किसी के लिए भी जौब छोड़ना आसान नहीं होता. जौब छोड़ने के कुछ कारण होते हैं. यदि कोई जौब सिर्फ शेकी पोर्टफोलियो बनाने के लिए छोड़ रहा है तो यह भूल से कम नहीं. इंजीनियरिंग की पढ़ाई खत्म करने के बाद मोहनीश को अच्छी जौब मिल गई. 6 महीने की नौकरी के बाद उन्हें अच्छा औफर मिला तो पहली नौकरी छोड़ कर इसे जौइन कर लिया. कोविड के दौरान उन्हें कोई समस्या नहीं आई. काम ज्यों का त्यों चलता रहा. लेकिन एक साल बाद उन्हें तीसरी स्टार्टअप कंपनी में मनमुताबिक सैलरी और पोस्ट मिली. उन्होंने उसे जौइन कर लिया. लेकिन इस बार कंपनी ने जो वादा किया था, पोस्ट नहीं मिली. साथ ही, किसी प्रकार की जौब स्पैशियलिटी, जो पहले की 2 कंपनियों में थी, वह भी नहीं मिली.

मोहनीश अब परेशान होने लगा और आगे जौब बदलने की फिर से सोचने लगा. हर दिन वह अपना सीवी अलगअलग कंपनियों में पोस्ट करता रहता. लेकिन जौब कोई ढंग का नहीं मिल रहा था. करे तो करे क्या? इस जौब को छोड़ नहीं सकता था क्योंकि उस के परिवार वाले पहले से ही बारबार जौब छोड़ने से नाराज थे. ऐसे में वह अपने स्ट्रैस को किसी से शेयर भी नहीं कर पा रहा था. उस का मन काम पर भी नहीं लग रहा था. लेकिन कोई बोल्ड स्टैप लेना उस के लिए कठिन था. ऐसी समस्या केवल मोहनीश को ही नहीं, पास में रहने वाले धीरज को भी थी. उसे भी बारबार जौब चेंज करने का भूत सवार था. उस की सोच रही कि अगर कंपनी उस की मेहनत का सही मूल्य नहीं देती तो उसे वहां काम करना ही नहीं है.

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