गुप्ताजी का पूरा परिवार रात को खाने की टेबल पर बैठा हुआ था. सब खाने की टेस्टी डिशेज का आनंद ले रहे थे. तभी गुप्ताजी ने अपने एसोसिएशन के काम करने के तौरतरीके को ले कर शिकायती लहजे में कहना ही शुरू किया था कि हमारी यह एसोसिएशन किसी काम की नहीं. जहां देखो कूड़ा पड़ा रहता है. गाड़ियों की पार्किंग का कोई सिस्टम नहीं है, जिसे देखो जहां मरजी गाड़ी लगा कर देता है. तभी उन के बड़े बेटे राजन ने उन्हें टोक दिया. ‘प्लीज पापा, हम ने डिसाइड किया था न, कि हम खाने की टेबल पर कोई शिकायत नहीं करेंगे. खाने की मेज पर किसी तरह की शिकायतों का पुलिंदा नहीं खोलेंगे और शिकायतों का भंडार न लगाएंगे. सिर्फ गौसिप, हंसीमजाक और खाने को एंजौय करेंगे और आप बताइए अब हम नैक्स्ट फैमिली टूर पर कहां जा रहे हैं, चलिए प्लान बनाते हैं.
क्या आप को नहीं लगता गुप्ताजी के परिवार का यह नियम सभी परिवारों में लागू होना चाहिए कि कम से कम खाने की मेज पर शिकायतों का पुलिंदा नहीं खोला जाए और खाने के समय नान, दाल के साथ परिवार के सदस्यों के साथ शिकायतें न परोसी जाएं?
नान दाल के साथ शिकायत न परोसें - दिन हो रात, जब भी खाने की मेज पर घर के सदस्य बैठे हों, किसी भी प्रकार की किसी की शिकायत नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि वह समय परिवार के साथ समय बिताने का सब से अच्छा मौका होता है. उस समय भले ही आपपड़ोस वाली आंटी की, अंकल की गौसिप करें. घर में होने वाले शादीब्याह की चर्चा करें, उस की प्लानिंग करें लेकिन पौलिटिक्स में फलां पार्टी अच्छी, फलां पार्टी खराब, सोशल समस्याओं जैसे सड़कों पर गड्ढ़े, नालियां टूटी हुई, साफसफाई की कमी, शहर में बढ़ते ट्रैफिक, पौल्यूशन, खराब एजुकेशन सिस्टम की शिकायतों का भंडार न लगाएं.
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