फिल्म ‘शोले’ के होली गीत, ‘‘होली के दिन दिल खिल जाते हैं, रंगों में रंग मिल जाते हैं, गिलेशिकवे भूल के दोस्तों, दुश्मन भी गले मिल जाते हैं…’’ के बजे बिना शायद ही कोई होली उत्सव पूरा होता है. होना भी नहीं चाहिए, क्योंकि इस गीत की अवधारणा से ही होली का जलसा पूरा होता है. एक यही त्योहार है जब रिश्तेनातों और पासपड़ोस में पुराने गिलेशिकवे भूल कर हम एकदूसरे के रंग में रंग जाते हैं.

होली की मूल भावना नोकझोंक और चुहुलबाजी में होती है. जब देवर अपनी भाभी के साथ, पड़ोसी अपनी पड़ोसिन के साथ , जीजा अपनी साली के साथ और पे्रमी अपनी प्रेमिका के साथ दो कदम आगे बढ़ कर एकदूसरे को रंगों से सरोबार करते हैं तो बुरा नहीं मानना चाहिए.

1 रूठे यार को मनाना :

होस्टल के दिनों के मेरे एक मित्र से एक गलतफहमी के चलते बहस हो गई. वह कहे वह सही, मैं कहूं मैं सही. बात इतनी बढ़ गई कि हम दोनों ने एकदूसरे की शक्ल देखने से इनकार कर दिया. कई दिनों तक बातचीत बंद रही. एक ही क्लास में पढ़ने और एक ही रूम व कैंटीन में सोनेखाने के बावजूद हमारे ईगो ने हमें एकदूसरे से नाराज ही रखा.

तकरीबन 7-8 महीने तक एकदूसरे को अनदेखा करने का सिलसिला चलता रहा. फिर होली की छुट्टियों का माहौल बन गया. होस्टल के सारे मित्र घर जाने लगे. लेकिन जब आप का सब से अच्छा मित्र नाराज हो तो होली की सारी तैयारियां फीकीफीकी सी लगती हैं. हर होली की सुबह वही तो आया करता था रंग लगाने. इधर, इतने दिन गुजर गए, बात भी नहीं हुई. मुझे लगा कि मैं ही जा कर उसे मना लूं लेकिन अकड़ इतनी थी कि लगा, मैं पहल करूंगा तो छोटा हो जाऊंगा.

एक दिन मैं सो रहा था कि अचानक वह चुपके से आया और सुबहसुबह मेरे सोते रहने पर ही मेरा चेहरा गुलाल से भर दिया औैर गले लगा कर बोला, ‘‘हैप्पी होली अकड़ू.’’ हतप्रभ सा मैं उसे देख रहा था. अंदर से इतना खुश कि मानो कुछ खोया हुआ वापस मिल गया. मैं ने भी उसे गले लगा लिया. सारे गिलेशिकवे आंसुओं और रंगों की धार में बह गए. साथ ही, मेरी अकड़ और अहं भी. आज जब हमारी दोस्ती को 20 साल से भी ज्यादा हो गए हैं, सोचता हूं कि अगर उस होली के मौके पर उस ने पहल न की होती तो आज हमारा परिवार और बच्चे एकदूसरे के इतने करीब न होते. हर होली अब हम सपरिवार मनाते हैं. मुझे तो ऐसा दोस्त मिल गया जिस ने होली के दिन बिना संकोच के दोस्ती का हाथ दोबारा बढ़ा दिया. लेकिन सब के साथ ऐसा नहीं होता.

अकसर अहं और छोटीमोटी तकरार इतनी बड़ी हो जाती हैं कि रिश्तों की वे गांठें कभी नहीं जुड़ पातीं. अगर आप भी किसी ऐसी ही बात का बुरा मान कर किसी दोस्त या करीबी से नाराज हैं तो इस होली पर उसे मनाने की पहल कर देखिए, उत्सव का आनंद दोगुना हो जाएगा और पुराने साथी को वापस पाने की खुशी का तो कोई हिसाब ही नहीं है. और हां, कोई भी झगड़ा या गलतफहमी इतनी बड़ी नहीं होती कि उसे सुलझाया न जा सके. तो समझ लीजिए होली का यह त्योहार ऐसी ही किसी पुरानी गलतफहमी या कड़वाहट को मिठास में बदलने का मौका है जो दोस्ती की राह में रोड़ा बन कर खड़ी है.

2 परिवार के संग त्योहार :

जिस तरह एक रसोई में कई बरतनों की आपसी टकराहट को रोक पाना मुश्किल है वैसे ही घरपरिवार में अपनों का रूठना या मनमुटाव होना स्वाभाविक है. ऐसे में सूखते रिश्तों में रंगों की नमी भरें. रिश्तों में दरार डालते इन फासलों को भरने के लिए ही होली का मस्तीभरा त्योहार आता है. जहां जरा सी शरारत और ढेर सारे रंगों की फुहार गुस्से की कालिख को अपनत्व की रंगीनियत से भर देती है. इसलिए रंगों के इस त्योहार की शुरुआत आप अपने परिवार के लोगों व अपने दोस्तों पर रंगों की बरसात कर के करें. फिर देखें कैसे कोई आप से नाराज रहता है. घर में बड़ेबुजुर्ग को गुलाल का तिलक लगा कर होली का शुभारंभ करें. मातापिता से अनजाने में की बदजबानी की माफी मांग कर हलके से गुलाल से उन के चेहरे में खुशियों के रंग भर दें. उन की सारी नाराजगी पलभर में दूर हो जाएगी.

अगर करीबी रिश्तेदार दूर हैं और किसी बात पर खफा हैं तो होली की शुभकामनाओं के लिए उन्हें सब से पहले फोन करें और घर पर होली उत्सव के लिए आमंत्रित कर उन का दिल जीतें. होली के मौके पर पुरानी बातों को भूलने की गुजारिश करें. यकीनन उन की नाराजगी बहुत देर तक नहीं टिक पाएगी. अगर वे काफी दूर रहते हैं और आप के घर तक आने में असमर्थ हों तो होली के कुछ दिनों पहले ही उन्हें बिना बताए होली की मिलन के लिए कुछ अच्छा सा उपहार व मिठाइयां ले कर उन के घर पहुंच जाएं और उन को हैरान कर दें. इस सरप्राइज विजिट से उन की हर नाराजगी दूर होते देर नहीं लगेगी.

भाईबहन का रिश्ता तो इतना प्यारा होता है कि जरा सी चौकलेट, गिफ्ट या प्यार से चोटी खींचने भर से सारे गिलेशिकवे भुला देता है. भाईभाई भी उसी रिश्ते की नाजुक डोर से बंधे होते हैं जिस में भाईबहन बंधे होते हैं. उन्हें भी सुलझने में देर नहीं लगती.

3 सामाजिक सरोकार न भूलें :

त्योहारों को मनाने का असली मकसद समाज को जोड़ कर रखना होता है. सदियों पहले त्योहारों के जरिए लोग खुशी और उल्लास के साथ अपने कबीले, कुनबे या समाज के साथ एक मंच पर आते और नजदीकियां बढ़ाते थे. इस से आपसी सौहार्द की भावना पल्लवित होती थी और परस्पर सद्भाव भी बढ़ता था.

धीरेधीरे समाज बदला और इन उत्सवों के बीच होली ने अपने मस्तीभरे मिजाज, नोकझोंक और हुड़दंगी रिवाज के चलते दुनियाभर के समाजों को रंगों के त्योहार में मदमस्त कर दिया. इसलिए होली सिर्फ भारत में ही नहीं, दुनिया के लगभग हर मुल्क में मनाई जाती है. फर्क बस इतना है कि कहीं रंगों का इस्तेमाल होता है तो कहीं फूलों, कीचड़ या टमाटर के साथ होली खेली जाती है.

बदलते समाज के साथ हमारे बीच स्वार्थ और संकुचित भावना भी न जाने कहां से पनपने लगी. हाल यह हुआ कि एक ही समाज, महल्ले या सोसायटी में रहने वाले परस्पर प्रतिस्पर्धा, ईर्ष्या या दिखावे के चलते सामाजिक बंधनों से दूर हो कर अपने ही घरों में कैद रहते हैं. वे होली के दिन भी पासपड़ोस की कोई खबर नहीं रखते, घर की चारदीवारी में बड़े रूखे अंदाज में त्योहारों की खानापूर्ति कर लेते हैं.

जरा सोचिए अगर समाज ही नहीं रहेगा तो हमारा अस्तित्व कहां रहेगा, शानोशौकत देखने वाला कौन होगा. घर पर पकवान तो ढेर सारे बनेंगे लेकिन साथ में बैठ कर खाने वाले पड़ोसी कहां से आएंगे. आड़े समय में गलीमहल्ले के लोग जितना काम आते है, उतना तो दूर रहते सगेसंबंधी भी नहीं आते. अच्छा पड़ोसी, अच्छा दोस्त भी होता है, एकदूसरे के दुखसुख का साथी होता है. इसलिए, इस होली संकल्प लें कि समाज से कटने के बजाय रंगों का यह त्योहार सभी के बीच मनाएंगे.

4 मुहब्बत के रंग :

जिस से प्रेम करते हैं और अगर वह रूठा या रूठी है तो समझ लीजिए होली ही वह मौका है जब उन के मानने की संभाव्यता सब से ज्यादा होगी. होली पर आप छेड़खानी और चुहुलबाजी कर अपनी मासूम शरारतों से उन्हें हंसने और मानने पर मजबूर कर सकते हैं. सारी पिछली बातों पर डालें धूल और झगड़ेलफड़े सब जाएं भूल. एक फोन, एक एसएमएस, एक प्यारी सी टचिंग रिंगटोन, एक दिल को धड़काने वाला पिक्चर मैसेज या ग्रीटिंग और ढेर सारा गुलाल रूठे यार को मनाने के लिए काफी है.

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