हमेशा चर्चा में रहने वाले बिहार सहित देश के कई राज्यों में देशी मवेशियों और मछलियों के गायब होने का खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है. गाय, भैंस, भेड़, बैल और कई मछलियों की देशी नस्लें धीरेधीरे गायब होती जा रही हैं. नई तकनीक की खूबियों के बीच देशी मवेशी गायब होते जा रहे हैं और उन्हें बचाने के लिए बने महकमों को इस बात की कोई चिंता नहीं है. दर्जनों सरकारी योजनाएं कागजों से बाहर नहीं निकल सकी हैं. गाय, भैंस, बैल और भेड़ों की कई नस्लों के गायब होने का खतरा काफी बढ़ गया है. बिहार के सभी वेटनरी फार्म और वेटनरी कालेजों की खस्ता हालत की वजह से मवेशियों की नस्लों की हिफाजत नहीं हो पा रही है. इस से दियारा भैंस, शाहाबादी भेड़, रेड गाय और बछौर बैल की नस्लें खत्म होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं और इस बारे में सरकारी अफसरों को कोई चिंता ही नहीं है. इस के अलावा गायों और भैंसों की कई लोकल नस्लों का भी कोई आंकड़ा पशुपालन विभाग के पास नहीं है. पटना, गोपालगंज, डुमरांव, पूर्णियां, बेला, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, नालंदा, कटिहार, नवादा और किशनगंज के वेटनरी फर्म सफेद हाथी बने हुए हैं. किसी भी फर्म में वेटनरी डाक्टर नहीं हैं. सारे पद काफी दिनों से खाली पड़े हुए हैं.

वहीं दूसरी ओर गंगा नदी में हजारों सालों से रह रही देशी किस्म की मछलियां लुप्त होने की कगार पर पहुंच गई हैं. गंगा समेत बिहार की बाकी नदियों में पाई जाने वाली रोहू, कतला, नैनी, पोठिया, गरई, मांगुर, बचबा वगैरह देशी किस्म की मछलियों पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं. अगर इन्हें बचाने का कोई उपाय नहीं किया गया तो देशी मछलियां इतिहास की बात हो जाएंगी. गंगा की देशी मछलियां अफ्रीकन, दक्षिण अमेरिकन और चाइनीज मछलियों का शिकार हो रही हैं. बाढ़ के दौरान तालाबों और झीलों से निकल कर विदेशी किस्म की मछलियां गंगा समेत बाकी नदियों में आसानी से पहुंच जाती हैं. बिहार में बड़े पैमाने पर विदेशी किस्म की मछलियों का पालन तालाबों और झीलों में किया जा रहा है. इस से किसानों और मछलीपालकों को काफी फायदा तो हो रहा है, लेकिन बाढ़ के समय जब सारी झीलें और तालाब पानी से लबालब हो जाते हैं, तो विदेशी मछलियां उन से निकल कर नदियों तक पहुंच जाती हैं. राष्ट्रीय गंगा बेसिन प्राधिकरण के विशेषज्ञ सदस्य और डाल्फिन मैन के नाम से मशहूर डाक्टर आरके सिन्हा तमाम सभाओं और सेमीनारों के जरीए लोगों को चेताते रहे हैं कि सही और ठोस इंतजाम न होने की वजह से कई विदेशी किस्म की मछलियां गंगा नदी में पहुंच चुकी हैं. अफ्रीका की थाई मांगुर और पिलपिया, दक्षिण अमेरिका की सेलफिनफिश और चीन की सिल्वर कौर्प, कौमन कौर्प और ग्रास मछलियां देशी मछलियों को खा जाती हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...