मुकेश ने उसे घर से निकाल दिया.

2 महीने धर्मेंद्र इधरउधर भटकता रहा. बाद में वह रीना के पास ही लौट आया. उस ने मुकेश और रीना से शराब न पीने तथा ढंग से चलने का वादा किया. इस पर रीना ने उस पर दया दिखाते हुए उसे फिर से घर में रख लिया.

मकान मालिक प्रमोद कुमार और वहां रहने वाले अन्य किराएदारों ने रीना से धर्मेंद्र को फिर से साथ रखने को मना किया, क्योंकि वह आए दिन घर में झगड़ता रहता था. इस पर रीना ने कहा कि वह अकेला कहां धक्के खाएगा.

थोड़े दिन सब कुछ ठीक रहा, लेकिन धर्मेंद्र को शराब की जो लत लग गई थी, उस के चलते वह फिर से शराब पीने लगा. रीना ने धर्मेंद्र को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उस ने अपनी आदतों में कोई सुधार नहीं किया. इस से घर में आए दिन लड़ाई होने लगी.

10 अगस्त, 2018 की रात करीब साढ़े 8 बजे की बात है. मुकेश के कमरे से अचानक शोरशराबे की आवाज आने लगी. बच्चे चिल्ला रहे थे, ‘मम्मी मर गईं, मम्मी मर गईं.’

शोर सुन कर प्रमोद के मकान के नीचे के हिस्से में रह रहे मकान मालिक प्रमोद कुमार व उन के परिवार के लोगों को लगा कि शायद खाना बनाते समय कमरे में आग वगैरह लग गई है. इसलिए वे पानी की बाल्टी ले कर ऊपर पहुंचे.

ऊपर पहुंच कर उन्होंने जो नजारा देखा, उसे देख कर आंखें फटी की फटी रह गईं. रीना कमरे की देहरी पर मरी पड़ी थी, उस के सिर व चेहरे से खून बह कर कमरे में फैल गया. पता चला कि रीना के दूसरे पति धर्मेंद्र ने ही रीना की हत्या की थी.

हत्या करने के बाद जब धर्मेंद्र भागने को था, तभी अन्य किराएदारों ने उसे पकड़ लिया था. वह उसे वहीं दबोचे खड़े रहे. प्रमोद ने इस की सूचना पुलिस को दे दी.

थानाप्रभारी विजय कुमार गौतम, सीओ संजय रेड्डी मय पुलिस टीम के कुछ ही देर में वहां पहुंच गए. लोगों ने पकड़े गए हत्यारोपी धर्मेंद्र को पुलिस के हवाले कर दिया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

मृतका के बड़े बेटे सनी ने बताया कि हम लोग अंदर टीवी देख रहे थे. मम्मी ने पापा से खाना खाने के लिए कहा. इतने में भैया (धर्मेंद्र) ने अंदर ले जा कर कुल्हाड़ी से मम्मी को मार डाला. उस ने बताया कि दोपहरी में भैया ने कहा था कि लाओ कुल्हाड़ी पर धार लगा लें. लकडि़यां काट कर लाएंगे.

पुलिस ने जब धर्मेंद्र से पूछताछ की तो पता चला कि घटना के समय रीना कमरे के बाहर चूल्हे पर रोटी बना रही थी और उस के तीनों बच्चे खाना खा कर कमरे में टीवी देख रहे थे. कमरे में ही मुकेश चारपाई पर लेटा हुआ था.

रात को अचानक धर्मेंद्र नशे में सीढि़यां चढ़ कर ऊपर आया. रीना धर्मेंद्र से कुछ नहीं बोली, उस ने अपने बेटे बेटे सनी को आवाज देते हुए कहा, ‘‘पापा से कह दे, खाना खा लें.’’

रीना द्वारा धर्मेंद्र से खाना खाने के लिए न कहने से धर्मेंद्र बौखला गया. उस के तनबदन में आग लग गई. उस ने रीना के साथ गालीगलौज करते हुए कहा कि हम से खाना खाने के लिए नहीं पूछा. अभी खबर लेता हूं तेरी. कह कर वह गुस्से में कमरे में घुसा जहां बच्चों के साथ मुकेश मौजूद था.

उस ने कमरे में रखी कुल्हाड़ी उठाई और चूल्हे पर रोटी बना रही रीना के बाल पकड़ कर उसे कमरे की देहरी पर ले जा कर लिटा दिया. फिर उस के सिर व चेहरे पर कई प्रहार कर उस की नृशंस हत्या कर दी. कमरे में चारों ओर खून फैल गया. अपनी आंखों के सामने मां को मारते देख बच्चे चिल्लाए, ‘‘मम्मी मर गई, मम्मी मर गई.’’

शोर सुन कर अन्य किराएदार वहां आ गए. धर्मेंद्र के हाथ में खून सनी कुल्हाड़ी देख कर वे सारा माजरा समझ गए. किसी तरह किराएदारों ने धर्मेंद्र को दबोच लिया, जिसे बाद में उन्होंने पुलिस के हवाले कर दिया.

पुलिस ने मुकेश की तहरीर पर धर्मेंद्र के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर के अगले दिन उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

अपनी भावनाओं पर अंकुश न लगा पाने वाली रीना रिश्तों की मर्यादा को लांघ गई थी. वह धर्मेंद्र के प्यार में इस कदर डूबी कि उसे अपने पति, बच्चों व समाज तक की परवाह नहीं रही. उस ने अपने भांजे से अवैध संबंध बनाने के बाद उस से कोर्टमैरिज तक कर ली. इस की कीमत उसे अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी.

   —कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित

2 सहेलियों का साझा प्रेमी : ज्योति ने कैसी साजिश रची

‘‘देखो या तो तुम मेरी बात को समझ नहीं पा रहे हो या फिर जानबूझ कर अनजान बनने की कोशिश कर रहे हो. तुम्हें तो पता ही है कि इस उम्र में भी छोटीछोटी बातों को ले कर बीजी मुझ से झगड़ा करती हैं. बातबात पर टोकना तो जैसे उन की आदत सी हो गई है. अब तुम ही बताओ कि मैं क्या कोई दूध पीती बच्ची हूं जो हर समय मुझ से टीकाटिप्पणी की जाती रहे. आखिर बीजी मेरे साथ सौतेला व्यवहार क्यों करती हैं.

‘‘हमारी शादी को लगभग 20-22 साल हो चुके हैं. 3 बच्चों की मां हूं मैं. बड़ा बेटा शादी के लायक हो चुका है. इन सब के बावजूद मुझे ऐसा लगता है कि जैसे मैं इस घर की बहू नहीं मात्र एक नौकरानी हूं. यहां तक कि मेरे सारे गहने भी उन्होंने अलमारी में बंद कर रखे हैं.

‘‘कहीं आनाजाना हो तो पहले उन की मिन्नतें करो या फिर बिना गहनों के ही विधवाओं की तरह जाओ. मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता. आखिर बरदाश्त करने की भी कोई सीमा होती है.’’ ज्योति ने पति मंजीत से कहा.

पत्नी की बात सुन कर कुछ समय के लिए मंजीत गंभीर हो गया था पर वह ज्योति को कोई ठोस जवाब नहीं दे सका था. वह भी अच्छी तरह जानता था कि ज्योति जो कह रही है वह सही तो है पर वह अपनी मां सुरजीत कौर के स्वभाव से अच्छी तरह वाकिफ था.

वह पुराने विचारों की शक्की महिला थीं. बहू ज्योति को वह अपने हिसाब से चलाना चाहती थीं. पर ज्योति की कुछ बातें उन्हें पसंद नहीं थीं. इसलिए ज्योति भी सास को पसंद नहीं करती थी. मंजीत अपनी मां के सामने जुबान नहीं खोल पाता था. या इस तरह कहें कि वह इस मामले को ले कर घर में क्लेश नहीं करना चाहता था. इसीलिए ज्योति उस से जब भी मां की शिकायत करती तो वह हर बार उस की बातों को टाल जाता था.

सब कुछ समझते हुए उस दिन भी वह ज्योति की बात को टालते हुए बोला, ‘‘ज्योति देखो, अब साढ़े 8 बज गए हैं. मैं ड्यूटी के लिए लेट हो रहा हूं. तुम्हारे इस मसले पर मैं शाम को बीजी से बात कर लूंगा. तब तक तुम सब्र करो.’’ ज्योति को आश्वासन दे कर मंजीत सिंह अपनी ड्यूटी पर चला गया. यह बात 29 मई, 2018 की है.

मंजीत सिंह लुधियाना के उपनगर टिब्बा रोड की कंपनी बाग कालोनी में रहता था. उस के पिता की कई साल पहले मौत हो चुकी थी. परिवार में 75 वर्षीय मां सुरजीत कौर के अलावा पत्नी ज्योति और 3 बच्चे थे जिन में बड़ा बेटा गुरप्रीत सिंह 19 साल का हो चुका था.

मंजीत सिंह लुधियाना के औद्योगिक नगर, फोकल पौइंट फेस-4 स्थित एक साइकिल कंपनी में बतौर ड्राइवर की नौकरी करता था. वहां उसे जो तनख्वाह मिलती उस से आसानी से घर का गुजारा चल रहा था. दोनों बेटियों की पढ़ाई चल रही थी और बेटा गुरप्रीत एक कंपनी में नौकरी करता था.

29 मई की सुबह साढ़े 8 बजे मंजीत के औफिस जाने के कुछ देर बाद गुरप्रीत भी अपने काम पर चला गया और 9 बजे तक दोनों बेटियां सिमरन और खुशी भी अपने स्कूल चली गई थीं.

सब के चले जाने के बाद ज्योति घर के कामों में व्यस्त हो गई. उस समय सुरजीत कौर अपने कमरे में लेटी हुई थी. घर का काम खत्म करने के बाद ज्योति पड़ोस में रहने वाली अपनी सहेली बरखा के घर चली गई थी. वह सास को बता कर गई थी और सहेली के यहां जाना उस का रोज का नियम था.

दोपहर के लगभग डेढ़ बजे मोहल्ले वालों ने मंजीत सिंह के घर से ज्योति के चीखने और जोरजोर से रोने की आवाजें सुनीं. ज्योति के चीखने की आवाज सुन कर आसपास के लोग इकट्ठे हो गए. लोग जब आए तो उन्होंने देखा कि सुरजीत कौर बुरी तरह से घायल थीं. उन के सिर से खून निकल रहा था. वह हौलेहौले कराह भी रही थीं.

पड़ोसियों ने इस बात की सूचना सुरजीत कौर के बेटे मंजीत सिंह को फोन द्वारा दी और नजदीक के थाना टिब्बा रोड में भी इस वारदात की इत्तला दे दी.

फिर वह सुरजीत कौर को सिविल अस्पताल ले कर पहुंचे. उन की गंभीर हालत को देखते हुए डाक्टरों ने उन्हें चंडीगढ़ स्थित पीजीआई अस्पताल रेफर कर दिया. लेकिन चंडीगढ़ पहुंचने से पहले ही रास्ते में उन की मौत हो गई.

सूचना मिलने के बाद थाना टिब्बा के थानाप्रभारी दिलीप बेदी पुलिस पार्टी के साथ मौके पर पहुंच गए. घटनास्थल पर एक कांस्टेबल को छोड़ कर वह पीजीआई चंडीगढ़ पहुंच गए.

वहां जब पता चला कि घर की मालकिन सुरजीत कौर की मौत हो गई है तो उन्होंने इस की सूचना एसीपी (पूर्वी) पवनजीत सिंह को दे दी. थानाप्रभारी दिलीप बेदी की सूचना पा कर एसीपी भी अस्पताल पहुंच गए.

उन्होंने वहां मौजूद मृतका के बेटे मंजीत सिंह से बात की. इस के बाद दोनों पुलिस अधिकारी मंजीत को ले कर उस के घर पहुंचे. मौके पर एसीपी ने उसी समय क्राइम इन्वैस्टीगेशन टीम को भी बुला लिया.

उन्होंने घर का निरीक्षण किया तो घर का सामान इधरउधर बिखरा पड़ा था. अलमारी खुली हुई थी और उस में रखे जेवर और नकदी गायब थी. यह सब देख कर लग रहा था कि सुरजीत कौर की हत्या लूट के लिए ही की गई थी. यह भी साफ पता चल रहा था कि इस वारदात को अंजाम देने वाला जो भी व्यक्ति रहा होगा वह इस परिवार से परिचित होगा. क्योंकि घर में जबरदस्ती घुसने का कहीं कोई प्रमाण नहीं मिला.

देख कर ऐसा लग रहा था जैसे हत्यारों के लिए पहले से ही दरवाजा खोल कर रखा गया था या उस के आने पर खोला गया था और यह काम घर का ही कोई सदस्य कर सकता है. बिस्तर पर और फर्श पर खून भी फैला हुआ था.

पूछताछ के दौरान मंजीत सिंह ने पुलिस को वही सब बताया था जो उस की पत्नी से बात हुई थी. मंजीत के बेटे गुरप्रीत ने बताया कि रोज की तरह वह उस दिन सुबह पौने 9 बजे काम पर जाने के लिए घर से निकल गया था. दोनों बेटियों ने भी बताया था कि वह समय से स्कूल चली गई थीं.

थानाप्रभारी ने जब इन सब बातों की तस्दीक की तो वह सही पाई गई. परिवार के सदस्यों में अब केवल ज्योति बची थी. ज्योति के बारे में मोहल्ले से जो रिपोर्ट मिली, वह अच्छी नहीं थी.

इस मामले में वह संदिग्ध लग रही थी. लेडी हेडकांस्टेबल सुरजीत कौर पूछताछ के लिए ज्योति को थाने बुला कर ले गई. उस से पूछा, ‘‘जिस समय यह घटना घटी उस समय तुम कहां थी?’’

‘‘घर का काम निपटा कर मैं पूर्वाह्न लगभग 11 बजे पड़ोस में रहने वाली अपनी सहेली बरखा के घर गई थी, मैं रोज ऐसा ही करती थी. कामकाज से निबटने के बाद मैं रोजाना ही बरखा के घर चली जाया करती थी और वहां से दोपहर करीब 1 बजे लौटती थी. उस दिन भी बीजी को दवा देने के बाद, उन्हें बता कर मैं बरखा के घर चली गई थी. जिस समय मैं बरखा के घर गई उस समय बीजी अपने कमरे में सो रही थीं.’’ ज्योति ने बताया.

‘‘वारदात वाले दिन क्या हुआ था, अच्छी तरह सोच कर विस्तार से बताओ.’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, रोज की तरह उस दिन भी मैं घर का काम निपटा कर बरखा के घर चली गई थी और जब वापस दोपहर करीब एक बजे मैं ने लौट कर देखा तो बीजी खून से लथपथ अपने बिस्तर पर पड़ी थीं. घर का सामान इधरउधर बिखरा पड़ा था. यह सब देख कर मैं घबरा गई थी. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं. मैं ने शोर मचाना शुरू कर दिया जिसे सुन कर पड़ोसी भागे चले आए थे.’’ वह बोली.

‘‘जब आप बरखा के घर गई थीं, तब क्या बाहर का दरवाजा बंद कर के गई थीं?’’

‘‘जी नहीं, दरवाजा अंदर से बीजी ने बंद किया था,’’ ज्योति ने कहा.

ज्योति की इस बात पर पुलिस का शक गहरा गया. दरअसल शुरू से ही ज्योति पर संदेह था. ज्योति के बारे में पड़ोसियों ने जो बताया था वह भी कुछ ठीक नहीं था. पड़ोसियों के अनुसार ज्योति की अपनी सास सुरजीत कौर से बिलकुल नहीं बनती थी.

अकसर सासबहू के बीच झगड़ा होता रहता था. ज्योति का चरित्र भी ठीक नहीं था. पति के काम पर और बच्चों के स्कूल चले जाने के बाद वह अपने प्रेमी से मिलने चली जाती थी. सास सुरजीत कौर उसे इन सब बातों के लिए टोका करती थी.

‘‘मैं यह पूछता हूं कि सुरजीत कौर के साथ लुटेरों ने इतनी मारपीट की, उन्हें घायल किया. वह भी चीखीचिल्लाई होंगी. तब आप ने उन की आवाज कैसे नहीं सुनी, जबकि आप की आवाज सुन कर पड़ोसी दौड़े आए थे. सुरजीत कौर की आवाज किसी ने कैसे नहीं सुनी.’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, इस बारे में मैं क्या कह सकती हूं.’’ वह गंभीर हो कर बोली.

‘‘चलिए छोडि़ए इस बात को. आप ने कहा था कि बरखा के घर जाने से पहले आप ने बीजी को दवा दी थी और वह अपने कमरे में सो रही थीं.’’

‘‘जी साहब.’’

‘‘तो फिर अभी आप ने बताया कि दरवाजा बीजी ने अंदर से बंद किया था. जब दवा पीने के बाद वह अपने बिस्तर पर सो रही थीं तो सोते हुए उठ कर दरवाजा अंदर से कैसे बंद कर सकती थीं.’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

थानाप्रभारी के इस प्रश्न पर ज्योति बगलें झांकने लगी. उसे भी लगने लगा था कि वह अपने ही झूठे जवाबों के बीच उलझ कर रह गई है. फिर भी उस ने अपने झूठ पर परदा डालने की असफल कोशिश की. पर वह कामयाब नहीं हो पा रही थी.

एक पड़ोसी ने साफ बताया था कि ज्योति घर से जाते समय मुख्य दरवाजे पर ताला लगा कर जाती थी पर उस दिन उस ने ऐसा नहीं किया था. इन सब बातों से यह तो स्पष्ट हो गया था कि सास को मरवाने में ज्योति का हाथ है. वह मुख्यद्वार इसलिए खुला छोड़ कर गई थी कि हत्यारे आसानी से घर में प्रवेश कर सकें. इस के बाद पुलिस ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उसी ने सुपारी दे कर यह कांड करवाया है. इस हत्याकांड में शामिल लोगों के नाम भी उस ने पुलिस को बता दिए.

ज्योति के बयानों पर थानाप्रभारी दिलीप बेदी ने उसी दिन ज्योति की सहेली बरखा, बरखा के आशिक राजवीर कश्यप उर्फ राजू को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया.

पकड़े गए तीनों आरोपियों को 30 मई, 2018 को अदालत में पेश कर 24 घंटे के पुलिस रिमांड पर ले लिया था. रिमांड के दौरान इस लूट और हत्याकांड की जो कहानी प्रकाश में आई वह कुछ इस प्रकार से थी.

घरेलू विवाद के चलते और सास सुरजीत कौर की रोकाटोकी से परेशान हो कर ज्योति ने अपने और अपनी सहेली बरखा के संयुक्त प्रेमी राजवीर कश्यप उर्फ राजू से सास की हत्या कराई थी. राजू बाबा थानसिंह चौक के पास स्थित अंबेडकर नगर में रहता था. योजना के अनुसार राजू ने मामले को लूट का रूप देने की कोशिश की थी.

शुरुआती जांच में यह कहानी सामने आई कि ज्योति की अपनी सास से पटती नहीं थी. उस की सास उस के चरित्र पर संदेह करती थी जिसे ले कर घरेलू विवाद रहता था. ज्योति पति से शिकायत करती तो पति भी अपनी मां का साथ देता था. और तो और पति मनजीत ने पैसा व ज्योति के जेवर अपनी मां को सौंप रखे थे.

यह बात भी ज्योति को बेहद खटक रही थी. घर पर पूरी तरह से कब्जा करने और सास से छुटकारा पाने के लिए उस ने यह बात अपनी सहेली बरखा को बताई, बरखा ने यह बात अपने आशिक राजवीर उर्फ राजू को बताई. जिस के बाद तीनों ने मिल कर 75 वर्षीया सुरजीत कौर को रास्ते से हटाने के लिए बड़े ही सुनियोजित ढंग से साजिश तैयार की.

साजिश के तहत राजू ने सुरजीत की हत्या करने के बाद घर में लूटपाट की. ज्योति ने लूटे गए पैसों में से 50 हजार रुपए राजू को देने का लालच दिया, जबकि लूटपाट करने के बाद जो गहने हासिल होने थे वह ज्योति ने अपने पास रखने की शर्त रखी थी.

29 मई, 2018 को मंजीत और उस का बेटा नौकरी पर चले गए. दोनों बेटियां भी स्कूल चली गईं. इस के बाद दोपहर करीब एक और डेढ़ बजे के बीच ज्योति बरखा और राजू की आपस में फोन पर बात हुई.

योजना के मुताबिक ज्योति अपनी सास को अकेली घर में छोड़ कर बरखा के पास चली गई और जाते वक्त वह दरवाजा खुला छोड़ गई थी. इस बीच वारदात को अंजाम देने के लिए राजू अपनी एक्टिवा से वहां पहुंच गया.

घटना के वक्त सुरजीत कौर अपने कमरे में बैड पर लेटी हुई थीं. वह राजू को पहचानती थीं, क्योंकि राजू की शादीशुदा बहन उन के घर के नजदीक ही रहती थी. राजू अकसर अपनी बहन के पास आताजाता था.

घर में दाखिल होने के बाद राजू ने योजना के मुताबिक सुरजीत कौर से कुछ पैसों की मांग की, जब उन्होंने पैसे देने से इनकार किया तो राजू ने बड़ी क्रूरता से लोहे की छैनी से उन के सिर पर 5-6 वार किए.

छैनी का एक वार तो सुरजीत कौर के सिर के आरपास हो गया और वह लहूलुहान हो गईं. वह जोरजोर से चिल्लाने लगीं. पकडे़ जाने के डर से राजू घबरा गया और खून से लथपथ छैनी मौके पर छोड़ कर वहां से भाग खड़ा हुआ.

जल्दबाजी में उस का मोबाइल फोन भी वहीं रह गया था. वारदात को अंजाम देने के बाद उस ने बाहर से किसी के फोन से ज्योति को फोन कर के काम हो जाने की सूचना दे दी.

इस के कुछ देर बाद ज्योति घर आ गई. सब से पहले उस ने खून से सना सुरजीत का मोबाइल पानी से धोया और खुद को ड्रामा रचने के लिए तैयार करते हुए लूटपाट का शोर मचा दिया. शोर सुन कर पड़ोसी जब वहां पहुंचे तो सुरजीत कौर बैड पर पड़ी थीं और उन के सिर पर चोटों के गहरे घाव थे. तब उन की सांसें चल रही थीं.

लोगों ने बताया कि इस हालत में भी सुरजीत कौर राजू और अपनी बहू ज्योति का नाम ले रही थीं. उस समय किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया था. बरखा और ज्योति ने राजू को सुपारी देने के साथ यह वादा भी किया था कि अगर वह पकड़ा गया तो उस की जमानत का इंतजाम भी वह खुद कर देंगी.

पूछताछ में राजू ने बताया कि ज्योति के पड़ोस में उस की बहन रहती है. उस के पास वह अकसर आताजाता था और इस दौरान उस की पहचान ज्योति से हुई. उस ने उस की पहचान अपनी सहेली बरखा से करवाई. बरखा के राजू के साथ करीब 2 साल से अवैध संबंध  चल रहे थे. इसी बीच ज्योति के साथ भी उस के संबंध बन गए और तीनों साथ मिल कर ऐश करने लगे.

बरखा की किडनी में पथरी थी. बरखा का पति उस की पिटाई करता था और उस की पथरी का औपरेशन भी नहीं करा रहा था. इसलिए वह अपने पति से तलाक ले कर राजू से शादी करना चाहती थी. राजू ने उस से वादा किया था कि वह उस का पथरी का इलाज करवा कर उस से शादी कर लेगा.

इस के लिए उन्हें पैसों की सख्त जरूरत थी. पर पैसों का कहीं से इंतजाम नहीं हो रहा था. इसलिए जब ज्योति ने अपनी सास के बारे में उन्हें बताया तो बरखा और राजू इस काम को करने के लिए तैयार हो गए. वैसे यह सौदा ढाई लाख रुपए में हुआ था.

ज्योति ने भी अपने बयान में बताया था कि वह अपनी सास से बहुत दुखी थी. पति भी उस की नहीं सुनता था और मां की तरफदारी करता था. मां के कहने पर उस से मारपीट भी करता था.

ज्योति चाहती थी कि किसी तरह से उस का सास से छुटकारा मिल जाए. इस के चलते उस ने राजू को सास का मर्डर करने के बदले में उसे 50 हजार रुपए और अपने हिस्से की कुछ ज्वैलरी देने की बात कही थी. इस पर तीनों ने मिल कर मर्डर करने की प्लानिंग की और सुरजीत कौर की हत्या कर दी थी.

पूछताछ के बाद देर रात पुलिस ने आरोपी की निशानदेही पर वारदात के दौरान इस्तेमाल की गई छैनी भी बरामद कर ली.

पुलिस काररवाई मुकम्मल होने के बाद रिमांड अवधि समाप्त होने पर तीनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.?

— पुलिस सूत्रों पर आधारित

परदे में खुदकुशी का राज : क्या था एसपी की आत्महत्या का राज

5 सितंबर की बात है. कानपुर के एसपी (पूर्वी) सुरेंद्र कुमार दास अपनी पत्नी डा. रवीना सिंह के
साथ सरकारी आवास में थे. पतिपत्नी के बीच काफी दिन से तनाव चल रहा था. एसपी सुरेंद्र दास तनाव में थे. वह अपनी परेशानी किसी से बता भी नहीं पा रहे थे. उन के दिल की बात किसी को पता नहीं थी. डा. रवीना को भी हालत की गंभीरता का अंदाजा नहीं था. सुबह का समय था. सुरेंद्र दास ने पत्नी को आवाज दी.

वह आई तो एसपी सुरेंद्र दास ने बिना हावभाव बदले रवीना के हाथ में एक कागज का टुकड़ा देते हुए बोले, ‘‘मैं ने जहर खा लिया है. मैं ने इस के लिए तुम्हें या किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया है.’’पति की बात सुन कर रवीना अवाक रह गई. उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे? वह बोली, ‘‘आप नहीं होंगे तो इस लेटर का हम क्या करेंगे?’’

रवीना ने लेटर को बिना पढ़े, बिना देखे मरोड़ कर कमरे में एक तरफ फेंक दिया. बिना वक्त गंवाए रवीना ने पुलिस आवास पर तैनात पुलिसकर्मियों को एसपी साहब की तबीयत खराब होने की जानकारी दे दी.

पुलिसकर्मियों की मदद से वह पति को प्राइवेट अस्पताल में ले गई. 5 बज कर 20 मिनट पर वहां से उन्हें उर्सला अस्पताल और 6 बज कर 20 मिनट पर रीजेंसी अस्पताल ले जाया गया.
पुलिस अफसर के जहर खाने की बात तेजी से फैलने लगी. कानपुर से ले कर राजधानी लखनऊ के पुलिस मुख्यालय तक अफसरों में हड़कंप मच गया. सुरेंद्र कुमार दास के बेहतर इलाज के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने लगे.

कानपुर के रीजेंसी अस्पताल के डाक्टरों ने एम्स दिल्ली और मुंबई के बड़े अस्पतालों के डाक्टरों से संपर्क साधा ताकि एसपी साहब को बेहतर इलाज दिया जा सके. एसपी सुरेंद्र कुमार दास के शरीर के अंदरूनी अंगों पर जहरीले पदार्थ का असर पड़ने लगा था, जिस से शरीर के दूसरे अंगों के फेल होने का खतरा बढ़ता जा रहा था.

स्वास्थ्य में सुधार और बेहतर इलाज के लिए मुंबई से हवाई जहाज से इलाज में सहायक एक्मो नाम का एक उपकरण मंगाया गया. यह उपकरण लखनऊ और कानपुर में उपलब्ध नहीं था. एक्मो के द्वारा शरीर के अंगों को काम करने के लिए मदद दी जाती है.

एसपी सुरेंद्र कुमार दास 2014 बैच के आईपीएस अधिकारी थे. मूलरूप से वह बलिया जिले के रहने वाले थे. उन के पिता लखनऊ के रायबरेली रोड स्थित पीजीआई कालोनी में रहते थे. कानपुर शहर में वह एसपी (पूर्वी) के पद पर तैनात थे. उन की पत्नी रवीना डाक्टर थी. दोनों की शादी 9 अप्रैल, 2017 को हुई थी.

यह शादी अखबार के वैवाहिक विज्ञापन के माध्यम से हुई थी. रवीना के पिता भी सरकारी डाक्टर हैं. शादी के बाद सुरेंद्र दास अंबेडकर नगर में बतौर सीओ तैनात थे. उस समय रवीना भी उन के साथ रहती थी. रवीना वहां अंबेडकर नगर मैडिकल कालेज में बतौर डाक्टर संविदा पर तैनात थी.
रवीना ने जुलाई माह में ही नौकरी जौइन की थी और एक महीने बाद अगस्त में ही नौकरी छोड़ दी. सुरेंद्र दास जब कानपुर में एसपी (पूर्वी) के रूप में तैनात किए गए तो रवीना उन के साथ रहने लगी थी.

एसपी सुरेंद्र कुमार दास के जहर खाने की सूचना उन के कल्ली, लखनऊ स्थित घर पहुंची तो सुरेंद्र की मां इंदु देवी, बड़ा भाई नरेंद्र दास, भाभी सुनीता कानपुर के लिए रवाना हो गए.

मुंबई और रीजेंसी अस्पताल के डाक्टरों की टीम ने सुरेंद्र दास को बचाए रखने का प्रयास जारी रखा, लेकिन 5 दिन के संघर्ष के बाद रविवार 9 सितंबर की दोपहर 12 बज कर 20 मिनट पर सुरेंद्र दास का निधन हो गया. उन के शव को कानपुर से लखनऊ उन के एकता नगर स्थित निवास पर लाया गया. पूरी कालोनी सदमे में थी.

सुरेंद्र दास के पिता रामचंद्र दास सेना से रिटायर हुए थे. उन्होंने करीब डेढ़ दशक पहले एकता नगर में पंचवटी नाम से मकान बनाया था. सुरेंद्र दास 2 भाई थे. उन के बड़े भाई नरेंद्र दास अपने मकान में ही हार्डवेयर की दुकान चलाते थे. सुरेंद्र दास की 5 बहनें पुष्पा, आरती, सुनीता, अनीता और सावित्री थीं. सभी बहनों की शादी हो चुकी थी.

सुरेंद्र दास पढ़ाई में तेज थे. उन के पिता रामचंद्र दास ने सुरेंद्र की पढ़ाई के लिए अलग जमीन पर कमरा बनवा दिया था, जिस से उन की पढ़ाई में व्यवधान न आए. यहीं रह कर सुरेंद्र पढ़ाई करने लगे. दिन भर वह कमरे में रह कर पढ़ाई करते थे. वहां से वह घर केवल खाना खाने आते थे.
जब उन का चयन आईपीएस के लिए हुआ तो पूरी कालोनी में खुशियां मनाई गईं. कालोनी में रहने वाले सभी मातापिता अपने बच्चों को सुरेंद्र दास जैसा बनने का उदाहरण देते थे. कालोनी के कुछ बच्चे सुरेंद्र दास के संपर्क में रहते थे. वे उन बच्चों को कंपटीशन की तैयारी की सलाह देते थे. 10 साल पहले सुरेंद्र दास के पिता नरेंद्र दास की मौत हो गई थी.

सुरेंद्र दास की खुदकुशी पर किसी को यकीन नहीं हो रहा था. इस का कारण यह था कि वह संस्कारी स्वभाव के थे. कालोनी में रहने वाले किसी भी बुजुर्ग से वह ऊंची आवाज में बात नहीं करते थे, हमेशा अंकल कह कर उन्हें इज्जत देते थे. उन की मौत के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पुलिस प्रमुख ओमप्रकाश सिंह सहित सभी अफसरों ने उन के घर जा कर शोक जताया.

सुरेंद्र दास के परिवार ने उन की मौत के लिए पत्नी डा. रवीना सिंह को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया था. सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास ने कहा कि वह रवीना के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने की रिपोर्ट दर्ज कराएंगे.

नरेंद्र दास ने कहा कि सुरेंद्र दास की मौत के लिए रवीना ही हिम्मेदार है. रवीना उन्हें परिवार से अलग रखना चाहती थी, जबकि सुरेंद्र परिवार से दूर नहीं रहना चाहते थे. वह भावुक और संवेदनशील इंसान थे. जबकि रवीना उन पर शक करती थी, जब वह गश्त पर जाते थे तो वह उन के साथ ही जाती थी.

वैसे भी रवीना का अपने मायके की तरफ झुकाव ज्यादा था. पुलिस लाइन में जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल के कपड़े खरीदने को ले कर दोनों में विवाद हुआ था. सुरेंद्र उन के साथ जाना चाहते थे, जबकि वह अकेले जाना चाहती थी.

सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास का आरोप था कि रवीना ने पति को इतना प्रताडि़त किया कि उन्होंने आत्महत्या कर ली. इस के अलावा उन के पास कोई रास्ता नहीं था.

वह पूरी तरह से टूट गए थे और बिना सोचेसमझे आत्महत्या कर ली. नरेंद्र ने कहा कि सुसाइड नोट में हैंड राइटिंग की जांच कराएंगे. नरेंद्र ने बताया कि रवीना नानवेज खाती थी, जबकि सुरेंद्र पूरी तरह से शाकाहारी थे.

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भी रवीना ने नानवेज खाया था, जिस की वजह से दोनों में तनाव था. नरेंद्र दास का कहना था कि मानसिक तनाव में ही सुरेंद्र दास यह सोच रहे थे कि आत्महत्या कैसे की जाए. कानपुर के एसएसपी ए.के. तिवारी के अनुसार सुरेंद्र दास के सुसाइड नोट में पारिवारिक कलह, पत्नी से छोटीछोटी बातों में तनाव और कई बातें भी लिखी थीं. सुरेंद्र ने सीधे तौर पर अपनी आत्महत्या के लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया था.

एसपी सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास ने भले ही उन की पत्नी रवीना को आत्महत्या का जिम्मेदार बताया हो, पर खुद सुरेंद्र ने अपने सुसाइड नोट में पत्नी रवीना को जिम्मेदार नहीं माना. सुरेंद्र दास ने अपने 7 लाइन के पत्र में अंगरेजी और हिंदी दोनों में लिखा था.

अंगरेजी में उन्होंने लिखा था कि वह पिछले एक सप्ताह से आत्महत्या करने के तरीके खोज रहे थे. गूगल पर आत्महत्या करने का सब से आसान तरीके को समझने के लिए पढ़ा और वीडियो देखी. इस के बाद 2 तरीकों पर ध्यान दिया. पहला ब्लेड से शरीर की नस काटनी थी. दूसरा जहर खाने का तरीका था.

नस काटने में दर्द होने की संभावना ज्यादा थी. ऐसे में मुझे जहर खाने का तरीका सब से अच्छा लगा. इस के लिए उन्होंने सल्फास लाने के लिए अपने एक कर्मचारी को कहा कि उन्हें चूहे और सांप भगाने हैं. 4 सितंबर को जहर खाने से पहले सुरेंद्र दास ने सल्फास मंगवा कर रख ली थी.
इन तमाम आरोपों पर सुरेंद्र दास की पत्नी डा. रवीना की तरफ से कोई भी बात नहीं कही गई. रवीना ने केवल इतना कहा कि मेरा सब कुछ चला गया है. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए. मुझे किसी से कोई बात नहीं करनी है. मैं हाथ जोड़ कर कह रही हूं कि मुझे किसी से कुछ नहीं कहना है.
रवीना के परिजनों ने हर आरोप को गलत बताते हुए कहा कि सच्चाई सुरेंद्र दास के परिवार को पता है. वह अपने परिवार से परेशान थे और 4 महीने से वह अपने परिवार के संपर्क में नहीं थे. सुरेंद्र की मौत की फाइल अभी बंद नहीं हुई है. ऐसे में संभव है कि कुछ दिनों के बाद कोई सुराग मिले तो फिर से नए तथ्य सामने आएं.

एक बात साफ है कि सुरेंद्र अपने जीवन में बेहद तनाव के दौर में गुजर रहे थे. इस बारे में उन्होंने अपने घरपरिवार और पत्नी से भी किसी तरह की कोई चर्चा नहीं की थी. अगर वह अपने करीबी लोगों से अपने तनाव के बारे में चर्चा कर लेते तो शायद वह ऐसा कदम नहीं उठाते.
एसपी सुरेंद्र दास की आत्महत्या को ले कर जब आरोपों का दौर चला तो उन की पत्नी डा. रवीना के मातापिता ने सामने आ कर प्रैस कौन्फ्रैंस की. रवीना के पिता रावेंद्र ने कई कथित सबूतों के साथ आरोप लगाया कि सुरेंद्र का परिवार नहीं चाहता था कि सुरेंद्र रवीना के साथ रहे. उन्होंने यह भी कहा कि सुरेंद्र की शादी की बात पहले तूलिका नाम की लड़की से हुई. बात नहीं बनी तो मोनिका से सगाई हुई, लेकिन वह भी टूट गई.

अगस्त 2016 में सुरेंद्र की पहली मुलाकात रवीना से हुई. बात आगे बढ़ी तो सुरेंद्र का परिवार इस रिश्ते के खिलाफ था. लेकिन सुरेंद्र ने किसी तरह अपनी मां को मना लिया. शादी से पहले सुरेंद्र के बड़े भाई नरेंद्र ने शादी का सामान रवीना के एटीएम कार्ड से खरीदा. अप्रैल, 2017 में रवीना अपनी ससुराल पहुंची तो वहां उस से अभद्रता की गई. भद्दे कमेंट्स किए गए. यहां तक कि उसे खाना भी नहीं दिया गया.

रावेंद्र के अनुसार, सुरेंद्र का बड़ा भाई नरेंद्र एक व्यावसायिक प्लौट खरीदने के लिए सुरेंद्र से पैसे मांग रहा था. एकता नगर का प्लौट बेचने के चक्कर में दोनों भाइयों में झगड़ा होता था.

रावेंद्र के अनुसार, सुरेंद्र की मां इंदु अपने बेटे के पास नहीं जाती थीं. सुरेंद्र दास जब सहारनपुर में तैनात थे तो लखनऊ आते थे लेकिन अपने परिवार को सूचना देने से मना कर देते थे. बाद में अंबेडकर नगर ट्रांसफर के समय सुरेंद्र ने दहेज का सामान लाने के लिए ट्रक भेजा था, लेकिन नरेंद्र ने सामान देने से मना कर दिया.

बहरहाल, दोनों पक्षों की ओर से आरोपप्रत्यारोप चल रहे हैं. कौन सच बोल रहा है, कौन झूठ कहा नहीं जा सकता. हां, यह तय है कि सुरेंद्र दास ने मानसिक द्वंद के चलते ही आत्महत्या की. दुख यह जान कर होता है कि जो व्यक्ति कानून का रखवाला था, आत्महत्या कर के वह खुद ही कानून से खेल कर दुनिया से दूर चला गया. आखिर कोई तो ऐसी बात रही होगी जो उन से बरदाश्त नहीं हुई. इस बात का पता लगाया जाना जरूरी है.

मौज मजे की ममता : गजेंद्र और ममता ने मिल कर कैसी साजिश रची

4 अप्रैल, 2018 की बात है. मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के मुरार थाना क्षेत्र में कर्फ्यू लगा होने की वजह से चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था. कर्फ्यू की वजह यह थी कि 2 अप्रैल को एससी/एसटी एक्ट के संशोधन के विरोध में दलित आंदोलन के दौरान 2 लोगों की मौत हो गई थी. हालात बिगड़ने पर प्रशासन ने इलाके में कर्फ्यू लगा रखा था.

इसी दौरान घटी एक अन्य घटना ने माहौल में अचानक ही गरमाहट पैदा कर दी. घटना भी ऐसी कि पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया. खबर यह फैली कि बुधवार की सुबह भारत बंद के दौरान उपद्रव करने वाले लोगों ने तिकोनिया इलाके में एक युवक की हत्या और कर दी है. मरने वाला युवक तिकोनिया पार्क का उमेश कुशवाह है.

यह खबर जंगल की आग की तरह इतनी तेजी से फैली कि थोड़ी ही देर में मृतक उमेश कुशवाह के घर के बाहर भीड़ लग गई. भीड़ में राजनैतिक दलों के पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं से ले कर सामाजिक संगठनों के लोग भी शामिल थे. सभी में इस घटना को ले कर काफी आक्रोश था. लोग हत्यारों के तत्काल पकड़े जाने की मांग कर होहल्ला मचा रहे थे.

सूचना मिलने पर घटनास्थल पर पहुंचे सीएसपी रत्नेश तोमर ने मामले की गंभीरता को समझते हुए विभाग के आला अधिकारियों को अवगत करा दिया. संवेदनशील इलाके में हत्या की एक और घटना घटने की सूचना पर आईजी अंशुमान यादव, डीआईजी मनोहर वर्मा, एसपी डा. आशीष भी मौका ए वारदात पर जल्द पहुंच गए.

भीड़ ने उन सभी पुलिस अधिकारियों को घेर लिया. इस से तिकोनिया इलाके का माहौल बेहद तनावपूर्ण हो गया. ऐसी हालत में किसी भी अनहोनी से बचने के लिए रैपिड एक्शन फोर्स को भी बुला लिया.

पुलिस अधिकारियों ने वहां मौजूद प्रदर्शनकारियों को भरोसा दिया कि इस केस का जल्द परदाफाश कर के हत्यारों को गिरफ्तार कर लेंगे. उन के आश्वासन के बाद भीड़ किसी तरह शांत हुई. इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने मौका ए वारदात का अवलोकन किया.

पुलिस जानती थी कि अफवाहें चिंगारी बन कर आग लगाने का काम करती हैं और उन्हें रोकना कठिन होता है. वे इतनी तेजी से फैलती हैं कि माहौल बहुत जल्द बिगड़ जाता है, इसलिए पुलिस ने सुरक्षा के मद्देनजर सख्त कदम उठाते हुए इंटरनेट प्रसारण पर रोक लगा दी.

पुलिस अफसरों के रवाना होते ही डौग स्क्वायड और फोरैंसिक एक्सपर्ट्स की टीमें भी घटनास्थल पर पहुंच गईं. सीएसपी रत्नेश तोमर और थानाप्रभारी अजय पवार ने घटनास्थल का मुआयना किया तो देखा कि खून से लथपथ उमेश कुशवाह की लाश मकान के बाहरी हिस्से में बने कमरे में फर्श पर पड़ी थी.

देख कर लग रहा था, जैसे किसी धारदार चीज से उस के सिर पर प्रहार किया गया था. उस का सिर फटा हुआ था. मौके पर इधरउधर खून फैला हुआ था. लाश बिस्तर पर नहीं थी, इस से लगता था कि मरने से पहले उमेश ने शायद हत्यारे से संघर्ष किया होगा. जिस कमरे में उमेश कुशवाह की लाश पड़ी थी, वहीं पर उस का मोबाइल फोन भी पड़ा हुआ था.

घटनास्थल से सारे सबूत इकट्ठे करने के बाद पुलिस ने अलगअलग कोणों से लाश की फोटोग्राफी कराई. घटनास्थल से कुछ दूरी पर पुलिस टीम को एक हंसिया पड़ा मिला. उस हंसिए पर खून लगा हुआ था. इस से पुलिस को आशंका हुई कि हो न हो इस हंसिया से ही हत्यारों ने इस वारदात को अंजाम दिया हो. फोरैंसिक टीम ने हंसिए से फिंगरप्रिंट उठा लिए. फिर जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

पुलिस ने वहां मौजूद उमेश की पत्नी ममता से प्रारंभिक पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘मेरे पति सूरत में नौकरी करते हैं. वह 30 मार्च को ही सूरत से लौट कर घर आए थे. शहर में 2 अप्रैल को भारत बंद के दौरान उपद्रव हो जाने के बाद समूचे मुरार क्षेत्र में कर्फ्यू और धारा 144 लग जाने की वजह से वह सूरत नहीं लौट सके.

‘‘रोजाना की तरह वह खाना खा कर अपने कमरे में सो रहे थे. आज तड़के 4 बजे के करीब मैं बाथरूम गई. जब वहां से लौट कर आई तो पति को खून से लथपथ फर्श पर पड़ा देख कर भौचक्की रह गई. मैं रोती हुई अपने फुफेरे देवर गजेंद्र के पास गई और उसे जगा कर यह बात बताई. मेरी बात सुन कर गजेंद्र तुरंत मेरे घर आया. लाश देख कर वह समझ नहीं सका कि यह सब कैसे हो गया. इस के बाद मैं ने साहस बटोर कर मोबाइल से अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों को जानकारी दे दी. पड़ोसी महेश ने इस की सूचना पुलिस को दी.’’

पुलिस ने ममता से कमरे में उमेश के अकेले सोने की वजह मालूम की तो उस ने बताया कि हमारे दोनों बेटे 2 दिन पहले सिकंदर कंपू स्थित अपने मामा के घर एक कार्यक्रम में गए थे. वे रात को लौटने वाले थे, इसलिए वह दरवाजा खुला छोड़ कर सो रहे थे. उमेश के चीखने की आवाज न तो ममता ने सुनी थी और न ही गजेंद्र ने.

पुलिस अधिकारियों ने क्राइम सीन को पुन: समझा. जांच में 3 बातें स्पष्ट हुईं, एक तो यह कि सिर पर किसी धारदार चीज से प्रहार किया गया था. दूसरा यह कि मामला साफतौर पर हत्या का था न कि लूटपाट में हुई हत्या का.

तीसरी बात यह थी कि वारदात में किसी ऐसे नजदीकी व्यक्ति का हाथ होने की संभावना लग रही थी, जो घर की स्थिति को भलीभांति जानता था. वह व्यक्ति यह भी जानता था कि उमेश के दोनों बेटे आज घर पर नहीं हैं. घर पर सिर्फ पत्नी ममता ही है.

बहरहाल, कातिल जो भी था उस ने गुनाह को छिपाने की हरसंभव कोशिश की थी. पुलिस ने पड़ताल के दौरान जो हंसिया बरामद किया था, ममता ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया. घटनास्थल की जांच के बाद एसपी डा. आशीष ने इस मामले के खुलासे के लिए सीएसपी रत्नेश तोमर के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर दिया. टीम का निर्देशन एसपी साहब स्वयं कर रहे थे.

अगले दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह सिर पर धारदार चीज का प्रहार बताया गया था. जबकि मौत का समय रात 1 बजे से 3 बजे के बीच बताया गया, इसलिए पुलिस ने तिकोनिया इलाके में लगे सीसीटीवी कैमरों की रात 12 बजे से ले कर 3 बजे तक की फुटेज देखी. लेकिन इस से इस घटना का कोई सुराग नहीं मिला.

इलाके में कर्फ्यू लगा होने की वजह से फुटेज में पुलिस के अलावा कोई भी शख्स आताजाता दिखाई नहीं दिया. पुलिस ने ममता से उमेश की हत्या के बारे में पूछताछ की तो वह पुलिस पर हावी होते हुए बोली, ‘‘साहब, मेरे ही पति की हत्या हुई और आप मुझ से ही इस तरह पूछ रहे हैं जैसे मैं ने ही उन्हें मारा हो. जिस ने उन्हें मारा उसे तो आप पकड़ नहीं पा रहे. आप ही बताइए, भला मैं अपने पति को क्यों मारूंगी. आप मुझे ज्यादा परेशान करेंगे तो मैं एसपी साहब से आप की शिकायत कर दूंगी.’’

‘‘देखो ममता, तुम जिस से चाहो मेरी शिकायत कर देना. मुझे तो इस केस की जांच करनी है.’’ सीएसपी रत्नेश तोमर ने कहा, ‘‘अब तुम यह बताओ कि तुम्हारी गजेंद्र से मोबाइल पर इतनी बातें क्यों होती हैं, इस से तुम्हारा क्या नाता है?’’

‘‘साहब, गजेंद्र मेरा फुफेरा देवर है. मैं जिस किराए के मकान में रहती हूं, उसी मकान में वह भी रहता है. अगर मैं गजेंद्र से बात कर लेती हूं तो कोई गुनाह करती हूं क्या?’’ ममता बोली.

‘‘तुम्हारा गजेंद्र से बात करना कोई गुनाह नहीं है. लेकिन तुम्हें यह तो बताना ही पड़ेगा कि पति की हत्या से पहले और बाद में उस से क्या बातें हुई थीं?’’

हत्या का सच जानने के लिए पुलिस को काफी प्रयास करने पड़े. ऐसा होता भी क्यों न, चालाक ममता और गजेंद्र सीएसपी रत्नेश तोमर को गुमराह करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे. सीएसपी ने ममता से कहा, ‘‘ममता, तुम झूठ मत बोलो. तुम ने ही अपने प्रेमी के साथ मिल कर प्रेम प्रसंग में रोड़ा बन रहे पति को रास्ते से हटाने का षडयंत्र रचा था.’’

इतना सुनते ही ममता के चेहरे का रंग उड़ गया, वह खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘नहीं, मेरी गजेंद्र से कोई बात नहीं हुई थी. किसी ने आप को गलत जानकारी दी है.’’

‘‘ममता, हमें गलत जानकारी नहीं दी. यह देखो तुम ने कबकब और कितनी देर तक गजेंद्र से बातें की थीं. इस कागज में पूरी डिटेल्स है.’’ सीएसपी ने काल डिटेल्स उस के हाथ में थमाते हुए कहा.

ममता अब झूठ नहीं बोल सकती थी, क्योंकि काल डिटेल्स का कड़वा सच उस के हाथ में था. ममता की चुप्पी से सीएसपी तोमर समझ गए कि उन की पड़ताल सही दिशा में जा रही है. इस के बाद उन्होंने उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और पति की हत्या की पूरी कहानी सुना दी.

उमेश कुशवाह मूलरूप से बिजौली के रशीदपुर गांव का रहने वाला था. 15 साल पहले रोजीरोटी की तलाश में वह गांव छोड़ कर सूरत चला गया था. उमेश जवान हुआ तो उस के बड़े भाई मान सिंह ने सिकंदर कंपू इलाके की रहने वाली ममता से शादी कर दी.

शादी के कुछ साल बाद ही ममता 2 बच्चों की मां बन गई. बच्चे पढ़ने लायक हुए तो उमेश ने दोनों बच्चों को ग्वालियर शिफ्ट कर दिया. यहां वह मुरार के तिकोनिया इलाके में किराए का मकान ले कर रहने लगे. इसी मकान के दूसरे कमरे में उमेश का फुफेरा भाई गजेंद्र भी रहता था.

कहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. ममता के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ. बच्चों का हालचाल पूछने के बहाने गजेंद्र ममता के पास आने लगा. ममता बच्ची नहीं थी, वह गजेंद्र के मन की बात को अच्छी तरह से समझ रही थी. गजेंद्र को अपनी ओर आकर्षित होते देख वह भी उस की ओर खिंचती चली गई.

दोनों के दिलों में प्यार का अंकुर फूटा तो जल्द ही वह समय आ गया, जब दोनों का एकदूसरे के बिना रहना मुश्किल हो गया. धीरेधीरे स्थिति यह हो गई कि ममता को उमेश की बांहों की अपेक्षा गजेंद्र की बांहें ज्यादा अच्छी लगने लगीं. जो सुख उसे गजेंद्र की बांहों में मिलता था, वह उमेश की बांहों में नहीं था. यही वजह थी कि उन दोनों को लगने लगा था कि अब वे एकदूसरे के बिना नहीं रह सकते.

ममता ने तो कुछ नहीं कहा, लेकिन एक दिन गजेंद्र ने कहा, ‘‘ममता, अब मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता. मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

इस पर ममता ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता गजेंद्र, मैं शादीशुदा ही नहीं 2 बच्चों की मां हूं.’’

‘‘मुझे इस से कोई मतलब नहीं है. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं.’’

गजेंद्र बोला, ‘‘तुम्हारे लिए मुझे यदि उमेश की हत्या भी करनी पड़े तो मैं कर दूंगा.’’

‘‘तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगे.’’ ममता ने कहा, ‘‘उमेश, मुझ से और बच्चों से बहुत प्यार करता है. हम दोनों को जो चाहिए, वह मिल ही रहा है फिर हम कोई गलत काम क्यों करें.’’ ममता ने गजेंद्र को समझाया.

लेकिन ममता के समझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ, क्योंकि वह ममता को हमेशा के लिए पाना चाहता था. गजेंद्र ने ममता पर ज्यादा दबाव डाला तो वह परेशान हो कर बोली, ‘‘तुम्हें जो करना है करो. इस मामले में मैं कुछ नहीं जानती.’’

ममता के प्यार में पागल गजेंद्र ने ममता की इस बात को सहमति मान कर उमेश की हत्या करने की योजना बना डाली और हत्या करने के लिए मौके की ताक में रहने लगा. फिर योजना में ममता को भी शामिल कर लिया.

4 अप्रैल, 2018 को उसे वह मौका तब मिल गया, जब उसे पता चला कि उमेश के दोनों बेटे मामा के घर से नहीं लौट पाए हैं. घर पर सिर्फ ममता और उमेश ही हैं. ममता ने बातोंबातों में फोन पर गजेंद्र को बता दिया कि उमेश खाना खाने के बाद गहरी नींद में सो गया है.

इस पर गजेंद्र उमेश को ठिकाने लगाने के इरादे से उमेश के कमरे पर पहुंच गया. उस ने ममता के साथ बैठ कर योजना बनाई कि तुम सब से पहले मौका देख कर उमेश के सिर पर हंसिए का वार करना. ममता ने ऐसा ही किया. इस के बाद गजेंद्र ने ममता के हाथ से हंसिया ले कर उमेश के सिर को बड़ी बेरहमी से वार कर के फाड़ दिया. थोड़ी देर छटपटाने के बाद उमेश शांत हो गया.

इश्क की राह में बने रोड़े को मौत के घाट उतारने के बाद घर आ कर गजेंद्र ने इत्मीनान के साथ हाथपैर धोए और फिर कपड़े बदल कर सो गया. ममता और गजेंद्र को उम्मीद थी कि उमेश की हत्या पहेली बन कर रह जाएगी और वे कभी नहीं पकड़े जाएंगे.

उधर सुबह घटनास्थल पर पुलिस के आने के बाद ममता और गजेंद्र पूरी तरह से अंजान बने रहने का नाटक करते रहे. पुलिस के सवालों का भी उन दोनों ने बड़ी चालाकी के साथ सामना किया. इन दोनों ने अपने जुर्म को छिपाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन पुलिस ने आखिरकार सच उगलवा ही लिया.

ममता और गजेंद्र ने जब अपना गुनाह स्वीकार कर लिया तो पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर के अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

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