वर्ष 1962 में गुरुदत्त की एक  फिल्म आई थी, ‘साहब, बीवी और गुलाम,’ जिस में छोटी बहू ‘मीना कुमारी’ और भूतनाथ ‘गुरुदत्त’ के बीच एक ऐसा रिश्ता था, जिस में छोटी बहू के प्रति भूतनाथ के लगाव में प्रेम के साथसाथ आदर और चिंता भी दिखती है. छोटी बहू भी भूतनाथ को अपना विश्वस्त और प्रिय मानती है. भूतनाथ को देख कर वह खुश होती है. दूसरी तरफ भूतनाथ भी छोटी बहू पर अपना अधिकार समझता है. फिल्म के कुछ अंतरंग दृश्यों में भूतनाथ छोटी बहू को तुम कहने में भी नहीं हिचकता, लेकिन फिल्म के एक दृश्य में शराब का गिलास छीनने के चक्कर में जब भूतनाथ अचानक छोटी बहू का हाथ छू लेता है तो वह बिफर उठती है. वह डांटती है कि तुम ने एक पराई स्त्री का हाथ छुआ, जी हां, बस यही हाथ का छू जाना जब रोमांचित करने के बजाय नाराज कर जाए तो इसे ही प्लैटोनिक लव या फिर दिल का संबंध कहते हैं, जिस में यह फीलिंग तो होती है कि किसी के साथ रहो, उस से बात करो, टाइम स्पैंड करो, बातें शेयर करो, लेकिन एकदूसरे से कुछ भी उम्मीद न रखो. यह दिल से जुड़ा रिश्ता होता है जिस में एक अनजाना सा लगाव एकदूसरे की तरफ खींचता जरूर है पर वह रिश्ता शारीरिक न हो कर सिर्फ दिल से जुड़ा होता है.

यार कितना सच्चा है परखें

दिल के संबंध में वासना की जगह नहीं

प्यार दो दिलों का मेल होता है. प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है. सच्चे प्यार में वासना नहीं होती. मन में गलत विचार नहीं आते. बस, प्रेमिका से मीठीमीठी बातें करते रहने को दिल करता है. आंखों के सामने बस उस का चेहरा ही नजर आता है. जिस के साथ आप सेफ महसूस करें जिस के साथ आप चाहे आधी रात में कहीं हों या फिर सुनसान जगह पर, हर जगह खुद को उस के साथ सेफ महसूस करें. इस बात का पूरा विश्वास हो कि दोनों में से किसी के भी बहकने के चांस नहीं हैं, वहीं दिल का संबंध है.

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