फसलों में रोगों व कीटों की रोकथाम के लिए बेतहाशा रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल बढ़ गया है, जिस से पर्यावरण तो प्रदूषित हो ही रहा है, सेहत पर भी गलत असर पड़ रहा है. कीटों और रोगकारकों ने तमाम प्रचलित रासायनिक दवाओं के प्रति अपने अंदर प्रतिरोधकता पैदा कर ली है, लिहाजा दवाएं बेअसर साबित हो रही हैं. इसीलिए खेती अब घाटे का काम साबित हो रही है. ऐसे में हानिकारक कीटों और बीमारियों की रोकथाम के लिए वैज्ञानिकों ने एक नई तरकीब निकाली है, जिसे एकीकृत नाशी जीव प्रबंधन कहते हैं. इस में कीटों व बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए एक से ज्यादा तरीकों को अपनाया जाता है.

इस तरकीब में कीटों, रोगों और खरपतवारों आदि के खात्मे के बजाय उन के प्रबंधन की बात की जाती है. वास्तव में इस प्रक्रिया में किसी जीव को हमेशाहमेशा के

लिए खत्म करना नहीं होता, बल्कि ऐसे उपाय करने होते हैं, ताकि फसल को नुकसान न पहुंच सके.

गन्ने के पाइरिला कीट और चने के फली छेदक कीट पर एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन से पूरा काबू पाया गया है. चने की फसल में कीटों और रोगों से 10 से 30 फीसदी तक का नुकसान देखा गया है, खासतौर पर चने का फली छेदक कीट तो सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला कीट है. इसलिए एकीकृत नाशीजीव जीव प्रबंधन को झटपट अपनाएं और लाभ पाएं.

क्या है एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन?

इस के तहत केवल एक ही तरीके (रासायनिक दवाओं) को अपनाने के बजाय सभी मौजूद साधनों का एकसाथ इस्तेमाल किया जाना चाहिए. इस में शस्य क्रियाएं, अवरोधी किस्मों के इस्तेमाल, यांत्रिक क्रियाएं, तकनीकी क्रियाएं व जैविक साधनों के साथसाथ जरूरत पड़ने पर रसायनों का इस्तेमाल करना चाहिए. इस विधि का प्रबंधन निम्न तरीकों से कर सकते हैं:

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