Gen Z Special: कहा जा रहा है कि डिजिटल युग में युवाओं के पास अपना समय बिताने के लिए बहुत कुछ है, मगर सच्चाई यह है कि इसके बावजूद वे अकेले पड़ गए हैं। वर्चुअल दोस्तों ने उन्हें असल दोस्त बनाने से बहुत दूर कर दिया है।

आज के तकनीकी युग में जेन जी के सामने अकेलेपन की एक बड़ी समस्या है, जो शहरों और महानगरों में बड़ी तेजी से बढ़ रही है। अस्पतालों के मनोरोग विभागों में बढ़ते युवा मरीज इस बात का सबूत हैं कि भारतीय समाज में अकेलापन मानसिक अस्थिरता और अवसाद का बड़ा कारण बन रहा है।

हम बूढ़े लोगों के अकेलेपन के लिए काफी चर्चा और चिंता करते हैं, मगर आज की युवा पीढ़ी — जिसे जेन जी कहकर बुलाया जा रहा है — जिस अकेलेपन से जूझ रही है, उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता।

आमतौर पर लोग इन युवाओं से जुड़ी इस समस्या को मज़ाक में उड़ा देते हैं — “अरे भाई, तुम्हें क्या ग़म है? खाओ-पियो, मौज करो, तुम्हें कौन रोकने-टोकने वाला है? अपनी मरज़ी के मालिक हो।” — ऐसी बातों से हम युवाओं के अकेलेपन की गंभीरता को दरकिनार कर देते हैं।

युवाओं में अकेलेपन के कई कारण होते हैं, जिन्हें हम सामाजिक, मानसिक, पारिवारिक और तकनीकी दृष्टिकोण से समझ सकते हैं।

आज के प्रतिस्पर्धात्मक जीवन में पढ़ाई, करियर और नौकरी की दौड़ में युवा अपने रिश्तों और दोस्ती के लिए समय नहीं निकाल पाते। उनका अधिकांश समय किताबों, कंप्यूटर, मोबाइल फोन और सोशल मीडिया पर बीतता है। इस वजह से उनके ऐसे दोस्त नहीं बन पाते जिनसे वे खुलकर अपनी निजी समस्याएँ, भावनाएँ और विचार साझा कर सकें।

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