अकसर गेहूं की खेती करने वाले किसान इस के कम उत्पादन और ज्यादा लागत की वजह से परेशान रहते हैं. हर साल धान की फसल की कटाई में देरी होने और उस के बाद खेतों को सूखने में काफी समय लगने की वजह से गेहूं की बोआई समय पर नहीं हो पाती है,  जिस का खमियाजा किसानों को भुगतना पड़ता है. मिसाल के तौर पर बिहार में 16 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की खेती की जाती है. इस के बाद भी गेहूं की बेहतरीन और भरपूर फसल का उत्पादन नहीं हो पाता है. गेहूं की खेती में जीरो टिलेज तकनीक को अपना कर किसान विपरीत हालात में भी बेहतरीन और ज्यादा उत्पादन कर सकते हैं. कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि उत्तर बिहार के निचले इलाकों में गेहूं की ज्यादातर खेती की जाती है. उन इलाकों में धान की कटाई काफी देर से होने की वजह से गेहूं की बोआई में देरी हो जाती है. इसी तरह से सूबे के दक्षिणी इलाके में मिट्टी सूखने में समय लगने से गेहूं की बोआई में 20 से 40 दिनों की देरी हो जाती है.

पिछले कई सालों से राज्य में 10 जनवरी से पहले गेहूं की बोआई नहीं हो पाई है, जबकि नवंबर व दिसंबर में गेहूं की बोआई का समय होता?है. गेहूं की बोआई में देरी होने से उस की पैदावार के साथ क्वालिटी पर भी बुरा असर पड़ता?है. कृषि वैज्ञानिक वीएन सिंह बताते हैं कि जीरो टिलेज तकनीक को किसान आसानी से अपना सकते हैं. इस से उत्पादन लगात में भी कमी आती?है. इस तकनीक के जरीए खेतों की जुताई के बगैर ही गेहूं की सही समय पर बोआई की जा सकती है. धान की फसल की कटाई के तुरंत बाद उसी खेत को बिना जोते हुए जीरो सीड ड्रिल से गेहूं को बोया जाता है. इसी को जीरो टिलेज तकनीक कहा जाता है. इस की खास बात यह?है कि इस में बीज और उर्वरक का एकसाथ इस्तेमाल किया जा सकता?है.

खेती के जानकारों का मानना है कि आमतौर पर गेहूं को बोने से पहले खेत को तैयार करने के लिए 5 से 6 बार जुताई करने की जरूरत होती है. इस से भी गेहूं की बोआई में देरी हो जाती?है, जिस वजह से फसल की उपज कम होती?है और क्वालिटी भी ठीक नहीं होती है. अगर 10 दिसंबर के बाद गेहूं की बोआई की जाती है तो अच्छी लागत के बाद भी प्रति हेक्टेयर 30-35 किलोग्राम कम गेहूं की पैदावार होती है. जीरो टिलेज तकनीक अपना कर किसान इस नुकसान से बच सकते?हैं. यह तकनीक हर तरह की मिट्टी के लिए फायदेमंद है और इस से बारबार खेतों की जुताई पर प्रति हेक्टेयर डेढ़ से ढाई हजार रुपए की बचत भी हो जाती है.

जीरो टिलेज तकनीक के जरीए गेहूं की खेती करने वाले पटना से सटे बिहटा के किसान मधेश्वर कहते?हैं कि इस तकनीक की खूबी यही?है कि धान की कटाई के बाद खेतों में काफी नमी रहने के बाद भी गेहूं की बोआई कर के फसल की अवधि में 20 से 25 दिन ज्यादा पा सकते हैं, जिस से उपज का बढ़ना लाजिम है. इस तकनीक के जरीए गेहूं को बोने पर उस के बीज 3 से 5 सेंटीमीटर नीचे जाते?हैं और बीज के ऊपर मिट्टी की हलकी परत पड़ जाती है. इस से बीज का जमाव अच्छा होता है और कल्ले अच्छे फूटते?हैं. इस में बीजों का अंकुरण गेहूं की परंपरागत खेती से 2-3 दिन पहले ही हो जाता है. खास बात यह?है कि बीजों का अंकुरण होने पर उन का रंग पीला नहीं पड़ता है. गेहूं की साधारण खेती के मुकाबले कम लागत व समय लगने और बेहतरीन व ज्यादा पैदावार होने की वजह से गेहूं की जीरो टिलेज तकनीक किसानों को रास आने लगी है. अब तो इस की मशीन किराए पर भी मिलने लगी है. लगातार मशीन चलाने पर 1 दिन में 8 एकड़ खेत में बोआई की जा सकती है. इस मशीन का किराया 200 से 300 रुपए तक प्रति एकड़ है.

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