आम आदमी सब से ज्यादा पीडि़त अस्पतालों में होता है. बीमार कोई भी पड़ सकता है लेकिन बीमार को हमारी चिकित्सा प्रणाली जिस कदर अस्वस्थ करती है वह रोंगटे खड़े करता है. हमारे यहां जीवनरक्षक औषधियां और चिकित्सा उपकरण अत्यधिक महंगे और आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं. सरकार का कीमतों पर नियंत्रण नहीं है. लिहाजा, आम आदमी पिसता ही जा रहा है. सरकार ने कम लागत वाली आवश्यक दवाओं की एक राष्ट्रीय सूची यानी एनएलईएम तैयार की है. उस सूची में जो भी दवा या उपकरण शामिल किए जाते हैं उन की कीमत 70 से 80 फीसदी तक घट जाती है. राष्ट्रीय सूची होने के बावजूद हमारे यहां दवाएं बहुत महंगी है और कई जरूरी दवाएं इस सूची में शामिल नहीं हैं. चिकित्सा उपकरणों की स्थिति तो और भी खराब है. उस की स्थिति का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर 14 हजार से अधिक चिकित्सा उपकरणों की सूची है जबकि उन में से मुश्किल से 20 उपकरण ही इस सूची में शामिल हैं. देश में दवाओं की कीमत निर्धारण करने के लिए नैशनल फार्मास्यूटिकल प्राइजिंग अथौरिटी यानी एनपीपीए है. एनपीपीए को दवाओं की कीमत निर्धारित करने का अधिकार है. संगठन का कहना है कि वह चिकित्सा उपकरणों की कीमत कम करने के लिए उपकरणों की सूची तैयार कर के एनएलईएम के समक्ष पेश करने को तैयार है. यदि ऐसा होता है तो आने वाले समय में जीवन रक्षक चिकित्सा उपकरणों की कीमत कम हो सकती है. सरकार को इस दिशा में और तेजी से पहल करनी चाहिए ताकि लोगों को जीवनरक्षक दवाएं व उपकरण कम कीमत पर मिल सकें.

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