आम धारणा है कि घर के बड़े बुजुर्गों की अनदेखी व उत्पीड़न बहुएं करती हैं. कई बार ऐसे प्रकरण या वीडियोज भी सामने आते हैं जहां बहू सासससुर को यातना देती नजर आ जाती है. लेकिन हाल में हुआ एक सर्वे अलग तस्वीर पेश करता है. सर्वे के मुताबिक घर के बुजुर्गों के उत्पीड़न के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार उनके पुत्र हैं. इस सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ राजधानी दून में ही लगभग 80 फीसदी बुजुर्गों का उत्पीड़न होता है और इसमें से लगभग 61 फीसदी बेटे होते हैं जो अपने बुजुर्ग मातापिता को अनदेखा करते हैं.
बेटे, बहू और बेटियां
गौरतलब है कि ये आंकड़े जुटाए हैं सीनियर सिटीजंस के लिए काम करने वाली संस्था हेल्पेज इंडिया ने. इसकी सर्वे रिपोर्ट में बुजुर्गों की स्थिति को बारीकी से दर्शाया गया है. इन आंकड़ों को जुटाने में इस संस्था ने देश के अलग-अलग राज्यों के 23 शहरों में सर्वे किया था. इस सर्वे में प्रत्येक शहर के 60 साल से ज्यादा उम्र के 218 बुजुर्ग पुरुष व महिलाओं से बातचीत की गयी. इस तरह कुल 5014 बुजुर्गों को इस सर्वे में शामिल किया गया था. रिपोर्ट आगे कहती है कि 34 फीसदी बुजुर्ग बहुओं के अत्याचार का शिकार बनते हैं जबकि इसमें बेटियों की भी कुछ प्रतिशत भागीदारी है. हालांकि मातापिता के उत्पीड़न में बेटियों की हिस्सेदारी पूरे देश में लगभग 6-7 प्रतिशत ही है.
किस शहर में कितना उत्पीड़न ?
सीनियर सिटीजंस के साथ होने वाला उत्पीड़न का आंकड़ा शहर के हिसाब से घटता और बढ़ता दिखता है. मसलन 23 शहरों में की गई रिपोर्ट के मुताबिक इनके साथ ससे ज्यादा उत्पीड़न या कहें दुर्व्यवहार मैंगलोर में होता है. यहाँ 47 फीसदी बुजुर्ग अनदेखी और शोषण का शिकार होते हैं. जबकि नंबर 2 पर है अहमदाबाद, जहाँ 46 फीसदी बुजुर्गों के साथ उत्पीड़न हो रहा है. इसके अलावा भोपाल में 39 फीसदी, अमृतसर में 35 फीसदी और दिल्ली 33 फीसदी का आंकड़ा है.
क्यों होता है ऐसा ?
उम्र के आखिरी पड़ाव में आते ही घर और बाजार में बुजुर्गों को खोटा सिक्का समझा जाने लगता है. इसलिए सब इनके साथ सब बेरुखी से पेश आते हैं. वर्ल्ड एल्डर एब्यूज अवेयरनेस डे के मौके पर हुए एक सर्वे में करीब 64 फीसदी बुजुर्गों का मानना था कि उम्र या सुस्त होने की वजह से लोग उनसे रुखेपन से बात करते हैं. जिन बुजुर्गों को सर्वे में शामिल किया गया, उनमें से 44 फीसदी लोगों का कहना था कि सार्वजनिक स्थानों पर उनके साथ बहुत गलत व्यवहार किया जाता है. खासतौर से सरकारी अस्पतालों और दफ्तरों के कर्माचारियों का व्यवहार सबसे उदासीन होता है. बेंगलूरू, हैदराबाद, भुवनेश्वर, मुंबई और चेन्नई ऐसी सिटीज हैं जहाँ पब्लिक प्लेस पर सीनियर सिटीजंस के साथ सबसे बुरा बर्ताव होता है.
अपनी जड़ें काटते युवा
कुल मिलाकर देश का कोई भी कोना ऐसा नहीं है जहाँ घर के बड़े बुजुर्गों के साथ अमानवीय व्यव्हार न होता हो. कहीं ज्यादा तो कहीं कम है. इस सर्वे से यह बात भी सामने आती है कि जिन बहुओं को सासससुर का उत्पीड़न करने के लिए कोसा जाता है, दरअसल इसके लिए ये कम और इनके पति ज्यादा दोषी हैं. जब बेटे ही मांबाप का उत्पीड़न करेंगे तो उनकी पत्नियां भी उन्ही का साथ देंगी. भारतीय समाज में बुजुर्गों को मार्गदर्शक और पारिवारिक मुखिया के नाते हमेशा आदर दिया गया है लेकिन आज की युवा और आधुनिक पीढ़ी तकनीक, पैसा और भोगविलास में इतनी मशरूफ है कि उसी पेढ़ को काटने पर तुली है जो उसे छांव देता है.