35 साल की पत्रकार और वकील अलका धूपकर जब सातवीं कक्षा में थी तब उसे सोराइसिस हुआ, लेकिन वह महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाके में रहने की वजह से इस बीमारी का पता उसे देर से लगा.एक लड़की होकर सोराइसिस के साथ जीने का सामाजिक दबाव उसने झेला है. उसे लगातार सुनने पड़े कि उसकी शादी कैसे होगी? लेकिन उसकी इस मुश्किल घड़ी में उसके परिवार वालों ने काफी सहयोग दिया इससे उसे आगे बढ़ने में मुश्किल नहीं हुई.

अलका की तरह ही 29 वर्षीय रिंकी उपाध्याय भी सोराइसिस की मरीज है. उन्हें भी परिवार का काफी सहयोग मिला. वह अपने रोग को पहचानने और सही दवा को जानने के लिए उसने काफी शोध किया और आज फार्मा क्षेत्र में अपना कैरियर बना चुकी है.

इस बारें में त्वचारोग विशेषज्ञ डा. सतीश उदारे कहते है कि असल में सोराइसिस एक औटोइम्यून बीमारी है, जिसकी वजह से त्वचा पर खुजली होती है. त्वचा छिलके दार हो जाती है. उस पर लाल पैचेस हो जाते है. यह आम रैश की तरह ही होता है. सोराइसिस के होने की ख़ास वजह शरीर के इम्यून सिस्टम का कम हो जाना है. जिसके परिणामस्वरूप शरीर का इम्युन सिस्टम अपने ही स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करने लगता है. इसकी वजह से त्वचा की नयी कोशिकाएं तेजी से बनने लगती है और यह रुखी होने लगती है, जिसपर सख्त पैच होने लगते है. यह कोई कौस्मेटिक या स्किन समस्या नहीं है, जैसा अक्सर इसे मान लिया जाता है. पूरी दुनिया में लगभग 12.5 करोड़ लोग इससे प्रभावित है. सही देखभाल और इलाज से इसे दूर किया जा सकता है. यह छूने से नहीं फैलता, लेकिन अनुवांशिकी हो सकती है. ये बीमारी अधिकतर डिप्रेशन में रहने वाले लोग या फिर किसी औपरेशन या बीमारी से अगर इम्यून सिस्टम कम हो जाती है. तब इसके होने के चांस होते है.

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