दिल्ली के एक कालेज से पोस्ट ग्रैजुएशन कर रही रचना इन दिनों अपने छोटे भाई नित्यम को  ले कर काफी परेशान है. उस का भाई परिवार की जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह हो गया है और अब घर के किसी काम में उस का मन नहीं लगता. रचना ने जब हकीकत पता की तो माजरा समझ आया. दरअसल, नित्यम अपनी क्लास की एक लड़की से रिश्ते में मुंहबोले भाई के रूप में बंधा हुआ है. वह उस की हर जरूरत का खयाल रखता है. यही कारण है कि अपनी मुंहबोली बहन की जिम्मेदारियां निभातेनिभाते वह अपने परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारी भूल बैठा है.

दरअसल, सामाजिक रिश्तों की दुनिया बहुत निराली होती है. इन रिश्तों के इर्दगिर्द हम अपना जीवन गुजार लेते हैं. ये रिश्ते हमें पूर्ण तो बनाते ही हैं, साथ ही हमारे जीवन में नएनए रंग भी भरते हैं. खासकर संयुक्त परिवार जैसी परंपरा में इन रिश्तों की अहमियत और भी बढ़ जाती है. इन रिश्तों के जरिए परिवार के सदस्य एकदूसरे की ताकत बनते हैं और जिम्मेदारियां उठाने में तत्पर रहते हैं. जीवन की आपाधापी में कई बार कुछ ऐसे भी रिश्ते बनते हैं जिन का संबंध न खून से होता है और न दुनियादारी से. ये रिश्ते मुंहबोले होते हैं तथा इन में एक अलग ही सौंधापन होता है. खासकर आज के टीनएजर्स इन रिश्तों की तरफ तेजी से आकर्षित होते हैं.

मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते बनाना गलत नहीं है लेकिन अकसर किशोर इन रिश्तों के चक्कर में अपने खून के रिश्तों के प्रति लापरवाह हो जाते हैं. नतीजा, वे दरकने लग जाते हैं और एक समय ऐसा आता है जब उन्हें टूटने से कोई बचा नहीं सकता. मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते में यदि ईमानदारी है तो निश्चित तौर पर यह अच्छा लगेगा, लेकिन खून के रिश्ते को नजरअंदाज कर नहीं.

रिश्तों के प्रति नजरिया स्पष्ट रखें

मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते का अपना मनोविज्ञान भी होता है. जहां यह अपने साथ खुला आसमान लाता है तो वहीं उस में उड़ने के लिए हदें भी तय करता है. यह रिश्ता अब पहले की अपेक्षा ज्यादा सहज हो गया है. ऐसे में इस रिश्ते के प्रति अपना दायरा और नजरिया बिलकुल स्पष्ट रखना होगा. कुछ ऐसा रास्ता निकालिए कि आप मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते का आनंद भी लेते रहें और खून के रिश्तों को भी आप से कोई शिकायत न हो.

एकदूसरे की जरूरतों को समझें

भले ही खून के रिश्ते हमें जन्म से मिल जाते हैं लेकिन उन्हें बनाए रखने के लिए निभाना पड़ता है. परिवार के लोगों के साथ यदि आप के खून के रिश्ते हैं तो आप से उन की कुछ अपेक्षाएं भी होंगी. आप की जिम्मेदारी बनती है कि आप उन की सामाजिक व भावनात्मक सुरक्षा, सहयोग और सहभागिता का परस्पर खयाल रखें. उन्हें पारिवारिक रिश्तों की पोटली में बांधे रखें.

न टूटने पाए भरोसे की डोर

दुनिया का चाहे कोई भी रिश्ता हो वह भरोसे से बनता और मजबूत होता है. जैसे ही भरोसा टूटता है तो रिश्ते भी रेत की तरह बिखर जाते हैं. संभव है कि आप के मुंहबोले रिश्ते के कारण परिवार के लोगों का भरोसा आप से टूटता जा रहा हो. इसलिए आप को खुद आगे आ कर खून के रिश्ते को बचाने की पहल करनी होगी. आप को परिवार के हित में कई ऐसे सार्थक कदम उठाने होंगे जिन से कि उस का भरोसा आप के प्रति बरकरार रहे. कई बार किशोर मुंहबोले रिश्ते निभाने के चक्कर में पारिवारिक व खून के रिश्तों को इग्नोर कर देते हैं जो ठीक नहीं है.

मिलबैठ कर सुलझाएं गलतफहमी

अकसर रिश्तों के टूटने की शुरुआत गलतफहमी के चलते ही होती है. यह गलतफहमी बहुत सी कड़वाहट को अपनेआप में समेटती जाती है. धीरेधीरे एक ऐसी स्थिति आती है जब यह कड़वाहट नफरत में बदल जाती है और फिर रिश्ते को टूटने से कोई नहीं बचा सकता. आप के मुंहबोले रिश्ते के प्रति यदि परिवार के लोगों में गलतफहमी है तो उन के साथ बैठ कर पूरी स्पष्टता के साथ उन्हें सुलझाने का प्रयास करें.

जबरन अपनी राय न थोपें

आप ने एक मुंहबोला रिश्ता क्या बना लिया, खुद को परफैक्ट समझने लगे. आप को लगने लगा कि आप औरों से बेहतर राय रखते हैं. इस चक्कर में आप परिवार के लोगों पर अपनी राय और नजरिया जबरन थोपने लगते हैं. नतीजा, लोग आप से दूर भागने लगते हैं और आप की बातों का उन पर कोई असर नहीं होता. इसलिए किसी से जबरन अपनी बात न मनवा कर उन्हें पूरी बात बताएं. फैसले का अधिकार उसी पर छोड़ दें तो ठीक होगा.

काबिलीयत का सम्मान करें

परिवार में कोई व्यक्ति यदि अच्छा कर रहा है या कोई उपलब्धि हासिल की हो तो उस का पूरे मन से सम्मान करें. उस के साथ अपनी खुशियां बांटने की कोशिश करें. इस से रिश्तों में मधुरता आएगी और संबंध पहले से मजबूत होंगे. अकसर लोग पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो कर द्वेषवश परिवार के काबिल होते हुए भी उन्हें नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं. यह बात परिवार को तोड़ने का काम करती है. इस से बचने की कोशिश करें.

अपनी प्राथमिकताएं तय करें

इंसान अपनी जिंदगी में कई रिश्ते बनाता है. कुछ मुंहबोले होते हैं तो कुछ दोस्ती के रिश्ते. कई बार उस के सामने ऐसी परिस्थिति आ जाती है कि वह मुंहबोले और खून के रिश्ते में संतुलन नहीं बैठा पाता और उस की जिंदगी की गाड़ी डगमगाने लगती है. समझदारी इसी में है कि पहले वह देखे कि घर में बहन की फीस जमा करना ज्यादा जरूरी है या मुंहबोली बहन को शौपिंग कराना. जो काम करना ज्यादा जरूरी है उसी को प्राथमिकता के साथ पूरा करें और जिसे कुछ समय के लिए आगे बढ़ाया जा सकता है उसे कुछ समय के लिए टाल दें.

– अनिता शर्मा, रिलेशनशिप काउंसलर

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