दोस्ती के कौंसेप्ट पर बनी यह फिल्म हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘यारियां’ जैसी है. लेकिन जो फन, जो मजा, जो ऐक्साइटमैंट ‘यारियां’ के युवा फ्रैंड्स में था, वह इस में नहीं है. नए कलाकारों को ले कर बनाई गई यह फिल्म दर्शकों पर ज्यादा असर नहीं छोड़ पाती.

फिल्म की कहानी सिद्धार्थ नाम के एक युवक से शुरू होती है जो अमेरिका से भारत लौटा है. कहानी फ्लैशबैक में जाती है तो पता चलता है कि हिमाचल प्रदेश के कसौली जिले में सिद्धार्थ के दोस्तों का एक ग्रुप था जिस में सैम, बौबी, टीटू और सूजी हैं.

सारे दोस्त काउबौय के नाम से मशहूर हैं. सिद्धार्थ की मुलाकात नयनतारा (इजाबेले लेले) से होती है. दोनों में प्यार हो जाता है. उधर, सैम एक पार्टी में नयनतारा पर लट्टू हो जाता है और हर वक्त उसे पाने की कोशिश करता रहता है.

सिद्धार्थ को अमेरिका जाना पड़ता है. वापस लौटने पर उसे सैम की भावनाओं के बारे में पता चलता है तो वह दोस्ती की खातिर चुप रहता है. नयनतारा से मिलने पर वह खुद को रोक नहीं पाता और उस के साथ सोता है.

सैम यह सब देख लेता है. वह सिद्धार्थ को भलाबुरा कह कर उस से दोस्ती तोड़ लेता है. गुस्से में वह घर लौटता है, जहां उस के होने वाले सौतेला पिता और उस की मां (सारिका) के बीच झगड़ा चल रहा था. तेज गाड़ी चला कर वह झील में डूब कर मर जाता है. जातेजाते वह सिद्धार्थ के नाम ‘सौरी’ का लैटर और एक पुरानी जींस बतौर गिफ्ट रख जाता है ताकि उसे एहसास हो कि दोस्ती पुरानी जींस की तरह होती है. वह जितनी पुरानी हो उतनी ही मजबूत होती है.

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