नीबू वर्गीय पौधों में गमोसिस रोग अकसर हो जाता है. गमोसिस पौधों में कई तरह की वजहों से हो सकता है, जिन में तत्त्वों की कमी, फफूंदी, शाकाणुओं विषाणुओं का प्रकोप मुख्य हैं. फाइटोफ्थोरा नाम के फफूंद से नीबू वर्गीय पौधों में गमोसिस (गोंदाति रोग) होता है, इसे भूरा सड़न, गमोसिस पद सड़न, कौलर रोट, जड़ सड़न, फल सड़न जैसे कई नामों से जाना जाता है. यह रोग महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, मैसूर, असम, पंजाब राजस्थान के कई भागों में पाया जाता है. यदि समय पर रोग की रोकथाम की जाए तो पौधा मर जाता है.

 रोग के लक्षण : गमोसिस खासतौर से तने शाखाओं पर लगने वाली बीमारी है. रोग लगे पौधे के हिस्सों से गोंद का निकलना ही इस का मुख्य लक्षण है. सब से पहले रोग का असर पौधे के तने के निचले भाग पर जमीन से लगने वाले हिस्से के पास होता है, फिर चारों तरफ फैल कर नीचे जड़ तने की तरफ बढ़ता है, जिस से छाल लकड़ी दोनों ग्रसित होते हैं. बारिश के मौसम में गोंद पानी से धुल कर नीचे गिर जाता है और जमीन से मिल जाता है, इसलिए लक्षण साफ नहीं दिखाई पड़ते हैं. गरमी में रोग लगे हिस्से पर गोंद का इकट्ठा होना रोग के लक्षण को साफ दर्शाता है. रोग लगे तने शाखाओं पर छिलका फट जाता है और सूख जाता है. इन फटी हुई धारियों में से गोंद निकलता है. यदि रोग का असर जमीन के अंदर जड़ पर होता है, तो रोग के लक्षण शुरू में दिखाई नहीं पड़ते, लेकिन जड़ गलने से जड़ों का काफी हिस्सा बेकार हो जाता है. मुख्य तने जड़ों पर इस रोग के असर से पेड़ सूखने लगता है. पेड़ों के मरने से पहले उन के ऊपर काफी फूल आते हैं, लेकिन फल छोटे बनते हैं और पकने से पहले गिर जाते हैं. रोग लगे पेड़ों की पत्तियों पर तत्त्वों की कमी के लक्षण दिखाई पड़ते हैं. पत्तियों की नसें पीली पड़ जाती हैं और वे पकने से पहले गिर जाती हैं. रोग का असर बिना पके, पकने वाले पके फलों पर भी पहुंच जाता है. फलों पर पानी के धब्बे से दिखाई पड़ते हैं. ऐसे रोग लगे फल मुलायम होते हैं उन के ऊपर फफूंद लगी हुई दिखाई पड़ती है. कुछ दिनों बाद फल गिर जाते हैं उन फलों पर भी फफूंद उगती रहती है.

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