आलू की फसल कम समय में किसानों को ज्यादा फायदा देती है, पर पुराने तरीके से खेती कर के किसान इस से ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने से चूक जाते हैं. आलू किसानों की खास नकदी फसल है. अन्य फसलों की तुलना में आलू की खेती कर के कम समय में ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है. अगर किसान आलू की परंपरागत तरीके से खेती को छोड़ कर वैज्ञानिक तरीके से खेती करें तो पैदावार और मुनाफे को कई गुना बढ़ाया जा सकता है. वैज्ञानिक तकनीक से आलू की खेती करने पर प्रति एकड़ 4-5 लाख रुपए की सालाना आमदनी हो सकती है. आलू की अगेती फसल सितंबर के आखिरी सप्ताह से ले कर अक्तूबर के दूसरे सप्ताह तक और मुख्य फसल अक्तूबर के तीसरे सप्ताह से ले कर जनवरी के पहले सप्ताह तक लगाई जा सकती है. इस की खेती के लिए बलुई दोमट या दोमट मिट्टी काफी मुफीद होती है. अप्रैल से जुलाई बीच मिट्टी पलट हल से 1 बार जुताई कर ली जाती है. उस के बाद बोआई के समय फिर से मिट्टी पलट हल से जुताई कर ली जाती है. उस के बाद 2 या 3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई करने के बाद बोआई की जाती है.

जल्दी तैयार होने वाली किस्में : कुफरी अशोक, कुफरी पुखराज और कुफरी सूर्या आलू की उन्नत किस्में हैं और ये बहुत जल्दी तैयार हो जाती हैं. कुफरी अशोक के कंदों का रंग सफेद होता है और ये करीब 75 से 85 दिनों के भीतर पक कर तैयार हो जाती है. इस की उत्पादन कूवत 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. कुफरी पुखराज प्रजाति के आलू के कंदों का रंग सफेद और गूदा पीला होता है. इस की फसल 70 से 80 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. 1 हेक्टेयर खेत में 350 से 400 क्विंटल फसल पाई जा सकती है. कुफरी सूर्या किस्म के आलू का रंग सफेद होता है और यह किस्म 75 से 90 दिनों के भीतर पक कर तैयार हो जाती है. इस में प्रति हेक्टेयर करीब 300 क्विंटल की पैदावार होती है.

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