जैनेरिक दवाओं के उत्पादन और निर्यात में भारत दुनिया में सब से आगे है, जबकि ज्यादातर भारतीय बीमारी में दवाओं का खर्चा नहीं सह सकते. कई देशों से मरीज भारत में सस्ते इलाज के लिए आते हैं. नतीजतन, देश में ‘मैडिकल टूरिज्म’ फलफूल रहा है. वहीं 70 प्रतिशत भारतीय मरीजों के लिए डाक्टरी सेवा उपलब्ध नहीं है.

अस्पतालों में हर हजार भारतीयों के लिए मात्र 1.5 बैड उपलब्ध हैं जबकि चीन, ब्राजील, थाईलैंड और दक्षिणी कोरिया में हर हजार मरीजों के लिए औसतन 4 बैड हैं. देश के दोतिहाई नागरिक स्वास्थ्य सेवा पर खर्च निजी पैसे से ही करते हैं.

हमारे देश के ज्यादातर आंकड़े देश के स्वास्थ्य का दुखद खाका खींचते हैं. उदाहरणार्थ, रेलगाड़ी के लंबे सफर में सुबह खिड़की के बाहर गांवों के दृश्य चिंताजनक बन जाते हैं जब हम यूनिसेफ के इन आंकड़ों को ध्यान में लाते हैं. भारत की 50 फीसदी जनसंख्या बाहर खुले में शौच करती है. ब्राजील और चीन में यही संख्या 7 प्रतिशत और 4 प्रतिशत ही है. वहीं, देश की अधिकांश आबादी मल को फेंकने का सही इंतजाम करना तो दूर, मल को बाहर ही छोड़ देती है या फिर लापरवाही से कूडे़ के साथ फेंक देती है. नतीजतन, जो बीमारियां पनपती हैं उन के चंगुल में सिर्फ ये गरीब गांववासी ही नहीं, पूरी जनता फंसती है. फिर भी साल दर साल हमें गांवों में वही के वही दृश्य देखने को मिलते हैं. साफ है कि इस समस्या का समाधान काफी मुश्किल है.

देश की भारी जनसंख्या और लोगों की बीमारियों की तरफ लापरवाही या बीमारियों को उचित महत्त्व न देना, ये 2 वजह हैं कि दुनिया की कई बीमारियों, जैसे डेंगू ज्वर, हैपेटाइटिस, तपेदिक, मलेरिया और निमोनिया ने हमारे देश में ज्यादा भयंकर रूप धारण कर लिया है और आज इन के जानेमाने इलाज हमारे यहां काम ही नहीं करते.

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