सरकार किसानों के भले के लिए अनेक योजनाएं लाती है, लेकिन प्रचारप्रसार के अभाव में ज्यादातर योजनाएं किसानों तक पहुंच नहीं पातीं और वे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं या आधीअधूरी ही पहुंचती हैं. ऐसी ही एक योजना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन 2016-17 है, जिस का हाल भी कुछ ऐसा ही हो रहा है. इस योजना का पूरा फायदा किसानों तक नहीं पहुंच रहा है. देश में खाद्य सुरक्षा पक्की करने के लिए शुरू किया गया राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन राज्यों के सहयोग न करने के कारण अपना निर्धारित मकसद पाने में नाकाम हो रहा है. केंद्र सरकार ने मिशन के लिए 231 करोड़ रुपए की रकम तय करते हुए बताया कि गेहूं, चावल और दाल की पैदावार बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा किसानों को राज्यों के जरीए विशेष सहायता दी जाती है, लेकिन पिछले साल जारी की गई राशि अभी तक खर्च नहीं की गई है, जबकि साल 2017 आ चुका है.

आंकड़ों के मुताबिक धान की पैदावार बढ़ाने के लिए 128.42 करोड़ रुपए तय किए गए हैं. इन में से 82.27 करोड़ रुपए जारी किए जा चुके?हैं, लेकिन राज्य सरकारों ने अभी तक 46.15 करोड़ रुपए खर्च नहीं किए हैं. इसी तरह से दालों की पैदावार बढ़ाने के लिए कुल 102.99 करोड़ रुपए जारी किए गए. राज्यों ने अभी तक 72.80 करोड़ रुपए खर्च नहीं किए है. किसानों तक महज 40.75 करोड़ रुपए ही पहुंचे हैं. बहरहाल इस मिशन के तहत अभी तक 32105.8 लाख रुपए तय किए जा चुके हैं और 8227.2 लाख रुपए जारी हो चुके?हैं. आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल सूबों में यह मिशन चल रहा?है.

किसानों को किया जाता प्रोत्साहित : खाद्य संकट से निबटने के लिए शुरू किए गए राष्ट्रीय खाद्य मिशन के तहत गेहूं, चावल और दाल की बोआई के लिए किसानों को बढ़ावा दिया जाता?है और उन्हें इस के तहत विशेष सहायता दी जाती है, ताकि वे अपनी खेती से अच्छी पैदावार ले सकें अैर उन पर आर्थिक बोझ भी कम रहे. इस मिशन को 3 खास भागों गेहूं, चावल और दाल में बांटा गया है. कृषि मंत्रालय के अधिकारियों का कहना?है कि इस मिशन का मकसद एक ओर जहां देश की बड़ी आबादी को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाना होता?है, वहीं किसानों की आमदनी बढ़ाना भी है. यह योजना 11वीं पंचवर्षीय योजना के तहत देश के 14 राज्यों के 168 जिलों में चलाई जा रही है.

योजना के खास लक्ष्य : योजना शुरू करने के लिए राष्ट्रीय स्तर से ले कर ग्राम पंचायत स्तर तक एक तंत्र तैयार किया गया है और इस की बराबर निगरानी की जाती है. हर किसान को उस की जरूरत के मुताबिक सरकार द्वारा आर्थिक, तकनीकी और कारोबारी सहायता मुहैया कराई जाती है. किसानों को कृषि उपकरण खरीदने के लिए 50 फीसदी तक की आर्थिक मदद दी जाती है. उन की कृषि भूमि का परीक्षण किया जाता?है और उन्हें जरूरी सूक्ष्म पोषक तत्त्वों और अन्य रसायनों के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है और किसानों के लिए तमाम जरूरी चीजें मुहैया कराई जाती हैं. इस मिशन में ग्राम पंचायतों का भी खासा योगदान रहता है. उन्हें भी ध्यान रखना चाहिए कि योजना के लिए जमीन किसान या परिवारों का चयन करते हुए समाज के सभी वर्गो का ध्यान रखें. सरकारी नियमों के मुताबिक उन्हें मदद व जानकारी दें. जिले के लिए कुल तय रकम का 33 फीसदी लघु, सीमांत और महिला किसानों के लिए आरक्षित होगा. ग्राम पंचायतें इस बात पर नजर रखेंगी कि किसी भी किसान को किन्हीं 2 योजनाओं का लाभ एकसाथ न मिले. मिशन के तहत भूमि संरक्षण के लिए राज्य सरकारों को जिम्मेदारी दी गई?है. इस के लिए अखिल भारतीय मृदा और भूमि उपयोग सर्वेक्षण को नोडल एजेंसी बनाया गया है.

इस के अलावा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण और भूमि नियोजन ब्यूरो नागपुर और भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान भोपाल इस काम में सहयोग करेंगे. इस योजना में उत्पादकता बढ़ाने पर खास ध्यान दिया जा रहा?है, इसलिए किसानों को प्रमाणित बीज मुहैया कराए जाते हैं और उन को इस के लिए खास माली मदद दी जाती है. यह मदद प्रति क्विंटल 1200 रुपए तय की गई है. धान और गेहूं में सूक्ष्म तत्त्वों को बढ़ावा देने के लिए किसानों को 500 रुपए प्रति हेक्टेयर दिए जाएंगे. धान के किसानों को चूना का इस्तेमाल करने के लिए 500 रुपए अलग से दिए जाएंगे. यह राशि परीक्षण के आधार पर दी जाएगी. इसी तरह गेहूं के किसानों को जिप्सम के लिए 500 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से मदद दी जाएगी. दलहन के किसानों को सूक्षम पोषक तत्त्वों और चूने के लिए 1250 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से मिलेंगे. ऊपर बताई गईं. बातों से पता चलता?है कि किसानों के भले के लिए तो बहुत कुछ हो रहा है, लेकिन उन तक फायदा पहुंचे तभी कुछ बात बनेगी.

किसानों का भला सोचने के लिए योजनाएं बनती?हैं, तो उन्हें लागू कराना भी सरकार का काम?है. लेकिन नेताओं को अपनी राजनीति करने और एकदूसरे की टांगखिंचाई से फुरसत मिले तभी कुछ होगा. कोई भी योजना को लागू करने के लिए नियम बनाने होंगे और उन्हें अमल में लाना होगा. अधिकारियों व कर्मचारियों को काम करना होगा. तभी कुछ नतीजा निकलेगा, नहीं तो योजनाएं बनेंगी और कागजों में सिमट कर रह जाएंगी.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...