आज के वक्त में वायु प्रदूषण लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. ये एक अदृश्य और मूक हत्यारा है. वायु प्रदूषण से मरने वाले लोगों की संख्या वाकई भयावह है. हर वर्ष इससे करीब 70 लाख लोगों के मौत का जिम्मेदार है. इनमें करीब 6 लाख बच्चे शामिल हैं. कई पर्यावरणविद् और मानवाधिकार के लोगों की माने तो करीब  छह अरब से अधिक लोग इतनी प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं, जिसने उनके जीवन, स्वास्थ्य और बेहतरी को खतरे में डाल दिया है. इसमें एक तिहाई संख्या बच्चों की है.

जनकारों की माने तो लंबे समय तक इस हवा में सांस लेने से कैंसर, सांस की बीमारी और दिल की बीमारी जैसी समस्याएं होती हैं. इससे हर घंटे करीब 800 लोग मर रहे हैं. पर इसके बाद भी इसके स्वरूप पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा. इसके पीछे कारण है कि लोगों को इसकी भयावहता का पता नहीं लग रहा.

एक्सपर्ट्स की माने तो इस समस्या को रोका जा सकता है. इस दिशा में भारत और इंडेनेशिया में हो रहे कार्य तारीफ के काबिल हैं. इन दोनों देशो में ऐसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जिनके जरिए लाखों गरीब परिवारों को खाना पकाने की स्वच्छ प्रौद्योगिकी अपनाने में मदद मिली, और कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों को सफलतापूर्वक हटाया जा रहा है.

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