तपती भीषण गरमी वाला जून का महीना खेतों में काम करने वालों की हालत खराब कर देता है. चिलचिलाती धूप में भी कर्मठ किसान अपना फर्ज निभाने से नहीं चूकते और पसीना पोंछते हुए अपने काम में जुटे रहते हैं.
मौसम की खराबी से किसानों की गतिविधियों पर जरा सा भी असर नहीं पड़ता. जो मौसम की तपिश से घबरा जाए, वह किसान हो ही नहीं सकता. अगर किसान भी लाटसाब बन कर छांव में बैठ जाएं तो खेती का काम हो चुका.
किसान तो हर मौसम से जूझ कर तमाम लोगों के लिए दालरोटी का बंदोबस्त करते हैं, तभी तो उन्हें महान माना जाता है. अपने सुखचैन और आराम को कुरबान कर के खेती करना आसान नहीं होता.
जून के मौसम से जूझते किसानों को बेहद हसरत से बरसात के मौसम का इंतजार रहता है, मगर जब से मौसम का मामला गड़बड़ाया है, तब से बारिश का भी कोई भरोसा नहीं रह गया है. बहरहाल, आइए डालते हैं एक नजर जून में होने वाले खेती के खास कामों पर :
* अपने गन्ने के खेतों का मुआयना करें, क्योंकि तीखी धूप से अकसर खेतों का पानी भाप बन कर उड़ जाता है. खेत जरा भी सूखे नजर आएं तो उन की बाकायदा सिंचाई करें.
* गन्ने के खेतों में खरपतवार नजर आएं तो निराईगुड़ाई कर के उन्हें निकालें, क्योंकि खरपतवारों की वजह से गन्ना ठीक से पनप नहीं पाता.
* नाइट्रोजन की बकाया मात्रा अगर अभी तक गन्ने के खेतों में न डाली हो, तो बगैर चूके उसे डाल दें.
* गन्ने की फसल में किसी रोग या कीड़ों का हमला नजर आए तो कृषि वैज्ञानिक को दिखा कर उस का इलाज करें.
* जून का मौसम धान के लिहाज से खास होता है. महीने के दूसरे हफ्ते तक धान की नर्सरी डालने का काम निबटाएं.
* धान की नर्सरी डालने के लिए उम्दा किस्म का चयन करें. सही किस्म की जानकारी के लिए अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र की मदद लें. वहां के वैज्ञानिक इलाके के मुताबिक सही किस्म के बारे में बता देंगे.
* अगर धान की नर्सरी पिछले महीने ही डाल चुके हों, तो उस के पौधे रोपाई लायक होने पर रोपाई का काम खत्म करें. रोपाई 15-20 सेंटीमीटर के फासले पर सीधी लाइन में करें. एक जगह पर 2-3 पौधों की रोपाई करें.
* इसी महीने अरहर की भी बोआई की जाती है. लिहाजा अगर ऐसा इरादा हो तो काम खत्म करें. अरहर की बोआई से पहले बीजों को कार्बंडाजिम से उपचारित करना न भूलें. उपचारित करने से बीज महफूज रहते हैं और उन का अंकुरण भी ढंग से होता है.
* अरहर बोने के लिए 15 से 20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. बोआई में 50 सेंटीमीटर का फासला रखें और सीधी रेखा में बोआई करें.
* अगर बाजरे की बोआई का इरादा हो और आप के इलाके में बाजरे की खेती होती हो, तो मानसून की पहली बरसात होने के बाद बाजरे की बोआई करें.
* बाजरे की बोआई के लिए 5 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. बाजरे की बोआई सीधी लाइन में 50 सेंटीमीटर का फासला रखते हुए करें.
* अगर ज्वार बोने का मन हो, तो जून के आखिरी हफ्ते में यह काम करें. बोआई के लिए 15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.
* फायदेमंद साबित होने वाली फसल मूंगफली की बोआई भी जून में निबटा लेना मुनासिब होता है. मूंगफली की बोआई के लिए 60-70 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगेंगे.
* मूंगफली के बीजों को कार्बंडाजिम से उपचारित कर के बोना चाहिए. बोआई सीधी रेखा में 50 सेंटीमीटर के फासले पर करें.
* अगर मूंग की फसल पूरी तरह से पक चुकी हो, तो उस की कटाई का काम निबटाएं. कटाई में देरी करने से खेत बेवजह भरे रहते हैं.
* अगर उड़द की फसल पूरी तरह पक चुकी हो, तो उस की कटाई का काम खत्म करें. फसल की कटाई में देरी करना मुनासिब नहीं रहता.
* सोयाबीन की खेती करना काफी फायदे का सौदा होता है. अगर आप के इलाके में सोयाबीन की खेती अच्छी होती हो, तो माहिरों की राय ले कर इस की बोआई करें. कृषि वैज्ञानिक से सोयाबीन की उम्दा किस्मों की जानकारी मिल जाएगी.
* सोयाबीन की बोआई के लिए 80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगेंगे. बोआई सीधी लाइन में 50 सेंटीमीटर के फासले पर करें.
* 15 जून के बाद सूरजमुखी की बोआई की जा सकती है. यह फसल भी काफी फायदे की होती है, लिहाजा इस की बोआई करने में हर्ज नहीं है.
* सूरजमुखी की बोआई और किस्मों के बारे में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक की सलाह जरूर लें.
* अपने कपास के खेतों का मुआयना करें. अगर खेत सूखे लगें तो सिंचाई कर दें. सिंचाई के बाद खेत में नाइट्रोजन की बकाया मात्रा डाल दें.
* सिंचाई के अलावा कपास के खेत की निराईगुड़ाई कर के खरपतवार निकाल दें. अगर पौधों में कीटों या रोगों के लक्षण नजर आएं तो माहिरों से पूछ कर दवा का इस्तेमाल करें.
* इस महीने शरदकालीन बैगन की नर्सरी डालें. बोआई के लिए अच्छी किस्म के बीजों का चुनाव करें.
* अपने लहसुन के खेतों का मुआयना करें. अगर फसल तैयार हो गई हो, तो खुदाई का काम खत्म करें. खुदाई के बाद फसल को
2-3 दिनों तक खेत में ही सूखने दें. चौथे दिन लहसुन की गड्डियां बना कर उन्हें मुनासिब जगह पर रखें.
* मिर्च के खेतों में निराईगुड़ाई कर के खरपतवार निकालें, जरूरत के मुताबिक सिंचाई भी करें.
* पकी मिर्चें तोड़ कर मार्केट में भेजें.
* अगली फसल के लिए मिर्च की नर्सरी डालें. प्रति हेक्टेयर रोपाई के लिए मिर्च के डेढ़ किलोग्राम बीज लगते हैं.
* तुरई की पहले डाली गई नर्सरी के पौध तैयार हो गए होंगे, तैयार पौधों की रोपाई करें, रोपाई 100×50 सेंटीमीटर के फासले पर करें.
* अदरक के खेत सूखे लगें तो उन की सिंचाई करें. अदरक के खेतों में 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालें, इस से फसल बेहतर होगी.
* हलदी के खेतों में भी जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें और 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालें. यूरिया के इस्तेमाल से फसल उम्दा होगी.
* अगर रामदाना की बोआई का प्रोग्राम हो तो 15 जून तक यह काम जरूर कर लें. रामदाना की बोआई के लिए डेढ़ किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगेंगे.
* पशुओं के दाने के लिहाज से मक्के की बोआई करें.
* पशुओं के चारे के लिहाज से अन्य फसलों की बोआई भी जून में कर देनी चाहिए. इस बारे में इलाके के कृषि वैज्ञानिक की सलाह ले सकते हैं.
* जून की गरमी और लू से अपने पशुओं को बचाने का पूरा बंदोबस्त करें.
* गायभैंसों को गरमी से बचाने के लिए पंखों व कूलरों का इंतजाम करें.
* गायभैंसों को दिन में धूप से बचाएं, पर रात के वक्त बाहर बांध सकते हैं. पशुओं को बाहर बांधते वक्त इस बात का खयाल रखें कि चोर उन्हें चुरा न सकें.
* अपने मुरगामुरगियों को भी लू व गरमी से बचाने का इंतजाम करें. उन के लिए भी पंखे व कूलर लगाएं.
* अगर गायभैंस या मुरगामुरगी वगैरह बीमार नजर आएं तो जानवरों के डाक्टर से संपर्क करें.