Paramedical Courses : वर्तमान में स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत लगातार बढ़ रही है. हर कोई पैसों की तंगी की वजह से डाक्टर तो नहीं बन सकता. लेकिन जिसे मैडिकल लाइन में अपना कैरियर बनाना है तो इस का एक बहुत अच्छा विकल्प यूथ के लिए जरूर उपलब्ध है. जानें क्या है डाक्टर बनने का दूसरा सस्ता विकल्प.
सृजन काफी परेशान थे. उन के बेटे प्रखर ने इस वर्ष 12वीं की परीक्षा पास की थी. सातवीं कक्षा से ही वह डाक्टर बनने के सपने देख रहा था. बचपन से ही स्थेटेस्कोप कानों में लगा कर अपने दादाजी का बुखार नापता रहता था. दरअसल प्रखर के मामाजी डाक्टर थे. मामाजी से वह काफी हिलामिला था. मामाभांजे में प्यार भी बहुत था और प्रखर को कभी कोई तकलीफ हुई तो उस के मामाजी ही उस का इलाज करते थे.
प्रखर ने बचपन से ही मामाजी जैसा डाक्टर बनने का सपना पाल रखा था, मगर 12वीं में उस के मार्क्स सिर्फ 79% ही आए थे, ऐसे में सृजन को उम्मीद नहीं थी कि प्रखर मैडिकल के टफ कम्पटीशन को निकाल पाएगा. अगर कम्पटीशन निकाल भी लिया तो सरकारी मैडिकल कालेज में यदि उस को स्थान नहीं मिला तो किसी निजी मैडिकल कालेज में बेटे को पढ़ाने की हैसियत सृजन की नहीं थी.
नीट क्लियर करने के बाद डाक्टरी की पढ़ाई वैसे भी 7-8 साल मांगती है और निजी संस्थान में पढ़ो तो खर्चा 90 लाख से 1.5 करोड़ रुपए तक होता है. वहीं सरकारी मैडिकल कालेज में औसत एमबीबीएस कोर्स की फीस 10,000 रुपए से ले कर 50,000 रुपए प्रति वर्ष है.
प्रखर उन का इकलौता बेटा था और शादी के 14 साल बाद पैदा हुआ था. इसलिए उस को ले कर सृजन और उन की पत्नी क्रांति बहुत इमोशनल थे. बचपन से उस की हर ख्वाहिश पूरी करते आए थे. मगर सृजन चाहते थे कि प्रखर जल्दी से जल्दी कमाने लगे, ताकि वे जल्दी ही घर में बहू ला सकें. यदि डाक्टर बनने के चक्कर में प्रखर के 10-12 साल लग गए तो कब वह कमाना शुरू करेगा और कब सेटल होगा?
सृजन ने जब अपनी चिंता अपने साले यानी प्रखर के मामाजी के सामने रखी तो वे तपाक से बोले, ‘कोई जरूरत नहीं है डाक्टर बनाने की. 8-10 साल में डाक्टर बन भी गया तो सरकारी अस्पताल में उस को 30-50 हजार रुपए सैलरी मिलेगी और किसी बड़े प्राइवेट अस्पताल में लगा तो ज्यादा से ज्यादा अस्सी हजार महीना कमा लेगा. अपना खुद का क्लिनिक खोलने और स्थापित डाक्टर बनने के लिए कम से कम 15 साल का तजुर्बा हो तब कहीं जा कर अच्छी कमाई होती है.
फिर क्या करें? प्रखर तो जिद पर अड़ा है कि उसे डाक्टर ही बनाना है. सृजन ने परेशानी व्यक्त की. मामाजी बोले, उस से कहो पैरामैडिकल का कोई कोर्स कर ले. चाहे डिग्री कोर्स कर ले या डिप्लोमा या सर्टिफिकेट पैरामैडिकल कोर्स. डिग्री कोर्स चार साल में हो जाएगा और डिप्लोमा या सर्टिफिकेट कोर्स दो साल में पूरा हो जाएगा.
इस के बाद अगर किसी सरकारी अस्पताल में नौकरी लगती है तो दोतीन साल में उस की सैलरी लगभग उतनी ही होगी जितनी एक नए डाक्टर की होती है. कुछ साल के एक्सपीरियंस के बाद वह अपना पैथलैब खोल ले. कमाई ही कमाई है.
सृजन तो मैडिकल की इस क्षेत्र के बारे में सुन कर उछल पड़े. उन्होंने पैरामैडिकल के बारे में इंटरनेट पर सर्च किया तो करीब 8 ऐसे डिग्री कोर्स सामने आ गए जिस को करने के बाद दौलत और शोहरत दोनों उन के बेटे के कदम चूमें.
बीएससी (नर्सिंग) – बैचलर औफ साइंस (नर्सिंग), बीऔप्टोम – (बैचलर औफ औप्टोम), बीओटी – (बैचलर औफ औक्यूपेशनल थैरेपी), बीपीटी – (बैचलर औफ फिजियोथैरेपी), बीएससी – (विभिन्न विशेषज्ञता), बीफार्मा – (बैचलर औफ फार्मेसी), फार्मा.डी. – (डाक्टर औफ फार्मेसी), बीफार्मा आयुर्वेद – (बैचलर औफ फार्मेसी-आयुर्वेद) जैसे अनेक कोर्सेज जो चार साल में कम्पलीट हो सकते थे, उन के सामने थे.
ये सभी कोर्सेज ऐसे थे जिन को करने के बाद उन के बेटे को तुरंत जौब मिल सकती थी. और इस कोर्स को करने के लिए 12वीं में बहुत हाई परसेंटेज की जरूरत भी नहीं थी. आरक्षित वर्ग के विद्यार्थियों के लिए तो 10+2 में 40% अंक ही काफी थे.
दरअसल पैरामैडिकल का क्षेत्र कोई नया नहीं है मगर इस के बारे में बहुत जानकारी लोगों को नहीं है. जब कि पैरामेडिक्स के बिना आज न तो कोई अस्पताल चल सकता है और न कोई डाक्टर.
12वीं के बाद पैरामैडिकल कोर्स कर के अनेक क्षेत्रों में कार्य कुशलता प्राप्त की जा सकती है. जैसे नर्सिंग, फार्मेसी, फिजियोथेरेपी, औप्टोमेट्री औक्यूपेशन, थेरेपी, मैडिकल लैब टैक्नोलौजी, ओप्थाल्मिक टैक्नोलौजी, रेडियोग्राफिक टैक्नोलौजी, रेडियोथेरैपी, कार्डियोलौजी, न्यूरोलौजी, ब्लड ट्रांसफ्यूजन टैक्नोलौजी, प्लास्टर, एनेस्थीसिया टैक्नोलौजी, परफ्यूजनिस्ट, औपरेशन थिएटर टैक्नोलौजी, मैडिकल ट्रांसक्रिप्शन/मैडिकल रिकार्ड टैक्नोलौजी, साइटोलौजी, हिस्टोपैथोलौजी, ट्रांसफ्यूजन मैडिसिन, क्लिनिकल साइकोलौजिस्ट, एंडोस्कोपी, कम्युनिटी चिकित्सा, स्वास्थ्य निरीक्षक, आपातकालीन और फोरेंसिक चिकित्सा प्रौद्योगिकी, डायलिसिस प्रौद्योगिकी, एक्स-रे प्रौद्योगिकी, चिकित्सा इमेजिंग प्रौद्योगिकी, नेत्र प्रौद्योगिकी, एक्यूपंक्चर और मालिश चिकित्सा आदि.
प्रखर भी इतने सारे औप्शन देख कर खुश हो गया. जौब अपार्चुनिटी भी काफी थीं. 4 साल के डिग्री कोर्स के बाद काम करने के लिए उस के आगे अनेक क्षेत्र खुले थे. वह फार्मास्युटिकल ड्रग मैन्युफैक्चरिंग, सरकारी अस्पताल में विशेषज्ञ सलाहकार के तौर पर, निजी अस्पताल या क्लीनिक में सहायक के रूप में, चिकित्सा पर्यटन के क्षेत्र में, क्लीनिकल रिसर्च, भारतीय सशस्त्र बल, तकनीकी लेखन, कौरपोरेट अस्पताल में विशेष सलाहकार, अनुसंधान और शिक्षाविद् के रूप में, चिकित्सा पत्रकारिता के क्षेत्र में, केन्द्रीय सिविल चिकित्सा सेवा में, फार्मेसी अथवा चिकित्सा उपकरण निर्माण के क्षेत्र में अच्छा काम कर सकता था.
इस कोर्स में ज्यादा पैसा भी नहीं लगना था. प्रखर के मामाजी ने भी उस को समझाया तो वह समझ गया कि मैडिकल का क्षेत्र अब इतना विस्तृत हो चुका है कि उस में डाक्टर तो एक छोटी सी इकाई के रूप में ही बचा है.
पैरामैडिकल में टौप कोर्सेज भी हैं जैसे औपरेशन थिएटर टैक्नोलौजी- जैसा कि नाम से पता चलता है, इस के अंतर्गत औपरेशन थिएटर के भीतर मरीज को औपरेशन के लिए तैयार करना, डाक्टर्स को औपरेशन में मदद देना, मशीनों को औपरेट करना, ब्लड सैंपल एवं अन्य प्रकार के टेस्ट के सैंपल आदि लेना, औपरेशन में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों की जानकारी और औपरेशन टेबल पर सर्जिकल परफारमेंस में डाक्टर की हेल्प करने तक सभी कार्य होते हैं.
बीएससी रेडियोलौजी का कोर्स भी बहुत बच्चे कर रहे हैं. यह रेडियोलौजी चिकित्सा की एक शाखा है. एक्स-रे रेडियोग्राफी, अल्ट्रासाउंड, कम्प्यूटेड टोमोग्राफी, पौजिट्रान एमिशन टोमोग्राफी, फ्लोरोस्कोपी और चुम्बकीय अनुनाद इमेजिंग सहित विभिन्न प्रकार की इमेजिंग तकनीकों का उपयोग रोगों के उपचार और निदान के लिए किया जाता है.
रेडियोग्राफर, जिसे संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा जैसे कुछ देशों में ‘रेडियोलौजिक टेक्नोलौजिस्टस’ कहा जाता है, इस कार्य में विशेष रूप से प्रशिक्षित होते हैं. इस क्षेत्र को दो भागों में विभाजित किया गया है- डायग्नोसिस रेडियोलौजी और इंटरवैंशनल रेडियोलौजी.
सब से पहले एक्स-रे का उपयोग रोगियों की चोटों के उपचार और निदान के लिए किया जाता है, जब कि बाद में, रोगों के उपचार और निदान के लिए अल्ट्रासाउंड, एमआरआई, सीटी स्कैन जैसी न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया की जाती है.
असंख्य कैरियर के अवसरों और आकर्षक वेतन के साथ, रेडियोलौजी कोर्स एक लोकप्रिय विकल्प बन चुका है. यह कोर्स हास्पिटल में मशीनरी कैसे काम करती है, इस के टैक्निकल आस्पेक्ट को देखता है. इस कोर्स के पूरा होने पर एमआरआई और सीटी स्कैन जैसी औपरेटिंग मशीन को संचालित करने का कौशल प्राप्त हो जाता है.
औडियोलौजी और स्पीच थेरेपी में बीएससी- यह कोर्स कम्युनिकेशन डिसऔर्डर में स्पेशलाइज बनाता है. औडिओलौजिस्ट, हियरिंग डिसऔर्डर को पहचानना, उस को मापना और उस को ठीक करने में स्पेशलाइज बनाता है. स्पीच थेरेपिस्ट्स और स्पीचलैंग्वेज पैथोलौजिस्ट एक साथ काम करते हैं.
औडियोलौजिस्ट और स्पीच थेरैपिस्ट के रूप में कैरियर न केवल सफलता बल्कि नौकरी में सम्मान भी देता है. मैडिकल के क्षेत्र में यह विशेष शाखा वर्तमान समय में बहुत ही आशाजनक करियर विकल्प के रूप में देखी जा रही है. स्पीच थेरैपिस्ट को स्पीच पैथोलौजिस्ट भी कहा जाता है.
भाषण और श्रवण संबंधी विकारों के इलाज के लिए लोगों में बढ़ती जागरूकता के कारण स्पीच थेरैपी विशेषज्ञों की मांग बहुत बढ़ गई है. एक स्पीच थेरैपिस्ट उन लोगों के लिए काम करता है जिन्हें बोलने, शब्द बनाने और ध्वनियों को सुनने में कठिनाई होती है.
किसी चोट, बीमारी या आघात से जिन की संवाद क्षमता प्रभावित हुई हो अथवा गंभीर बीमारियों या दुर्घटना/स्ट्रोक अथवा कैंसर के कारण जिन के स्वरयंत्र को हटा दिया गया हो, जिस के कारण उन्हें बोलने में कठिनाई हो, ऐसे लोगों को सांकेतिक भाषा सिखाने का काम भी स्पीच थेरैपिस्ट करते हैं.
बीएससी औडियोलौजी और स्पीच लैंग्वेज पैथोलौजी तीन साल का पूर्णकालिक स्नातक कोर्स है. यह पाठ्यक्रम सार्वजनिक स्वास्थ्य, औषधि निर्माण, श्रवण सहायता प्रत्यारोपण उद्योग, चिकित्सा अस्पतालों और क्लीनिकों, शैक्षणिक विश्वविद्यालयों, उद्योगों में श्रवण संरक्षण कार्यक्रम जैसे क्षेत्रों में नौकरी के पर्याप्त अवसर प्रदान करता है.
आज पैरामैडिकल क्षेत्र हैल्थ केयर में तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र है. पैरामैडिकल कोर्स प्रीहौस्पिटल, आपात स्थितियों और गैर सर्जिकल मामलों से संबंधित क्षेत्र है. साधारण शब्दों में समझें तो पैरामैडिकल उन्हें बोलते हैं जो एक्सरे करते हैं, अल्ट्रासाउंड करते हैं, सोनोग्राफी करते हैं या फिजियोथेरैपी आदि करते हैं. ये एमबीबीएस डाक्टर नहीं होते मगर आपात स्थिति में रोगी को संभालने वाला सब से पहला व्यक्ति पैरामेडिक होता है.
किसी रोगी की चिकित्सा के लिए डाक्टर इन की सेवाओं पर ही आश्रित होते हैं क्योंकि अपने मरीज के सही उपचार के लिए डाक्टर जो टेस्ट, एक्स रे, अल्ट्रासाउंड, मालिश, एक्सरसाइज आदि लिखता है, वह सारा काम पैरामैडिकल स्टाफ ही संपन्न करता है.
पैरामैडिकल स्टाफ द्वारा मरीज के संबंध में दी जाने वाली रिपोर्ट्स के बिना डाक्टर का काम अधूरा है. उस के बिना वह न तो सही निर्णय पर पहुंच सकता है और न ही सही इलाज कर सकता है.
आज पैरामैडिकल स्वास्थ्य सेवा उद्योग की रीढ़ है. अस्पतालों, क्लिनिक, नर्सिंग होम, पैथ लैब और निजी क्षेत्रों में पैरामैडिकल स्टाफ की मांग बहुत ज्यादा है. कोविड महामारी ने परिदृश्य बदल दिया है. इस वैश्विक महामारी ने विशेष रूप से टियर-2 शहरों में योग्य पैरामेडिक्स की मांग बढ़ा दी है.
कोविड के बाद फिजियोथेरपी, लैब परीक्षण और स्कैनिंग सेवाओं की बहुत आवश्यकता पड़ने लगी है. सरकार की योजना भी अगले कुछ वर्षों में भारत के प्रत्येक जिले में कम से कम एक मैडिकल कालेज बनाने की है. इस के साथ ही एम्स जैसे संस्थान भी बड़ी तेजी से बनाए जा रहे हैं.
ऐसे में स्पष्ट है कि पैरामैडिकल स्टाफ की जरूरत आने वाले समय में बहुत तेजी से बढ़ेगी और साइंस के विद्यार्थी के लिए इस क्षेत्र में करियर बनाना एक बहुत अच्छा विकल्प साबित होगा.
वैसे भी मैडिकल की पढ़ाई काफी महंगी पढ़ाई है. कई लाख रुपए और कई साल की मेहनत के बाद लोग डाक्टर बनते हैं. बहुत से ऐसे छात्र होते हैं जो विज्ञान विषयों में रुचि रखते हैं और साइंस स्ट्रीम से 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करते हैं. हालांकि साइंस विषय ले कर पढ़ने वाले हर बच्चे की आंखों में डाक्टर बनने का सपना होता है, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति कई बार ऐसी नहीं होती कि मैडिकल की पढ़ाई पर बहुत सारा पैसा निवेश किया जा सके.
कई बार मैडिकल में जाने के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षा में छात्र उत्तीर्ण नहीं हो पाते हैं. ऐसे में हताश होने की आवश्यकता नहीं है. पैरामैडिकल का बहुत बड़ा क्षेत्र ऐसे बच्चों को कैरियर के बेहतरीन विकल्प उपलब्ध कराता है. पैरामैडिकल का कोर्स मैडिकल कोर्स के मुकाबले कम खर्च वाला और कम समय में होने वाला है. सच पूछिए तो पैरामैडिक अग्रिम पंक्ति के योद्धा हैं, जो मरीजों के स्वस्थ होने को सुनिश्चित करते हैं.
पैरामैडिकल कोर्स की शुरुआत
इस बात की कोई ठोस जानकारी नहीं है कि पैरामैडिकल की शुरुआत दुनिया में कहां, कब और कैसे हुई. पहले निजी प्रैक्टिस करने वाले डाक्टरों की क्लिनिक में डाक्टर के अलावा उस का एक कंपाउंडर और ज्यादा हुआ तो एक नर्स होती थी. जो डाक्टर के निर्देशानुसार मरीज को दवा और इंजैक्शन देते थे. लेकिन विज्ञान की तरक्की और बाजारवाद के बढ़ने से रोगी को अनेक टेस्ट और थेरेपीज से भी गुजरना पड़ता है. ऐसे में दुनिया भर में पैरामैडिकल स्टाफ की जरूरत पड़ने लगी, जो तकनीकी काम में दक्ष होते हैं.
इस के अलावा अचानक होने वाली दुर्घटनाएं, युद्ध, बमधमाके आदि के दौरान घायल होने वाले रोगियों को तत्काल मदद पहुंचाने के लिए भी ऐसे लोगों की आवश्यकता महसूस हुई जो मेडिकली प्रशिक्षित हों. इस जरूरत को देखते हुए दुनिया के अलगअलग हिस्सों में अलगअलग समय पर ऐसे लोगों को प्रशिक्षित किया जाने लगा जो डाक्टर के पहुंचने तक मरीज को कुछ उपचार के जरिए ऐसी राहत दे सकें कि उस की जान बचाई जा सके.
अमेरिकी लेखक केविन हैजर्ड द्वारा लिखी एक किताब ‘अमेरिकन सायरन: द इन्क्रेडिबल स्टोरी औफ द ब्लैक मैन हू बिकम अमेरिकाज फर्स्ट पैरामेडिक्स’ से पता चलता है कि विश्व में सर्वप्रथम पैरामैडिकल सेवाओं को शुरू करने वाले व्यक्ति एक अश्वेत अमेरिकी थे, जिन का नाम पीटर साफर था.
केविन लिखते हैं कि साफर ने 1966 में अपनी लाड़ली बेटी को सिर्फ इस कारण से खो दिया क्योंकि उस को अस्थमा का अटैक पड़ा तो घर से हास्पिटल तक ले जाने के दौरान उस को कोई फर्स्ट एड नहीं मिल पाई और हौस्पिटल पहुंचने तक उन की बेटी ने दम तोड़ दिया. इस घटना ने पीटर साफर को बहुत व्यथित कर दिया. उन को महसूस हुआ कि कुछ ऐसे लोग होने चाहिए जो समय रहते मरीज की इतनी मदद कर सकें कि वह डाक्टर तक पहुंच जाए.
अपनों को असमय खोने के दर्द से दूसरों को बचाने के लिए पीटर साफर ने एक आधुनिक एम्बुलेंस डिजाइन की. जिस में मरीज को फर्स्ट एड देने के लिए कई मैडिकल उपकरण लगाए गए थे.
लेखक केविन हैजर्ड के अनुसार पीटर साफर ही वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पैरामेडिक्स को प्रशिक्षित करने के लिए दुनिया का पहला पाठ्यक्रम डिजाइन किया था. उन्होंने अस्पताल में गहन देखभाल इकाई – आईसीयू को विकसित करने में भी अहम भूमिका निभाई. औस्ट्रिया में जन्मे पीटर साफर स्वयं एक एनेस्थेसियोलौजिस्ट और सीपीआर के जानकार थे.
1967 में पीटर साफर द्वारा डिजाइन किया गया पैरामैडिकल पाठ्यक्रम ज्वाइन करने वाला पहला ग्रुप काले लोगों का ही था. उन्होंने ‘फ्रीडम हाउस’ नामक अपना एक संगठन बनाया, जिस का शुरुआती उद्देश्य था जरूरतमंद काले अमेरिकियों को सब्जियां और भोजन पहुंचाने के साथसाथ मैडिकल सुविधाएं भी मुहैया कराना.
लेकिन 8 महीने के अंदर ही उन्हें मिर्गी, प्रसव या दम घुटने जैसी आपात स्थितियों से निपटने के लिए भी प्रशिक्षित किया गया. उन की पहली कौल 1968 में मार्टिन लूथर किंग जूनियर की हत्या के बाद हुए विद्रोह के दौरान हुई, जिस में उन्होंने दंगों में घायल हुए लोगों के तुरंत उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
इस से पहले आपात स्थितियों से निपटने के लिए या तो पुलिस और सेना के जवान लगाए जाते थे या फिर स्वयंसेवी अग्निशमक के जवान, जो लड़ाई या दंगा होने पर हताहतों को गाड़ियों में डाल कर अस्पताल पहुंचा देते थे. लेकिन वे स्वयं मरीज की जान बचाने में कोई मदद नहीं कर पाते थे क्योंकि वे आपातकालीन देखभाल प्रदान करने के लिए प्रशिक्षित नहीं थे.
उस समय के एम्बुलैंस भी ज्यादातर शव वाहन ही थे, जो अस्पताल और कब्रिस्तान के बीच चलते थे. दो देशों के बीच युद्ध के वक्त अनेक सैनिक रणक्षेत्र में सिर्फ इसलिए मर जाते थे क्योंकि उन को तुरंत कोई चिकित्सकीय मदद नहीं मिल पाती थी. ऐसे वक्त में पैरामैडिकल प्रशिक्षण काम आया और इस का तीव्रता से विस्तार हुआ.
1972 में ‘फ्रीडम हाउस’ द्वारा मात्र दो महीने में अस्पताल पहुंचाए गए 1400 रोगियों में से 89% की जान समय रहते बच गई क्योंकि उन्हें तुरंत मैडिकल सपोर्ट और सही देखभाल मिल गई थी.
‘फ्रीडम हाउस’ की इतनी सफलता के बावजूद 1975 में नस्लवादी सोच रखने वाले पिट्सबर्ग के मेयर पीटर फ्लेहर्टी ने ‘फ्रीडम हाउस’ संगठन को बैन कर दिया और उस के स्थान पर एक पूर्ण श्वेत पैरामैडिकल कोर स्थापित किया.
लेखक केविन हैजर्ड अपनी किताब में लिखते हैं – ‘फ्रीडम हाउस बहुत सफल संगठन था. यह उच्च शिक्षित लोगों का संगठन था, जिन में से कई लोगों ने आगे जा कर मास्टर डिग्री, पीएचडी या मैडिकल डिग्री प्राप्त की अथवा राजनीति, पुलिस और अग्निशमन विभाग में उच्च पदों पर नियुक्त हुए.
वे वास्तव में सफल लोग थे, जो कहीं बाहर से नहीं आए थे, बल्कि सेवाभाव ले कर आम अमेरिकी लोगों के बीच से ही निकले थे. लेकिन नस्लवाद के कारण वे नकार दिये गए, परंतु उन का काम इतिहास में दर्ज है.