किशोरावस्था में लड़के व लड़की अपने आसपास मौजूद किसी भी अपोजिट सैक्स के प्रति आकर्षित हो जाते हैं और उसे वे प्यार समझ बैठते हैं. ऐसे समय में सब से ज्यादा परेशानी मातापिता को होती है क्योंकि उन्हें समझ नहीं आता कि वे बच्चों को किस तरह समझाएं.

प्यार होना कोई बड़ी बात नहीं है, किशोरावस्था में आमतौर पर लड़केलड़कियां हकीकत से ज्यादा कल्पनाओं में जी रहे होते हैं. लड़केलड़कियों को एकदूसरे के साथ समय बिताना अच्छा लगता है. वे अच्छे से अच्छा दिखने की कोशिश करते हैं, और एकदूसरे को आकर्षित करने व खुश करने का हर प्रयास करते हैं. यह तो हो जाता है. लेकिन जिसे किशोर प्यार समझ बैठते हैं वह प्यार नहीं बल्कि आकर्षण होता है, यह बात समझनी होगी. जब प्यार में धोखा मिलता है तब मातापिता को अपने बच्चों को संभालना मुश्किल हो जाता है. ये सब बातें इसलिए लिख रही हूं, क्योंकि एक वक्त मुझे भी इन सब से गुजरना पड़ा था. सोचती हूं अगर उस समय मेरे पेरैंट्स ने मेरा साथ न दिया होता, तो मेरा क्या होता. अपनी गलतियों से मैं ने छोटी उम्र में ही बहुत कुछ सीख लिया. वह कहते हैं न, इंसान ठोकर खा कर ही संभलता है, सो, अब मैं संभल चुकी हूं और चाहती हूं मेरी तरह की गलती करने वाले बच्चे भी इस बात को समझें.

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किशोर बच्चों में उम्र के साथ काफी बदलाव आते हैं जिन्हें वे स्वीकार नहीं कर पाते. किसी से कुछ कहने में हिचक होती है, लगता है सामने वाला क्या सोचेगा. मातापिता का किसी बात को ले कर रोकनाटोकना, उन्हें अपनी आजादी छीनने जैसा लगने लगता है, कारण है शारीरिक बदलाव.

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