हर औरत का सपना मां बनने का होता है. मां न बन पाने की स्थिति में वह डिप्रैशन की शिकार हो जाती है. उस के परिवार वालों का रवैया भी उस के प्रति बदल जाता है लेकिन अब विज्ञान ने बांझपन को दूर करने के लिए कई रास्ते खोज लिए हैं. इन में से एक है आईवीएफ तकनीक यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन.

कृत्रिम तरीके से स्त्री के अंडाणु और पुरुष के शुक्राणु को मानव शरीर के बाहर मिलान करने से बने भ्रूण को स्त्री के गर्भाशय में पुन: स्थापित करने की प्रक्रिया को आईवीएफ कहते हैं. करीब 3 दशकों से इस तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है पर हाल के कुछ वर्षों में इस की खासी डिमांड बढ़ी है.

बांझपन का मुख्य कारण हार्मोन असंतुलन, महिला की फेलोपियन नलिकाओं में रुकावट व पुरुष शुक्राणुओं की पूरी तरह से अनुपस्थिति या फिर पर्याप्त संख्या में न होना होता है. इस के अलावा अगर स्त्री के गर्भाशय से जुड़ी नलिकाएं काम न कर रही हों, बंद हों या खराब हों, बच्चेदानी के मुंह में इन्फैक्शन हो या शारीरिक रूप से डिसेबल हों और संभोग प्रक्रिया संभव न हो तो संतानसुख नहीं मिल पाता. ऐसे में कृत्रिम गर्भाधान यानी आईवीएफ ही संतानसुख प्राप्त करने का जरिया बचता है.

नई दिल्ली स्थित रौकलैंड अस्पताल की गाइनीकोलौजिस्ट डा. आशा शर्मा कहती हैं कि इस तकनीक में पुरुषों के शुक्राणुओं की जांच आवश्यक है. आमतौर पर 60 से 120 मिलियन तक शुक्राणु होते हैं, जिन में से 60 से 80 प्रतिशत शुक्राणु जिंदा होते हैं. लेकिन आजकल आईवीएफ तकनीक की सहायता से वे महिलाएं भी संतान का सुख भोग सकती हैं जिन के पतियों में शुक्राणु बन तो रहे हैं पर किसी कारणवश वीर्य की जांच करने पर दिखाई नहीं देते हैं. ऐसे लोगों के लिए आईसीएसआई तकनीक उपलब्ध है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...