देश में स्वास्थ्य एक ऐसी समस्या है जो अमीर हो या गरीब सबके लिए अलार्मिंग सिचुएशन होती है. अस्पतालों में लगी लंबी कतारें बताती हैं कि हम दिनबदिन अस्वस्थ होते जा रहे हैं. लेकिन इसमें एक बड़ा वर्ग ऐसा भी होता है जो अस्पताल या डौक्टर के पास जाने के बजाए अखबारों, पत्रिकाओं और टीवी से हेल्थ प्रोग्राम देखपढ़ अपनी स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान खोजता है. हालांकि यह गंभीर बीमारियां नहीं होती लेकिन ‘मोटापे से कैसे छुटकारा पाएं’, आंखों की रोशनी बढाने के लिए या ‘याददाश्त बढ़ाने के नुस्खे’, ‘पाचन सही करने के देसी उपाय’, ‘बौडी बिल्डर बनने के 10 टिप्स’ जैसे टौपिक्स पर आम लोग यही से पढ़कर और आजमाकर अपना इलाज या डाइट बना लेते हैं. फिर इसके बाद कई गंभीर मामले में भी वे इन्ही रिपोर्ट्स के आधार पर ट्रीटमेंट लेने लगते हैं.
हालांकि हेल्थ के मामले में कोई भी दावा या नुस्खा आजमाने से पहले डौक्टर की राय लेने की बात बार-बार दोहराई जाती है, लेकिन चूंकि इस तरह की हेल्थ सोल्यूशन में किसी विदेशी यूनिवर्सिटी की रिसर्च और या मेडिकल जर्नल का हवाला दिया जाता है लिहाजा पढ़ने वाले इन पर आंख बंद कर भरोसा कर लेते हैं.
इतना ही नहीं आजकल यूट्यूब पर ‘झट से बाल उगाने’ या ‘बेली कम करने’ से लेकर ‘सेक्स पावर बढ़ाने की जानकारियां’ व इलाज के वीडियो अमेच्योर लेवल पर बनाकर अपलोड किया जा रहे हैं और मिलियंस में देखे जा रहे हैं. जाहिर है इनको भी फौलो किया जा रहा है.
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि हेल्थ के मद्देनजर इस तरह की हेल्थ रिसर्च, मेडिकल जर्नल के दावों-आंकड़ों और वीडियोज पर आंख मूँद कर भरोसा किया जा सकता है. सीधा सा जवाब है नहीं. इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है. क्योंकि ज्यादातर जानकारियां यहां वहां से लिखी, पढ़ी या सुनीसुनायी बातों के आधार पर दी गयी होती हैं. यानी नीम हकीम खतरा ए जान वाली स्थिति होती है.
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