गन्ना एक नकदी फसल है, जिसे किसान अपनी खास फसल की तरह उगाते हैं. इस की बोआई शरदकाल (सितंबरअक्तूबर) और बसंतकाल (फरवरीमार्च) दोनों ही समयों में की जाती है. आज के समय में खेती एक व्यापार है. खेती से हर किसान एक तय समय में ही अधिक से अधिक फायदा कमाना चाहता है. उत्तर प्रदेश में गन्ने की कम पैदावार के खास कारण हैं गन्ने की खड़ी फसल को महत्त्व न देना, कम पैदावार वाली किस्मों का इस्तेमाल करना, सही मात्रा में खाद का प्रयोग न होना और फसल की देखभाल सही तरह से न करना.

बसंत के मौसम में गन्ने की बोआई के लिए सब से सही समय फरवरी के महीने का है, लेकिन भारत में 15-20 फीसदी किसान ही फरवरी में बोआई कर पाते हैं, क्योंकि ज्यादातर किसानों के खेतों का आकार छोटा होने के कारण रबी की फसलें खेत में लगी रहती हैं. ये फसलें मार्चअप्रैल में कटती हैं. रबी की फसलों की बोआई के समय जल्दी पकने वाली किस्मों को न लगाना, समय से बोआई न कर पाना भी गन्ने की पैदावार पर असर डालता है.

बसंत के समय का महत्त्व

* फसल और सहफसल मिलीजुली खेती प्रणाली में किसानों की कई तरह की जरूरतों को पूरा करती हैं, जैसे खाने के लिए दाल व पशुओं के लिए चारा.

* सहफसल के बीच के समय में होने वाली आमदनी से गन्ने की अच्छी देखभाल की जा सकती है.

* पूरे साल किसान के परिवार के सदस्यों खासतौर से स्त्रियों व बच्चों को काम मिलता रहता है.

* खरपतवारनाशी के प्रयोग से बचा जा सकता है, जिस से खर्च की बचत होती है.

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