ऐ मच्छर, तू महान है. तेरी महिमा का क्या वर्णन करूं? तू मनुष्यों के लिए प्रेरणास्रोत भी है तो मनुष्यों का पालक भी है. तू ने साबित कर दिया है कि कदकाठी और आकार के आधार पर किसी को हीन नहीं समझना चाहिए. कोई न कोई कवि कह डालेगा, ‘मच्छर कबहुं न निंदिए, जो होय सूक्ष्म आकार. इन की ही कृपा से, कितनों के सपने होय साकार.’ तुझ से सौ गुणे, हजार गुणे, लाख गुणे, करोड़ गुणे लंबेचौड़े प्राणी परिवर्तन के दंश से लुप्त हो गए पर तू है कि सदियों से, सहस्त्राब्दियों, लक्षाब्दियों से डटा हुआ है, अड़ा हुआ है, अडिग रह कर खड़ा हुआ है.

किसी भी परिवर्तन ने तेरे अस्तित्व पर कोई प्रभाव नहीं डाला. और भविष्य में ऐसी कोई संभावना नजर भी नहीं आती. तुझ से वैसे तो हर जीव को प्रेरणा लेनी चाहिए पर मनुष्यों के लिए तेरा विशेष महत्त्व है. शायद, भारतवासियों ने तुझ से ही प्रेरणा ले कर हर परिवर्तन को सहना सीखा है. महंगाई कितनी भी बढ़ जाए, भ्रष्टाचार कितना भी बढ़ जाए, कानून व्यवस्था की जो भी हालत हो उस में भारतवासी खुशीखुशी जीना सीख चुके हैं.

तेरी खून चूसने की आदत ने भारतवासियों को खून चुसवाने का अभ्यस्त बना दिया है. तू तो फिर भी कितना खून चूस पाएगा-एक मिलीलिटर न डेढ़ मिलीलिटर. हम तो अब इस कदर अभ्यस्त हो गए हैं कि कोई हमारे शरीर का सारे का सारा खून भी चूस ले तो भी कोई फर्क न पड़े, शायद. शिक्षण संस्थान, अस्पताल, व्यवसायी, सरकार सभी खून चूसते हैं आम जनता का और लोग बगैर किसी गिलाशिकवा के अपना खून प्रस्तुत करते हैं सभी को, चुसवाने के लिए. इस प्रकार, हम देशवासियों को अनुकूलन की प्रक्रिया अपनाने में तू काफी मददगार रहा है.

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