रोटी, कपड़ा और मकान इनसान की बुनियादी जरूरतें हैं. मेरे पास कपड़े थे और रोटियां भी, लेकिन मकान किराए का था. मेरे पिताजी का कहना था कि इस बुनियादी जरूरत को जल्दी से जल्दी पूरा कर लेना चाहिए, क्योंकि दूसरे के मकान में थूकने का भी डर होता है और अपने मकान में मनमानी करने की पूरी छूट होती है, इसलिए इस मनमानी को पूरा करने के लिए मेरे मन में उतावलापन मचा हुआ था.

लेकिन मकान का इंतजाम करना बड़ी टेढ़ी खीर होती है. मैं ने नौकरी करते हुए रिश्वतखोरी को बढ़ावा दिया, ताकि जैसेतैसे मैं अपना एक गरीबखाना बना सकूं.

मेरे हर दोस्त ने अपना यह शौक पलक झपकते ही पूरा कर लिया था. कई तो ऐसे थे, जिन के पास हर आवास योजना में एक मकान था. वे हमेशा मकान जैसी अचल जायदाद बनाने में लगे रहे और मैं हमेशा चंचला लक्ष्मी के पीछे पड़ा रहा.

एक दिन मेरे साथ अनहोनी हो गई. मैं ने एक हाउसिंग सोसाइटी में मकान लेने का फार्म भरा हुआ था. इत्तिफाक कहिए कि मुझे प्लौट अलौट हो गया.

यह सुनते ही मेरा शरीर रोमांचित हो उठा. पत्नी समेत बच्चे बल्लियां उछल पड़े. मदहोशी का एक ऐसा आलम था कि उसे मैं यहां बयान नहीं कर सकता.

मुझे रातदिन मकान के रंगीन सपने आने लगे. खाली जमीन पर सपनों में कोठी बनने लगी. उस को बनाने को ले कर घरेलू बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया. नक्शे बनने लगे. सुझाव आने लगे.

पत्नी का कहना था कि अमुक कमरे में पंखा लगेगा, तो मेरा सुझाव था कि कूलर लगवाया जाएगा. बच्चे पढ़ने के बजाय चुपकेचुपके कोर्स की कौपियों में मकान के नक्शे बनाने लगे. बाहर लौनपेड़पौधे और ऊपर खुली बालकनी पर जोर दिया जाने लगा.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...