साड़ी हमारी भारतीय नारियों का सब से प्रमुख, शालीन, सुंदर और ग्रेसफुल पहनावा है. औरत चाहे बड़ी हो, छोटी हो या फिर मोटी हो साड़ी हर किसी पर खूबसूरत लगती है. सामान्यतया एक साड़ी की लंबाई 4.5 से 9 मीटर (15 से 30 फुट) और चौड़ाई 600 से 1,200 मिलीमीटर (24 से 47 इंच) होती है, जो आमतौर पर कमर के चारों ओर लपेटी जाती है और जिस का एक सिरा कंधे पर डाला जाता है. इसे ब्लाउज और पेटीकोट के साथ पहना जाता है. यह पारंपरिक रूप से भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका और नेपाल जैसे देशों में पहनी जाती है.

भारत में अलगअलग शैली की साड़ियों में कांजीवरम साड़ी, बनारसी साड़ी, पटोला साड़ी और हकोबा मुख्य हैं. मध्य प्रदेश की चंदेरी, महेश्वरी, मधुबनी छपाई, असम की मूंगा रेशम, ओडिशा की बोमकई, राजस्थान की बंधेज, गुजरात की गठोडा, पटौला, बिहार की तसर, काथा, छत्तीसगढ़ी कोसा रेशम, दिल्ली की रेशमी साड़ियां, झारखंडी कोसा रेशम, महाराष्ट्र की पैथानी, तमिलनाडु की कांजीवरम, बनारसी साड़ियां, उत्तर प्रदेश की जामदानी, एवं पश्चिम बंगाल की बालूछरी एवं कांथा टंगैल आदि प्रसिद्ध साड़ियां हैं.

साड़ी के इतिहास पर नजर डालें तो हमें पता चलेगा कि यह सदियों से अस्तित्व में है और इस का उल्लेख पौराणिक ग्रंथ महाभारत में भी मिलता है. साड़ी पहनने का चलन 2800 बीसी में सिंधु घाटी सभ्यता में भी था, भले ही तब अंदाज बहुत अलग था.

देश में आर्यों के प्रवेश के बाद महिलाओं ने कढ़ाई के साथ कलरफुल साड़ी पहननी शुरू कर दी थी. प्राचीन काल से चले आ रहे इस पारंपरिक परिधान यानी साड़ी को पहनने के तरीके में वक़्त के साथ काफी बदलाव जरूर आए हैं.

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