शेरवानी के बारे में 3 बातें मशहूर हैं: गरीब पहन ले रईस लगे, अनपढ़ पहन ले पढ़ालिखा लगे और बदमाश पहन ले तो शरीफ लगे. यही बातें सूट पर भी लागू होती हैं. आजादी के फौरन बाद, शायद अंगरेजों का हैंगओवर था, सूट भारतीय फैशन का अटूट हिस्सा बन गया था. लेकिन हिप्पीइज्म के दौर में जींस, टीशर्ट औैर जैकेट का ऐसा रंग छाया कि सूट आउटडेटेड हो गया और यदाकदा शादियों में, वह भी जाड़ों की शादी में, बराती ही सूट में नजर आने लगे. लेकिन अब इसे बहुराष्ट्रीय संस्कृति का आगमन कहिए या प्रभावी सीईओ का अंदाज, सूट हमेशा से ही आकर्षक लुक वाला परिधान रहा है. अब पार्टियों या दफ्तर में जो व्यक्ति सूट में नजर नहीं आता उसे एग्जीक्यूटिव या हाईर्क्लास का सदस्य नहीं समझा जाता है.

टीवी प्रोग्राम ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में अमिताभ बच्चन ने तरहतरह के सूट पहन कर न सिर्फ अपनी एंकरिंग से लोगों को प्रभावित किया बल्कि अपने डिजाइनर सूटों से भी खास प्रभाव छोड़ा. आज जिस तरह टीवी एंकर अलगअलग समय पर अलगअलग सूट में नजर आते हैं, वैसी ही बात कभी हैदराबाद के छठे निजाम मीर महबूब अली खान के बारे में मशहूर थी. उन के बारे में मशहूर है कि वे एक सूट को कभी 2 बार नहीं पहनते थे. यह 19वीं शताब्दी के आखिर की बात है, लेकिन जिस तरह मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी, अजीम प्रेमजी, विजय माल्या, रतन टाटा से ले कर विक्रम पंडित जैसे लोग नित नए सूटों में नजर आते हैं, उस से यह 21वीं शताब्दी या आज की ही बात नजर आती है. कौर्पोरेट दुनिया में इस का क्रेज खासकर बढ़ रहा है. इस की कई वजहें हैं, मसलन :

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