अपने काम के माहिर तेजाराम जोधपुर जिले के पिचियाक गांव के एक छोटे किसान हैं. शुरुआती पढ़ाई के बाद वे खेती करने लगे. उन के पास 8 बीघे जमीन है, जिस में वे सौंफ, कपास, मिर्च, गेहूं, ग्वार, मेथी व पालक की खेती करते हैं. तेजाराम बताते हैं कि छोटे किसानों को सब्जी उत्पादन से ज्यादा लाभ मिलता है. उन के गांव में पानी की कमी है और ऊपर से पानी खारा भी है, इसलिए सब्जी वाली ग्वार से ज्यादा लाभ मिलता है.

सब्जी वाली ग्वार की बोआई मई महीने में की जाती है. ग्वार सब्जी के नीलम 51 बीज की किस्म तेजाराम के इलाके के लिहाज से अच्छी है. इस का बीज 300 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से मिलता है, जिसे बाजार से खरीद कर आधा बीघा में बोआई करते हैं. बोआई से पहले 2 ट्रैक्टर ट्रौली गोबर की देशी खाद आधा बीघा में डालते हैं, जिस की कीमत करीब 5 हजार रुपए होती है. अगर घर की खाद उपलब्ध होती है तो पहले उसे काम में ले लेते हैं. उस के बाद ट्रैक्टर से 3-4 बार जुताई कर के ग्वारकी बोआई कर देते हैं.

सब्जी वाली ग्वार की बोआई के 35 से 40 दिनों बाद फसल में फूल आते हैं. उस समय यदि कोई कीट या सफेद मक्खी का प्रकोप होता है, तो कीटनाशी से रोकथाम करते हैं. सब्जी लगने के बाद घर की दवा नीम की निंबोली या नीम की पत्तियों को पीस कर छिड़काव कर देते हैं. इसलिए फसल अच्छी होती है और खराब नहीं होती है.

फसल जब 45 दिनों की हो जाती है, तब फलियां लगती हैं. हर तीसरे दिन फलियां तोड़ कर बाजार में बेच देते हैं. आधा बीघा में हर तीसरे रोज 60 किलोग्राम ग्वार की फलियां प्राप्त हो जाती हैं, जो बाजार में 25 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिकती हैं. इस तरह हर तीसरे रोज 1500 रुपए मिल जाते हैं. एक फसल में ग्वार की फलियां 90 दिनों तक मिलती रहती हैं, जिस से लगातार आमदनी होती रहती है. कुल हिसाब लगाएं तो आधा बीघा में ग्वार की फसल से 16 हजार रुपए की आमदनी हो जाती है. तेजाराम आगे बताते हैं कि छोटे किसानों के लिए सब्जी वाली ग्वार अधिक लाभ देती है. पड़ोसी किसानों ने भी ग्वार की खेती की है.

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