आज के जमाने में बाबागीरी का धंधा सब से चंगा है. ताज्जुब है कि तमाम गुणों के बावजूद बाबा बनने का यह खयाल मेरे जेहन में अब तक क्यों नहीं आया. खैर, देर आए दुरुस्त आए. स्वागत कीजिए बाजार के सारे बाबाओं का, शेयर मार्केट डाउन करने वाले मौडर्न बाबा का.
मैं इन दिनों घोर आश्चर्य से गुजर रहा हूं. मेरी उम्र 70 वर्ष की हो रही है. सरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद मुझे इस दिशा में सोच लेना था, जिधर अब सोच रहा हूं. यानी कम से कम 5-7 वर्ष मैं ने यों ही गंवा दिए. मेरी कदकाठी आकर्षक है. रंग आम भारतीयों की पसंद का, जिसे गेहुआं कहा जाता है.
चमकदार गेहुआं. शरबती गेहूं जैसा. बोलने में वाक्पटु कह सकते हैं. सामान्य ज्ञान औसत से अधिक. तिल को ताड़ और राई को पर्वत बनाने में महारत हासिल. सरकारी नौकरी करते हुए जो अनुभव हासिल हुआ वह जेब में है. धार्मिक ग्रंथों की अच्छी जानकारी. चेहरे पर रोबदाब, किसी खानदानी नवाबों जैसा. गुस्सा कम आता है. अभ्यास के बल पर चेहरे पर कमज्यादा गुस्सा लाया जा सकता है. लोकभाषा, लोकसाहित्य, लोककला का अच्छा ज्ञान. ये सभी खूबियां मेरे पास हैं. लेकिन मैं ने बाबा बनने के बारे में कभी नहीं सोचा.
यह एक बड़ी चूक है. इस की भरपाई अब इस जन्म में संभव नहीं हो सकती. पश्चात्ताप करते रहने पर मैं विश्वास नहीं करता. अंधियारे को कोसते रहने से बेहतर है, एक दीप जलाना. दीप जलाने की पूरी तैयारी हो चुकी है. दीए में तेल और बाती है. हाथ में माचिस की डब्बी. आंधीतूफान से बचे रहने के लिए कांच का मजबूत घेरा.