एलजीबीटी समुदाय के 7वें फिल्म फेस्टिवल ‘कशिश” का उद्घाटन मुम्बई में किया गया. इसका उद्देश्श्य यह रहा कि एलजीबीटी समुदाय के लोग इस विषय पर बिना झिझक बड़े परदे पर आम लोगो के साथ बैठकर एलजीबीटी पर बनी फिल्मों को देख सकें. इसके अलावा आम लोगो में इस समुदाय को लेकर गलत अवधारणा है, उसका समाधान हो. लोगों मे इस समुदाय को अपनाने की जागरूकता बढ़े. इस बारे में समारोह के आयोजक श्रीधरन का कहना है कि बहुत कम लोग इस समुदाय को जानते हैं, लोग उनको अजीब समझते हैं, जबकि ये लोग आम इंसान की तरह ही होते हैं, आम घरों में रहते हैं, ऑफिस में जाते हैं, इनकी सोच सिर्फ अलग होती है. ये सेक्सुअल नहीं होते, न ही अपराधी होते है. समस्या ये है कि इन्हें धर्म, समाज, कानून और परिवार एक्सेप्ट नहीं करते. कुछ ही देशों में इन्हें मान्यता दी गई है.
पहले वर्ष बहुत कम लोग इस फेस्टिवल में आए थे. पिछले साल 10 हज़ार लोगों ने ऐसी फिल्में देखी. इस साल 53 देशों की 182 फिल्में, जिनमें 27 भारतीय फिल्म भी शामिल हैं उन्हें तीन स्थलों लिबर्टी सनेमा, अलाएंस फ्रेंकेस डे बोम्बे और मेक्स्मुलेर भवन में दिखाया जायेगा. ये क्राइम नहीं करते. लोग उनसे डरते हैं, जबकि कानून के हिसाब से अगर कोई क्राइम वे पब्लिक प्लेस में करें, तो गलत होता है, जैसा की आम लोगों के लिए भी है.
‘गे’ और ‘लेस्बियन’ को आप तब तक समझ नहीं सकते, जब तक कि वे खुद इस बारें में न बताएं. इसमें ट्रांसजेंडर सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, वे पढे लिखे होते हैं, वे टेलीफोन ऑपरेटर, पुलिस, ऑफिस में,आदि सब जगह अच्छा काम कर सकते हैं, पर उन्हें काम नहीं मिलता, वे रास्ते पर भीख मांगकर गुजारा करते हैं. लोगों को लगता है कि वे कुछ गलत करेंगे. कंपनी उन्हें इसलिए काम नहीं देती, क्योंकि किसी कंपनी में अगर मेल या फीमेल टॉयलेट है, तो ट्रांसजेंडर कहा जायेंगे. इसलिए कई बड़ी कंपनिया आजकल यूनिसेक्स टॉयलेट्स बनवा रही हैं, ताकि ये समस्या न हो. ये एक अच्छी बात हो रही है.
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