बाइस साल की अर्चना जब दिल्ली में काम करने के इरादे से आयी थी, तब कितनी खूबसूरत और जीवंत थी, मगर चार साल में ही वह बीमार, चिड़चिड़ी, उदास और हर वक्त थकी-थकी सी नजर आती है. छब्बीस साल की उम्र में छत्तीस की दिखती है. वहीं उसकी बड़ी बहन उम्र में उससे कम और उससे ज्यादा खूबसूरत लगती है. अर्चना की इस हालत के पीछे जिम्मेदार है उसका काम. अर्चना एक बीपीओ में काम करती है. सैलरी तो बहुत अच्छी है, लेकिन काम करने का समय निश्चित नहीं है. उसके ऑफिस का वक्त कभी रात को आठ बजे से सुबह चार बजे तक होता है, कभी सुबह चार बजे से बारह बजे तक, कभी बारह बजे से आठ बजे तक. उसकी लाइफ में कुछ भी निश्चित और एकसमान नहीं है. पंद्रह-पंद्रह दिन पर शिफ्ट चेंज हो जाती है और उसके साथ ही उसका पूरा सिस्टम गड़बड़ा जाता है. सुबह-शाम का कोई ठिकाना नहीं. कभी सुबह तक सोती रहती है, कभी दोपहर में सोती है तो कभी रात में सोती है. नतीजा न खाने का कोई वक्त निश्चित है, न टॉयलेट जाने का. इसके चलते उसकी बायलॉजिकल क्लॉक बिगड़ चुकी है. अर्चना कभी भी कुछ भी खा लेती है. कभी-कभी तो हफ्तों फास्टफूड ही खाती रहती है. इन्हीं सब बातों के चलते उसका वजन तेजी से बढ़ रहा है, बाल झड़ रहे हैं, चेहरा निस्तेज हो गया है, आंखों के नीचे गड्ढे नजर आने लगे हैं. हर वक्त एसिडिटी की प्रॉब्लम के कारण पर्स में ईनो पाउडर के पैकेट्स भरे रहते हैं. हर वक्त खुश और चहकती रहने वाली अर्चना लगातार चिड़चिड़ी और उदास रहने लगी है.

पहले जहां दफ्तरों में नौ से पांच या दस से छह की ड्यूटी हुआ करती थी, वहीं अब महानगरों के साथ-साथ छोटे शहरों में चौबीसों घंटे और शिफ्ट में काम करने का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है. मीडिया, बीपीओ सेक्टर और कई प्राइवेट कम्पनियों ने चौबीसों घंटे काम करने के चलन को बढ़ाया है. यहां लोग शिफ्टों में काम करते हैं. ये शिफ्ट पंद्रह दिन या महीने भर के अंतराल पर बदलती रहती हैं. बड़ी संख्या में लोगों को नाइट शिफ्ट में काम करना पड़ता है या फिर हर हफ्ते उनकी शिफ्ट और शेड्यूल में बदलाव होता रहता है. ऐसे में अगर आप भी इस तरह के शेड्यूल में काम करते हैं तो न सिर्फ आपको मोटापा और डायबीटीज का जोखिम अधिक है, बल्कि यह बदलती शिफ्ट आपको कई तरह के मानसिक रोगों का गिफ्ट भी दे सकती है.

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एक अध्ययन में पता चला है कि नाइट शिफ्ट जिन्दगी के लिए बड़ा खतरा बन रही हैं. इसके चलते फेफड़े के कैंसर और हृदयरोग से जुड़ी समस्याएं पैदा हो रही हैं जो जल्द मौत की वजह भी बन सकती हैं. इस स्टडी के मुताबिक, पांच या इससे ज्यादा सालों तक बदल-बदल कर नाइट शिफ्ट में काम करने वाली महिलाओं में हृदयरोग से जुड़ी समस्याओं के कारण मृत्युदर बढ़ा पाया गया, जबकि 15 साल से अधिक समय तक काम करने वाली महिलाओं में फेफड़े के कैंसर से मृत्यु होने की दर में इजाफा देखा गया है.

नाइट शिफ्ट या शिफ्ट चेंज से इंसान का डेली रूटीन बुरी तरह प्रभावित होता है. हमारे मस्तिष्क में कुछ हजार ऐसी कोशिकाएं होती हैं, जहां हमारे शरीर की मुख्य जैविक घड़ी होती है. यह जैविक घड़ी निर्धारित करती है कि हमें कब सोना है, कब जागना है या भोजन पचाने के लिए लिवर को कब एंजाइम पैदा करना है. जैविक घड़ी हमारे दिल की धड़कन को भी नियंत्रित करती है, यह सुबह धड़कन को तेज और शाम को सुस्त करती है. रात की शिफ्ट में काम करने से जैविक घड़ी गड़बड़ा जाती है और ठीक से काम नहीं कर पाती, नतीजतन गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. रात में जागने से शरीर में हार्मोनल असंतुलन हो जाता है. शरीर में कुल 230 तरह के हॉर्मोंस होते हैं, जो अलग-अलग कामों को कंट्रोल करते हैं. हॉर्मोन की छोटी-सी मात्रा ही कोशिकाओं के काम करने के तरीके को बदल देती है. इसका असर हमारे मेटाबोलिज्म, इम्यून सिस्टम, शरीर के डेवलपमेंट और मूड पर पड़ता है.

डिप्रेशन और चिन्ता

नाइट शिफ्ट में काम करने वालों को डिप्रेशन और चिंता होने की संभावना 33 प्रतिशत अधिक हो जाती है. विशेष रूप से उन लोगों की तुलना में जो नाइट शिफ्ट में काम नहीं करते हैं या फिर वैसे लोग जो 9 से 5 बजे वाली शिफ्ट करते हैं. अवसाद के चलते नाइट शिफ्ट वाले हर वक्त चिड़चिड़े और थके-थके से रहते हैं. ठीक नींद न मिलने के चलते उनका थका हुआ मस्तिष्क लाइफ की छोटी-छोटी समस्याओं के निराकरण में भी खुद कर सक्षम नहीं पाता है और वे हर वक्त चिन्ताओं में घिरे रहते हैं. उनकी रोजमर्रा की जिन्दगी में तेजी से बदलाव आता है और वे इन्ट्रोवर्ट हो जाते हैं. रिश्तेदारों, दोस्तों से दूर रहने लगते हैं.

मानसिक बीमारियों का खतरा

शिफ्ट में काम करने वाले लोगों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित होने की संभावना 28 प्रतिशत अधिक होती है. दरअसल जब हम रात को अपनी पूरी नींद लेते हैं तो सुबह उठने पर हमारा दिमाग और शरीर तरोताजा महसूस करता है. रात के वक्त कोई डिस्टर्बेंंस नहीं होता, अंधेरा होता है, खामोशी होती है, वातावरण में ठंडक होती है. यह सभी चीजें हमारे शरीर को आराम पहुंचाती हैं. इसके विपरीत जब हम रात भर काम करते हैं और दिन के वक्त सोते हैं तो चारों तरफ वाहनों और लोगों का शोर होता है, तेज रोशनी होती है, गर्मी और उमस होती है, नतीजा न तो हमारा शरीर और न ही दिमाग पूरी तरह आराम हासिल कर पाता है. दोनों ही बेचैन और तनावग्रस्त हो जाते हैं. हम भले छह-सात घंटे सोए रहे हों, लेकिन यह नींद आरामदायक नींद नहीं होती है. यह बेचैनी और तनाव हमारे मस्तिष्क पर प्रभाव डालता है और हम दिमाग से जुड़ी कई बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं, जिसमें सबसे पहला लक्षण भूलने की बीमारी का सामने आता है.

चिड़चिड़ापन और मूड स्विंग

स्टडी में शामिल विशेषज्ञों का कहना है कि बार-बार शिफ्ट में बदलाव होने से हमारे सोने और जागने की आदत पर असर पड़ता है. हमारा शरीर सोने-जागने की आदत में बार-बार हो रहे इस बदलाव को नहीं झेल पाता, जिससे लोगों में चिड़चिड़ापन आ जाता है. इसके अलावा मूड स्विंग होना और सामाजिक अलगाव का कारण भी बनता है जिससे परिवार और दोस्तों से रिश्ते प्रभावित होने लगते हैं.

डायबीटीज, मेटाबौलिक सिंड्रोम

अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि वैसे लोग जो शिफ्ट में काम करते हैं उन्हें डे वर्कर्स की तुलना में डायबीटीज होने का खतरा 50 प्रतिशत अधिक होता है. साथ ही ऐसे लोगों में मेटाबोलिक सिंड्रोम जिसमें कई तरह की हेल्थ प्रौब्लम्स जैसे- हाई बीपी, हाई ब्लड शुगर, मोटापा और अनहेल्दी कोलेस्ट्रौल लेवल की समस्या शामिल है.

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रखें इन बातों का ध्यान

नाइट शिफ्ट या बदलने वाली शिफ्ट में काम करना अगर आपकी मजबूरी है, तो कोशिश करें कि दो-तीन साल में ही कोई ऐसी जॉब आपको मिल जाए जो दिन के वक्त हो. नाइट शिफ्ट वाली या शिफ्ट चेंज वाली जॉब लम्बे समय तक नहीं करनी चाहिए. नाइट शिफ्ट के चलते आप बीमार न पड़ें इसके लिए कुछ बातों पर अगर आप ध्यान दें तो यह आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायक होगा.

–  नाइट शिफ्ट में काम करते हैं, तो दिन में सोते समय पर्याप्त अंधेरा रखें.

–  सोने के लिए शांत जगह का चुनाव करें.

–  रात में ड्यूटी पर जाने से पहले एक घंटे की छोटी नींद जरूर लें.

–  रात में काम करते समय चौकलेट, जंकफूड की बजाय, सलाद या फल का सेवन करें.

–  रात में काम करते समय चाय, कॉफी या शीतल पेय लेने से बचें.

–  ड्यूटी पूरी होने के बाद जब भी घर पहुंचें, तो खाली पेट न सोएं. हल्का-फुल्का खाना खाकर ही सोएं.

–  नींद नहीं आ रही है, तो दवा या अल्कोहल का प्रयोग बिल्कुल न करें.

–  डिनर हमेशा समय पर करें. आपको अपनी शिफ्ट शुरू होने से करीबन एक घंटा पहले ही डिनर कर लेना चाहिए.

–  ब्रंच टाइम अर्थात रात्रि में 12 से 1 के बीच जब हल्की भूख का अहसास हो तो चाय या कॉफी न पीएं, बल्कि कुछ हेल्दी फूड का चयन करें. मसलन, इस समय पौपकार्न, नट्स या ड्राई नमकीन जैसे चिवड़ा लें. यह आपकी भूख भी मिटाएगा और ऊर्जा भी देगा.

–  सुबह का नाश्ता कभी स्किप न करें. अक्सर रातभर काम करने और थकावट के कारण लोग सुबह नाश्ता छोड़कर सो जाते हैं. ऐसा नहीं करना चाहिए. जो लोग ऐसा करते हैं, उन्हें मेटाबोलिक डिसआर्डर की समस्या का सामना करना पड़ता है. मेटाबोलिक डिसआर्डर अन्य कई बीमारियों जैसे शुगर व बीपी आदि को जन्म देता है.

–  पीने के पानी पर ध्यान दें. रात के समय में मौसम में काफी हद तक बदलाव आ जाता है. खासतौर से, सर्दी के मौसम में तो वैसे भी पानी की प्यास कम लगती है. जिसके कारण व्यक्ति पानी कम पीता है, लेकिन रात के समय काम करते समय वाटर इनटेक कम हो जाता है. अगर काम के दौरान वाटर इनटेक पर ध्यान न दिया जाए तो इससे निर्जलीकरण की समस्या हो सकती है. इसलिए काम की व्यस्तता के बीच भी रात्रि में पानी पर्याप्त मात्रा में पीएं.

–  बौडी पौश्चर को ठीक रखें. चूंकि रात के समय में व्यक्ति को स्वाभाविक तौर पर नींद आती है ही, साथ ही इस समय औफिस का माहौल भी काफी हद तक बदल जाता है. जिसके कारण व्यक्ति उतना अलर्ट नहीं होता, जितना दोपहर के समय होता है. इतना ही नहीं, रात को काम के समय जब व्यक्ति को नींद आती है, तो उसका बौडी पॉश्चर भी बदल जाता है. यह गलत बौडी पौश्चर बैक पैन, गर्दन दर्द व अन्य कई तरह की समस्याओं की वजह बनता है. इसलिए बॉडी पॉश्चर पर भी उतना ही ध्यान दें, जितना आप अपने काम पर देते हैं.

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