आमतौर पर लोग दूसरों को सुनना पसंद नहीं करते. वे या तो उन की बातें अनसुनी करते हैं या अपनी बात को ही उन के सामने रखने पर जोर देते हैं, किंतु जितना जरूरी अच्छा वक्ता होना है उतना ही अच्छा श्रोता होना भी है. बोलना हर किसी को बहुत पसंद होता है. यही नहीं, कुछ लोग तो इतना बोलते हैं कि वे अपने आगे किसी दूसरे को बोलने का मौका तक नहीं देते. इस का साक्षात उदाहरण है महिलाओं की किटी पार्टी जिस में मानो एकदूसरे से बढ़चढ़ कर बोलने की प्रतिद्वंद्विता ही लगी रहती है. परंतु, अकसर, अधिक बोलने की आदत होने के कारण वे अपना ही नुकसान कर बैठते हैं. जरूरत से ज्यादा बोलने का नुकसान अधिक बोलने की आदत के कारण अकसर लोग सामने वाले से जरूरी बात करना या कहना भूल जाते हैं. अकसर सामने वाले को अपने बारे में अनावश्यक व्यक्तिगत बातें भी बता जाते हैं.
अधिक बोलने से वार्त्तालाप बहुत अधिक लंबा हो जाता है जिस से कई बार श्रोता बोर होने लगता है और वह चाह कर भी आप की बातचीत में शामिल नहीं हो पाता. बातों के प्रवाह में लोग अकसर ऐसे पात्रों और लोगों की चर्चा करते हैं जो समयोचित ही नहीं होते और जिन का सुनने वालों से कोई लेनादेना ही नहीं होता. अपनी ही बात कहने के कारण आप संबंधित विषय पर किसी दूसरे के विचारों को सुनने से वंचित रह जाते हैं. आप की अधिक और अनावश्यक बोलने की आदत के कारण लोग आप से कटने भी लगते हैं. सुनने की महत्ता सच पूछा जाए तो बोलने से अधिक सुनने की कला आना बेहद आवश्यक है. आप अपने आसपास ही खोजेंगे तो 10 में से केवल 1 इंसान ही आप को श्रोता मिलेगा. जबकि एक अच्छे श्रोता बन कर आप अपने व्यक्तित्व में अनेक सुधार कर सकते हैं. मनोवैज्ञानिक काउंसलर कीर्ति वर्मा के अनुसार, ‘लोगों की बातों को शांति से सुनने का तात्पर्य है कि आप धैर्यशाली हैं.’